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देसी आंटी सेक्स कहानी में पढ़ें कि मैं अपनी चाची की फुफेरी बहन के घर में पेयिंग गेस्ट बन गया. उन आंटी ने अपनी वासना के चलते कैसे मुझ पर डोरे डाले!
कहानी शुरू करने से पहले मैं पाठकों को बताना चाहता हूँ कि जो भी मैं कहानी लिखता हूँ वह मेरे जीवन में घटित किस्से पर आधारित होती है.
चूँकि घटना मुझसे सम्बंधित होती है तो उस कहानी का नायक भी मैं ही हूँ. और मैं लड़की या भाभी या आँटी पटाते वक्त या चोदते वक्त मेरे ही शब्दों और मन पसन्द आसनों को बोलता और अमल में लाता हूँ. इसलिए कुछ पुराने पाठकों को लगता है कि ऐसा तो मैं मेरी किसी कहानी मैं लिख चुका हूँ.
लेकिन चुदाई तो चुदाई ही होती है, आप केवल नई कहानी की नई नायिका की चुदाई की घटना का आनन्द लें.
आपने मेरी पिछली कहानियों को पसन्द किया, मुझे मेल भेजी इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ.
अब देसी आंटी सेक्स कहानी:
अच्छे नम्बरों से प्लस टू पास करने के बाद मुझे पीएमटी की तैयारी के लिए कोटा भेज दिया गया.
कोटा भारत का एक बहुत बड़ा एजुकेशन सेंटर है. पूरे देश से बच्चे यहां पर अलग-अलग सब्जेक्ट की कोचिंग लेने के लिए आते हैं.
पर कोटा के बारे में उन्हीं दिनों एक बात यह भी सामने आई कि कोटा में सबसे ज्यादा गर्भ निरोधक खरीदे और बेचे जाते हैं. जिसका अर्थ हुआ कि वहाँ चूत मिलने की संभावनाएं बहुत अधिक थीं.
दरअसल कोटा में नई जवानी लिए लड़के लड़कियाँ घर से दूर स्वच्छन्द वातावरण में रहते हैं और पढ़ाई सीखें या न सीखें, चुदाई जरूर सीख जाते हैं.
जिस दिन मैं कोटा आया था उस दिन मेरी उम्र 18 साल 6 महीने थी. मैं एक दोस्त के साथ एक दिन के लिये रुक गया था क्योंकि वह मुझे स्टेशन पर लेने आया था.
शरीर से मैं अच्छा मजबूत था. हल्की हल्की दाढ़ी मूछें आनी शुरू हो चुकी थीं. उस वक्त मेरा कद लगभग 5 फुट 8 इंच था. शरीर बनना शुरू हो चुका था और मेरा लण्ड मेरी उम्र के औसत लड़कों से बड़ा और मोटा हो चुका था लगभग 8 इंच!
पढ़ाई में तो मैं होशियार था ही लेकिन साथ ही साथ मुझे सेक्स का भी चस्का था.
मैं जब भी कोई सुन्दर लड़की या आंटी देखता था तो मेरे दिल में उसे लेकर सेक्स की सीटियाँ बजने लगे जाती थीं. मेरा लण्ड मुझे दिन रात परेशान करता रहता था.
मेरी चाची रश्मि ने कोटा में मेरा रहने का इंतजाम करने के लिए अपनी बुआ की लड़की सरिता को फोन पर बोल दिया था. चाची और सरिता बहनें तो थीं ही साथ ही उनके बीच दोस्ती अधिक थी.
कोटा में मुझे रह रह कर मेरी चाची की याद सता रही थी. मेरी चाची और उनकी बुआ की लड़की हम उम्र और लगभग एक जैसी ही हसीन थी.
मेरे घर में मेरी चाची और मुझमें पिछले 4 महीने से दोस्ती हो गई थी, लेकिन वो कहानी फिर कभी, घर की बात है.
मैं एडमिशन लेने के बाद चाची की बहन से मिलने उनके घर चला गया. मैंने उससे पहले कभी सरिता को देखा नहीं था.
