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दोस्तो, मैं रमेश देसाई अपनी पहली सेक्स कहानी लेकर आपके सामने ऊपस्थित हुआ हूँ।
मेरी पड़ोस में एक नया परिवार रहने को आया था, पति-पत्नी उसकी छोटी बेटी और उसकी युवा बहन!
पत्नी का नाम ऊषा था, वह 24-25 साल की खूबसूरत और सेक्सी महिला थी। उसके बड़े बूब्स का मैं दीवाना हो चुका था। वह झुकती थी तो मुझे उसके बूब्स का भरपूर नजारा देखने को मिलता था जिसे देखकर मेरा लौड़ा खड़ा हो जाता था। मानसिक तौर पर दिन में कई बार मैं उसके ब्लाउज में हाथ डालता था, उसके बूब्स को दबाता था, उसकी निप्पल को मसलता था, मुँह में लेकर उसको चॉकलेट की तरह चूसता निगलता था।
लेकिन हकीकत में मैं उसको घूरने के सिवा कुछ नहीं कर पाता था। ऊषा भाभी यह बात जानती थी, उसकी बॉडी लेंग्वेज मुझे ऐसा मानने की प्रेरणा देती थी। फिर भी मैंने एक बार साहस करके उसके बूब्स को छूते हुए अपने भोलेपन का स्वांग रचकर सवाल किया था- भाभी, तुमने चोली के अंदर क्या छिपा कर रखा है?
‘यह तुम्हारे भाई के खेलने का सामान है जिसे लोग उरोज के नाम से जानते हैं, रात भर तुम्हारे भाई इनके साथ खेलते रहते हैं, इनको दबाते हैं, मसलते हैं, चूसते हैं, उसके अलावा वो तुम्हारी भतीजी का भोजन है, उसके भीतर दूध होता है।’
उसकी बातें सुनकर मेरा लौड़ा तूफानी होने लगा था- भाभी, रात को ही क्यों? ‘एक पति हमेशा रात को ही अपनी पत्नी को गर्म करने के लिये उसके वक्ष से खेलता है, दबाता है, चूसता है, मसलता है, उनका दूध पीता है। जिसकी वजह से उसके लौड़े का साईज चमत्कारिक रूप से बढ़ जाता है जो आसानी से अपनी बीवी की चूत में घुस कर सम्पूर्ण रूप से उसकी चुदाई करता है।’
‘क्या मैं तुम्हारे उरोज से खेल सकता हूँ?’ मेरे सवाल पर भाभी कुछ चौंक सी गई कि क्या जवाब दूँ? वह गहरी असमंजस महसूस कर रही थी।
उसी समय उसकी ननद तारा कॉलेज से लौटी, उसने मेरी बात अपने कानों से सुन ली थी, वह मेरी हमउम्र थी, उसने अपने हाथों को अपने दोनों बूब्स पर रखते हुए मुझे इशारा किया- तुम मेरे उरोज से खेल सकते हो।
ऊषा भाभी अपने सभी कामों को निपटाकर तारा के आने तक तैयार हो जाती थी, वह साढ़े बारह तक ब्यूटी पार्लर की क्लास में जाने के लिये तैयार हो जाती थी और बहुधा तारा घर में अकेली ही होती थी।
दूसरे दिन भाभी के जाने के बाद मैं तारा के घर में दाखिल हुआ, उसे देखकर मैंने उसे सीधा ही सवाल किया- क्या आज मैं तुम्हारे उरोज से खेल सकता हूँ?
मेरा सवाल सुनकर तारा मानो खुशी से पागल हो गई, उसने मेरी बात का कोई जवाब न दिया, वह चुपचाप अंदर के कमरे में चली गई। जिसे मैं अनुमति समझकर उसके पीछे भीतर चला गया। उसने मेरा हाथ पकड़ कर उसके बूब्स पर रखते हुए मुझे उकसाते हुए कहा- तुम जितना चाहो, जैसा चाहो, मेरे से खेल सकते हो, देख सकते हो, छू सकते हो, जैसे भी चाहो दबा सकते हो, मसल सकते हो, मेरी निप्पल को मुँह में लेकर मेरा सारा दूध पी सकते हो।
मैं सबसे पहले तारा के बूब्स को देखना चाहता था लेकिन मेरी हिम्मत नहीं होती थी, मैं चाहता था कि खुद तारा अपने हाथों से उस के बूब्स का दर्शन कराये। मैंने इशारा भी किया था लेकिन वह चाहती थी कि मैं खुद ही शुरूआत करूँ, मैंने पहले कैद में पड़े उसके बूब्स को दबाया, उन पर मुँह रखकर उसकी निप्पल को हल्के से काट लिया।
इस पर तारा के मुँह से चीख सी निकल गई- तुम बड़े शैतान हो। ‘मादरचोद तू भी कम नहीं है।’ मेरी गाली सुनकर वह भी जोश में आ गई, उसने एक ही झटके में अपना ब्लाउज और ब्रा निकालकर जमीन पर पटकते हुए मुझे चुनौती दी- साले हरामी, खुजली तो तुझे भी है, इसीलिये मुझे छोड़कर मेरी भाभी के चूचों के साथ खेलने चला था?
