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हैलो.. मेरा नाम विधि है और मैं दिल्ली की हूँ। मेरी उम्र 23 साल है। यह कहानी आज से 5 साल पहले की है। तब मैं 18 साल की थी, पापा और मम्मी नौकरी करते हैं और मैं पढ़ाई करती थी।
मेरे चाचा जो इंदौर में रहते हैं और उनकी उम्र तब 34 के आस-पास थी.. वो घूमने के लिए दिल्ली हमारे यहाँ आए थे। पापा-मम्मी तो 9 बजे काम पर चले जाते थे और मैं कॉलेज जाती थी। दोपहर में 2 बजे मैं वापस आ जाती थी.. तब तक चाचा कुछ करते रहते थे। फिर शाम को मैं चाचा को घुमाने ले जाती थी, चाचा से मेरी दोस्ती हो गई थी।
घटना की रात गर्मी की रात थी.. पापा-मम्मी अपने कमरे में सोए हुए थे.. चाचा एक कमरे में और एक कमरे में मैं सोई थी। अचानक आधी रात को बिजली चली गई। मैं उठी और इन्वरर्टर चालू कर दिया लेकिन चाचा वाले कमरे में इन्वरर्टर का कनेक्शन नहीं था इसलिए मैं उनको बोली- आप मेरे कमरे में आ जाइए। मेरा बिछावन बड़ा था.. सो दिक्कत नहीं होनी थी।
मैं और चाचा लेट गए।
पता नहीं क्या समय हो रहा होगा.. मेरी नींद खुल गई, चाचा का हाथ सोते हुए में मेरे पेट पर आ गया था और चाचा मुझसे चिपक के सोए थे।
मैं दुविधा में थी कि क्या करूँ? मैंने चाचा का हाथ धीरे से हटा दिया और सोने की कोशिश करने लगी। लेकिन सच बताऊँ तो पहली बार किसी से चिपक कर सोई थी.. तो अजीब सा एक अनजाना सा अहसास हो रहा था।
दस मिनट के बाद मैं नींद के आगोश में थी.. कि फिर से आँख खुल गई क्योंकि मुझे अपने पेट पर चाचा का हाथ चलता हुआ महसूस हुआ। मैं चुप रही.. चाचा का हाथ मेरे स्तनों की तरफ बढ़ रहे थे और मुझे अपनी गर्दन पर उनकी सांस महसूस होने लगी थी।
मैं सही गलत का फैसला नहीं कर पा रही थी। वो कहते हैं न कि जब दिमाग पर सेक्स चढ़ जाए.. तो सब सही लगता है। चाचा मेरे स्तनों पर अपनी पकड़ बढ़ाते जा रहे थे और मुझसे चिपक गए थे। अब मेरे स्तनों पर दबाव बढ़ गया था और मैं हल्का सा दर्द महसूस कर थी। अचानक मेरे मुँह से निकला- चाचा.. धीरे दबाओ.. दर्द हो रहा है..
मैंने तो विनती की थी.. लेकिन अब तक अपनी सीमा में रहे चाचा के लिए ये हरी झंडी थी। मैं कुछ समझ पाती.. तब तक चाचा मेरे ऊपर थे और और मैं 78 किलो के चाचा के नीचे दब गई थी। ना जाने क्यों.. मुझे चाचा के नीचे दबना बहुत अच्छा लग रहा था। हम दोनों ही खामोश थे और चाचा की हल्की दाढ़ी मेरे चेहरे को घिस रही थी।
चाचा ने मेरे होंठ को चूसना शुरू कर दिया था और उनकी जीभ मेरे मुँह में घुसने की कोशिश कर रही थी। मैंने हल्की सी जगह दी और उनकी जीभ मेरे मुँह में ना जाने क्या खोजने लगी। तभी मुझे अपनी पैंटी चिपचिपी सी महसूस होने लगी थी।
काफी देर तक अपने जीभ से मुँह चोदने के बाद चाचा अलग हुए और मुझे उठा कर मेरी टीशर्ट को अलग करने लगे.. तो मैंने मना किया- चाचा.. यह गलत है.. चाचा ने धीरे से कहा- विधि.. कुछ भी गलत नहीं है.. दुनिया इसी से चलती है.. यह कहते हुए मेरी टी-शर्ट उनके हाथ में आकर जमीन पर गिर गई।
चाचा मुझे ब्रा में देख कर पागल हो गए और उन्होंने मेरी ब्रा के हुक तोड़ डाले, चाचा किसी भूखे बच्चे की तरह मेरी चूचियों पर टूट पड़े, एक चूची मुँह में और एक हाथ में, दूसरे हाथ से मेरा लोअर नीचे खींचने लगे। मैंने कमर उठा कर सहायता कर दी, लोअर घुटने तक जा पहुँचा.. तो उन्होंने अपने पैर की सहायता से उसको मेरे शरीर से अलग कर दिया।
अब चाचा पैंटी के ऊपर से मेरी चूत मसल रहे थे और चूत के पानी से उनका हाथ चिपचिपा हो रहा था। चाचा न जाने क्यों बार-बार अपने हाथ को सूंघ कर ‘आअह..’ कह रहे थे।
