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मैंने अपनी पत्नी को उस गाउन में जब देखा तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं। उसके पिछेकी रौशनी में उसकी टाँगे, उसके नितम्ब, उसके स्तन, निपल बल्कि उसकी चूत की गहराई तक नजर आ रही थी।
ऐसा लग रहा था जैसे उसने कपडे पहने ही नहीं थे। मेरा माथा यह सोचकर ठनक गया की जब अनिल उसे इस हाल में देखेगा तो उसके ऊपर क्या बीतेगी।
तभी मैंने अनिल को अपने हाथों से तालियां बजाते हुए सूना। उसने नीना को उस गाउन में देख लिया था।
वह नीना के पास आया और जैसे नीना के कानों में फुसफुसाता हुआ बोला, “भाभी आप इस गाउन मैं मेनका से भी अधिक सुन्दर लग रही हो। मैं भगवान की सौगंध खा कर कहता हूँ की मैंने आज तक आप जितनी सुन्दर स्त्री को नहीं देखा।”
अनिल ने आगे बढ़कर नीना से पूछा, “क्या मैं आप को छू सकता हूँ?”
अपनी इतनी ज्यादा तारीफ़ सुनकर नीना तो जैसे बौखला ही गयी। वह यह समझ नहीं पायी की वह उस गाउन में पूरी नंगी सी दिख रही थी। बल्कि वह तो अनिल की प्रशंशा के पूल बाँधने से इतनी खुश हुयी की वह अनायास ही अनिल के पास आई और अनिल ने जब अपने हाथ फैलाए तो वह मुस्कुराती हुयी उसमें समा गयी। मैं अपनी भोली और सरल पत्नी के कारनामे देख कर दंग सा रह गया। नीना ने मेरी और देखा और ऐसे मुंह बनाया जैसे मैं उसका कोई प्रतिद्वंदी हूँ।
वह अनिल के बाँहों में से बाहर आकर अनिल के ही बगल मैं बैठ गयी। नीना ने मुझे भी अपने पास बुलाया और अपने दूसरी और बिठाया। नीना मेरे और अनिल के बीचमें बैठी हुयी थी। नीना ने अपना एक हाथ मेरे और एक हाथ अनिल के हाथ में दे रखा था। हम तीनों एक अजीब से बंधन मैं बंधे हुए लग रहे थे।
अनिल उसने तब नीना का हाथ अपने हाथ में लेकर उसे सेहलना शुरू किया और बोला, “राज, नीना, मैं तुम्हें अब एक बड़ी गम्भीर बात कहने वाला हूँ। कुछ ख़ास कारण से मैंने सबसे यह बात छुपाके रखी है। यहां तक की मैंने अनीता को और अपने माता और पिता तक को नहीं बताया। ” अचानक हम सब गम्भीर हो गए।
अनिल ने तब हम को बताया की उसको उसकी कंपनी की औरसे उसे निकासी का आर्डर मिल गया था। उसे एक महीने का नोटिस मिला था। अब उसके पास कोई जॉब नहीं था। अगर वह एक महीने में कोई और जॉब नहीं ढूंढ पायेगा तो उसे घर बैठना पड़ेगा। कमरे में जैसे एक मायूस सा वातावरण फ़ैल गया।
अब अनिल वह अनिल नहीं लग रहा था। हम जानते थे की अनिल का पूरा घर उसीकी आमदनी से चलता था। अगर आमदनी रुक गयी तो सब की हालात क्या होगी यह सोचना भी मुश्किल था। अनिल की आँखोंसे आंसू बहने लगे। वह अपने आप को सम्हाल नहीं पा रहा था। मैंने और नीना ने उसके हाथ पकडे और उसको ढाढस देने की कोशिश करने लगे। पर अनिल के आंसू रुकते ही न थे। अनिल एकदम उठ खड़ा हुआ और बाथरूम की और बढ़ा।
नीना भी भावुक हो रही थी। अनिल की ऐसी हालत उससे देखी नहीं जा रही थी। नीना उठकर मेरे पास आई। उसकी आँखों में भी आंसू थे। वह बोली, अरे देखो तो, अनिल का कैसा हाल हो रहा है। उसे क्या हो गया? उसे सम्हालो। अनीता को इस वक्त अनिल के पास होना चाहिए था। तुम क्या कर रहे हो। जाओ अपने दोस्त को सांत्वना दो। उसके पास बैठो, उसको गले लगाओ।”
