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प्रेषिका : रत्ना शर्मा सम्पादक : जूजाजी आपने अब तक पढ़ा..
फिर गुरूजी ने मुझे शीलू के सामने ही गोद में उठा कर नीचे से मेरी चूत में अपना लंड डाल दिया। मैं शीलू के सामने ही गुरूजी की गोद में लटक कर चुदवाने लगी। गुरूजी ने शीलू से कहा- शीलू मेरा मोबाइल ले लो.. हम दोनों की फोटो और वीडियो खींच लो..
‘नहीं गुरूजी.. कोई मोबाइल देख लेगा.. ऐसा मत करो..’ ‘नंगी रत्ना.. साली रंडी तू ऐसे तो नहीं मानेगी.. तुझे डरा कर तो रखना ही पड़ेगा.. ताकि तू रोज मुझसे चुदवा सके..’ अब आगे..
फिर शीलू गुरूजी का मोबाइल लेकर हम दोनों की फोटो लेने लगी। ‘रत्ना भाभी आप गुरूजी की गोद में चुदते हुए बहुत अच्छी लग रही हो..’ ‘शीलू नहीं ले.. रुक जा..’ ‘नहीं भाभी.. नहीं.. कल गुरूजी मुझे स्कूल से निकाल देंगे।’ वो मेरी चुदाई की वीडियो गुरूजी के मोबाइल में रिकॉर्ड करने लग गई।
फिर सुनील गुरू जी ने मुझे नीचे घोड़ी बना कर चोदा.. फिर मेरी गाण्ड भी मारने लग गए। ‘अहह.. ओमाआअ.. गुरूजी.. मैं मर गई मैंने कभी गाण्ड नहीं मरवाई है.. आपका लौड़ा बहुत बड़ा है.. प्लीज़ निकालो..’ ‘बस मेरी रत्ना रण्डी.. तुझे थोड़ा दर्द होगा.. बस.. ले गया.. अहहहह.. ओह.. आआ.. याह.. आह..’ करीब 20 मिनट तक सुनील ने चुदाई की.. फिर हम दोनों झड़ गए और नीचे गिर गए।
शीलू हम दोनों को फोटो अब भी निकाल रही थी। फिर गुरूजी ने कहा- रत्ना मेरी जान आज से तेरी सेलरी 5000 रूपए महीने हो गई.. बस मैं और खुश हो गई और गुरूजी के गले से लग गई.. किस करने लगी। गुरूजी बोले- फिर से चुदवाना है क्या.. घर नहीं जाना क्या.. चुम्मी क्यों कर कर रही है अब? मैं हँसने लगी।
फिर गुरूजी ने कहा- शीलू मेरी और रत्ना मैडम की अलग-अलग पोज़िशन में नंगी फ़ोटो निकालो।
मेरे बाल बहुत लंबे थे.. मैंने खोल लिए और मुझे पास खींच कर सुनील खुद फोटो लेने लगे और मुझसे कहा- रत्ना मैडम.. एक बार नंगी ही बोर्ड के पास जाकर बच्चों को पढ़ाने की एक्टिंग करो.. मैं हंसती हुई एक्टिंग करने लगी.. चुदाई करवा कर मेरे बोबे फूल कर कड़क हो गए थे और खूब हिल रहे थे। शीलू और गुरूजी मेरी फोटो निकाल रहे थे।
‘मेरी रत्ना.. आज तुम एक रंडी लग रही हो.. सच्ची..’ यूँ शीलू मैडम और मैं उनको देख कर हँसने लगीं। मैंने कपड़े पहने और घर आने लगी.. हम दोनों रास्ते में हँसते हुए बातें करते आ रहे थे- शीलू.. और मैं क्या करती.. मुझे भी बड़ी आग लग रही थी.. ‘कोई बात नहीं रत्ना भाभी.. जो भी होता है.. अच्छा ही होता है.. इसी बहाने आपकी सेलरी भी बढ़ गई है।’
फिर एक दिन मैं शीलू गुरूजी और एक-दो अन्य जोड़े हमारे वाले गुरूजी के मिलने वाले थे.. वो भी सरकारी स्कूल में टीचर ही थे। गुरूजी उनके साथ हमको भी घुमाने ले गए.. हम लोग 4 औरतें थीं और 3 आदमी थे। हम सभी वॉटरफॉल की तरफ गए.. तो क्या हुआ कि मैं अपने साथ में कपड़े लाना भूल गई थी।
हम वहाँ सब खूब घूमें. खाना खाया मस्ती की.. अब नहाने की बारी आई। तो सब साथ ही नहा रहे थे.. कुछ पास के गाँव लोग भी थे.. सभी ने नहाना शुरू कर दिया.. मुझे याद आया कि मैं तो अपने कपड़े लाना ही भूल गई हूँ और गुरू जी की जिद पर मैं साड़ी पहने ही नहाने लगी थी।
मैं सोच रही थी.. अब क्या करूँगी। मैंने शीलू से कहा- शीलू मेरे तो कपड़े गीले हो गए.. और मैं तो दूसरे कपड़े भी साथ नहीं लाई हूँ.. अब क्या होगा? शीलू ने कहा- गुरूजी.. सुनो रत्ना मैडम कपड़े नहीं लाई हैं.. अब ये घर कैसे जाएंगी? ये घर पर अपने ससुर जी वगैरह किसी को भी बोल कर भी नहीं आईं..’
