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अब ढलती उम्र में कभी कभी सोचता हूँ कि यह कैसे संभव हुआ कि मेरी हरकतों को बारे में मेरे माँ और पिता को कभी कोई खबर नहीं लगी. यह सब शायद पहले कम्मो और बाद में चम्पा की होशियारी के कारण संभव हुआ। दोनों बहुत ही सतर्क रहती थी कि कभी भी हवेली में काम करने वाला नौकर या नौकरानी के मन में उठ रहे संशय को फ़ौरन दबा दिया जाये।
चम्पा का कहना था कि वो समय समय पर सब को यही कहती थी कि छोटे मालिक रात को बहुत डर जाते हैं तो किसी का उनके साथ सोना बहुत ज़रूरी था। यह कहानी इतनी प्रचलित कर दी गई कि कम्मो और फिर चम्पा का मेरे कमरे में सोना एक साधारण बात बन गई और छोटे मालिक की भलाई के लिए ही मालकिन ने यह उचित समझा है। और फिर छोटे मालिक एक सीधे साधे लड़के हैं और उनको दुनिया दारी का कुछ भी ज्ञान नहीं। इस बात को मेरे कमरे में रहने वाली सारी नौकरानियों के दिल में बिठा दी जाती थी और अपने शारीरिक सुख को जारी रखने के लिए ये बातें वो बार बार दोहराती थीं।
उधर मैं भी कम्मो चम्पा और अब फुलवा को बिना मांगे थोड़ा बहुत धन दे दिया करता था। जैसे कम्मो को हर महीने 100 रुपया देता था जो उसकी पगार के अलावा होता था। इसी तरह चम्पा और अब फुलवा को भी इतने ही पैसे हर महीने दे दिया करता था।
मेरी मम्मी हर महीने मुझको हज़ार रुपया जेब खर्चे के लिए देती थी और मैं जहाँ तक हो सके इन लोगों की मदद कर दिया करता था। यही हाल स्कूल में भी था, मैं हर एक दोस्त की मदद कर दिया करता था, वो सब मेरे अहसानों तले दबे रहते थे और मेरा बड़ा आदर करते थे। शायद यही आदत मुझ को कष्टों से बचा लेती थी।
अब हर रात को हम तीनों चुदाई का यह खेल खेलते थे। कभी चम्पा नीचे होती थी और मैं उसके ऊपर और फुलवा मेरे ऊपर। चम्पा ने नीचे से मारा गया हर धक्का मेरे ऊपर लेटी फुलवा मुको धक्का मार कर जवाब देती थी। नीचे से चम्पा और ऊपर से फुलवा के धक्कों के कारण चम्पा जल्दी ही झड़ जाती और तब फ़ोरन चम्पा अपनी जगह फुलवा को दे देती और मैं फिर उन दोनों के बीच में ही रहता।
जब दो दो बार दोनों झड़ गई तब मेरा एक बार फ़व्वारा छूटा लेकिन मैं अपना लंड फुलवा की चूत में ही डाले लेटा रहा। मेरा लंड उसकी चूत में पूरा खड़ा था और वो धीरे धीरे नीचे से धक्के मारती रही। चम्पा एक हाथ से मेरे अंडकोष पकड़ रही थी और दूसरे की ऊँगली मेरी गांड में डाल रखी थी। उन दोनों के ऐसा करने से मुझ को बड़ा आनन्द आ रहा था।
और फिर एक दिन हम तीनों आसमान में उड़ते हुए ज़मीन पर आ गिरे। उस रात मैं उन दोनों को चुदाई का नया तरीका सोच रहा था की वो दोनों मुंह लटकाये कमरे के अंदर आई। मैंने पूछा- क्या बात है?
दोनों चुप रहीं और फिर मेरे दोबारा पूछने पर चम्पा बोली- फुलवा को गर्भ ठहर गया है। ‘गर्भ? यह कैसे हुआ?’ ‘हम जो हर रात को अंदर जो छुटाती थी उसी कारण हुआ है शायद?’ ‘तुमको कैसे पता है कि यह गर्भ ही है?’ ‘दो महीने से फुलवा को माहवारी नहीं हुई, इससे पक्का है कि वो गर्भवती है।’
मैं घबरा गया और घबराहट में कुछ कह नहीं पाया। चम्पा मेरी हालत समझ रही थी और प्यार से बोली- सोमू, तुम घबराओ नहीं, हम इसका कोई उपाय ढूंढ निकालेंगी। उस रात इस बुरी खबर के बाद किसी का भी चुदाई का मन नहीं किया।
अगले दिन चम्पा ने मुझको दिलासा दिलाई और कहा- मैं इस मुसीबत से छुटकारे के बारे में गाँव की पुरानी दाई से बात करूंगी।
अगले दिन स्कूल से वापस आने पर चम्पा ने बताया- दाई कहती है कि वो गर्भ गिरवा देगी, बस कुछ रुपये देने होंगे उसको! मैंने पूछा- कितने मांग रही है? ‘100 रूपए में काम हो जाएगा।’
मैंने झट अलमारी से 100 रुपये निकाल कर चम्पा को दे दिए। चम्पा मम्मी से एक दिन की छुट्टी ले गई और साथ में फुलवा को भी ले गई। मेरा सारा दिन बेचैनी से गुज़रा। अगले दिन चम्पा आई और आते ही बोली- काम हो गया छोटे मालिक, आप घबराएँ नहीं। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! मैंने चैन की सांस ली और उस रात मैंने और चम्पा ने जम कर चुदाई की, 4-5 बार चम्पा का छुटाने के बाद हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में सो गए।
कुछ दिनों बाद फुलवा फिर वापस आ गई। तब मैंने और चम्पा ने यह फैसला लिया कि अब से मैं फुलवा की चूत में नहीं छुटाऊँगा लेकिन चम्पा की चूत में मैं अंदर ही छुटाऊंगा क्यूंकि उसमें शायद गर्भ नहीं ठहरता।
हम ऐसा ही करते रहे और दोनों को मैं पूरा यौन आनन्द देता रहा और दोनों के चेहरे काम तृप्ति के कारण खूब चमक रहे थे।
करीब 6 महीने शान्ति से और मौज मस्ती में गुज़रे लेकिन फिर एक और मुसीबत आ गई। एक दिन चम्पा ने बताया कि उसका पति लौट कर आ रहा है एक हफ्ते में! ‘अब कैसे होगा?’ यही प्रश्न हम तीनों के दिमाग में बार बार उठने लगा। चम्पा के जाने के बारे में सोचने से मैं काफी उदास हो गया था।
वो 7 दिन हमने धुआंधार चुदाई में गुज़ारे। जैसा कि तय किया गया, सारी चुदाई का केंद्र चम्पा को ही बनाया गया। फुलवा और मैंने चम्पा को पूरा प्रेम दिया।
उसकी चुदाई की हर इच्छा को पूरा किया, कभी ऊपर से कभी घोड़ी बना कर और कभी साइड से और कभी उसकी टांगों के बीच बैठ कर चम्पा की चुदाई की, मैंने और फुलवा ने उस काम में मेरा पूरा साथ दिया।
और फिर चम्पा एक दिन नहीं आई और फुलवा ने बताया कि उसका पति आ गया है और वो अब शायद नहीं आ पायेगी। मैं चम्पा को बहुत मिस कर रहा था, चाहे फुलवा बाकायदा रोज़ आती थी, मेरी सेवा भी बहुत करती थी लेकिन चम्पा का साथ कुछ और ही रंग का था। फुलवा मुझको रोज़ चम्पा के ख़बरें देती थी। कहानी जारी रहेगी। [email protected]
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