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मुझे तो ऐसा लगा कि कहीं मम्मी के होंठ छिल न जाये। सारे कमरे में पुच पुच की आवाज़ गूंज रही थी और रात का सन्नाटा होने के कारण आवाजें और भी साफ़ सुनाई पड़ रही थी। जहाँ पापा मम्मी के गुलाबी अधरों का रस पान कर रहे थे, वहीं मम्मी पापा के मुँह का रस पी रही थी और रोमाँच के कारण उनके मुँह से केवल उम्म… उम्ह… उम्ह की सिसकारी रूपी आवाजें निकल रही थी।
अब पापा के हाथ मम्मी के ब्लाउज पर आ गए, पापा अपने हाथ मम्मी के उरोजों पर ब्लाउज के ऊपर से ही फिराने लगे।
मैंने पापा मम्मी को इससे पहले भी सम्भोग करते देखा था जिसका ज़िक्र मैंने अपनी पहली कहानी ‘मम्मी पापा इतनी रात में करते क्या हैं’ में किया था पर अब तक मुझे यह समझ में नहीं आया था कि वो सेक्स करने के दौरान मम्मी के उरोजों को क्यों दबाते हैं, पर थोड़े बड़े होने पर जब मैं 12वीं कक्षा में पहुँचा तब तक मैं सेक्स कहानियाँ आदि पढ़ने लगा था और मुझे आखिरकार यह पता चल ही गया कि सम्भोग या चुदाई करने के दौरान उरोजों या चूचियों को दबाए जाने का बहुत महत्व होता है। ये स्त्रियों के सबसे कामुक अंगों में से एक होते हैं और इन्हें दबाने से स्त्रियों बहुत जल्दी उत्तेजित हो जाती हैं और किसी स्त्री के उत्तेजित होने पर चूचियों की घुन्डियाँ थोड़ी कड़ी, भारी और इनके आस पास की त्वचा थोड़ी लाल सी हो जाती है और इस तरह ये स्त्री के प्रेमी को सम्भोग शुरू करने का सन्देश पहुचाते हैं।
मैं भी आपसे पता नहीं क्या बातें करने लगा, यह सब तो आप लोग सब जानते ही होंगे! केवल मैं ही नहीं जानता था ये सब!
खैर मैं अब कहानी पर आता हूँ। मैंने देखा कि पापा मम्मी के होंठ आपस में अब भी लिपटे हुए थे और उन दोनों के हाथ एक दूसरे के शरीर पर कसे पड़े थे। इस तरह चुम्मा चाटी करते हुए करीब 20 मिनट बीत चुके थे, अब पापा का हाथ मम्मी की पीठ से खिसक कर उनके ब्लाउज पर आ गया और वो शायद मम्मी के ब्लाउज के बटन खोलने लगे।
मुझे लगा पापा जल्दी से ही मम्मी का ब्लाउज़ उतार कर उनके जिस्म से उसे अलग कर देंगे पर शायद मम्मी के ब्लाउज के बटन बहुत टाइट थे इसलिए पापा उन्हें खोल नहीं पाये और झल्ला गए, पापा बोले- अरे यार सुरभि, यह कैसा ब्लाउज पहन लिया आज? कितने टाइट है इसके बटन।
मम्मी बोली- आज ही नया ब्लाउज निकाला था। पापा बोले- जब करना ही था आज, तो इतने टाइट ब्लाउज और कपड़े पहने की जरूरत क्या थी, कोई ढीली ढाली नाईट ड्रेस पहन लेती। मम्मी बोली- अगर टाइट ब्लाउज और ब्रा न पहनती होती, तो ये कब के लटक गए होते, कितनी बेरहमी से दबाते और चूसते हो रोज़ ! तुम्हें तो इनके अलावा दूध ही अच्छा नहीं लगता कोई!
पापा मम्मी की बात सुन कर मुस्कुराये और बोले- सुरभि, अब खोलो न जल्दी! मम्मी बोली- अरे बाबा, रुको मैं खोलती हूँ। तुमसे तो ब्लाउज के बटन खुलते ही नहीं, केवल ब्रा के हुक पर हाथ चलते हैं तुम्हारे! मम्मी बोली- जैसे जैसे तुम्हारी उम्र बढ़ रही है तुम्हारी सेक्स की भूख बढ़ती जा रही है, रोज़ नए नए तरीके आजमाते हो मुझ पर!