तब मैंने अपनी पत्नी को अपनी बाँहों में लेते हुए कहा, “देखो आज होली है। आज आनंद का त्यौहार है। रोने का नहीं। ऐसे वक्त में तो एक स्त्री ही पुरुष को प्रेम देकर अपने स्त्रीत्व से शांत कर सकती है। मैं कुछ नहीं कर सकता। अनीता भी तो अनिल के पास नहीं है। आज तो तुम ही अनिल को शांत कर सकती हो।
मेरी बात सुनकर नीना सहम सी गयी और कुछ देर तक सोचने लग गयी। फिर बोली, “पर अगर मैं उसे अपने स्त्रीत्व से शांत करने की कोशिश करुँगी और कुछ ऊपर नीचे होगया तो?” यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे हैं।
मैंने कहा, “तो क्या होगा? मैं हूँ ना? सुबह उसने तुम्हारी चूचियां दबाई तो क्या हुआ? कौन सा आसमान टूट पड़ा? तुम्हें कुछ नहीं होगा। ज्यादा चिंता मत करो। मैं तुम्हारा पति तुम्हे कह रहा हूँ। यह ज्यादा सोचने का वक्त नहीं है। तुम मेरे साथ चलो और उसे अपने आँचल में लेकर शांत करो। वरना वह कहीं वह कोई पागलपन न कर बैठे। वह कहीं अपनी जान न खो बैठे। और अगर ऐसा कुछ हुआ तो तुम अपने आप को कभी माफ़ नहीं कर पाओगी।”
नीना हड़बड़ा कर उठी और अनिल जहां बाहर बैठा था उसके पास गयी। उसने अनिल का हाथ पकड़ा और उसे खीच कर बैडरूम में ले आई। अनिल की सिसकियाँ तब भी नहीं रुक रही थी। पलंग पर नीना मेरे और अनिल के बिच बैठी। उसने अनिल का सर अपनी गोद में रखा और उसके काले घने बालों में अपनी उंगलियां ऐसे फेर रही थी जैसे वह कंघा कर रही हो। अब अनिल का सर मेरी पत्नी की गोद में था।
अनिल का नाक अब नीना के स्तनों को छू रहा था। अनिल का हाल देखने वाला था। नीना जैसे ही थोड़ी झुकी की उसकी मद मस्त चूंचियां अनिल के नाक पर रगड़ ने लगीं। नीना सिहर उठी। नीना सीधी बैठी और अनिल और मुझे अपनी दोनों बाँहों में लिया।
मैंने नीना के रसीले होठों पर अपने होंठ रख दिए और उसके होठों को चूसने लगा। नीना ने अपनी आँखें बंद कर ली। अनिल ने हमें चुम्बन करते देख हमारे मुंह के बिच अपना मुँह घुसेड़ दिया। जब मैंने देखा की अनिल भी नीना के रसीले होंठो को चूसना और उसे किस करने के लिए उतावला हो रहा था तो मैं बीचमें से हट गया।
तब अनिल और नीना के रसभरे होंठ मिल गये और अनिल ने नीना का सर अपने हाथ में पकड़ कर नीना के होठों को चूसना शुरू किया। नीना की आँखे बंद थीं। पर जैसे ही अनिल की मूछें उसने महसूस की, तो उसने आँख खोली और अनिल को उस से चुम्बन करते पाया। वह थोड़ी छटपटाई और मुंह हटाने लगी। पर अनिल ने उसका सर कस के पकड़ा था।
वह हिल न पायी और शायद उसे याद आया की उस रात उसने मुझे अनिल को अपना थोडा सा स्त्री जातीय प्यार देनेका वादा किया था। शायद यह सोच कर वह शांत हो गई और अनिल के चुम्बन में उसकी सह भागिनी हो गयी। मेरे लिए यह एक अकल्पनीय द्रष्य था। मेरी रूढ़िवादी पत्नी मेरे प्रिय मित्र को लिपट कर किस कर रही थी। नीना ने जब देखा की वह उसकी जीभ को भी चूसना चाहता था तब नीना ने अनिल के मुंह में अपनी जीभ को जाने दिया।