उसकी बातों ने मुझे काफी उत्तेजित कर दिया था, मैंने छोटे बच्चे की तरह उसके दोनों बूब्स को आक्रमक होकर मसलना कुचलना शुरू कर दिया, उसकी निप्पल को भी बड़ी बेरहमी से चूसने लगा। दस मिनट उसके निप्पल को चूसने के बाद मैंने उसके बाकी के कपड़े निकाल कर जमीन पर पटक दिए, मैं उसकी सील तोड़ने के लिये उतावला हो रहा था। उसी वक्त तारा ने मेरा लोड़ा हाथ में कसकर पकड़ कर कहा- सारा खेल क्या तुम्ही खेलोगे क्या? मैं पहले तुम्हारा लोड़ा मुंह में लेकर चूसूँगी और तू मेरी चूत! कह कर तारा जमीन पर लेट गई। अब उसने कुछ भी नहीं पहना था, उसे देखकर मेरा लोड़ा बेकाबू हो रहा था। उसके कहने पर मैं 69 की पोजीशन में उसके नंगे शरीर पर चढ़ गया। कुछ ही पल में मैं उसकी चूत को चूस रहा था और वह मेरा लोड़ा। 15 मिनट तक लंड और चूत की मौखिक चुदाई के बाद मैंने अपना लोड़ा तारा की चूत में घुसेड़कर उसकी संतोषजनक चुदाई कर डाली। मेरी मलाई पूर्ण रूप से उसकी चूत में चली गई थी। बाकी बची हुई मलाई को मैंने अपने लोड़ों के जरिये उसकी छाती पर छिड़क दिया। कुछ देर के बाद उसको कुत्ती की तरह उलटी करके उसकी गांड मारना शुरू कर दिया। मैंने उसकी गांड का अपने पेशाब से अभिषेक कर दिया।
दो दिन बाद उसने अपने हाथों पर महेंदी रचाई थी। भाभी तो उसे महेंदी लगाकर क्लास में चली गई और तारा बिल्कुल अकेली थी, उस को पेशाब लगी थी, मैं उस वक्त घर में मौजूद था, उसने मुझे इशारा करके सूचित किया- मेरी मदद करो, मुझे पेशाब करना है।
मैं भला उसकी कैसे मदद कर सकता था? मैं असमंजस में था। उस पर उसने मुझे थोड़ी नाराजगी जताते हुए आदेश दिया- बुद्धू, मेरी कच्छी निकाल दो।
दो दिन पहले मैंने उसके निप्पल बड़ी बेताबी से चूसे थे, स्तनपान किया था, बच्चे की तरह उसका दूध पिया था। मुझे वे हरकतें फिर से दोहराने का मन हुआ, मैंने शर्त रख कर उसकी बात को स्वीकार किया- आज भी तुम्हें मुझे स्तनपान कराना होगा, तुम्हारा दूध पिलाना होगा।
‘दूध तो क्या, आज मैं तुम्हें अपना पेशाब भी पिलाऊंगी, तुम मेरी चड्डी तो निकालो।’ मैंने पहले उसकी चड्डी उतार दी, फिर इत्मिनान से उसका पेशाब भी पिया। उसको फिर से नंगी देखकर मेरा लोड़ा भी रंग में आ गया, उसका पेशाब पीने के बाद मैंने बाथरूम की दीवाल से उसको दबोचते हुए उस की गांड में लोड़ा डालकर उसको पेशाब से तरबतर कर दिया।
कुछ दिन बाद तारा पिकनिक गई थी, ऊषा भाभी की तबियत उस दिन कुछ नहीं थी, उसी वजह से वह घर में ही थी। वह बिस्तर में आराम फरमा रही थी। उसके अधखुले ब्लाउज के भीतर से उसके बूब्स का सारा नजारा दिखाई दे रहा था। वह घड़ी घड़ी अपने हाथों से अपने बूब्स को हल्का मसाज दे रही थी। मैंने सहज भाव से पूछ लिया- छाती में दुख रहा है क्या? मैंने उसके बूब्स को छूते हुए सवाल किया- कहाँ दुखता है? उसने बिना झिझक मेरा हाथ हटाकर उसके दो बूब्स की भीतर की गली में रख दिया- आजकल तुम्हारे भाई के लिये मेरे चूचे पुराने हो गये हैं, उन्होंने नए चूचे ढूंढ लिए हैं, अब वो दिन दहाड़े जब चाहे निडर होकर अपनी बहन के चूचों से खेल रहे हैं।
