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दोस्तो, मैं आपका आजाद गांडू, फिर से एक सच्ची गे सेक्स कहानी के साथ हाजिर हूँ.
उस दिन ट्रेन ठसाठस भरी थी, जैसे तैसे ट्रेन में चढ़ पाए थे. वो दिन ही ऐसा था, बहुत सारे लड़के आज मुंबई जा रहे थे. रेलवे में वेकेन्सी निकली थीं.
हम लोग काफी देर तक खड़े रहे … फिर जिसे जहां जगह मिली, बैठ गए. सब रेलवे पास धारी बेरोजगार थे.
रात भर चलने के बाद सुबह छत्रपति शिवाजी टर्मिनल पहुंचे. उतर कर वहीं प्लेटफॉर्म पर फ्रेश हुए, ब्रश किया. बैग से कपड़े निकाल कर बदले … और परीक्षा केन्द्र आ पहुंचे.
शाम से पहले तीन-चार बजे के लगभग फारिग हुए और लौट कर फिर प्लेटफॅार्म पर आ गए. वापसी के लिए ट्रेन तलाश रहे थे. साथ ही इस खोज में भी थे कि सस्ता खाना कहां मिलेगा. सब बेरोजगार थे भूखे थे, जेब से कड़के थे.
तभी मुझे नसीम भाई दिखे. मेरी पिछली कहानी गांड मराने का पहला अनुभव में उनका उल्लेख है.
मैंने दौड़ कर उन्हें पकड़ा- भाईजान सलाम. वे मुझे देखने लगे.
मैंने हड़बड़ा कर उन्हें अपना पूरा परिचय दे डाला- भाईजान मैं फलां गांव का … फलां … आपने पहचाना?
नसीम भाई मुस्कराए- हां हां पहचानता हूं, ऐसे क्यूं बता रहे हो … पर यहां कैसे? मैं- रेलवे का टेस्ट देने आया हूं, आप दिख गए, तो सोचा सलाम कर लूं. आप यहां कैसे भाई?
नसीम भाई- मैं यहीं रेलवे में हूं, तीन साल हो गए जॉब करते, आओ बैठ कर बात करते हैं. मैं- भाईजान, मेरे साथ मेरा साथी भी है.
ये कह कर मैंने आवाज लगाई- ओ प्रभात, इधर आ भाई. मैंने प्रभात का भाईजान से परिचय कराया.
मैं- आप मिल गए तो सोचा सलाम कर लूं. नसीम- अब क्या करेागे?
मैं- अब हम लोग यहीं किसी जगह सस्ते में खाना खाते हैं … और शाम को कौन सी गाड़ी जाती है, वो जरा आप पता करवा दें … तो उसी से निकल जाएंगे. नसीम भाई- अब आए हो, भाईजान से मिले हो, तो जल्दी क्या है … चले जाना. आओ मेरे साथ आओ, खाना मेरे साथ खा लेना.
हमने कोई औपचारिकता निभाने की जरूरत नहीं समझी. बस झट से अपने बैग लेकर दोनों उनके साथ चल दिए.
वे वहीं पास में एक अपार्टमेंट में रहते थे. उन्होंने अपने कमरे का ताला खोला. हम लोगों ने कमरे में बैग रखा.
इसके बाद वे हमें पास में एक छोटे से होटल ले गए, वहां हम दोनों ने छक कर खाना खाया. भाईजान ने पेमेंट कर दिया.
इसके बाद कमरे में लौटे. तो नसीम भाई बोले- अभी मैं ड्यूटी पर हूं, तुम लोग आराम करो. कल चले जाना. मैं ड्यूटी से लौट कर आता हूं. तब तक आप नहा लो और आराम करो.
ये कह कर वे चले गए.
हम दोनों ने अपने गन्दे कपड़ों में साबुन लगा कर साफ किया. मस्ती से नहाए, अंडरवियर पहने ही लेट गए.
मैं और मेरा साथी दोनों लेटे थे कि देर शाम तक नसीम भाई आए. हम बहुत थके थे … पर शाम सात बज रहे थे. अतः सोये तो नहीं, पर आलस चढ़ा था.
नसीम भाई बोले- चलो, आपको मुंबई का बाजार दिखाएं.
