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आगे की कहानी अनीता की जुबानी..
मैं बचपन से ही पढाई में गंभीर थी और खेलों में भी सक्रीय थी। मेरी मम्मी पहले से ही मुझे और मेरी छोटी बहन को यह सिख देती आ रही थी की यदि हमने पढाई में ध्यान नहीं दिया तो हमें आगे चलकर बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। मेरी मम्मी भी अपने स्कूली जीवन में एक खेलाड़ी थी। वह लड़कियों के शारीरिक खेल जैसे कबड्डी, फुटबॉल इत्यादि में जिला चैंपियन रह चुकी थी।
मरे स्कूल और कॉलेज में भी मैं पढ़ाई एवं खेल में सब लड़कियों में आगे रहती थी। यही कारण था की कॉलेज में मैं एक अल्हड लड़की मानी जाती थी। दिखने में मैं सुन्दर तो थी ही। मेरी मम्मी कश्मीर से थी और पप्पा पंजाबी थे। तो मुझे माँ की सुंदरता और नजाकत और पप्पा की शारीरिक विशेषताएं और लंबाई वंशानुगत रूप में मिली थी। हमारी यूनिवर्सिटी में मैं मिस यूनवर्सिटी भी चुनी गयी थी।
मेरे कॉलेज में बहुत सारे लड़के मेरे दीवाने थे। पर मैं उनकी और देखती भी नहीं थी। माँ कहती थी की लड़कियों को अपना चरित्र सम्हालना पड़ता है। पर जब मैंने पहली बार अनिल को देखा तो जैसे मेरे पॉँव ढीले पड़ गए। अनिल न सिर्फ लंबा, गठीले शरीर वाला, फुर्तीला और आकर्षक था, पर उसमें कुछ ऐसी बात थी जो और लड़कों में नहीं थी। कॉलेज में वह मुझसे तीन साल आगे था।
हमारी मुलाकात पहली बार कॉलेज में चर्चा स्पर्धा में हुई। चर्चा स्पर्धा का विषय था “जब पडोशी देशों के बिच यदि कड़ी मत भिन्नता हो और उन दोनों में से एक देश बार बार यदि संघर्ष पर उतारू होता है, तो दूसरे देश के लिए क्या युद्ध ही एक मात्र समाधान रहता है?”
विषय गंभीर था। हम दोनों प्रतिद्वंद्वी थे। चर्चा स्पर्धा में लड़कों में वह प्रथम आया और लड़कियों में मैं। तब फिर हमारे बिच स्पर्धा हुई। उसमें मैंने उसे जब पराजित कर दिया तो नाराज होने के बजाय सबसे ज्यादा तालियां उसने बजायी और सब उपस्थित लोगों के सामने यह माना की मेरे तर्क वितर्क उससे कहीं ज्यादा सटीक और सही थे। मुझे पदक जितने से उतनी ख़ुशी नहीं हुई जीतनी के अनिल की सराहना से। उसने मुझे पहली मुलाकात में ही अपनी सरलता और विनम्रता से जित लिया।
फिर तो हमारी मुलाक़ात नियमित रूप से होने लगी। पढाई में भी वह आगे रहता था। धीरे धीरे हमारी करीबियां बढती गई। एक बार जब मुझे वह अपनी बाइक पर छोड़ने आया तब मैंने उसे अपने घर के अंदर बुलाया और मम्मी पप्पा से भी मिलाया। उस समय तक मेरे मनमें अनिल के प्रति एक दोस्त के अनुरूप ही भाव था। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है..
