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This is more a Love Story than a Sex Story निशा- कहाँ चल दिए आप..? अपना पता कहीं भूल तो नहीं गए? मैं- किसी की प्यार भरी आँखें मुझे कुछ याद रहने दे तब न.. तुम चलो.. मैं आता हूँ। अब ये मत पूछना कि कब आओगे? निशा- ठीक है जी.. जैसा आप कहें।
मैं तृषा की कार में बैठ गया.. आज मैं ड्राइव कर रहा था। तृषा- क्या हुआ..? आज ड्राइव कर रहे हो। मैं- तुम्हारे साथ दोनों हाथ फ्री रहने का भी फायदा नहीं है। वैसे भी मुझे अखबारों की सुर्खियाँ बनने का शौक नहीं है। तृषा- तो एक्टिंग में क्यूँ आए। कुछ और बन जाते.. क्यूंकि यहाँ तो आपकी छींक भी.. सुर्खियाँ बनाने के लिए काफी है। मैंने हंसते हुए कहा- अब कल की कल देखेंगे।
बरसात तेज़ हो रही थी और शीशे पर ओस की बूंदें जमनी शुरू हो गई थीं। मैंने गाड़ी को साइड में रोक दिया। क्यूंकि सामने कुछ दिख ही नहीं रहा था।
तृषा- गाड़ी क्यूँ रोक दी है.. आपके इरादे मुझे ठीक नहीं लग रहे हैं। मैंने अपने होंठों पर हाथ फिराते हुए कहा- कुछ कहने की ज़रूरत है क्या? अब समझ भी जाओ। ुफिर से हम गले मिल चुके थे.. हमारी साँसें अब तेज़ हो चली थीं।
मैंने खिड़की को थोड़ा सा खोल लिया। अब बारिश की बूंदें छिटक कर हमारे जिस्म पर पड़ रही थीं। हर बूंद हमारे अन्दर की आग में घी का काम कर रही थी। आज तृषा घर से भी लाल रंग की साड़ी में आई थी और यही लाल रंग मुझे तो पागल किए जा रहा था।
मैंने गाड़ी की पिछली सीट पर उसकी साड़ी को उतारना शुरू कर दिया। मैंने उसके बदन को चूमते हुए उसके हर कपड़े को अलग कर दिया और उन कपड़ों को आगे की सीट पर रख दिया। फिर मैंने साड़ी को रस्सी की तरह पकड़ा और तृषा को पलट के उसके हाथ बाँध दिए फिर साड़ी को उसकी गांड से ले जाते हुए उसकी गर्दन तक ले आया।
अब मैंने एक दरवाज़ा खोला और तृषा के सर को थोड़ा पीछे की ओर लटका दिया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! फिर मैंने अपने लण्ड को उसके मुँह में अन्दर तक घुसा दिया। अब जब जब वो हिलती.. तो साड़ी उसकी गांड और चूत दोनों पर रगड़ खाती।
अब हम जैसे एक सगीत की लय में बंध गए थे। मैं हाथों से साड़ी को कसता फिर ढीला छोड़ता.. उसी लय में तृषा अपनी कमर को हिला रही थी। फिर मैं अपने लंड को उसके एकदम गले तक पहुँचा देता। आज बारिश की बूंदें भी अलग ही मज़ा दे रही थीं।
