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तृषा- तुम्हारे इस सवाल का जवाब भी बहुत जल्द दे दूँगी.. पर तुम्हारी ये हालत मैं नहीं देख सकती। अपना हुलिया ठीक करो और याद है न तुमने मुझसे वादा किया था कि मुझे शादी के जोड़े में सबसे पहले तुम ही देखोगे! आओगे न..? मेरी आखिरी ख्वाहिश समझ कर आ जाना। मैं- काश कि मैं तुम्हें ‘ना’ कह पाता.. हाँ मैं आऊँगा..
तृषा अपने घर चली गई। आज बहुत दिनों के बाद मुझे नींद आई थी। शादी वाला दिन भी आ चुका था। आज एक वादे को निभाना था। अपने लिए ना सही.. पर आज अपने प्यार के लिए मुस्कुराना था मुझे.. सुबह-सुबह मैंने शेविंग कराई.. बाल ठीक किए और तृषा की गिफ्टेड शर्ट और पैंट को ठीक किया।
शाम तक मैंने अपने आपको घर में ही व्यस्त रखा। अपने चेहरे से मुस्कान को एक बार भी खोने ना दिया। कभी आँखों में आंसू आए.. तो कुछ पड़ने का बहाना बना देता।
शाम को चाचा जी घर पर आए- नक्श.. पापा को भेजना जरा.. मैंने जवाब दिया- जी.. घर पर अभी कोई भी नहीं है.. सब बगल में शादी में गए हुए हैं। चाचा जी- और तुम? मैं- हाँ.. बस थोड़ी देर में घर में ताले लगा कर मैं भी जाऊँगा। चाचा जी- ठीक है ये लो पैसे.. पापा को दे देना, पचास हज़ार हैं.. गिन कर अन्दर रख दो। मैं- पापा को ही दे दीजिएगा।
चाचा जी- तुम्हारे पापा का ही है और बार-बार इतने पैसे लाना ले जाना सुरक्षित नहीं है। मैंने पैसे गिने और कहा- ठीक है.. अब आप जाईए.. मैं पापा को दे दूँगा। चाचा जी चले गए।
अब मेरे लिए परेशानी थी कि इस रकम को रखूँ तो कहाँ रखूँ। लॉकर की चाभी पापा कहीं रख कर गए थे। सो मैंने उस हज़ार की गड्डी के दो हिस्से किए और आधा अपनी एक जेब में और बाकी आधा.. दूसरी जेब में रख लिया।
आज वैसे ही कोई कम चिंता थी क्या.. जो एक और भी आ गई। अब तक मैंने अपने दिल को मना लिया था। मैं जानता था.. खुद को काबू में रखना मुश्किल होगा.. पर मैंने सोच लिया था कि किसी और के सामने अपनी भावनाओं को आने से रोकूंगा। अगर किसी और के साथ घर बसाने में ही तृषा की ख़ुशी है.. तो मैं उसे बर्बाद नहीं करूँगा।
वक़्त अब हो चला था, तृषा तो अब तैयार भी हो गई होगी, मैंने घर को ताला लगाया और तृषा के घर की तरफ बढ़ चला।
तृषा के घर की ओर मेरे हर बढ़ते कदम मेरे दिल की धड़कन को तेज़ और तेज़ किए जा रहे थे, मैं मुख्य दरवाज़े से अन्दर दाखिल हुआ। सभी अपने-अपने काम में लगे थे।
मैं सबको नमस्ते कहता हुआ तृषा के कमरे के पास पहुँचा, उसकी बहनें और भाभियाँ उसे घेर कर उसका श्रृंगार कर रही थीं।
मैं खांसता हुआ कमरे में घुसा- अरे मेरे टीपू सुलतान.. जंग की तैयारी हो गई क्या? मैंने देखा कि तृषा के मुझे देखते ही उसकी आँखों से आंसू बहने लगे थे, वो बोली- भाभी आप सबको थोड़ी देर के लिए बाहर ले जाईए।
सबके बाहर जाते ही उसने मुझे कस कर पकड़ लिया और बहुत जोर-जोर से रोने लगी। मुझे ऐसा लगा कि जैसे इतने दिनों से उसने जो दर्द अपने अन्दर भरा हुआ था.. आज वो सैलाब रुक ना सका।
‘बहुत दुःख दिया है न मैंने तुम्हें? अब कोई तुम्हें परेशान नहीं करेगी।’ मेरे गाल खींचते हुए तृषा बोली। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मैं- तुम्हारे नाम का दर्द भी ख़ास है मेरे लिए.. वरना औरों से मिली खुशियाँ भी ख़ुशी नहीं देती। वैसे जानू.. आज मैं देखने आया हूँ.. देखूँ तो कैसी लग रही हो..! तृषा मुझसे थोड़ी दूर हटाते हुए अपना शादी का जोड़ा दिखाने लगी। इन तीन महीनों में बस एक ही बात थी.. जो मुझे तृषा में अजीब लगी थी। उसकी आँखें कुछ कहती थीं और उसकी जुबान पर कुछ और ही बात होती थी। आज जो उसकी आँखों में था.. वहीं उसके जुबां पर भी था। तृषा- कैसी लग रहीं हूँ मैं?