उस दिन इतवार था. घर मेरे कोचिंग सेंटर के पास ही था. वह एक तीन मंजिला छोटा सा मकान था. ऊपर की दो मंजिलों में सरिता और उनके पति बसन्त कुमार रहते थे. नीचे ग्राउंड फ्लोर पर एक किराएदार रखा हुआ था.
कोटा में कोचिंग वाले बच्चों की भरमार थी अतः पीजी रखना और मकान किराये पर देना वहाँ का बिज़नेस है.
मैंने घर की बेल बजाई तो एक बहुत ही सुंदर मस्त लेडी ने दरवाजा खोला. जैसे ही मैंने लेडी को देखा तो मेरे होश उड़ गए. वह बला की सुंदर थी.
उन्होंने मुझसे पूछा- आपको किससे मिलना है? तो मैंने उनको बताया- मेरा नाम राजेश्वर है.
और मेरी चाची रश्मि का रेफेरेंस देते हुए मैंने बताया कि मुझे सरिता जी से मिलना है. लेडी कहने लगी- मैं ही सरिता हूँ.
मैंने कहा- नमस्ते आंटी! और उनके पाँव छूने लगा. पाँव छुआने को वह मना करने लगी.
वह लेडी मुझे अंदर ले गई. वहाँ चाची के जीजा बसन्त कुमार जी अपना बही खाता लेकर बैठे हुए थे. मैंने उनके भी पाँव छुए और बैठ गया.
उन लोगों को मेरे आने की खबर थी.
बसन्त कुमार जी की मार्किट में एक छोटी सी जनरल मर्चेंट की दुकान थी. वे सुबह 9.00 बजे चले जाते थे और रात 10.00 बजे आते थे.
उनके 4 और 6 साल के दो छोटे बच्चे थे, जो सुबह 8.00 बजे स्कूल जाते थे और 2 बजे आते थे. इतवार को सभी की छुट्टी होती थी.
बसन्त कुमार जी 15-20 दिन बाद दुकान का सामान लेने बड़े शहर जाते रहते थे और रात को वहीं रुकते थे. उन्होंने मुझसे मेरे परिवार की कुशलक्षेम पूछी.
कुछ देर सोचकर बसंत जी अपनी बीवी सरिता से बोले- सरिता, क्या तुम्हारे ध्यान में कोई आस पास कमरा खाली है? सरिता- नहीं, मुझे तो नहीं लगता. बसन्त कुमार- चलो देखते हैं तुम इसके लिए कुछ चाय नाश्ता लगाओ.
चाय पीने के बाद बसन्त जी कहने लगे- राज! फ़िलहाल तो कोई जुगाड़ बन नहीं रहा है. कुछ दिन बाद देखते हैं.
फिर वो अपनी बीवी सरिता की ओर देखकर बोले- ऐसे करते हैं जबतक कोई इंतजाम नहीं होता तब तक यह अपने ऊपर वाले कमरे में ही रह लेगा. सरिता- हाँ है तो ठीक! लेकिन फिर हमारे पास तो केवल एक हमारा बेडरूम ही रह जायेगा और फिर छत पर भी हमारा आना जाना रहता है.
बसन्त जी बोले – अरे, ये कोई गैर थोड़े ही है अपना बच्चा ही तो है और फिर यह है भी तुम्हारा ही रिश्तेदार, तो करो एडजस्ट इसे. सरिता कहने लगी- वो तो ठीक है, लेकिन जल्दी ही कोई दूसरा जुगाड़ कर देना.
हालाँकि मैं आया तो था चाची की शिफारिश से उनकी बहन के पास … लेकिन बहन का रवैया देखकर मुझे कुछ अच्छा नहीं लगा. मैंने कहा- मैं जो किराया बाहर दूँगा, वही आपको दे दूँगा. और फिर कमरा भी आपका ही रहेगा.
बसन्त जी को बात पसन्द आई, वे बोले- ठीक है, तुम ऊपर रह लो. फिर सरिता से बोले- इससे किराया ले लेना.
सरिता- किराये की तो कोई बात ही नहीं है लेकिन … फिर सोचकर बोली- चलो कुछ दिन देखते हैं.