फिर मैंने उसकी गांड को अपनी ओर किया और साड़ी को उसकी कमर में लपेट दिया। अब मैं उसी को पकड़ कर उसकी गांड में अपना लंड अन्दर-बाहर कर रहा था।
मैंने साड़ी को कमर से खोल कर उसकी गर्दन में फंसा दिया और उसे सीधा करके चोदने लगा। उसकी मखमली स्तनों पर अपने दांत गड़ाता और जब वो चिल्लाती तो उसके गर्दन के फंदे को कस देता।
ऐसे ही चोदता हुआ थोड़ी देर में मैं उसके ऊपर गिर पड़ा। अब मैं पूरी तरह से स्खलित हो चुका था। साड़ी तो गन्दी हो ही चुकी थी.. पर तृषा के पास अब उसे पहनने के अलावा और कोई चारा भी तो नहीं था।
फिर हम दोनों घर पहुँच गए और एक-दूसरे की बांहों में बाँहें डाल कर सो गए।
धीरे-धीरे वक़्त बीतता चला गया और मैं उसके प्यार में खोता चला गया। अब धीरे-धीरे मेरे दिल के हर ज़ख्म भी लगभग भरने लगे थे। जब भी मैं उसके साथ होता तो मैं हर पल को शिद्दत से जीता। जब भी वो मुझसे दूर होती.. तो ऐसा लगता कि मैं उसके बिना कितना अधूरा हूँ।
उसने मुझे एक्टिंग की तमाम बारीकियाँ सिखाईं.. प्यार के एहसास को जीना सिखाया और शायद वो अपने होने का मुझे एहसास करा गई।
फिल्म धीरे-धीरे पूरी होती जा रही थी। अब मेरी एक्टिंग में भी ठहराव सा आ गया था। तृषा के साथ जुड़े मेरे दिल के रिश्ते ने हमारी ऑन स्क्रीन केमिस्ट्री को भी दमदार बना दिया था। जो थोड़ी बहुत दिक्कत ज़न्नत के साथ के सीन्स में आती.. उसे भी तृषा की दी हुई ट्रेनिंग की वजह से मैंने बेहतर तरीके से निभाया।
अब तो बॉलीवुड के गलियारों में भी मेरी एक्टिंग के चर्चे हो रहे थे और साथ ही तृषा के साथ मेरे सम्बन्ध मुंबई के अखबारों में थोड़ी-थोड़ी जगह बनाने लग गए थे।
रोज की तरह आज भी मैं शूटिंग ख़त्म कर के तृषा के साथ घर को निकला। मुझे अभी घर जाने का मन नहीं था। सो मैं तृषा के साथ समंदर किनारे चला गया। तृषा ने अपने चेहरे को ढक लिया और मैं तो अब तक सब के लिए अनजान ही था।
सो हम दोनों एक-दूसरे की बांहों में बांहें डाले समंदर किनारे पैदल चलने लगे।
मैं- तृषा.. एक बात कहूँ? तृषा- कहो। मैं- आज एक गाना याद आ रहा है। तृषा- कौन सा वाला। मैं- मुझे और जीने की ख्वाहिश न होती.. अगर तुम न होते, अगर तुम न होते। तृषा- किसी को अपने दिल में इतनी जगह भी मत दे दो कि उसके जाने से तुम्हारी दुनिया ही वीरान हो जाए। मैंने उसे कस कर पकड़ते हुए कहा- मैं कहीं जाने दूँ तब न… वैसे ये सब क्यूँ बोल रही हो?