मन हमारा भी था … तो कपड़े पहन कर चल दिए. वे पास ही हमें घुमाने ले गए.
उधर बोले- कल समुद्र बीच पर चलेंगे.
ये सब हमारे लिए सपने सा था. शाम को एक ठेले पर चाट खाई और उनके निवास पर लौट आए.
उनके रूम पर पहुंचते ही हम दोनों ने अपने पैंट शर्ट उतार दिए और अंडरवियर बनियान में आ गए. मेरे साथी ने तो बनियान भी उतार दी … वो तो मात्र चड्डी पहने रह गया था.
भाईजान मुझे लगभग पांच छह साल बाद देख रहे थे. उन्होंने मुझे तब देखा था, जब मैं स्कूल में पढ़ने वाला एक चिकना माशूक लौंडा था जो उनके सामने नंगा होकर कई लड़कों के साथ तालाब में नहाता था. तब मैं एक दुबला-पतला सा लड़का था, जिसके न तब दाढ़ी मूंछें थीं … न गांड पर बाल थे … न झांटें थीं.
उन्होंने मेरे नंगे चूतड़ों पर कई बार हाथ फेरा था, गांड में उंगली की थी. बहाने से तैरना सिखाते समय लंड भी छुलाया था, पर गांड में डाल नहीं पाए थे.
पर नसीम भाई तब मुझ पर दिल रखते थे. कभी दूर तक तैर जाता, तो बधाई देने के बहाने मेरे मुँह चूम लेते और जोर से होंठ काट लेते, गाल रगड़ लेते. दांत गड़ा देते.
कई बार नसीम भाई ने मेरे हाथ में पानी के अन्दर ही अपना लंड पकड़ा दिया था. वे उम्र में मुझसे तीन-चार साल बड़े होंगे.
तब उनका लंड बहुत बड़ा लगता था. मेरी मुट्ठी में मुश्किल से आता था, पर पकड़ना पड़ता था.
वैसे तो भाई ने मेरे सामने ही कई लौंडों की गांड मारी थी. फड़फड़ाते और चिल्लाते लौंडों की गांड में उनके हाथ पैर हिलाने, गांड सिकोड़ने की, चूतड़ हिलाने की … कोई परवाह न करते हुए अपना मूसल सा लंड बेरहमी से उन चिकनी मक्खन सी मुलायम गांडों में पेल देते.
भाईजान उनकी रगड़ कर ही छोड़ते. अपनी नाजुक सी गांड मरवा कर, वे चिकने किशोर लौंडे शांत हो जाते.
कई लौंडों की गांड तो कुंवारी थी, पहली बार भाईजान ने ही लंड पेल कर उनकी सील तोड़ी और गांड का उद्घाटन किया था.
उन्होंने उन्हें गांड मराने में एक्सपर्ट बना कर ही छोड़ा था. नसीम भाई भी उन्हें खूब मक्खन लगाते ताकि वे दुबारा गांड मरवाने को तैयार हो जाएं.
जो दो एक मेरे साथी लौंडे उनके लंड का मजा लेने से बच गए थे, उन्हीं में एक मैं भी था.
अब मैं बाईस तेईस साल का जवान था. छरहरा कसरती बदन था … और उनके बराबर लम्बा हो गया था. तब भी मुश्किल से उनके कान तक पहुंच पाता था. मगर अब उनसे कुछ तगड़ा हो गया था.
वे मुझे चड्डी बनियान में देख कर बोले- वाह … कसरत वसरत करते हो. क्या सीना बना लिया है. मस्त बांहें और जांघें हैं.
फिर वो अपनी आदत से मजबूर मेरे चूतड़ों पर हाथ फेरने लगे.
नसीम भाई- वाह अब तो ये भी बड़े हो गए हैं. काफी मस्त हो गए हो बे. वे मेरी मसकते रहे.
मैं धीरे से बोला- भाईजान कहें तो चड्डी उतार दूं. वे हंसने लगे बोले- स्मार्ट हो गए हो, बातें भी बनाने लगे … चलो देखेंगे.