अनिल ने ग्रेजुएशन के बाद मास्टर्स भी उसी कॉलेज में किया और हमारी मुलाकातों का दौर जारी रहा. पढाई में भी मैं उससे कभी कभी सहायता लेने लगी। मैंने अनुभव किया की धीरे धीरे अनिल को मेरी और शारीरिक आकर्षण हो रहा था। खैर मैं भी उसकी और आकर्षित हो रही थी, पर वह मुझसे शारीरिक स्पर्श करने के लिये बड़ा उत्सुक रहता था। हम जब साथ साथ बैठते थे तो वह मुझसे सटकर बैठता था। कई बार वह मेरे शरीर को जैसे अनजाने में ही छू लिया हो ऐसे छूता था। मुझे वह अच्छा लगने लगा पर साथ साथ में यह भी डर लग रहा था की कहीं वह और आगे न बढे।
मैं यह मानूँगी की मेरे बदन में भी कुछ ज्यादा ही रोमांच और उत्तेजना के भाव पनप रहे थे। पर माँ की सिख थी की लड़कों के साथ हमें बड़ा सतर्क रहना पड़ेगा की कहीं वह हमारे गुप्त अंगों को छूने या उनसे खेलने की कोशिश न करे। मैं ऐसी परिस्थिति में या तो उठ खड़ी हो जाती या फिर बात को पलट कर वहां से खिसक जाती। पर जब मैं उसके चेहरे पर निराशा के भाव देखती तो मुझे भी बुरा लगता था। जब मैं लड़की हो कर उत्तेजना अनुभव कर रहीथी तो वह तो लड़का था। उसे ज्यादा उत्तेजना होना स्वाभाविक था यह मैं भलीभांति समझती थी।
और इसी कारण कई बार मैं अपने दिमाग और मन के संघर्ष में फंस जाती थी और अनिल के कामुकता पूर्ण स्पर्श का विरोध नहीं कर पाती थी। अनिल ने कई बार मेरी छाती पर हाथ रखा और मेरे स्तनों को मेरे कुर्ते के ऊपर से मसला भी। पर मैंने उसे इससे आगे नहीं बढ़ने दिया। वह मेरे स्तनों को देखना चाहता था। मैं उसे छूने देती थी पर कुर्ती के ऊपर से ही। हम लोग कई बार पार्क मैं बैठ बातें करते और एक दूसरे के हाथोँ में हाथ डाले घूमते थे। अनिल ने कई बार मेरा हाथ अपने पाँवोँ के बिच में रखने की कोशिश की और मैं उसे झटका कर हटा देती थी। पर उसके चेहरे की निराशा देख मुझे बुरा भी लगता था।
एक बार जब एक दिन हमारे ग्रुप ने (जिसमे अनिल भी था) पिकनिक का प्रोग्राम बनाया। हम सब शहर से करीब बिस किलोमीटर दूर एक बड़ा पार्क था वहां पिकनिक मनाने गए। वह बहुत बड़ा था और उसमें झरने, घना वन और छोटी पहाड़ियां होने के कारण बड़ा मनोरम्य था। सारे कॉलेज, स्कूल और ऑफिस चालू होने के कारण पार्क खाली था और हमें ऐसे लग रहा था जैसे सारा पार्क ही हमारा था। अनिल ने तब सुझाव दिया की हम सब वह छोटे पहाड़ पर चढ़ कर वापस आएं। ज्यादातर लड़के लड़कियां तो डांस और संगीत में मस्त थे और नहीं आये। पर मैं, अनिल और एक और लड़का और दो लड़कियां साथ में चल पड़ी। थोड़ा चलने के बाद एक तीखी चढ़ाई जब आयी तो लड़कियां थक गयीं और वापस चली गयीं ।
अनिल काफी फुर्ती दिखाते हुए आगे निकल गए। वह मुझे आगे बढ़ने का बारबार प्रोत्साहन दे रहे थे। अपने आपको कैसे सम्हाला जाये और कैसे संतुलन बनाया जाये उसके बारें में भी अनिल दूरसे ही चिल्ला कर कहते जा रहे थे। रास्ता कठिन था। बिच बिच में पत्थर पर पाँव रखने पर पाँव फिसल भी जाते थे। पर अनिल हमेशां मुझे देखते रहे थे की कहीं मैं गिर न जाऊं या मुझे कोई चोट न पहुंचे। हमारे साथ में एक और लड़का था वह थक गया था और एक झरने के पास बैठ अपने पाँव धोने लगा। उसने हमें कहा की वह थोड़ा आराम कर वापस चला जायगा। अनिल पर शिखर तक जाने की धुन सवार थी और मैं भी बिच रास्ते से वापस जाने के मूड में नहीं थी।
अनिल मुझसे काफी आगे पहाड़ी के ऊपर चढ़ चूका था। और ऊपर खड़ा होकर मुझे चढ़ते हुए देख रहा था। वह बार बार मुझे, “बहोत अच्छे, शाबाश। अब तो हम बस पहुँच ने वाले ही हैं।” इत्यादि बोल कर मेरा हौसला बढ़ा रहे थे और मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे। मुझे अनिल की यह बात बहुत भायी। अनिल की बातों में अपना पन था। वह मुझे अकेला छोड़ना नहीं चाहते थे। उस समय उनकी नजर में कोई लोलुपता नहीं बल्कि उनका व्यवहार एक लीडर अपने सहयोगी को कैसे मार्गदर्शन करता है उसका उत्साह बढ़ाता है वैसा ही था।
