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मैं घर में अन्दर आया तो सबने तृषा को दरवाज़े पर ही रोक दिया।
‘अरे रुको थोड़ी देर…’ कहते हुए तृष्णा ने एक गिलास में चावल डाल कर दरवाज़े पर रख दिया। तृष्णा- भाभी जी गृह प्रवेश करो। तृषा ने हंसते हुए कहा- लात किसको मारनी है? गिलास को या नक्श को? ज्योति- नक्श को तो हर रोज़ ही मारोगी, फिलहाल गिलास को ही लात मार कर अन्दर आ जाओ।
फिर हम सबने एक साथ नाश्ता किया और वो पूरा दिन तृषा की कार में हम सब पूरे शहर में धमाल मचाते रहे।
ऐसे ही हमारे कुछ दिन मज़े में बीते। मेरी फिल्म की मुहूर्त शॉट का वक़्त आ चुका था। आज मैं अच्छे से तैयार हो कर लोकेशन पर चला गया। मेरे लिए वहाँ एक वैन थी। मैं वहीं चला गया और एक मेकअप मैन ने मुझे तैयार किया।
तभी दरवाज़े पे दस्तक हुई.. निशा थी। उसे वहाँ असिस्टेंट डायरेक्टर बना दिया गया था।
निशा- शॉट रेडी है सर… मैं- अब तुम तो मुझे ‘सर’ मत कहो।
बारिश का सीन था.. तृषा (इस फिल्म में भी उसका नाम तृषा ही था.. शायद यह निशा ने ही किया हो। क्यूंकि बस वो ही मेरी एक्टिंग के बारे में जानती थी।)
तृषा सड़क पर खड़ी थी और टैक्सी ढूंढ रही थी। मेरा एक पहलू.. जो आवारा किस्म का था.. वो उसे सड़क के बीचों-बीच ट्रैफिक रुकवा कर.. प्रपोज करता है।
लाइट … कैमरा … एक्शन
तृषा.. जो मेरे मुस्कान की वजह बन चुकी थी.. उसे देखते ही मेरे चेहरे पर शरारती मुस्कान आ गई।
मैं उसके पास जा कर। मैं- मैडम.. एक बात कहूँ? तृषा- मैं आवारा लोगों के मुँह नहीं लगती। मैंने अपनी शर्ट के बटन खोलते हुए कहा- तो फिर मेरे सीने से लग जाओ.. मैंने कब रोका है। तृषा (गुस्से में)- तुम्हें बात करने की तमीज नहीं है.. लड़कियों से ऐसे बात करते हैं..? मैंने अपनी पैंट को ऊपर करते हुए कहा- जी तमीज़ तो है.. पर यूँ भीगता देख कर ज़ज्बात काबू से बाहर हो रहे हैं।
कट.. कट.. मैंने डायरेक्टर को सॉरी कहा.. वो मैंने आखिरी वाला डायलॉग कुछ और ही कह दिया था।
फिर से तृषा ने अपनी बात दोहराई और..
मैं उसके हाथ को पकड़ कर घुटनों पर आ गया और मैंने डायलॉग बोला- मुझे नहीं पता.. लड़कियों से कैसे बात करते हैं.. क्यूंकि मुझे आज तक किसी ने प्यार से सिखाया ही नहीं है.. मैं हर बात सीख लूँगा.. जो तुम्हें अच्छी लगे। तुम बस मेरी हो जाओ.. आई लव यू..
कट… परफेक्ट शॉट..!
तृषा ने मेरे गले से लग कर मुझे बधाई दी और फिर मैं पास रखी कुर्सी पर बैठ गया.. और तृषा के मम्मों को महसूस करने लगा.. मेरा लौड़ा खड़ा होने लगा था।
इसके बाद का सीन था कि मैं अभी तक उसका हाथ थामे ज़मीन पर देख रहा हूँ.. तभी एक कार आती है और तृषा को धक्का मार कर आगे निकल जाती है। जिस सीन को डायरेक्टर ने हमारे बॉडी डबल के साथ पूरा किया।
मैं अब अपने केबिन में कपड़े बदल कर तैयार हुआ और बाहर हॉस्पिटल का सैट लग चुका था।
फिर से निशा अन्दर आई।
मैं- हाँ जी.. मैं तैयार बैठा हूँ। शॉट रेडी है न..?
निशा- ह्म्म्म… तुम्हारा पहला शॉट बहुत अच्छा था। कैसे किया तुमने ये..?