फिर गुरूजी ने कहा- अरे कोई बात नहीं.. यहीं से ले नए कपड़े ले लेंगे.. क्यों रत्ना मैडम.. सब हँसने लगे और कहा- चिंता छोड़ो.. मस्ती करो.. नहाओ.. मज़े लो.. सब एक-दूसरे पर पानी फेंक रहे थे.. बहुत मज़ा आ रहा था।
फिर सब बाहर निकल कर अपने बदन को पोंछ कर कपड़े आदि बदलने लगे। अब मैं क्या करती.. मैं तो गीली खड़ी थी.. मैं पानी में ही बैठी रही..
फिर गुरूजी बाहर गए.. कहीं सड़क पर जाकर.. वहाँ से कुछ कपड़े लाए.. उन्होंने एक पोलिथीन लाकर मुझे दी.. मैं एक पेड़ के पीछे जाकर गीले वाले कपड़े खोलने लगी। बाकी सब मैडम और टीचर पास के मंदिर में दर्शन के लिए चले गए थे।
गुरूजी मेरे पास में ही खड़े होकर कपड़े लिए खड़े थे, वो तो मेरा नंगे होने का इंतजार कर रहे थे।
जब मैंने सब कपड़े खोल दिए.. नंगी हो गई और गुरूजी के लाए हुए कपड़े निकाले तो उसमें से वेलवेट की लाल रंग की एक बहुत ही सुंदर ब्रा और पैन्टी निकली। मैंने वो पहनी और एक स्कर्ट टाइप फ्रॉक निकली.. वो मेरे घुटनों तक ही आ रही थी। मैंने कहा- गुरूजी यह छोटी स्कर्ट क्यों लाए.. यह मेरे को नहीं आएगी!
‘अरे रत्ना मैडम.. पहन लो, यहाँ वैसे भी अपने गाँव का कोई नहीं है.. और वैसे भी जब तक आपकी साड़ी भी सूख जाएगी.. तभी तक ही तो पहननी है.. चलो जल्दी से पहन लो।’
मैंने वो स्कर्ट पहन ली.. अब क्या बताऊँ आपको.. मैं एक 19-20 साल की छोटी सी जवान लड़की की तरह लग रही थी। मेरे मम्मे इन कपड़ों में बहुत ही टाइट लग रहे थे.. जिससे मेरे मम्मे और भी उभर कर बाहर को दिखने लगे।
मेरे आधे से ज्यादा मम्मे बाहर निकले पड़ रहे थे और नीचे से बस घुटनों तक की ही स्कर्ट थी.. तो मेरी गोरी-गोरी जाँघें भी साफ़ दिख रही थीं।
फिर गुरूजी ने कहा- अरे जल्दी करो रत्ना मैडम.. कितना टाइम लगेगा.. जल्दी करो ना.. हम भी मंदिर चलते हैं।
मैं जैसे ही पेड़ के पीछे से बाहर आई.. तो गुरूजी की आँखें फटी की फटी रह गईं।
‘वाउ.. सो हॉट.. रत्ना मैडम आप तो इस स्कर्ट में बिल्कुल माधुरी दीक्षित जैसी लग रही हो.. रत्ना मेरी जान प्लीज़ एक फोटो लेने दो न..’ मैंने कहा- नहीं गुरू जी बाकी सब लोग साथ में हैं.. अभी नहीं गुरूजी.. बाद में ले लेना। गुरूजी नहीं माने और मेरी फोटो निकालने लगे और मैं मना भी नहीं कर पाई।
मुझे पेड़ के सहारे खड़ा करके फोटो लेते.. कभी लिटा कर.. कभी बाल खोल कर.. कभी सेक्सी स्टाइल में.. मतलब अब उन्हें मंदिर जाने की देर नहीं हो रही थी।
उन्होंने सब तरह के फोटो खींचे.. और गुरूजी ने कहा- रत्ना.. जानू एक किस करने दो.. कोई नहीं देखेगा.. सब उधर हैं.. प्लीज़ रत्ना मैडम.. प्लीज़ जान.. मान जाओ.. मैंने कहा- बस किस.. और कुछ नहीं.. और किस भी केवल एक बस.. ‘हाँ जान.. बस एक किस..’ ‘ओके..’