तब अचानक मेरा पाँव एक पत्थर पर पड़ा और मैं फिसल गयी और पहाड़ी से निचे गिरने लगी। जब अनिल ने मुझे गिरते हुए देखा तो वह कूद पड़े और मुझे पकड़ने के लिए पथरीले ढलाव पर उन्होंने फिसलना शुरू किया और देखते ही देखते वह मेरे पास आ गए और उसने मुझे बांहों से पकड़ कर थाम लिया और निचे खाई में गिरने से बचा लिया। मैंने देखा की ढलाव पर फिसलने से उनके कपडे फट गए थे और उनके पॉँव और हाथ छिल गए थे। उनके हाथ और पाँव से खून बह रहा था। थोड़ी मामूली सी चोट मुझे भी आयी थी, पर मैं ठीक थी। मैंने अपने सलवार को फाड़ कर अनिल के घाव पर पट्टी बाँध दी और अनिल को अपनी बाहों में लेकर मैं एक पेड़ के निचे बैठ गयी। हम दोनों श्रम से हांफ रहे थे और पसीने से तर थे।
मैं काफी डरी हुई थी। मैं अनिल से लिपट गयी और उनकी छाती पर अपना सर रख कर रोने लगी। अनिल मुझे सहलाने लगे और मेरे आंसू पोंछने लगे। उनका मेरे बदन पर हाथ फिराना मुझे अच्छा लग रहा था। अनिल के करीबी बदन से बदन लिपट ने से मेरे बदन में एक अजीब सा रोमांच होने लगा। इसके पहले भी कई बार मुझे अनिल को देख मनमें एक अजीब सी टीस का अनुभव होता था। पर उस समय जबकि मैं अनिल की बाहों में थी और अनिलने मुझे बचाने के लिए अपनी जान का जोखिम उठाया था तब मुझे अनिल का बड़े प्यार से मेरे बदन पर हाथ फिराना अत्यंत उत्तेजित कर रहा था।
मैं एक छोटी बच्ची की तरह थोड़ा पलट कर अनिल की गोद में लेट गयी और उनके एक हाथ की उँगलियों के साथ प्यार से खेलने लगी। अनिल दूसरे हाथ से मेरे बालोंमें, मेरे सिर पर, गाल पर और नाक पर अपना दुसरा हाथ फेर रहे थे की अचानक उनके हाथ मेरे स्तन पर जा टिके।
वह थोड़ा हिचकिचाने लगा। उसे लगा की शायद मुझे अच्छा नहीं लगेगा, तो फिर उसने धीरे से मेरे स्तनों के पास हाथ रखकर मेरे कान में फुसफुसाते हुआ पूछा, “क्या मैं इनको छू सकता हूँ?” मैंने बिना बोले ही फुर्ती से अपना सर हिला कर उसे इजाजत दे दी।
फिर क्या था? अनिल के हाथ मेरे स्तनों को दबाने, महसूस करने और अंदर उंगली डाल कर मेरे स्तनों की नरमाई को अनुभव करने में लग गए।
मैंने अपना सर ऊपर उठाया एक हाथ से उनके सर को पकड़ कर निचे की और झुकाया। और अनायास ही मेरे होंठ उनके होंठ से जा मिले। उसने मुझे अपनी बाँहों में कस के पकड़ लिया और हम दोनों एक दूसरे से गहरे चुम्बन में बंध गए। अनिल ने मेरे मुंह में अपनी जीभ डाली और मेरा रस अनिल चूसने लगा। मैं अपने आप पर नियंत्रण नहीं रख पा रहीथी। मेर लाख रोकने पर भी मेरा मन मेरे काबू से बाहर हो गया। जब अनिल ने अपना हाथ मेरे कुर्ते में डाला तो मैं उसे रोकने के बजाय उसकी सहायता करने लगी।
अनिल ने मेरे कुर्ते के बटन खोल डाले और अंदर की ब्रा को ऊपर उठाकर मेरे स्तनों को चूमने लगा। मुझे इतनी उत्तेजना और रोमांच का अनुभव हो रहा था, की माँ की इतनी सारी हिदायतों के बावजूद भी मै अनिल से अपनी चूचियों को चुस्वाने के लिए बड़ी उत्सुक हो रही थी। पता नहीं मुझ पर क्या भूत सवार हो गया था।
अनिल ने तब मुझे रोका और कहने लगे, “अनीता, मैं एक जरुरी बात आप से कहना चाहता हूँ। मैं सच्चे दिलसे आपको चाहने लगा हूँ। मैं आपको अपनी बनाना चाहता हूँ। पर यहां मुझे एक बात आपको जरूर कहनी होगी। देखो अनीता, मैं स्वभाव से ही ज्यादा सेक्सी हूँ। मुझे सेक्स की बड़ी भूख है। मैं तुम्हारे सामने यह कबुल करता हूँ की मैंने कुछ लड़कियों से सेक्स भी किया है। यह मेरी कमजोरी है और मैं उसे आपसे छुपाना नहीं चाहता। और हाँ, हो सकता है की आगे चलकर कभी मैं तुम्हारे अलावा कोई और लड़की से सेक्स कर बैठूं तो क्या तुम मुझे धोखेबाज समझकर छोड़ तो नहीं दोगी?”