मैं- तुम तो जानती ही हो.. तृषा को प्रपोज करने के लिए भी भला मुझे एक्टिंग सीखने की ज़रूरत है क्या? निशा- देखती हूँ आगे इस किरदार को कैसे निभाते ह? मैं- देख लेना।
मैं उसके साथ केबिन के बाहर आ गया।
अगला सीन था कि मैं हॉस्पिटल में घायल लेटा हुआ हूँ। उस एक्सीडेंट में थोड़ी चोट मुझे भी आई थी। तृषा मेरे पास के ही एक कमरे में है और वो बहुत ही सीरियस हालत में है।
लाइट… कैमरा… एक्शन !
मैंने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं। पास ही खड़ी एक नर्स ने मुझसे कहा- वो दूसरी पेशेंट.. आपके साथ है क्या?
मैं- हाँ.. वो ठीक तो है न?
नर्स- जल्दी जाओ… पता नहीं वो ज़िंदा बचेगी भी या नहीं।
मेरे ज़ज्बातों का समंदर अब सुनामी का रूप ले चुका था। मैं भाग कर उस तक पहुँचना चाह रहा था.. पर मेरे दिल की धड़कनों ने जैसे मेरे पाँव में कोई डोर बाँध दी हो.. हर दो कदम पर लड़खड़ाए जा रहा था। मेरे आंसू बेकाबू हो चले थे। मैं तृषा के कमरे तक पहुँचा। मेरी आँखें भर जाने की वजह से हर चीज़ अब धुंधली सी दिखने लगी थी।
मेरे कानों में बस उसकी हिचकियों की आवाज़ सुनाई दे रही थी।
मैं उसके हाथ पकड़ कर लगभग चिल्लाते हुए बोला- कहाँ जा रही हो.. मुझे यूँ अकेला छोड़ कर.. मैं तुम्हें कहीं नहीं जाने दूँगा.. तभी हिचकियाँ लेती हुई वो शांत हो गई। मैं गुम सा हो गया। मैंने उसके दिल के पास अपने कान ले जा उसकी धड़कन सुनने की कोशिश करने लगा।
फिर मैं वहीं सर रख कर लेट गया और कहने लगा- सुना था कि प्यार में बहुत ताकत होती है.. सच्चे प्यार को ले जाने की हिम्मत खुद उस भगवान में भी नहीं होती.. मैंने जब से तुम्हें देखा था तब से बस तुम्हारी ही चाहत की है। अगर मेरे प्यार में सच्चाई है तो तुम्हें लौट कर आना ही होगा (इस बार मैं जोर से चीखते हुए) तुम्हें मेरे पास आना ही होगा..
मैंने उसके सीने को हाथों से प्रेशर दिया।
फिर एकदम से एक लम्बी सांस खींचते हुए वो बैठ गई। पास की एक नर्स अपने आंसू पोंछते हुए उससे कहती है- भगवान तुम दोनों की जोड़ी हमेशा सलामत रखे और बेटी तुम्हें इससे अच्छा जीवन साथी नहीं मिल सकता।
‘कट इट.. ब्रिलिएँट शॉट।’
डायरेक्टर के इतना बोलते ही पूरा स्टूडियो तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
मैं अब तक लम्बी-लम्बी साँसें ले कर किरदार से बाहर आने की कोशिश कर रहा था।
तभी तृषा मेरे कान के पास आ कर बुदबुदाई- मैंने जो बात कही थी याद है तुम्हें? जब-जब तुम अपने दर्द में चिल्लाओगे.. हर तरफ बस तालियों का शोर सुनाई देगा।
फिर निशा आई और मुझे मेरे केबिन तक ले गई।
निशा- कमाल है यार… अब तो मुझे भी शक होने लगा है कि तुम में किसी महान एक्टर की आत्मा तो नहीं है। बिना रीटेक लिए हर शॉट को पूरा कर रहे हो। वैसे अब तुम अगले शॉट की तैयारी करो.. मैं तुम्हारे लिए लंच भिजवाती हूँ।
ये कहते हुए वो बाहर निकल गई, मैंने स्क्रिप्ट को पढ़ना शुरू किया।
अगला शॉट जन्नत (इस फिल्म में उसका नाम पूजा था) के साथ था। तभी दरवाजे पर खटखटाने की आवाज़ आई। मैंने सोचा लंच आ गया होगा और मैंने दरवाज़े को खोल दिया। सामने ज़न्नत थी.. वह मुस्कुराते हुए अन्दर आई और उसने दरवाज़ा बंद कर दिया।
मैंने बैठते हुए कहा- ये दरवाज़ा क्यूँ बंद कर दिया तुमने? वैसे मुझे थोड़ी घबराहट सी होने लगी थी।
ज़न्नत ने मेरी गोद में बैठते हुए कहा- तुम्हारे शॉट ने तो मुझमें आग लगा दी है। मैं- जी.. वो.. शॉ..ट मतलब?