फिर मेरे साथी को देख कर बोले- क्या एक ही जांघिया है बे … मेरा चलेगा? वह बोला- नहीं … ठीक है. भाईजान बोले- ठीक क्या? गीला पहने हो! उतारो!
बस नसीम भाई ने अपने हाथ से प्रभात की चड्डी को जरा नीचे कर दिया. इसी बहाने उसके चूतड़ मसक कर बोले- गीले रखे हैं. फिर खुद तौलिया से प्रभात की गांड पौंछने लगे.
इससे वह समझ तो गया, पर चुप रहा. वे उसके चूतड़ बड़ी देर सहलाते रहे.
आखिर हाथ से उसकी चड्डी नीचे कर दी और बोले- लो ये दूसरी पहनो. नसीम भाई ने प्रभात को अपनी एक चड्डी दे दी.
मैं अपने साथी के बारे में बतला दूं. वो बीस इक्कीस का होगा, गेंहुआ चिकना स्लिम होने से जरा लम्बा सा दिखता था. चेहरे से अभी बमुश्किल अट्ठारह का लगता था. बड़ा शर्मीला चुप्पा सा था.
वह नसीम भाई से अपने चूतड़ मसलवाता रहा … कुछ नहीं बोला. फिर भाईजान एक बरमूडा उठा लाए और देते हुए बोले- लो इसे पहन लो … जब तुम्हारी सूख जाए, तो बदल लेना.
उनके पास एक सिंगल बेड का लोहे का छोटा सा पलंग था. प्रभात नीचे फर्श पर चादर बिछाने लगा. नसीम भाई बोले- ऐसा नहीं चलेगा.
उन्होंने पलंग के गद्दे को ही नीचे बिछा दिया. उस पर चादर बिछाई. पैरों की तरफ दरी बिछा दी और बोले- अब तीनों एक साथ सो सकते हैं.
वे एक तरफ सोने लगे, तो मैंने आग्रह कर उन्हें बीच में लिटाया. उनकी दोनों तरफ मैं व प्रभात लेटे.
हम थके हुए थे, जल्दी ही सो गए.
ये जून का महीना था, बहुत गर्मी थी. केवल एक सीलिंग फैल चल रहा था. पर नींद आ ही गई.
मैं भाईजान की तरफ पीठ करके लेटा था. पहले तो वे मेरी पीठ सहलाते रहे, मेरे चूतड़ों पर हाथ फेरा. फिर मैं सो गया तो वे भी सो गए.
मेरे से चिपक कर उनका खड़ा लंड मेरे चूतड़ों से टकरा रहा था. मगर मुझे नींद आ गई.
रात को मुझे प्यास लगी, गला बहुत चटक रहा था. मेरी नींद खुल गई.
मैंने कम रोशनी में सिरहाने रखी पानी की बोतल टटोली, फिर हाथ फैलाए … तो देखा भाईजान की जगह खाली थी.
देखा तो प्रभात औंधा लेटा था, उसका बरमूडा नीचे था. भाईजान उसके ऊपर सवार थे लंड पेले धक्के लगा रहे थे. दे दनादन दे दनादन अन्दर बाहर अन्दर बाहर लगे थे. उनकी कमर ऊपर नीचे हो रही थी. उनके नंगे चूतड़ चमक रहे थे.
फच्च फच्च धच्च धच्च चप्प चप्प की आवाज आ रही थी. प्रभात आवाज निकाल रहा था- आ आ आ ई ई बस बस.
भाईजान- अरे अभी तो शुरू किया है बे … नखरे मत कर और गांड मत सिकोड़. थोड़ी ढीली रख, तुझे भी मजा आएगा. गांड सिकोड़ने से तुझे लगेगी.
बस नसीम भाई ने उसकी गर्दन में बांह का घेरा डाल कर अपनी तरफ उसका मुँह किया और उसके होंठ चूसने लगे. लंड गांड के अन्दर था, पर चोटें थोड़ी देर को रोक दीं. अब भी हल्के हल्के से कमर हिल रही थी.
उनके चूसने से ऐसे लग रहा था कि होंठ काट कर चबा जाएंगे.
फिर नसीम भाई बोले- अब तो नहीं लग रही … मजा आ रहा है न! प्रभात मुस्करा कर रह गया.