अरे! आग तो दोनों और बराबर लगी हुई थी। मैं भी अनिल को सच्चे मन से चाहने लगी थी। मैं जानती थी की अनिल एक कासानोवा की तरह था। वह रंगीला और सेक्स का भूखा था। कॉलेज की सारी लडकियां उसपर मरती थीं। मैं यह भी जानती थी की कइ लड़कियों से अनिल ने सेक्स भी किया होगा क्योंकि लडकियां अनिल को बड़ी आसानी से अपना बदन समर्पित करने के लिए लालायित रहती थीं। पर सब लड़कियों की यही शिकायत थी की अनिल ने उनमें से किसीसे भी प्यार का इजहार तो क्या, उन्हें अपनी गर्ल फ्रेंड कहलाने को भी मना कर दिया था। पर लडकियां थीं की फिर भी अनिल को अपना बदन समर्पित करने तैयार रहती थी।
अनिल ने पहली बार किसी लड़की से चाहने की बात कही थी। मैं मना कैसे करती? मैं खुद उस समय अनिल के लिए उत्कट, उन्माद पूर्ण प्यार और अनियंत्रित सेक्स की कामना से मरी जा रही थी। फिर भी मैंने अपने आप पर नियत्रण रखते हुए कहा की, “अनिल अगर तुम मुझे सच्चे दिल से प्रेम करते रहोगे और मुझसे कोई भी बात नहीं छुपाओगे तो मैं तुम्हें कभी नहीं छोडूंगी।”
बस मैं इतना ही कह पायी क्योंकि अनिल ने मुझे तुरंत एक ही झटके में कस के जकड लिया और बार मेरे होठों को चूमने लगा। उसने मेरा कुरता निकाल दिया और मेरे बड़े बड़े स्तनों को चूमने और चूसने लगा। मुझ वह ऐसा आनंद दे रहा था जिसका वर्णन मैं कर नहीं सकती।
मैंने अपने आप को उसके हवाले कर दिया। मैं न सिर्फ उसका अवरोध नहीं कर पा रही थी, बल्कि उसके जातीयता भरे कामुक क्रीड़ालाप में मैं उसका साथ दे रही थी। मैं उसके मुंह की लार के लिए तरस रही थी। अनिल ने प्यार से मेरी डेनिम की शॉर्ट्स की ज़िप खोल दी और अपना हाथ अंदर डाल कर उसने मेरी पैंटी को निचे सरका दिया और मेरी योनि में उंगली डाल कर मुझे उकसाने लगा। मैंने अपनी जिंदगी में पहली बार किसी मर्द का हाथ मेरे गुप्तांगो पर महसूस किया और उसकी उत्तेजना और उन्माद मुझे पागल कर रहा था।
उस दिन तक कभी भी मैंने यह सोचा नहीं था की मैं शादी से पहले किसी मर्द को अपने गुप्तांगो छूने भी दूंगी। एक मर्द का हाथ योनि के ऊपर और अंदर जानेसे क्या होता है वोह मैं उस दिन तक नहीं जानतो थी। जातीयता का उन्माद और उत्तेजना मेरे लिए तब तक या तो किताबों में लिखी हुई रोमांचक गाथाएँ थीं या फिर एक युवा लड़की को स्त्री पुरुष के मिलन की मधुर कल्पनाएँ। अनिल के उंगली डाल मेरी योनि के अंदर बाहर करनेसे मुझे क्या अनुभूति हो रही थी, उसका वर्णन करना मेरे लिए मुश्किल है।
मैं कामान्ध हो चुकी थी और मेरे मनमें अनिल का पुरुष लिंग देखने की इच्छा हुई और अनायास ही मेरा हाथ उसकी टांगों के बिच चला गया।
तब तक मैंने कोई भी वयस्क पुरुष का लिंग नहीं देखा था। हाँ मैंने सहेलियों को यह कहते हुए सुना था की पुरुष का लिंग बड़ा हो तो उसे स्त्री को अपनी योनि में डालने में बड़ा मझा आता है। जैसे ही मैंने अनिल की टांगो के बिच में हाथ डाला तो अनिल ने उसे वहीँ पकड़ लिया। मेरी और देखकर उसने प्यार से पूछा, “क्या तुम मेरे लन्ड को देखना चाहोगी?”