अनिल मेरी प्रिय पत्नी को ऐसे चुम्बन कर रहा था जैसे वह अब उसे नहीं छोड़ेगा। नीना साँस नहीं ले पा रही थी। उसने अपना मुंह अनिल के मुंह से हटाया और जोरों से सांस लेने लगी। अनिल नीना को कष्ट में देख थोड़ा खिसिया गया। उसकी खिसियानी हालत देख नीना ने उसे अपनी एक बांह में लिया और मुझे दूसरी बाँह में। हम दोनों को अपनी बाँहों में ले कर वह पलंग पर लेट गयी।
उसका मुंह अनिल की और था। मैं उस के पीछे लेटा था। उसने एकबार फिर अनिल के होंठ से अपने होंठ मिलाये और अब वह और जोश से अनिल को चुम्बन करने लगी। तब अनिल और मेरी पत्नी ऐसे चुम्बन कर रहे थे जैसे दो प्रेमी सालों के बाद मिले हों। नीना के दोनों हाथ अनिल के सर को अपनी बाँहों में लिए हुए थे। अनिल ने भी मेरी पत्नी को कमर से कस के अपनी बाँहों में जकड़ा हुआ था।
यह द्रष्य मेरे लिए एकदम उत्तेजित करने वाला था। मेरा लण्ड एकदम कड़क हो गया था। मैंने भी नीना को पीछे से मेरी बाहोँ में जकड़ा और मेरी पत्नी के दोनों स्तनों को अपने दोनों हाथों में पकड़ कर मसलना शुरू किया। हम तीनों पलंग पर लेटे हुए थे। मैंने फिर मेंरे कड़े लण्ड को मेरी पत्नी के गाउन ऊपर से उसकी गांड में डालना चाहा। मैं उसे पीछे से धक्का दे रहा था। इस कारण वह अनिल में घुसी जा रही थी। अनिल पलंग के उस छौर पर पहुँच गया जहाँ दीवार थी और उसके लिए और पीछे खिसकना संभव नहीं था।
अचानक नीना जोर से हँस पड़ी। उसे हँसते देख अनिल ने पूछा, “भाभीजी, क्या बात है? आप क्यों हंस रही हो?”
तब नीना सहज रूप से बोल पड़ी, “तुम्हारे भैया मुझे पिछेसे धक्का दे रहे हैं। उनका कड़क घंटा वह मेरे पिछवाड़े में घुसेड़ ने की कोशिश कर रहे है। इनकी हालत देख मुझे हंसी आ गयी।”
मैंने पहली बार मेरी रूढ़ि वादी पत्नी के मुंह से किसी पर पुरुष के सामने लण्ड के लिए कोई भी शब्द का इस्तमाल करते हुए सुना। मुझे लगा की जीन और व्हिस्की की मिलावट के दो पुरे पेग पीनेसे अब मेरी बीबी थोड़ी बेफिक्र हो गयी थी। साथ में वह अब अनिल से पहले से काफी अधिक घनिष्ठता महसूस कर रही थी।
इसे सुनकर अनिल ने रिसियायी आवाज में कहा, “भाभीजी, आपने अपने पति की हालत तो देखी पर मेरे हाल नहीं देखे। यह देखिये मेरा क्या हाल है?”
ऐसा कहते ही नीना को कोई मौका ना देते हुए अनिल ने नीना का हाथ पकड़ कर अपने दोनों पांव के बीच अपने लण्ड पर रख दिया और ऊपर से नीना के हाथ को जोरों से अपने लण्ड ऊपर दबाने लगा। मेरे पीछे से धक्का देने के कारण नीना के बहुत कोशिश करने पर भी वह वहां से हाथ जब हटा नहीं पायी तब नीना ने अनिल के लण्ड को अपने हाथों में पकड़ा। अनिल का पाजामा उस जगह पर चिकनाहट से भरा हुआ गिला हो चुका था। यह देख कर मैं ख़ुशी से पागल हो रहा था। अब मुझे मेरा सपना पूरा होनेका पर भरोसा हो गया।
मैंने तब नीना को पीछे से धक्का मारना बंद किया और मैं पीछे हट गया। अब नीना चाहती तो अपना हाथ वहां से हटा सकती थी। परंतु मुझे यह दीख रहा था की नीना ने अपना हाथ वहां ही रखा। वह शायद अनिल के लण्ड की लंबाई और मोटाई भाँप ने की कोशीश कर रही थी। अनिल के पाजामे के ऊपर से भी उसे अनिल के लंबे और मोटे लण्ड की पैमायश का अंदाज तो हो ही गया था।
मेरी प्यारी बीवी जब अनिल के लण्ड की पैमाइश कर रही थी तब अचानक ही उसके गाउन की ज़िप का लीवर मेरे हाथों लगा। मैंने कुछ न सोचते हुए उसे नीचे सरकाया और उसको नीना की कमर तक ले गया।