अब सरिता नाटक कर रही थी या उसके मन में यह था कि यह लड़का मेरी बहन ने भेजा है तो बसन्त मुझे ताना न दें. जो भी हो सरिता का स्वभाव और रिएक्शन मुझे पसंद नहीं आया.
कहते हैं त्रिया चरित्र तो देवताओं के भी समझ से बाहर की चीज है, फिर मैं तो छोटा सा प्यादा था.
सरिता गजब की सुंदर और सेक्सी लेडी थी. उनकी उम्र 33-34 साल के लगभग होगी. सरिता का साइज 36-34-36 रहा होगा. गोरा चमकदार रंग, बड़ी बड़ी आंखें, गोल चेहरा सुंदर नयन नक्श!
कुल मिलाकर सरिता को देखते ही मेरे शरीर, मन और लंड में सनसनाहट होने लगी थी.
उन्होंने बहुत ही सुंदर सलीके से साड़ी पहनी हुई थी. जिसमें उनके बदन की कसावट का हर हिस्सा अलग अलग दिखाई दे रहा था. उन्होंने बहुत ही सुंदर स्लीवलैस ब्लाउज पहना हुआ था.
सरिता आँटी कहने लगी- चलो, मैं तुम्हें कमरा दिखा देती हूँ. हम उनके कमरे से बाहर आ गए.
सीढ़ियाँ हर पोर्शन के लिए बाहर से ही थीं. सरिता आगे आगे ऊपर कमरे में जाने के लिए सीढ़ियां चढ़ने लगी, मैं उनके पीछे चलने लगा.
ऊपर चढ़ते हुए सरिता की साड़ी उनकी पिंडलियों तक ऊपर उठ जाती थी. उनकी भारी और कसी हुई गांड देखते हुए मैं उनके पीछे-पीछे चलने लगा.
आखरी सीढ़ी पर चढ़ने के बाद कमरे का दरवाजा आ गया. सरिता ने दरवाजा खोला.
कमरा बहुत ही सुंदर था जिसमें एक बेड लगा हुआ था और एक टेबल चेयर लगी हुई थी. कमरे का एक दरवाजा बाहर छत पर खुलता था.
सरिता ने मुझसे पूछा- तुम खाना कहां खाओगे? तो मैंने कहा- मैं अपने खाने का अरेंजमेंट होटल से कर लूंगा या जो टिफिन सप्लाई करते हैं उनसे टिफिन मंगवा लिया करूंगा. सरिता कहने लगी- ठीक है, जो तुम्हें ठीक लगे, कर लेना.
उन्होंने मुझसे मेरी पढ़ाई के बारे में थोड़ी बहुत बातें की और कहने लगी- ठीक है. तुम यहाँ रहो कोई दिक्कत हो तो मुझे बता देना. मैंने कहा- ठीक है आँटी.
सरिता- राज! तुम मुझे आँटी मत कहो, मुझे आँटी सुनना अच्छा नहीं लगता. मैं- फिर क्या कहूँ? सरिता- मुझे नहीं पता! लेकिन मैं आँटी जैसी बूढ़ी तो नहीं हूँ. मैं- बिल्कुल नहीं, आप तो बहुत सुंदर और जवान हो.
यह सुनते ही सरिता ने मुस्करा कर मुझे गौर से देखा और बोली- अच्छा जी, आपको औरतों की सुंदरता का भी ज्ञान है? और क्या क्या पता है? मैं हड़बड़ा गया और बोला- नहीं नहीं, मुझे कुछ नहीं पता, मैंने तो ऐसे ही कह दिया था.
सरिता ने मेरे गाल को छुआ और बोली- कोई बात नहीं, मैं कोई नाराज़ थोड़े हुई हूँ. और पहली बार सरिता ने मुझे ऊपर से नीचे तक बड़ी गूढ़ नजरों से देखा और उनके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान दौड़ गई.
मुझे भी कुछ अपने अंदर गुदगुदाहट सी महसूस हुई. सरिता जाते हुए बोल गई- तुम अपना सामान ले आओ और जबतक खाने का कुछ बंदोबस्त नहीं होता तबतक खाना नीचे ही खा लेना. और मुस्करा कर बोली- बहुत जरूरी हो तो आँटी कह लेना.