मुझे तब पता चला की पुरुष के लिंग को लन्ड कहते हैं। हालांकि मैंने कई बार कई पुरुषों को “लौड़ा, लन्ड” इत्यादि बोलते हुए सुनाथा, पर मैं उसका अर्थ ठीक ठीक समझ नहीं पायी थी। मैंने अनिल के सवाल का जवाब नहीं दिया। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है..
अनिल ने मरे मौन को मेरी स्वीकृति मान कर फट से अपने पतलून की बेल्ट और ज़िप खोल दी और अपने पतलून और जांघिये को निचे की और सरका कर अपने लन्ड को मेरी आँखों के सामने प्रस्तुत किया। अनिल ने मेरा हाथ पकड़ कर उसके लन्ड के ऊपर रख दिया। मैंने अनजाने में ही उसके लन्ड को सहलाना शुरू कर दिया। मैंने कोई भी पुरुष का लन्ड तब तक नहीं देखा था। हाँ छोटे छोटे नंगे बच्चों का छोटा सा लिंग जरूर देखा था। पुरुष का लन्ड इतना बड़ा हो सकता है, यह देख कर मैं घबड़ा सी गयी। मेरी अनुभवी सहेलियां कहती थीं की जब पुरुष अपना लन्ड स्त्री की योनि में घुसाता है तो स्त्री को एक अद्भुत अनुभव होता है। पर अनिल का इतना बड़ा लन्ड मेरी योनि मैं में कैसे घुसेगा यह सोचकर मैं काँपने लगी।
अचानक मेरे मनमें ख़याल आया की मैंने उस समय मेरी माँ की सारी सिख को टाक पर रख दिया था और उस समय मैं एक दोस्त के लन्ड को मेरी योनि मैं डलवाने के बारे में सोच रही थी। उस समय मेरा हाल बड़ा ही अजीब था। सब कुछ जानते और समझते हुए की मैं उस समय ऐसा कुछ कर रही थी, जिसकी इजाजत मेरे माता पिता कभी नहीं देते। मैं अनिल को उकसा रही थी। सब कुछ समझते हुए भी मैं अपने आप को मेरी अंदरूनी उत्तेजना के सामने लाचार पा रही थी।
अनिल ने मुझे थोड़ा खिसकाया और मेरे सर पर हाथ रखकर मेरे सर को अपनी गोद में दबाते हुए मेरा मुंह उसके लन्ड के ऊपर रख दिया। मेरी समझ मैं नहीं आया की वोह क्या चाहता था। पर जैसे ही मेरे मुंह के सामने जब अनिल का बड़ा और मोटा लन्ड मेरे होठों को रगड़ने लगा तो अनायास ही मेरा मुंह खुल गया और अनिल ने मेरे सर को निचे की और अपने लन्ड की सीध में रख कर एक धकका मार कर मेरे मुंह में उसके लन्ड को धकेल दिया।
मेरी समझ मैं नहीं आ रहा था की मैं क्या करूँ। पर उस समय मेरी चिंता यह थी की कहीं मेरे दाँत से अनिल के लन्ड को कोई हानि न पहुंचे। जैसे अनिल का लन्ड मेरे मुंह में गया की मैंने अपना मुंह चौड़ा किया और उसके लन्ड के अग्र भाग को मुंह में लिया और मेरे दाँतों को दूर रख कर उसके लन्ड के इर्दगिर्द मैंने अपनी जिह्वा और होँठ लपेट दिए। उसके लन्ड को मुंह में लेकर मैंने पहले उसे चूमना और बादमें चाटना शुरू कर दिया।
उस समय अनिल के हाल देखने जैसे थे। वह अपनी आँखे भींच कर ऐसा दीख रहा था की जैसे उसके पुरे बदन में कोई अद्भुत रोमांच पैदा हो रहा हो। मुझे यह महसूस हो रहा था की मेरे उसके लिंग को चूसना उसे बहुत उन्मादित कर रहा था। मैंने उसे और आनंद देने के लिए उसके लन्ड को और जोर से मुंह के अंदर बाहर करना शुरू किया तो उसका हाल और उन्मादित हो गया। उसने मेंरे सर को पकड़ा और अपना लन्ड मेरे मुंह के अंदर बाहर करने लगा। उसका उन्माद मुझे भी उन्मादित कर रहा था।
