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अब तक आपने पढ़ा.. मैं- ठीक है.. आज शाम को आता हूँ.. लेकिन बदले में मुझे क्या मिलेगा? सूर्या- जो तू बोल.. मैं- सोनिया की चूत दिलाऊँगा.. तो बदले में मुझे तुम सुहाना से मिलवाओगे। सूर्या- साले.. अब तुम क्या मेरी दोनों बहनों को चोदोगे? अब आगे..
मैं- कोशिश तो यही है.. अब क्या लिख कर दूँ.. कि सोनिया को चोदना है.. तो सोच लो.. मेरे बिना वो तुमसे चुदने को राज़ी नहीं होगी.. बाकी तू समझ.. सूर्या- ठीक है साले.. सुहाना को भी चोद लियो.. मुझे मंजूर है। मैं- ठीक है.. तू जा घर.. मैं उसको मना लूँगा।
सूर्या अपने घर चला गया और मैं सोनाली के कमरे में गया तो देखा वो पूरी नींद में औधी पड़ी थी तो मैं भी अपने कमरे में जाकर सो गया।
जब पापा आए तो मेरी नींद खुली.. फ्रेश हो कर मैंने नाश्ता किया और घूमने के बहाने से सूर्या के घर गया। मैंने देखा सोनिया अपनी चूत में अब भी बर्फ का टुकड़ा डाल कर बैठी हुई थी। तो मैंने बर्फ हटा कर तेल से थोड़ी मालिश कर दी.. तो वो जल्द ही सामान्य हो गई..
अब मैं उसकी चूचियों को दबाते हुए बोला- अब दर्द कैसा है मेरी जान? सोनिया- ठीक हो गई हूँ.. मैं- तब तो एक राउंड हो जाए? सोनिया- हाँ अब हो जाएगा। मैं- नहीं.. रहने दो तुम रेस्ट करो। सोनिया- ठीक है डार्लिंग..
मैं- एक बात बोलूँ.. बुरा तो नहीं मानोगी। सोनिया- नहीं.. बोलो? मैं- वो सूर्या तुमको.. सोनिया- सूर्या मुझे क्या? साफ़-साफ़ बोलो न? मैं- सूर्या तुम्हारे साथ एक बार करना चाहता है। सोनिया- क्या? मैं- हाँ.. सोनिया- लेकिन ये सही नहीं है।
मैं- क्या सही नहीं है.. तुम दोनों एक-दूसरे को नंगे देख ही चुके हो.. एक बार ट्राई कर लो। सोनिया- ओके.. तुम बोलते हो तो कर लूँगी। तभी मैंने सूर्या को फोन किया।
मैं- लो साले.. तेरा काम हो गया.. आज पहली बार गाण्ड मार ले साले.. पर अपनी दीदी की चूत को मत छूना.. सोनिया राज़ी हो गई। सोनिया- एक बात बोलूँ? मैं- हाँ बोलो न.. सोनिया- मैं अपनी गाण्ड की सील भी तुमसे ही खुलवानी चाहती हूँ। मैं- ऐसा क्यों? सोनिया- वैसे ही.. मेरी ये विश पूरी कर दो ना प्लीज़.. मैं- ओके मेरी जान.. यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मैंने उसके कपड़े उतारे और उसकी गाण्ड में तेल लगा कर अपना लौड़ा पेल दिया। अब कैसे पेला उतना नहीं बता रहा हूँ.. नहीं तो कहानी लंबी हो जाएगी। मैं उसकी गाण्ड खोल कर अपने घर चला आया और रात को आराम से सो गया।
सुबह सूर्या ने फोन करके बताया कि उसने सोनिया के साथ चुदाई करके उसकी गाण्ड को मार ली है। मैं- गुड.. मजा आया ना? सूर्या- हाँ बहुत.. मैं- ठीक है.. अपना वादा याद है ना.. सूर्या- सुहाना से मिलने का ही ना.. मैं- हाँ.. सूर्या- जब दिल्ली जाएगा.. तब ना.. मैं- हाँ अब दिल्ली ही जाऊँगा.. कितने दिन यहाँ रहूँगा।
सूर्या- ठीक है जब दिल्ली जाएगा.. तो मैं हेल्प कर दूँगा। मैं- ठीक है।
मैंने फोन रख दिया.. तभी सोनाली मेरे कमरे में कॉफी ले कर आई.. जैसे ही टेबल पर उसने कॉफ़ी रखी.. मैंने उसे खींच कर अपनी गोद में बैठा लिया और उसकी चूचियों को दबा दिया। सोनाली- पापा घर पर ही हैं.. ज़रा सबर करो। मैं- तो क्या हुआ.. अभी इधर थोड़े ही आएंगे। सोनाली- अगर आ गए तो.. अभी कंट्रोल करो.. और किससे फोन पर बात हो रही थी?