ज़न्नत- जान… सच में इतने भोले हो या फिर अभी भी एक्टिंग ही कर रहे हो.. मेरा तो मन हो रहा है कि तुम्हें कच्चा चबा जाऊँ। फिर उसने मेरे गालों पर अपने दांत गड़ा दिए।
मैंने उसे खुद से दूर धकेलते हुए कहा- ये क्या कर रही हो? मैं किसी और को चाहता हूँ.. और प्लीज तुम मुझसे दूर ही रहो। ज़न्नत- ऐसी भी क्या बात है उसमें.. जो मुझमें नहीं? मैं- वो मेरे दर्द की दवा है।
तभी दरवाज़े पर लंच लेकर एक स्पॉट ब्वॉय आ गया। ज़न्नत ने उससे खाना लिया और दरवाज़े को फिर से लॉक कर दिया।
‘देखो मुझे भूख नहीं है.. या तो खुद चली जाओ या मुझे बाहर जाने दो।’
ज़न्नत- ऐसे कैसे जाने दे सनम.. हमें तो आपने अपना दीवाना बना लिया है, अब तो बिना हमारी ख्वाहिश पूरी हुए हम कहीं नहीं जा रहे हैं। मैं- कैसी ख्वाहिश? ज़न्नत- आपको अपने हाथों से खिलाने की।
वो खुद बैठ गई और उसने मुझे खींच कर अपनी गोद में बिठा लिया। सच कहूँ तो इतना डर मुझे कभी नहीं लगा था। मैं तो एक अबल पुरुष की भाँति बड़ी ही दयनीय दृष्टि से उसे देख रहा था। वो मुझे खिला रही थी और मैंने खुद को इतना बेसहारा कभी भी महसूस नहीं किया था।
एक हाथ से निवाला मेरे मुँह में डालती तो दूसरे हाथ से मुझे कभी यहाँ तो कभी वहाँ सहलाती जाती। जैसे-तैसे खाना ख़त्म हुआ और वो बाहर गई। मेरी हालत अब तक खराब ही थी।
तभी निशा आई और उसने कहा- शॉट रेडी है।
मैं बाहर आया तो देखा वो हंसे जा रही थी। मैंने पूछा तो उसने कोई जवाब नहीं दिया।
इस बार सीन था.. मैं हॉस्पिटल से वापस आया हूँ और थक कर सो गया। सुबह उठते ही मुझे तृषा की याद आने लगी और मेरी आँखें फिर से भर आईं। मैंने उसके पास जाने का फैसला किया.. पर जैसे ही मैं अपने चेहरे को साफ़ करने वाशरूम जाता हूँ, मेरी नज़र शीशे पर पड़ती है। खुद की आंखों में आंसू देख मेरी दूसरी शख्शियत बाहर आ जाती है और मैं सब भूल अपने ऑफिस के लिए निकल जाता हूँ। जहाँ पूजा (ज़न्नत) मेरी बॉस है।
लाइट… कैमरा… एक्शन !
मैं अपने एक बेडरूम का फ्लैट का दरवाज़ा खोलता हूँ। मैं अब तक उसकी यादों में उदास था। चाभियाँ वहीं टेबल पर फेंक कर मैं बिस्तर पर लगभग गिरते हुए लेट जाता हूँ और मेरी आँख लग जाती है।
डायरेक्टर की आवाज़, ‘सीन चेंज.. लाइट.. एक्शन’
तभी एक अलार्म की आवाज़ से मैं जागता हूँ। वैसे ही उदास सा मैं वाशरूम में जा कर अपने चेहरे पर पानी की छींटें मारता हूँ और जब मैं शीशे में अपने चेहरे को देखता हूँ तो पानी की बूंदों के साथ बहते मेरे आंसू मुझे दिख जाते हैं। इन आंसुओं को देख कर मुझे गुस्सा आने लगता है और मैं वहीं ज़मीन पर गिर जाता हूँ।
कट ..कट.. एक और टेक लो। लगभग दस टेक के बाद ये सीन पूरा हो पाया। सीन फिर से आगे बढ़ता है।
मैं अब उठा तो जैसे किसी नींद से जागा हूँ। मैंने अंगड़ाई ली और तैयार हो कर ऑफिस के लिए निकल गया। कहानी पर आप सभी के विचार आमंत्रित हैं। कहानी जारी है। [email protected]
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