अचानक उसके लन्ड में से मेरे मुंह में एक फव्वारा जैसे छूटा। उसके लन्ड में से गरम गरम अजीब सा दूध की मलाई जैसा चिकना पदार्थ निकलने लगा और मेरा मुंह उससे पूरा भर गया। इतने जोरसे उसकी मलाई निकलने लगी की उसकी कुछ मलाई तो मैं अनजानेमें निगल ही गयी। मेरा गला रुंध गया और मेरे मुंह से भी आवाज न निकल पायी।
मैंने अनिल की और देखा तो वह आँखें बंद करके कुछ अजीब सी तन्द्रा में उसकी मलाई निकलने की पक्रिया के आनंद का अनुभव कर रहा था। मैंने पहली बार उस दिन कोई मर्द का वीर्य निकलते देखा। मुझे खांसी आ रही थी, पर मेरे प्रेमी का उन्माद देख कर मैंने उसके वीर्य को चाट कर निगल जाना ही बेहतर समझा। बड़ा ही अजीब सा होता है वीर्य का स्वाद। उस समय मुझे वह अच्छा तो नहीं लगा, पर अपने प्रेमी के आनंद को देख मैं उसे निगल ही गयी।
अनिल ने उसके बाद अपना लन्ड मेरे मुंह से बाहर निकाला। वीर्य निकलने से वह थोड़ा सा ढीला पड गया था। फिर भी वह लंबा और अकड़ा हुआ था।
अनिल मेरे साथ बैठ गया उर फिरसे उसने अपने होंठ दुबारा मेरे होंठों से भींच दिए और वह मेरा मुंह चूसने लगा। साथ साथ उसने मरे स्तनों को दबाना और मसलना शुरू कर दिया। जब मैं अनिल का लन्ड मेरे मुंह में लिए हुए थी तब मैं अपने स्तनों को स्वयं ही दबा रही थी और कामुक सिसकियाँ भर रही थी और अजीब से कामुकता के भाव में कराह रही थी। मुझे मेरी छाती और मेरी चूत में अजीब सी खुजली हो रही थी। उसे खुजली कहना ठीक न होगा। बल्कि वह ललक जो मेरी योनि में हो रही थी वह खुजली से कहीं ज्यादा रोमांचक थी। मुझे मेरी चूत में तब अनिल का लन्ड डलवाना ही था ऐसी जबरदस्त मानसिकता के कारण मैं पागल सी हो रही थी।
मुझसे रहा नहीं जा रहा था। मेरी डेनिम की शॉर्ट्स को मैंने निचेकी और हटाया और मैं हरी हरी घांस पर लेट गयी। पता नहीं मुझे कैसे यह स्त्रीगत भाव हुआ की अनिल अब मुझ पर चढ़े और उसका लन्ड मेरी चूत में डाले। मेरी चूत उस समय इतनी गीली हो चुकी थी की मेरी पैंटी और मेरी डेनिम की शॉर्ट्स भीग गयी थी। मेरे घांस पर लेटते ही अनिल मुझ पर चढ़ने के लिए तैयार हुआ।
जब उसने एक झटके में अपनी पैंट निकाली तब उसका मोटा लंबा लन्ड हवा में लहराने लगा। कुछ ही मिन्टों में अनिल का लन्ड फिरसे एकदम फौलाद की तरह अकड़ गया था। अनिल के इतने मोटे और लंबे लन्ड को देख कर मेरा मन किया की मैं वहां से भाग जाऊं। मेरा जोर से चिल्लाने का भी मन किया।
अनिल के इतने बड़े लन्ड को मैं अपनी चूत में कैसे ले पाऊँगी यह सोचकर मेरे पुरे बदन में एक तरह की जबरदस्त सिहरन हो रही थी। उस समय मैं बुरी तरह से काँप रही थी। पर मैं समझ गयी थी की तब और कोई चारा नहीं था। बहुत देर हो चुकी थी। मैं अपना निर्णय ले चुकी थी। अब वापस हटना मुमकिन नहीं था। मैं एकदम चुप हो कर अनिल का उसके लन्ड को मेरी चूत में डालने का इन्तेजार करने लगी।
अनिल शायद मेरी परेशानी समझ गया होगा। वह अपना लन्ड मेरी योनि की भग्न रेखा पर धीरे धीरे रगड़ने लगा। मेरी योनि के होठों के फुलाव पर उसका लन्ड रगड़ने से मुझे मेरी कामाग्नि पर जैसे तेल छिड़कने जैसा महसूस हो रहा था। मैं कामुकता की आग में जल रही थी। कब अनिल उसका मोटा लन्ड डालकर मुझे चोदना शुरू करे इस का मैं बेसब्री से इन्तेजार करने लगी। मरी चूत में से तो जैसे मेरा रस झर झर बह रहा था। अनिल का पूर्व रस भी निकल रहा था। उसका लन्ड हम दोनों के स्निग्ध रस के मिलन से एकदम चिकना हो चुका था।