उसके गाउन के दोनों पट खुल गए। नीना ने अंदर कुछ भी नहीं पहन रखा था। जैसे ही गाउन के पट खुले और ज़िप कमर तक पहुँच गयी तो उसके दो बड़े बड़े अनार मेरे हाथों में आ गये। जैसे ही अनिल ने नीना के नंगे स्तनों को देखा तो वह पागल सा हो गया। इन स्तनों को ब्लाउज के निचे दबे हुए वह कई बार चोरी चोरी देखता था। उस समय उसने सपने में भी यह सोचा नहीं होगा की एक समय वह उन मम्मों को कोई भी आवरण के बिना देख पायेगा।
अनिल को और कुछ नहीं चाहिए था। वह तो नीना के दूध को पीने के लिए अधीरा था। परंतु मुझे तब बड़ा आश्चर्य यह हुआ की उसके सामने नीना के बड़े बड़े और सख्त मम्मे गुरुत्वाकर्षण के नियम को न मानते हुए उद्दंड से ऐसे खड़े थे जैसे अनिल को चुनौती दे रहे हों। फिर भी अनिल ने उन्हें हाथों में न पकड़ ते हुए नीना के कानों में कुछ कहा। यह सुनकर नीना मुस्कायी और उसने अपना सर हामी दर्शाते हुए हिलाया। मुझसे अपनी जिज्ञासा रोकी नहीं गयी। मैंने अनिल से पूछा, “तुमने नीना से क्या कहा?
अनिल ने इसका कोई जवाब न देते हुए मेरी पत्त्नी के दोनों स्तनों को अपने दोनों हाथों में भरते हुए कहा, “मैंने नीना से इसके लिए इजाजत मांगी थी।”
मैं अनिल की इस हरकत से हैरान रह गया। कमीना, उसने अपना काम भी करवा लिया और ऊपर से शराफत का नाटक भी कर के नीना की आँखों में शरीफ बन गया।
उसने नीना के दोनों मम्मो को अपने दोनों हाथों में बड़ी मुश्किल समाते हुए रखा और बोला, नीना तुम्हारे स्तनों का कोई मुकाबला नहीं। मैंने कभी किसी भी औरत के इतने सुन्दर मम्मे नहीं देखे। इसमें अनीता भी शामिल है।”
मैंने मेरी पत्नी की और देखा तो वह शर्म से लाल हो रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था की वह क्या करे। तब मेरी बीबी ने अनिल को अपनी और खींचा और उसके मुंह को अपने स्तनों में घुसा दिया। अनिल का मुंह बारी बारी कभी एक मम्मे को तो कभी दूसरे को जोर से चूसने लगा।
जब वह मेरी बीबी के एक स्तन को चूसता था तो दूसरे को जोर से दबाता और खींचता था और अपनी उँगलियों में नीना की निप्पलों को जैसे चूंटी भर रहा हो ऐसे दबाता था। कई बार तो वह इतना जोर से दबा देता की नीना के मुंह से टीस सी निकल जाती। तब वह अनिल को धीरे दबाने का इशारा करती।
बस और क्या था? अब तो मुझे और अनिल को जैसे लाइसेंस मिल गया था। मैंने भी नीना के रस से भरे मम्मों को चूसना शुरू किया। अब अनिल कहाँ रुकने वाला था? वह नीना के दूसरे मम्मे को अपने मुंह में रख कर उसकी निप्पल को काट ने लगा। नीना के हाल का क्या कहना? उसकी जिंदगी में पहली बार उसके स्तनों को दो मर्द एक साथ चूस रहे थे।
नीना इतनी गरम और उत्तेजित हो गयी थी की वह अपने आप को सम्हाल नहीं पा रही थी। अब तक जो मर्यादा का बांध उसके अपने मन में था अब वह टूटने लगा था। अपने स्तनों पर अनिल के मुंह के स्पर्श से ही अब वह पागल सी हो रही थी।