वे फिर चालू हो गए. मेरी आंखें अंधेरे की अभ्यस्त हो गई. उनका मोटा मस्त लन्ड प्रभात की गांड में सटा सट सटा सट जाता हुआ अब मुझे साफ़ दिख रहा था.
प्रभात टांगें फैलाए आंखें बन्द किये मस्ती से लेटा था और गांड मराई का आनन्द ले रहा था.
मैंने बोतल ढूंढ ली, दो घूंट पी कर सो गया. सामने देख कर भी गांड मराई की अनदेखी कर दी.
फिर मुझे नींद आ गई.
मैंने जानबूझ कर उनकी तरफ पीठ कर करवट ले ली.
सुबह पांच साढ़े पांच बजे की बात है, मेरी नींद खुल गई. प्रेशर आ रहा था सो मैं उठा और लेट्रिन की ओर भागा.
जब लौटा, तो मैं अपने बैग में टूथ पेस्ट और ब्रश ढूँढ रहा था.
मेरी निगाह अनायास नसीम भाई की तरफ चली गई. तब भी भाईजान बेचारे प्रभात की गांड में लंड डाले पड़े थे.
शायद यह उनकी दूसरी ट्रिप थी. वो धक्के लगा रहे थे.
मुझे देख कर प्रभात भाईजान से बोला- वो देख रहा है. तो भाईजान बोले- वह कुछ नहीं कहेगा, तुम चुपचाप लेटे रहो … गड़बड़ मत करो.
मैं ब्रश पेस्ट लेकर दुबारा बाथरूम में घुस गया. मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई थीं.
मैं ब्रश करने के बाद नहाने लगा, बड़ी देर तक नल के नीचे बैठा रहा.
मेरी गांड कुलबुलाने लगी. बार बार भाईजान का मोटा लंड प्रभात की गांड में जाता आंखों के आगे घूम रहा था.
जब मैं बाथरूम से बाहर निकला, तो प्रभात लेट्रिन में जा चुका था.
मैंने आकर गीला अंडरवियर बदला, बदन सुखाया और भाईजान के साथ मिल कर गद्दे को व दरी को दुबारा पलंग पर बिछा दिया. मैंने कमरे में झाड़ू लगाई और उनके साथ सामान तरतीब से लगाया. अब कमरा बेहतर लगने लगा था.
फिर कपड़े पहन कर नीचे कल के धुले कपड़े प्रेस करा लाया. तब तक प्रभात नहा कर तैयार हो गया.
भाईजान बाथरूम में थे कि उनके बगल के रूम वाले मित्र आ गए.
पड़ोसी ने उनको नाश्ते का निमंत्रण देने का कह दिया. भाईजान लौटे, तो मैंने उन्हें बताया.
वे मुस्करा दिए- चलो, मैं भी उसके गेस्ट को इन्टरटेन करता हूं … सब साथ चलेंगे. ये कह कर वे तैयार हुए.
हम सबने पहुंच कर बढ़िया नाश्ता किया.
भाईजान अब ड्यूटी पर चले गए और कह गए शाम को बीच पर चलेंगे, तुम लोग घबड़ाना नहीं. मैं वापस भिजवाने का इंतजाम कर दूंगा.
हम दोनों सारा दिन कमरे में सोते रहे और बैठे रहे. उनके बताए होटल में लंच ले आए, पैसे का भाईजान ने कह दिया था.
शाम को भाईजान व उनके पड़ोसी मित्र के साथ सब लोग बीच पर घूमने गए.
उन्होंने विभिन्न फिल्म एक्टर्स के बाहर से बंगले बताए, भेलपुरी खिलाई. देर से रूम पर वापस लौटे.
हम दोनों घबराए से थे. प्रभात के साथ मेरी भी गांड लुकलुका रही थी, पर कुछ कह नहीं पा रहे थे.
रात आठ या नौ के लगभग कमरे पर लौटे.
बगल वाले भाई साहब की लाईट चली गई, न जाने कुछ गड़बड़ी आ गई थी. प्रभात बोला- मैं कोशिश करता हूं. वह दो घंटे तक फाल्ट ढूँढता रहा. ग्यारह बजे लाईट आ गई.