तृषा- परसों से मेरी नई फिल्म की शूटिंग स्टार्ट हो रही है। सो मैं तुम्हें अब ज्यादा वक़्त नहीं दे पाऊँगी। बस इसीलिए कह रही थी। मैं- और तुम मुझे ये कब बताने वाली थी? तृषा- अभी-अभी.. और मैंने बता दिया न.. अब उदास वाली सूरत मत बनाओ। वैसे भी हम मिलते रहेंगे। मैं- मैं समझ सकता हूँ तुम्हारी परेशानी। सो चिंता मत करो और अपने कैरियर पर ध्यान दो।
सड़क किनारे लगे फ़ूड स्टाल्स का मज़ा लेते हुए हमने एक यादगार वक़्त साथ बिताया और फिर अपने-अपने घर चले गए।
मैंने उसे ज़रा सा भी एहसास नहीं होने दिया कि उसके दूर होने से मुझ पर क्या बीतेगी। मैं तो उसे यूं ही अपनी बांहों में ही रखना चाहता था.. पर उसे स्क्रिप्ट की तैयारी करनी थी। सो मैं अपने फ्लैट में आ गया।
तृषा की फिल्म की शूटिंग मलेशिया में हो रही थी और मेरी यहाँ मुंबई में ही।
अब तो कभी-कभार ही हमें वक़्त मिल पाता था। अक्सर शूटिंग के वक़्त उससे मुलाकात होती और शूटिंग ख़त्म होते ही एक गाड़ी.. उसे दूसरे लोकेशन पर ले जाने को खड़ी रहती।
मैं अक्सर उसे रोकने के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाता.. पर वो शायद मुझे देख ही नहीं पाती थी।
हमारी आज की शूटिंग ख़त्म हो चुकी थी और अब एक आखिरी बार परसों हमें शूट करना था और काफी दिनों से मेरी तृषा से ढंग से बात नहीं हो पाई थी.. सो मैं पागल हुआ जा रहा था।
शूट ख़त्म होते ही सबके सामने मैंने तृषा का हाथ पकड़ा और उसे अपनी वैन में ले जाने लगा।
तृषा- नक्श.. यह क्या कर रहे हो? सब क्या सोचेंगे?
मैं- यही कि हम दोनों एक-दूसरे के प्यार में पागल हैं और एक-दूसरे के बिना एक पल भी नहीं रह सकते। तृषा ने वैन में आ गई पर मुझसे दूर बैठ गई। ‘मुझे ये सब अच्छा नहीं लगता।’ मैं- क्या..? तुम्हें इस तरह अपने साथ लाना या मेरा तुम्हें हद से ज्यादा प्यार करना? तृषा- हर चीज़ अपनी हद में ही रहे तो अच्छी लगती है.. वर्ना चुभने लगती है। ‘मेरा प्यार तुम्हें चुभने लगा है..!’
फिर मैंने उसके हाथ को थामते हुए आगे कहा- तृषा अगर मुझसे कोई भी गलती हुई हो.. तो प्लीज मुझे माफ़ कर देना। मैंने तुम्हें ही अपना सब कुछ माना है और तुम ही मुझसे रूठ जाओगी तो मैं सांस भी कैसे ले पाऊँगा।
तृषा- तुम अब बच्चे नहीं हो। जो हर बात को बताना पड़े। तुम समझदार हो और तुम्हारे सामने अपना कैरियर है.. उस पर फोकस करो।
वो गेट खोल बाहर जाते हुए बोली- बाय..!
ये आखिर इस तरह क्यूँ चली गई..? मुझसे क्या गलती हो गई..? ऐसा लग रहा था मानो कोई धीरे-धीरे मेरे दिल में सुई चुभो रहा हो.. और फिर उसी तरह बाहर निकाल रहा हो। मेरे लिए तो सांस लेना भी मुश्किल हो रहा था। मैंने वैन के दरवाज़े को बंद किया और खुद को शराब के नशे में डुबो दिया। मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ।
निशा ने बहुत कोशिश की कि मैं उसके साथ घर चलूँ.. पर मैं सबके जाने के बाद अकेला ही सड़कों पर पैदल अपने घर की ओर निकल पड़ा।
एक हाथ में शराब की एक बोतल और दूसरे में गिलास। बरसात की हल्की फुहारें अब तेज़ हो गई थीं। मैं वहीं सड़क पर बैठ गया। बोतल से गिलास में पैग डालता और बारिस उस जाम को पूरा भर देती।
बरसात की बूंदों में.. मेरे आंसू भी खो गए थे जैसे.. तभी एक कार मेरे ठीक सामने आकर रुकी।
ड्राईवर नीचे उतरा और मुझे उठा कर उस कार में बिठा दिया। मैंने अपनी बोझिल होती आँखों से उसे पहचानने की कोशिश की..
श्वेता थी वो..
उसे देखा और बेहोश हो कर वहीं उसकी गोद में गिर पड़ा।
कहानी पर आप सभी के विचार आमंत्रित हैं। कहानी जारी है। [email protected]
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