मैंने झुक कर प्यार से मेरी प्यारी पत्नी के रसीले होठों पर चुम्बन किया और उसके कानों में फुसफुसा कर बोला, “मेरी जान, आज तूमने मुझे वह गिफ्ट दिया है जिसके लिए में तुम्हारा ऋणी हूँ। तुमने मेरे कहने पर अपनी लज्जा का बलिदान किया है इसका ऋण मैं चूका नहीं सकता। नीना मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और अब तो मैं तुमसे और भी प्यार करने लगा हूँ। मैं चाहता हूँ की आज तुम लज्जा को एक तरफ रख कर हम दोनों से सेक्स का पूरा आनंद लो और हमें सेक्स का पूरा आनंद दो। आज तुम हम दोनों के साथ यह समझ कर सेक्स करो जैसे हम दोनों ही आज रात के लिए तुम्हारे पति हैं।“
नीना आँखे बंद कर मेरी बात ध्यान से सुन रही थी। जब वह कुछ न बोली तो मैंने उसे कहा, “डार्लिंग, अब आँखे खोलो और मुझे जवाब दो।”
तब मेरी शर्मीली खूबसूरत पत्नी ने अपनी आँखे खोली और और मेरी आँखों में आँखे डाल कर मुस्काई। उसने मेरा सर अपने दोनों हाथों में लेकर मेरे होंठ अपने होंठो पर दबा दिए और मेरे मुंह में अपनी जीभ डाल दी। ऐसे थोड़ी देर चुम्बन करने के बाद मेरे कान में फुसफुसाई, “चलो भी। अब जो होना था वह हुआ। अब बातें कम और काम ज्यादा।”
अनिल ने जब हमारा आपस में प्रेमआलाप देखा तो वह भी मुस्काया और समझ गया की अब नीना भी हमारे साथ है। अनिल ने और मैंने तब प्यार से नीना को पलंग पर लिटा दिया। हम दोनों उसके दोनों और बैठ गए और उसकी चूचियों को चूसने लगे। नीना ने हम दोनों को बड़े प्यार भरी नजर से देखा और फिर अपनी आँखें बंद करली।
अब वह हमारे प्यार का आनंद ले रही थी। उसे ऐसा अनुभव कभी नहीं हुआ था। आज तक उसने सिर्फ मेरे प्यार का ही अनुभव किया था। अब उसे दो प्रेमियों के प्यार का आनंद मिल रहा था। आगे चलकर यह अनुभव क्या रंग लाएगा उसकी कल्पना मात्र से ही वह उत्तेजित हो रही थी और मैंने वह उसके शरीर में हो रहे कम्पन से महसूस किया।
मैंने धीरे से मेरा हाथ उसके गाउन के अंदर डाला। उसकी नाभि और उसके पतले पेट का जो उभार था उसको मैं प्यार से सहलाने लगा। मेरी पत्नी मेरे स्पर्श से काँप उठी। मैंने मेरे हाथ नीना की पीठ के नीचे डाल दिए और उसे धीरे से बैठाया। उसे बिठाते ही उसका खुला गाउन नीचेकी और सरक गया और वह आगे और पीछे से ऊपर से नंगी हो गयी। अनिल जिसकी मात्र कल्पना ही तब तक करता था वह नीना के कमसिन जिस्म को ऊपर से पूरा नंगा देख कर उसे तो कुबेर का खजाना ही जैसे मिल गया।
अनिल ने नीना के दोनों स्तनों को ऐसे ताकत से पकड़ रखा था की जैसे वह उन्हें छोड़ना ही नहीं चाहता था। कभी वह उन्हें मसाज करता था तो कभी निप्पलों को अपनी उँगलियों में दबाता तो कभी झुक कर एक को चूसता और दूसरे को जोरों से दबाता।
नीना अब हम दोनों प्रेमियों का उसके मम्मों को चूसना और मलने की प्रक्रिया से इतनी कामोत्तेजित हो चुकी थी के उस से अपने जिस्म को नियत्रण में रखना मुश्किल हो रहा था। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे हैं।
मैं देख रहा था की वह हम दोनों के उसके स्तन मंडल के साथ प्यार करने से अब वह अपने कामोन्माद से एकदम असहाय सी लग रही थी। नीना तब अपनी कमर और अपनी नीचे के बदन को उछालते हुए बोलने लगी, “राज, अनिल जल्दी करो, और चुसो जल्दी आह्ह्ह्ह्ह.. ओह्ह्ह्ह.. मेरी चूंचियां और दबाव ओओफ़फ़फ़।
तब मुझे लगा की वह अपनी चरम सीमा पर पहुँच रही थी। मैंने अनिल को इशारा किया और हम दोनों उसके मम्मों को और फुर्ती से दबाने और चूसने लगे।