गुरूजी ने पेड़ के पीछे आकर मुझे खड़ा करके मेरे होंठों पर अपने होंठों को रख कर गहरा चुम्बन करने लगे। फिर चूमने के साथ ही ज़ोर से मेरे मम्मों को भी दबाने लगे। मैं फिर एक मर्द की गर्मी पाकर सीत्कारियां लेने लगी- ओह्ह.. नहीं गुरूजी.. अब चलते हैं.. कोई आ जाएगा.. सब साथ हैं.. क्या सोचेंगे.. ‘कुछ नहीं.. रत्ना जानू.. आह.. तुम सच्ची एक माल हो।’ और मेरी फ्रॉक को मम्मों के ऊपर से हटा दिया.. मेरे मम्मों को ब्रा से भी निकाल कर उनको चूसने लगे।
आखिर मैं भी एक औरत हूँ.. तो मैं भी गर्म हो गई और उनका साथ देने लगी। ‘आह्ह.. गुरू जी नहीं.. आह्ह.. ज़ोर से नहीं.. आह्ह.. नहीं दबाओ न.. मम्मों में बहुत दर्द हो रहा है.. देखो आपने कल स्कूल में दबा-दबा कर कितने बड़े कर दिए थे..’
‘अभी बड़े कहाँ हुए रत्ना जान.. बहुत बड़े करूँगा अभी.. देखना जब तू चलेगी ना.. तो भी ये हिलेंगे.. और गाँव के हर मर्द के लौड़े खड़े हो जाएंगे.. देखना..’
वे मेरे हाथ को अपनी पैन्ट में ले जाकर लंड से मेरे हाथ को रगड़ने लगे।
फिर मैंने उनकी पैन्ट को नीचे करके उनका लंड बाहर निकाल लिया और नीचे बैठ गई.. अब मैं उनका लंड अपने मुँह में लेकर चूसने लग गई।
‘अहह मुआईईईया.. उमममाआ.. मुउआ… अहज.. आह.. बहुत बड़ा है आपका..’ ‘हाँ रत्ना जान.. तुझे देख कर ये और बड़ा हो जाता है.. और जोर से चूस.. अपने प्यारे लौड़े को.. आह्ह..’
फिर गुरूजी ने मुझे गोदी में लेकर मेरी चूत में अपना लौड़ा फिट करके मेरी चुदाई करने में लग गए। हम अपनी चुदाई में इतने खो गए कि हमको ध्यान ही नहीं रहा कि कोई हमें देख रहा है।
जब मेरी नज़रें मिलीं.. तो मैंने गुरूजी को कहा- गुरूजी.. देखो अपने साथ वाले सब आ गए हैं.. और हमको देख रहे हैं.. आपने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा.. आपने मेरी इज्जत खराब कर दी।
अब तक सभी दूसरे गुरूजी और मैडम लोग नजदीक आ गए.. तब भी गुरूजी ने मेरी चुदाई नहीं रोकी और गोद में लेकर मेरी चुदाई किए जा रहे थे। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
‘वाउ.. गुरूजी और रत्ना मैडम.. हम सोच रहे.. आप कहाँ रह गए हो.. और इधर आप दोनों तो यहाँ जंगल में नंगा दंगल कर रहे हो।’ सब लोग हमें चुदाई में मस्त और व्यस्त देख कर ताली बजाने में लग गए और मुझे शर्म आ गई, मैंने अपनी गर्दन नीचे कर ली। अब सबको पता लग गया था कि मेरे और गुरूजी के अवैध जिस्मानी रिश्ते भी हैं।
तभी गुरूजी बोले- ये रत्ना मैडम डर गई थीं कि सांप आ गया तो फिर मुझे इनका डर निकालना पड़ा।
‘वाह.. वाह.. गुरूजी.. हमको पागल मत बनाओ..’ सब हँसने लगे और गुरूजी ने मुझे नीचे उतारा और हम दोनों ने अपने कपड़े पहने.. मैंने स्कर्ट पहनी तो सब देखने लगे।
‘वाउ रत्ना मैडम.. इस ड्रेस में क्या गजब की हीरोइन लग रही हो.. कौन लाया इस ड्रेस को?’ गुरूजी ने कहा- मैं ही लाया था। ‘ओह.. तो अपनी जानेमन के लिए..’
मैं भी हँसने लग गई और उनमें एक गुरूजी थे कमलेश जी.. जो हमारे समाज के ही थे.. दूर का रिश्तेदार भी लगते थे।
तो उसने यह कहते हुए मेरी फोटो ले ली- जीजी बाई.. फोटो लेने तो दो.. बहुत अच्छी लग रही हो आप.. उन्होंने मेरी चुदाई की फोटो भी ले ली थी.. और बाद में मुझे ब्लैकमैल करके कमलेश ने भी कैसे मेरी चुदाई की.. वो मैं बाद में फिर कभी लिखूँगी। कुछ समय के बाद मेरी साड़ी भी सूख गई थी.. तो मैं वो पहन कर हम सब लोग घर आ गए।
आप सब लोगों को मेरी यह आपबीती कैसी लगी.. क्या इसमें मेरी कोई ग़लती थी.. आप लोग मुझे ईमेल करके जरूर बताना। [email protected]
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