मैं अपने आप को सम्हाल नहीं पायी और मैंने अपने हाथ में उसका लन्ड लेकर मेरी योनि के छिद्र में घुसेड़ना चाहा। अनिल ने एक थोड़ा धक्का देकर उसका लन्ड मेरे योनि छिद्र में थोडासा घुसेड़ा। मैं पहली बार कोई भी मर्द के लन्ड को मेरे गुप्ताङ्ग से स्पर्श करा रही थी। उसके लन्ड को थोड़े अंदर घुसनेसे मैं अपने शरीर की कम्पन रोक नहीं पायी। जब अनिल ने उसके लन्ड मेरे प्रेम छिद्र में और घुसेड़ा तब मुझे तकलीफ महसूस हुई।
पर मैंने अपनी पीड़ा को उजागर नहीं होने दिया। मैंने सोचा की शायद उससे अनिल के आनंद में बाधा पहुंचेगी। और मुझे उस पीड़ा में भी आनंद का अनुभव हो रहा था। मुझे चुप देख कर अनिल ने उसका लन्ड मेरी चूत में थोड़ा और घुसेड़ा। अब मेरा दर्द मेरी सहनशीलता की सीमा पर पहुँच गया था। मैं फिर भी अपने होठों को भींच कर चुप रही। जब अनिल ने एक और धक्का दे कर उसके लन्ड को करीब आधे से ज्यादा मेरी योनि में घुसेड़ दिया तब मैं दर्द से कराह उठी। अनिल के लन्ड ने मेरी योनि की गहराई में पहुंचकर मेरे यौन पटल को फाड़ डाला था। अचानक मेरी योनि में से खून बहने लगा।
मेरी योनि में से खून बहता देख मैं एकदम घबरा गयी। मैं अनिल से कहने लगी, “अनिल यह क्या हो गया? यह खून कैसे निकल रहा है?”
अनिल ने झुक कर मेरे होठों पर अपने होंठ रख दिए और मुझे ढाढस देते हुए बोला, “डार्लिंग चिंता की कोई बात नहीं है। हर कुँवारी कन्या, जिसने पहले अपनी योनि में किसी पुरुष का लन्ड नहीं लिया हो उसका कौमार्य पटल पहली बार चुदाई मैं फट सकता है। यह खून थड़ी देर में रुक जायगा। आज मैंने तुम्हारा कौमार्य भंग किया है। यह उसका सबूत है।”
अनिल ने शायद कई कुँवारी कन्याओं का कौमार्य भंग किया होगा। पर मैं उस समय यह सब सोचने की हालात में नहीं थी। मेरी चूत में अनिल का इतना मोटा लन्ड घुसा हुआ था और अनिल उसे और अंदर घुसेड़ने ने की पैरवी में था। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे है..
मेरा सारा ध्यान उस समय मेरे योनि मार्ग में घुसे हुए अनिल के लन्ड पर केंद्रित था। मेरे कौमार्य पटल फट जानेसे और अनिल का इतना मोटा लन्ड घुसेड़ने से मुझे काफी दर्द अनुभव हो रहा था। पर पता नहीं क्यों, वह दर्द भी मुझे अद्भुत रोमांच पैदा करने वाला और सुमधुर लग रहा था। जब अनिल ने अपना लन्ड और अंदर घुसेड़ा तब मेरी सहनशीलता जवाब दे गयी और मैं जोर से चिल्ला उठी , “अनिल, बस करो, बहुत दर्द हो रहा है। मैं मर जाउंगी।” अनिल ने तब रुक कर अपना लन्ड थोड़ा वापस खींचा और मुझे थोड़ी राहत महसूस हुई। पर मुझे वह दर्द अच्छा लगने लगा था। मैं उस दर्द को बार बार अनुभव करना चाहती थी। मैंने इशारे से अनिल को उसका लन्ड अंदर डालने के लिए प्रेरित किया।
तब क्या था। अनिल ने धीरे से पर पूरी ताकत के साथ एक धक्का देकर मेरे योनि मार्ग में उसका लन्ड पूरा घुसेड़ ही दिया। मैं दर्द से कराहने लगी। पर मैंने अनिल को उसका लन्ड वापस खींचने के लिए नहीं कहा। अब मुझे उसका लन्ड मेरी चूत में चाहिए था। दर्द के बावजूद, मैं उसके लन्ड को बार बार मेरी चूत में डलवाना चाहती थी। मैंने अपनी कमर ऊपर की और धकेल कर बिना बोले अनिल को इशारा दिया की वह मुझे चोदना शुरू करे। अनिल ने धीरे धीरे अपना लन्ड मेरी चूत में घुसेड़ना और वापस खींचना फिर और घुसेड़ना और फिर वापस खीचना शुरू कर दिया। वह धीरे धीरे मुझे चोदने लगा।