मम्मी पापा को छेड़ते हुए बोली- जब तुमसे एक ब्लाउज का बटन नहीं खुला तो तुम मेरी मुनिया पर लगे दो पल्ले वाले दरवाजे को कैसे खोल पाओगे? पापा हँस कर बोले- सुरभि, अभी पता चल जायेगा कि तुम्हारी मुनिया के दरवाजे खुलते हैं या टूटते हैं। पापा के इतना कहते ही दोनों खिलखिला कर हंस पड़े।
मम्मी ने एक एक करके बटन खोल दिए पर ब्लाउज खुद नहीं उतारा बल्कि पापा ने मम्मी की गर्दन में हाथ डालकर उन्हें उठाया और फिर धीरे से उसे मम्मी के बदन से अलग कर दिया। अब मम्मी के शरीर पे नाम मात्र के लिए ही कपड़े बचे थे जिनमें एक ब्रा, जो मम्मी के अमृत कलशों की अभी भी रक्षा कर रही थी और एक पेटीकोट और एक पैंटी की दोहरी दीवाल रूपी कवच था जो पापा के पप्पू से मम्मी की मुनिया की रक्षा कर रही थी।
पापा ने अब चीते सी तेज़ी दिखाई और फिर से मम्मी के ऊपर आ गए। पापा को देख कर यह बिल्कुल नहीं लग रहा था कि वो मम्मी को इतने सालों से चोद रहे हैं बल्कि ऐसा लग रहा था कि किसी नवयुवक की नई नई शादी हुई हो और वो अपनी पत्नी के शरीर को पहली बार भोगने जा रहा हो, उसके यौवन का रसपान करने जा रहा हो।
मम्मी भी आज नवविवाहिता युवतियों की तरह व्यव्हार कर रही थी मानो उन्होंने इससे पहले कभी सेक्स किया ही न हो।
मुझे ऐसा लग रहा था कि मानो मम्मी ने इतने स्वतंत्र रूप से यानि इतना खुल कर पहले कभी भी चुदाई नहीं की थी शायद इसीलिए वो बहुत शरमा रही थी, शर्म के कारण ही उन्होंने अपना चेहरा अपने हाथों से ढक लिया था।
पापा बोले- सुरभि इतना शर्मा क्यों रही तुम! प्रेम तो दुनिया की सबसे अनमोल चीज़ है। प्यार से बढ़ कए दुनिया में कोई चीज़ नहीं है और फिर हम दोनों तो पति पत्नी हैं। हम दोनों को तो ये सब करने का अधिकार है। इतना कह कर पापा ने अपने हाथों से मम्मी के हाथों को उनके चेहरे से अलग किया।
मम्मी मुस्कुरा रही थी, उनके मधुर होंठों से बरबस ही यह बात निकल गई- यहाँ मुझे शर्म आ रही है और आप तो ऐसे लगे पड़े हैं जैसे कल ही शादी हुई हो और हम अपनी सुहागसेज अपनी सुहागरात मना रहे हों। पापा मुस्कुरा कर बोले- भले ही शादी को इतने साल बीत गए, पर दूसरी सुहागरात तो है ही!
इतना बोल कर पापा ने मम्मी को अपनी बाँहों में भर लिया। इस बार तो पापा इतने उतावले हो रहे थे मानो देर होने पर उनकी कोई गाड़ी छूट जायेगी। मम्मी ने भी इस बार अपनी बाहें पापा की पीठ पर लपेट ली।
शायद ब्लाउज के चक्कर पापा का रिदम टूट गया था और मम्मी की भी उतेज़ना कुछ कम हो गई थी जिसे पापा बखूबी जानते थे इसलिए वो खुद को और मम्मी के शरीर को गरम करने में लग गए और फिर से फोरप्ले में जुट गए। अब पापा ने फिर से मम्मी के गालों को, कभी कोमल अधरों को, कभी उरोजों की घाटी, कभी मम्मी की नरम बाँहों को चूमना चूसना शुरु कर दिया। मम्मी भी अब पापा के सुर सुर मिला रही थी और उनका पूरा साथ दे रही थी, कभी वो पापा के गालों को पुचकारती, तो कभी उनके माथे को चूम लेती।
मैंने एक बात नोटिस की कि पापा मम्मी को चूमते चूमते, अपना चेहरा मम्मी की बगल की ओर जाते और बगल में अपना मुँह कुछ देर लगाये रहते! पहले मुझे कुछ समझ नहीं आया, फिर कुछ देर देखने के बाद मुझे ऐसा लगा कि पापा मम्मी की बगल को शायद सूंघ रहे थे। उस वक़्त मैंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया पर बाद में जब मैंने कुछ वयस्क साहित्य पढ़ा, तब जाकर मुझे मालूम हुआ कि स्त्रियों और पुरुषों की देह से विशेष रूप से उनके बगल से एक नशीली गंध निकलती है जो एक दूसरे को सम्भोग करने के लिए प्रेरित और आकर्षित करती है।
कहानी अभी जारी है। मेरी कहानी आपको कैसी लगी, मुझे जरूर बतायें। [email protected]
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