‘भाभी, मैं तुम्हारे चूचों के साथ खेल सकता हूँ?’ ‘उसमें पूछने की कोई बात नहीं, तुम जैसे चाहो इनसे खेल सकते हो, तुम तो अभी तारा के साथ खेलने की प्रेक्टिस करके उसकी चुदाई करके पूर्ण अनुभवी हो चुके हो।’ भाभी ने मुझे कटाक्ष मारा था लेकिन मुझे उससे कुछ नहीं लेना देना था।
मैंने फौरन भाभी के ब्लाउज के बाकी हुक्स निकाल दिये, ब्रा को भी तारा की ब्रा की तरह निकाल कर दूर फेंक दिया। मैं उत्तेजना पूर्वक उसकी निप्पल की मसाज करने लगा, उस पर भाभी ने भड़कने के अंदाज में कहा- मसाज करना छोड़ो और एक बिल्ली की तरह मेरा दूध पी जाओ। मैं जो चाहता था, बिल्कुल वही हो रहा था। मैं सचमुच खुशकिस्मत था, ननद और भाभी दोनों मुझ पर मेहरबान थी।
मुझे पेशाब करना था। यह जानकर भाभी ने उत्साह से मुझे कहा- मुझे भी तुम्हारा पेशाब पीना है। यह सुनकर मेरा थोड़ा पेशाब उत्तेजना में निकल गया। यह देख कर भाभी ने कहा- तुम मेरी छाती पर चढ़ कर सीधा ही मेरे मुंह में पेशाब कर दो।
मैंने भाभी की सूचना का पालन करते हुए उसे अपना पेशाब पिलाया, उसने चाय कॉफी की भांति मेरे पेशाब का आस्वादन लिया, दोनों के लिये यह अनुभव बेमिसाल था।
उस क बाद हम 69 की पोजीशन में आ गये, मैं उसकी चूत को और वह मेरे लोड़े पर राज कर रही थी। मैं कभी उसके परिवार के साथ फिल्म देखने जाता था, भाभी जान बूझकर मुझे अपनी बगल में बिठाती थी, उसका पति उसके होठों का ख्याल रखता था और मैं भाभी के ब्लाउज के भीतर छिपे बूब्स का! मैं उसकी निप्पल को मसलता और भाभी भी इस मामले में पीछे नहीं रहती थी। वह सारी फिल्म दौरान मेरा लोड़ा सहलाती रहती थी।
फिर एक बार चुदाई के इरादे से मैं उसके घर में गया था, उस दिन भाभी ननद दोनों मौजूद थे, मैं असमंजस में था, पहली चुदाई किस की करूँ?
मैंने नुस्खा आजमाया, जो 15 सेकन्ड के अंदर पूरी नंगी होकर मेरे सामने आयेगी, मैं उसकी चुदाई पहले करूँगा। दोनों चुदाई के लिये उतावली हो रही थी, उनकी बॉडी लेंग्वेज भी इस बात को प्रमाणित कर रही थी, दोनों एक साथ चुदाई चाहती थी। शायद किस्मत भी यहीं चाहती थी, दोनों शर्त जीत गई थी।
और उन्होंने साथ मिलकर मुझे नंगा करके बिस्तर पर लिटा दिया और दोनों मेरी बगल में लेट गई, मेरा एक हाथ तारा के बूब्स की खबर ले रहा था और मेरा मुँह ऊषा भाभी की निप्पल को दबोचकर उसका दूध पी रहा था। तारा का हाथ मेरे लोड़े को और भाभी की दो उँगलियाँ मेरी गांड की अंदर प्रयाण कर रही थी। [email protected]
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