तब पहली बार मुझे समझ में आया की चोदना किसे कहते हैं। मैं तबअनिल से वैसे चुदवाने लगी जैसे पहले कई बार चुदवाने की अनुभवी थी। मैं अपनी कमर ऊपर उठाकर अनिल के हर एक धक्के को मेरे नितम्ब के उछाल से जवाब देने लगी। जमीन पर हरी घांस पर लेटनेके कारण मेरे नंगे चूतड़ पर हरी घांस के निशान हो गए थे और कभी एकाध कंकड़ भी चुभ रहा था और थोड़ा दर्द दे रहा था। पर मैं उन सब से जैसे ऊपर उठ चुकी थी।
जैसे मुझे कोई दर्द था ही नहीं ऐसे मैं अनिल की चुदाई के आनंद में पूरी तरह से डूब चुकी थी। उसके कड़े मोटे लन्ड का हर धक्का मुझे अद्भुत आनंद और रोमांच का अनुभव करा रहा था। मर्द से चुदवाने में इतना आनंद आ सकता था यह मैं कतई नहीं जानती थी। उस समय जो अवर्णनीय आनंद का में अनुभव कर रही थी वह मैं ही जानती थी।
मैंने मेरे प्रियतम अनिल की और देखा। मुझे चोदते हुए उसके कपोल में उसकी भौएं सिकुड़ जाती थी। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मुझे चोदते हुए उसे जो आनंद आ रहा था वह मेरे आनंद से कहीं ज्यादा ही होगा। उसके चेहरे पर एक अजीब सा उन्माद नजर आ रहा था। उस समय जैसे मुझे चोदने के अलावा वह और कुछ नहीं सोच रहा था। उसने मेरी और देखा। हमारी नजरें मिली। वह मुस्कुराया। मैंने शर्म से मेरी आँखें मूंद ली। उस समय अनिल ने मेरे चूचियों को सहलाते हुए, मुझे चोदने की प्रक्रिया चालु रखते हुए मुझसे पूछा, “क्या तुम मुझसे हर रोज चुदना चाहोगी? क्या तुम मेरी बीबी बनना पसंद करोगी? क्या तुम मुझसे शादी करोगी?”
मैंने कभी यह नहीं सोचा था की मेरा होने वाला पति इस परिस्थिति में मुझसे शादी करने के लिए प्रोपोज़ करेगा।
मुझे तो हाँ कहनी ही थी। मैंने उसी समय बिना कुछ सोचे समझे तय कर लिया की मैं अनिल से शादी जरूर करुँगी। मैंने अनिल की और देखा और बिना झिझक बोल उठी, “हाँ मैं तुमसे हर रोज चुदना चाहती हूँ। मैं तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ। मैं तुम्हारे बच्चों की माँ बनना चाहती हूँ। मैं तुमसे शादी करना चाहती हूँ। ”
कहानी पढ़ने के बाद अपने विचार निचे कोममेंट सेक्शन में जरुर लिखे.. ताकि देसी कहानी पर कहानियों का ये दोर आपके लिए यूँ ही चलता रहे।
मैंने पता नहीं ऐसा क्या कह दिया की अनिल के लन्डमें से मुझे मेरी चूत में जैसे एक फव्वारा छूटा हो ऐसा महसूस हुआ। मेरी चूत में अनिल अपने लन्ड से गरमा गर्म सफ़ेद मलाई सा पदार्थ उंडेलने लगा। मुझे भी पता नहीं क्या हुआ। मैं भी अपने आपे से बाहर हो गयी।
मैंने अनिल की बाँहें कस के पकड़ी और मैं ऐसे उछलने लगी जैसे मेरे पुरे बदन में अद्भुत उन्माद उठा हुआ हो।मैं अपने उन्माद की चरम सिमा पर पहुँच गयी थी। मुझे महसूस हुआ की मेरी चूत में से भी अजीब सा प्रवाही निकलने लगा। मेरी और अनिल की मिली हुई रस धाराएं मेरी चूत से उभरकर मेरी कमर से होकर जमीन पर गिरने लगी।
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