अब मेरी एक चूची चाचा के मुँह में दबी थी.. दूसरी उनके हाथ में थी, मेरी चूत उनकी दूसरे हाथ में थी। मैं मदहोश थी। चाचा ने मेरी छोटी सी पैंटी को धीरे से नीचे खींचा और अलग कर दिया। अब मैं बिल्कुल नंगी थी।
चाचा झटके से उठे और तुरंत अपने सारे कपड़े उतार फेंके… पहली बार मैंने उनका लंड देखा, उसको देखते ही मेरी आवाज़ बंद हो गई.. जैसे सामने 7.5 इंच का लंड या उसको हलब्बी लौड़ा कहना बेहतर होगा और 3.5 इंच मोटा काला एकदम से सलामी दे रहा था।
चाचा ने देर ना करते हुए अपने हाथ से मेरी टांगों को फैला कर मेरी पूरी चूत को अपने मुँह में भर लिया।
सच कहूँ.. तो मैं सब कुछ भूल गई.. यही जन्नत थी.. यही दुनिया थी। मैं आसमान में कहीं उड़ रही थी और पता नहीं कब मेरे हाथ चाचा के सर को पकड़ कर चूत पर दबा रहे थे।
अब मैं वो दर्द लेने के लिए तैयार थी.. जो जिंदगी में सिर्फ एक बार होता है। चाचा अब मेरे ऊपर थे.. उनके होंठ मेरे होंठ के पास थे। उन्होंने अपने हाथ से अपना लौड़ा चूत पर सैट किया.. चूत पर लौड़ा लगते ही शरीर में एक बिजली सी दौड़ गई।
चाचा अब मेरे होंठ चाट रहे थे और उनकी कमर का हल्का-हल्का सा दबाव बढ़ता ही जा रहा था। मैं अपनी कमर को पीछे खींच रही थी और वो मेरी कमर पर दबाव बना रहे थे।
आखिर अब मेरे पास कमर पीछे खींचने की जगह नहीं बची और मैं बेबस थी। अब मेरी चूत की फांकें चौड़ी होने लगी थीं और चाचा मेरी चूत के दरवाजे पर खड़े थे। चाचा ने लौड़ा को वैसे ही टिका रहने दिया और खुद को सीधा करके मेरी चूत के मुँह पर और लौड़ा पर ढेर सारा थूक उगल दिया।
अब उन्होंने मेरे दोनों हाथों को पकड़ा और होंठ को अपने मुँह में दबाया। एक बार फिर से मैं हवा मे उड़ रही रही.. तभी.. ‘खच्च… च्चच्छाअ… आआकक.. ऊऊऊ… ऊऊह ममीईईईई..’
मैं इस दर्द के लिए तैयार नहीं थी.. लेकिन चाचा तैयार थे, वो रुक गए थे और होंठ चूस रहे थे, मैं दर्द सह नहीं पा रही थी। मैंने कहा- चाचा.. छोड़ दो ना.. उन्होंने कहा- छोड़ दूँ? मैंने कही- हाँ चाचा.. उन्होंने कहा- ठीक है..
वो जरा सा सीधे हुए.. मैं खुश होती.. तभी.. ‘खच्च… च्चच्छाअ… आआकक.. ऊऊऊ… ऊऊह ममीईईईई..’ चाचा ने धोखे से अपना पूरा लौड़ा ठूंस दिया था। मैं दर्द से बिलबिला उठी.. लेकिन चाचा ने लौड़ा बाहर ना निकाला।
चाचा अब बिल्कुल शांत मेरे होंठ चूस रहे रहे थे, मैं दर्द सहने की कोशिश कर रही थी, मैं चाह कर भी चाचा को उनके वजन की वजह से अलग धकेल नहीं पा रही थी।
धीरे-धीरे जब दर्द कम हुआ.. तो महसूस हुआ कि चूत में कोई गर्म लोहा घुसा है.. जो बच्चेदानी को छू रहा है। अब एक खूबसूरत अहसाह हो रहा था और मेरी कमर खुद ही हिलने लगी। चाचा को तो इस हरकत का ही इंतज़ार था। उन्होंने अपनी कमर को हिलाना शुरू किया। दर्द तो हो रहा था.. जो हर झटके के साथ कम हो रहा था और आनन्द बढ़ता जा रहा था।
चाचा के झटके तेज़ होते जा रहे थे और मैं हवा में उड़ने लगी। लगभग 5 मिनट के बाद मेरा शरीर अकड़ने लगा और चाचा के एक जोरदार झटके के साथ चूत ने पानी छोड़ दिया। अब ‘थाप.. थाप..’ की आवाज़ ‘फच्च.. फच्च.. पच्च..’ की आवाज़ में बदल गई थी।
चाचा ने तेज़ झटके लगाना शुरू किए और 3-4 मिनट के बाद.. ‘आआहहहह हहह.. विधीईई.. मेरी जान..’ अन्दर कुछ गर्म पानी का छींटा पड़ा और चाचा मेरे ऊपर लुढ़क गए। ड़इस रात को अपनी मंज़िल मिल चुकी थी और मेरे और चाचा को एक नई मंज़िल के लिए रास्ता मिल चुका था।
सुबह हम दोनों एक-दूसरे से आँख नहीं मिला पा रहे थे.. अचानक हमारी आँख मिली और उसमें फिर से आज की रात का इन्तजार था।
दोस्तो, यह मेरी पहली कहानी थी.. आशा करती हूँ आपको पसंद आएगी और आप मुझे अपने सुझावों को मुझे मेल करेंगे। [email protected]
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