मैं कुछ भी नहीं समझ सका.
फिर मैं अपना सामान ले आया और खाना सरिता के पास ही खाने लगा.
लगभग एक हफ्ता निकल गया. सरिता मुझे बड़े प्यार से रखने लगी. एक दिन मैंने कहा- आप मुझे भी घर के काम बता दिया करो, मैं आपकी हेल्प कर दिया करूँगा. सरिता बोली- ठीक है.
उसके बाद सरिता घर के छोटे मोटे कामों में मेरी हेल्प लेने लगी. मैं भी उसके बच्चों के साथ कई बार खेल लेता था.
लेकिन सरिता मुझमें कुछ और ही संभावना तलाशने लगी थी. वह रह रह कर मेरी तरफ अजीब नजरों से देखती और स्माइल देती रहती.
एक रोज कोचिंग सेन्टर से आने के बाद मैं बायोलॉजी की किताब को खोल कर पढ़ रहा था. दरअसल मैंने जो पेज खोल रखा था उसमें चूत की फ़ोटो थी. उस चित्र में चूत के पार्ट्स के नाम बताए हुए थे. मैं अक्सर उस पेज को देख लेता था और मुठ मार लेता था.
उस दिन जब मैं उस चित्र को देख रहा था तो मेरे लोअर में मेरा लौड़ा तना हुआ था. तभी अचानक सरिता आँटी ऊपर आ गई और उन्होंने मुझे चूत की फ़ोटो देखते हुए और मेरे उभरे हुए लोअर को देख लिया.
मैंने सरिता को देखते ही किताब बन्द कर दी और खड़ा हो गया. खड़े होते ही सरिता ने मेरे उभार को देखा और बोली- ये क्या पढ़ रहे थे?
मैं हकला गया और बोला- वो … मैं … कुछ नहीं … बॉडी के पार्ट्स देख रहा था … आज पढ़ाये थे … सर ने. सरिता- इतनी गन्दी चीजें पढ़ाई जाती हैं तुम लोगों को? और मुस्कराते हुए नीचे चली गई.
रात को खाने के वक्त मैं खामोश रहा और सरिता आँटी मुझे ललचाई नजरों से देखती रही. जब मैं ऊपर जाने लगा तो सरिता आँटी बोली- राज! कल मैंने कुछ भारी कपड़े धोने हैं, क्या तुम उन्हें उठाने और निचोड़ने में मेरी हेल्प कर दोगे?
मेरी क्लास सुबह 8 से 10 बजे तक और सांय 4 से 6 बजे तक लगती थी. मैंने कहा- ठीक है, मैं 10 बजे कोचिंग से आ कर करवा दूँगा.
सुबह मैं नाश्ता करने के बाद कोचिंग चला गया और वापिस आकर लोअर और टीशर्ट पहन कर नीचे चला गया.
मैं लोअर टीशर्ट के नीचे बनियान और अंडरवीयर नहीं पहनता हूँ.
मैंने देखा सरिता उस दिन बहुत ही सेक्सी ड्रेस में थी. उसने बिना ब्रा के स्लीवलेस टॉप और घुटनों से थोड़ी नीचे तक की स्कर्ट पहन रखी थी. वह नहा धोकर तैयार लग रही थी.
मैंने पूछा- कपड़े धोएँ? सरिता- राज! कपड़े तो मैंने ही नहाते हुए धो लिए थे लेकिन भारी बाल्टी उठाने से मेरी कमर में दर्द हो गया. लगता है झटका लग गया है.
और यह कह कर वह बेड पर बैठ गई और अपना हाथ पीछे ले जाकर दर्द जैसा मुँह बनाने लगी. मैं- कोई दवाई लगा दूँ? सरिता- नहीं बस थोड़ा मसल दो.
मित्रो, मैं अपना इमेल नहीं दे रहा हूँ. अपने विचार कमेंट्स में ही प्रकट करें. धन्यवाद.
देसी आंटी सेक्स कहानी का अगला भाग: कोटा में कोचिंग और चुदाई साथ साथ- 2
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