जल्द ही मेरी प्रियतमा एक दबी हुयी टीस और आह के साथ उस रात पहली बार झड़ गयी। उसकी साँसे तेज चल रहीं थी। थोड़ी देर के बाद उसने अपनी आँखें खोली और हम दोनों की और देखा।
मैंने नीना से कहा, “डार्लिंग, अब हम लोगों से क्या परदा? अब हमें अपना लुभावना सुन्दर जिस्म के दर्शन कराओ। अब मत शर्माओ। नीना ने मेरी और देखा पर कुछ न बोली। मैंने अनिल को इशारा किया की अब वह काम हम ही कर लेते हैं। अनिल थोड़ा हिचकिचाता आगे बढ़ा और नीना के बदन से गाउन निकालने लगा। नीना ने भी अपने चूतड़ उठा कर हमें गाउन को निकाल ने में सहयोग दिया। मैंने जब नीना को खड़ा होने को कहा तो वह शर्मा कर बोली, “आप पहले लाइटें बुझा दीजिये।”
अनिल ने उठकर कमरे की सारी लाइटें बुझा दी बस एक डिम लाइट चालू रक्खी। फिर नीना जब उठ खड़ी हुयी तब उसका गाउन अपने आप ही नीचे सरक गया और मेरी शर्मीली रूढ़ि वादी पत्नी हम दोनों के सामने पूर्णतः निर्वस्त्र हो गयी। यह उसका पहला अनुभव था जब वह अपने पति के अलावा किसी और व्यक्ति के सामने नग्न खड़ी थी।
अनिल और मैं दोनों नीना के कमसिन जिस्म को देखते ही रह गए। हालाँकि मैंने कई बार मेरी पत्नीको निर्वस्त्र देखा था, परंतु उस रात वह जैसे मत्स्यांगना की तरह अद्भुत सुन्दर लग रही थी। अनिल ने नीना को बड़ी तेज नजर से ऊपर से नीचे तक, आगे, पीछे सब तरफ से घूर कर देखने लगा।
मेरी पत्नी शर्म से पानी पानी हुयी जा रही थी। एक तरफ वह अब अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तैयार हो रही थी तो दूसरी और स्त्री सहज लज्जा उसे मार रही थी। वह अपनी नजर फर्श पर गाड़े हुए ऐसे खड़ी थी जैसे कोई अद्भुत शिल्पकार ने एकसुन्दर नग्न स्त्री की मूर्ति बना कर वहां रक्खी हो।
अनिल उसे देखता ही रह गया। नीना की कमर ऐसे लग रही थी जैसे दो पर्वतों के बिच में घाटी हो। उसके उरोज से उसकी कमर का उतार और फिर उसकी कमर से कूल्हों का उभार इतना रोमांचक और अद्भुत था की देखते ही बनता था। उसके सर को छोड़ कहीं बाल का एक तिनका भी नहीं था।
उसके दो पांव के बिच में उसकी चूत का उभार कोई भी शरीफ आदमी का ईमान खराब कर देने वाला था। उसकी योनि के होठ एकदम साफ़ और सुन्दर गुलाब की पंखुड़ियों की तरह थे। उसकी योनि में से रस चू रहा था। वह नीना के हालात को बयाँ रहा था।
अनिल ने आगे बढ़कर नीना को अपनी बाहों में लिया। उस रात मेरी शर्मीली पत्नी ने यह मन बना लिया था की आज वह मेरी ख्वाहिश पूरी करेगी। वह अनिल की बाँहों में समां गयी और शर्म से अपनी आँखें झुका ली। अनिल को तो जैसे स्वर्ग मिल गया।
वह अपने हाथोँ से नीना के नंगे बदन को सहला रहा था। उसके दोनोँ हाथ नीना के पीछे, उसकी रीढ़ की खाई में ऊपर नीचे हो रहे थे। कभी वह अपना हाथ नीना के चूतड़ों के ऊपर रखता और नीना की गाँड़ के गालों को दबाता, तो कभी अपनी उंगली को उस गांड के होठों के बिच की दरार में डालता था।
सने मेरी पत्नी को इस हालात में देखने की कल्पना मात्र की थी। उसे यह मानना बड़ा अजीब लग रहा था की तब नीना का वह बदन उसका होने वाला था।
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