मैं- तुम्हारे आशिक से.. सोनाली- सूर्या से क्या बात हो रही थी.. मेरे बारे में पूछ रहा था क्या? मैं- नहीं सोनिया को चोद दिया उसने.. यह बताने के लिए फोन किया था। सोनाली- क्या.. सोनिया मान कैसे गई? मैं- मैंने मनाया था। सोनाली- बड़ा कमीना है तू… और कुछ प्रोमिस की बात हो रही थी।
मैं- हाँ सुहाना को पटाने की। सोनाली- अब उसको भी? मैं- हाँ दिल्ली जा रहा हूँ.. वहीं है सुहाना.. उस पर भी ट्राई मारूँगा। सोनाली- ऊऊ ऊऊहह.. वो तो आसानी से पट जाएगी। इमैं- ऐसा क्यों? सोनाली- जब सोनिया को पटा लिया तो सुहाना तो पहले से ही फास्ट है। मैं- तुमको कैसे पता?
सोनाली- अरे स्कूल में वो मेरी जूनियर थी ना.. तब से ही जानती हूँ उसको.. तब ही दो तीन ब्वॉय-फ्रेण्ड थे.. तो अब तो दिल्ली में रहती है। मैं- तब तो उसको मेरे बेडरूम मे आने में ज्यादा देर नहीं लगेगी! सोनाली- हाँ.. मैं- ठीक है.. मैं दिल्ली जा रहा हूँ 2-3 दिनों में ही..
सोनाली- और यहाँ शेफाली को भूल गए? मैं- नहीं उसको अगली बार.. अभी सुहाना उसके बाद शेफाली। सोनाली- ठीक है.. लेकिन मुझे भोपाल कौन छोड़ने जाएगा.. तुम दिल्ली जाओगे तो? मैं- सूर्या को बोलूँगा.. वो तुमको छोड़ आएगा। सोनाली- वाउ.. लेकिन पापा उसके साथ नहीं जाने देंगे ना.. मैं- वो मैं कर लूँगा ना.. सोनाली- कैसे..?
मैं- पापा को बोलूंगा.. तुमको मैं भोपाल छोड़ कर दिल्ली चला जाऊँगा.. लेकिन स्टेशन से तुम सूर्या के साथ चली जाना। सोनाली- वाउ प्लान अच्छा है। मैंने तीन दिन बाद भोपाल के दो और दिल्ली एक-एक टिकट बनवा लिए और दिल्ली जाने से पहले मैंने और सूर्या ने सोनाली और सोनिया को जम कर चोदा।
दिन में सूर्या मेरे घर आ कर सोनाली को चोदता और मैं उसके घर जाकर सोनिया को चोदता था। रात को अपने-अपने घरों में अपनी-अपनी बहनों को चोदते थे। दिन में मम्मी-पापा के ऑफिस जाने के बाद या तो सूर्या सोनिया को ले कर मेरे घर आ जाता था.. या तो मैं सोनाली को ले कर सूर्या के घर पहुँच जाता था और शाम तक सामूहिक चुदाई होती थी, फिर अपने-अपने घर लौट जाते थे।
अब वो दिन आ गया.. जब हमें वापस जाना था.. तो मैं सोनाली को लेकर स्टेशन पहुँचा.. तो सूर्या पहले से वहाँ पहुँचा हुआ था। मुझे एक सामान का बैग दिया।
सूर्या- लो ये सुहाना को दे देना.. और मैं उसको बोल चुका हूँ.. तुम उसके होस्टल में सामान पहुँचा देना.. मैंने तुमको उसका नंबर दे दिया है.. और तुम भी अपने मोबाइल से अभी उसे फोन कर लो… मैं तुम्हारी बात करा देता हूँ।
सूर्या ने मुझे सुहाना का नंबर दिया तो मैंने फोन किया.. पूरी रिंग हुई लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं आया। मैं- हो सकता है कहीं बिजी होगी.. बाद में बात कर लूँगा। सूर्या- ठीक है.. लो ट्रेन भी आ गई। मैं- हाँ..