पड़ोस वाले भाई साहब ने उसे मनाया- प्रभात यहीं लेट जाओ.
वह मान गया और भाई साहब के कमरे में सो गया.
मैं व भाईजान अपने कमरे में लौट आए. फिर से फर्श पर गद्दा व दरी बिछाई और लेट गए.
अब जगह ज्यादा थी, फिर भी भाईजान मेरे से चिपक गए.
भाईजान बहुत खूबसूरत थे … उनकी आंखें तो अब भी लड़कियों को मात करती थीं. वो अब थोड़े मोटे हो गए थे, पेट दिखने लगा था और जांघें मोटी हो गई थीं.
उन्होंने अपनी जांघ मेरे ऊपर रख दी. मैं समझ गया.
मैंने कहा- भाईजान, आपने बेचारे प्रभात की कल खूब रगड़ी. वे बोले- हां, वह तैयार था.
मैं उनकी बात मान गया. मैं प्रभात को दो साल से जानता था, पर आज तक ये नहीं जान पाया था कि वो भी साला गांडू है. भाईजान ने पहली रात में ही न सिर्फ उसे पटा लिया, बल्कि उसकी गांड भी मार दी. वे वाकयी उस्ताद लौंडेबाज हैं.
अब वे मुझ पर हाथ फेर रहे थे. उनका खड़ा लंड बार बार मेरी जांघों से टकरा रहा था.
उन्होंने मेरी जांघों पर हाथ फेरा और मेरे कंधे को इशारे का धक्का दिया. मैंने उनकी तरफ पीठ कर ली. मेरी गांड खुद उनका लंड पिलवाने को मचल रही थी. बार बार भाईजान के पुराने पराक्रम का इन्तजार कर रही थी. उनका माशूक लौंडों की गांड में मिसमिसा कर लंड पेलना बार बार मेरे चेहरे के आगे घूम रहा था.
उन्होंने मेरा अंडरवियर नीचे खिसकाया, फिर पैरों तक ले जाकर उसे अलग रख दिया.
अब उन्होंने मुझसे पूरी तरह से औंधा होने का इशारा किया.
मैं औंधा हो गया और टांगें चौड़ी कर लीं. वे मेरी इस पोजीशन को देख कर खुश हुए और ‘शाबाश ..’ कहते हुए वे मेरे ऊपर चढ़ बैठे.
भाईजान अब मेरे दोनों चूतड़ मसलते हुए कहने लगे- यार बहुत मस्त हैं.
फिर एकदम से उठे, तेल की शीशी ले आए. अपनी उंगलियां तेल में भिगो कर मेरी गांड में डाल दीं. दो उंगलियां एक साथ ठूंस दीं.
मैं चिल्ला पड़ा- आ आ आ ..
वे उंगलियां अन्दर बाहर करते रहे. फिर निकाल कर बोले- तुम्हारी बहुत टाईट है … ज्यादा नहीं चुदी लगती है. कोई मस्त लंड नहीं मिला क्या! मैंने पीछे मुड़ कर देखा. वे लंड पर तेल मल रहे थे.
फिर उन्होंने अपना तेल में डूबा हथियार मेरी गांड पर टिकाया और धक्का दे दिया. मैंने गांड ढीली कर ली थी.
लंड का सुपारा अन्दर गया. मुझे दर्द हुआ तो मुँह से निकला- उई अम्मा लग रही है भाई.
वे बोले- शाबाश , बस बस हो गया. अभी पूरा घुसा जाता है. लो … हूँ हुऊं … कोई तकलीफ तो नहीं … आह हो तो बताना.
उनका पूरा लौड़ा मेरी गांड में घुस गया.
नसीम भाईजान का लंड कुछ ही देर में मेरे गांड में सटासट चलने लगा था. मैं भी मीठे दर्द के साथ नसीम भाईजान का मशहूर लंड अपनी गांड में लेकर पुरानी यादों में खो गया था.
वो क्या यादें थीं … और गांड मराने की दम पर नसीब कैसे जागा.
ये सब मैं अपनी इस गे सेक्स कहानी के अगले हिस्से में लिखूंगा. आपका आजाद गांडू
कहानी का अगला भाग: नसीब से गांड की दम पर नौकरी मिली- 2
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