मैंने उन दोनों को ट्रेन में चढ़ा दिया उनके डिब्बे में ज्यादा आदमी नहीं थे पूरी बोगी में केवल 5-6 आदमी ही होंगे। इनके आस-पास की सारी सीटें खाली थीं.. तो मैं बोला- डार्लिंग.. आज तो तू जा रही है.. अब मुझसे कब चुदेगी.. पता नहीं… मैंने सोनाली की चूचियों को दबा दिया.. तो उसने भी मेरे लंड को दबाते हुए कहा- जब मन होगा.. आ जाना भोपाल.. तभी ट्रेन चलने लगी तो मैं दोनों को बाइ बोल कर नीचे उतर गया।
तभी एक फोन आया.. अरे यह तो सुहाना का नंबर है। मैं- हैलो.. तो उधर से एक सेक्सी सी आवाज़ आई, मैं तो मन ही मन उसकी आवाज़ से उसके जिस्म के बारे में सोचने लगा। सुहाना- हाँ जी.. आपका फोन आया था.. मैं उठा नहीं पाई थी। मैं- हाँ वो सूर्या ने फोन किया था। सुहाना- अरे सुशान्त भैया आप… भैया ने बताया था कि आप सामान ले कर आ रहे हैं। मैं- हाँ..
सुहाना- तो क्या मैं स्टेशन आ जाऊँ.? मैं- अरे नहीं.. मैं सामान तुम्हारे कमरे तक पहुँचा दूँगा.. तुम टेन्शन मत लो। सुहाना- ठीक है.. वैसे आप आओगे तो थोड़ा अच्छा भी लगेगा.. मैं यहाँ बोर हो रही हूँ। मैं- ऐसा क्यों? सुहाना- यहाँ आए 10-12 दिन तो हुए हैं.. ना कुछ देखा हुआ है.. ना ही ज्यादा दोस्त हैं.. सो कमरे में बोर होते रहती हूँ। मैं- ऊऊहह.. अब समझा.. ठीक है.. मैं आऊँगा तो तुम्हें दिल्ली घुमा दूँगा। सुहाना- हाँ ये सही रहेगा!
मैं- ठीक है दिल्ली पहुँच कर फोन करता हूँ। मेरी ट्रेन आ गई थी.. मैंने फोन रखना चाहा.. लेकिन वो बातें करने लगी और मैं बात करते-करते ही ट्रेन पकड़ ली। वो बात करती रही.. मैं मन ही मन सोच रहा था कि ये तो आसानी से पट जाएगी। कुछ देर बाद मैं फोन रख कर सो गया और नींद खुली तो दिल्ली पहुँच चुका था।
दोस्तो.. मेरी यह कहानी आपको वासना के उस गहरे दरिया में डुबो देगी जो आपने हो सकता है कभी अपने हसीन सपनों में देखा हो.. इस लम्बी धारावाहिक कहानी में आप सभी का प्रोत्साहन चाहूँगा, तो मुझे ईमेल करके मेरा उत्साहवर्धन अवश्य कीजिएगा। कहानी जारी है। [email protected]
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