मैं- जैसी मैं अक्सर अपने ख्यालों में तुम्हें देखता था.. पर ये नहीं मालूम था कि मैं अपने ख्यालों में किसी और की बीवी को देखता हूँ।
तृषा मेरे गले से लगते हुए बोली- आज भी ताने दोगे..? मेरी विदाई का वक़्त आ चुका है.. अब तो माफ़ कर दो। एक बात मानोगे मेरी… आज मुझे तुमसे एक तोहफा चाहिए। मैं- कौन सा तोहफा? तृषा- याद है जब तुमने मुझे पहली बार प्रपोज किया था। आज एक बार फिर से करो न।
मैं अपने घुटने के बल बैठ गया। उसके हाथ को अपने हाथ में लेकर: ‘सुन मेरी मयूरी.. ये मोर तुझसे एक बात कहता है.. दिल तो उसका है.. पर तेरा ही नाम ये जपता रहता है। मेरे दिल में बस जा.. मेरी साँसों में समा जा.. मेरी नींद तू ले ले.. मेरा चैन तू ले ले.. पर सुन ले मेरी बात। जल्दी से तू ‘हाँ’ अब कर दे.. वर्ना कहीं आ ना जाए तेरा बाप।’
मैंने ये लाईनें ख़त्म की और हम दोनों ही ज़मीन पर बैठ कर हंसने लगे।
तृषा- मेरी बात और थी.. पर अगर किसी और को ऐसे प्रपोज करोगे तो चप्पल खोल कर मारेगी। ऐसे करता है कोई प्रपोज..?
मैं- वही तो कह रहा हूँ.. नहीं आता है मुझे किसी को अपने दिल की बात बताना.. पर तुम तो हर बात बिना बताए समझती हो न.. मेरे साथ भाग चलो न..!
तभी आवाज़ आई ‘तृषा’ और तृषा की माँ लगभग चिल्लाते हुए कमरे में आ गई। आंटी ने मेरी ओर देखते हुए कहा- जाओ यहाँ से.. तुम्हारा यहाँ कोई काम नहीं है। मैं- आज नहीं जाऊँगा.. आप मेरी बात सुन लो.. तब मैं चला जाऊँगा। आंटी- ठीक है.. कहो.. क्या कहना है तुम्हें?
मैं- माना कि हमसे गलती हुई.. हमें हमारे रिश्ते के बारे में आपको बता देना चाहिए था.. हम तो छोटे थे.. नासमझ थे.. हमसे गलती हो गई। पर आपसे गलती कैसे हुई। आप तो समझदार थे.. अपने ही हाथों अपनी बेटी का गला घोंट दिया। कहते हैं कि एक माँ अपने बच्चे को सबसे अच्छी तरह जानती है। एक बार बस अपनी बेटी को देख कर आप कह दें कि वो खुश है। मैं कुछ नहीं कहूँगा और चुपचाप चला जाऊँगा..
आंटी चुप थीं।
मैंने कहा- आपकी खामोशी ने सब कह दिया मुझसे.. जाता हूँ मैं.. और मैं इस बात के लिए आपको कभी माफ़ नहीं करूँगा। मैंने आंटी के सामने ही तृषा को गले लगाया और उसे चुम्बन किया। ‘जा रहा हूँ.. अपना ख्याल रखना। तृषा मुझे रोकने को हाथ बढ़ा रही थी.. पर तब तक मैं जा चुका था।
मैं बाहर गया.. बाहर पापा खड़े थे। पापा- क्या हुआ बेटा.. उदास दिख रहे हो? मैं- कुछ ख़ास नहीं.. आपकी होने वाली बहू की शादी किसी और से हो रही है।
पापा- तुमने मुझे बताया क्यूँ नहीं.. तभी इतने दिनों से तुम परेशान थे। मैं तृषा के पापा से बात करता। मैंने पापा की बात काटते हुए कहा- मैं तृषा के बारे में कहाँ कह रहा था.. मैं तो मज़ाक कर रहा था। मैं आता हूँ बारात में डांस करके।
मैं जल्दी से वहाँ से निकल आया.. कहीं पापा मेरी आँखों में आँसू न देख लें। अब मैं पास के ही हाईवे पर था। शराब की दुकान खुली थी और लगभग बाकी सारी दुकानें बंद थीं।
शादियों के मौसम में यही दुकान तो देर तक चलती है। मैं दुकान में गया और स्कॉच की हाफ-बोतल ले आया। पास में ही एक बंद दुकान की सीढ़ियों पर बैठ गया। थोड़ी देर में वहाँ जो बची-खुची दुकानें थीं.. वो भी बंद हो गईं।
अब तो वहाँ बिल्कुल अकेला सा लग रहा था। आसमान में दिवाली सा पटाखों का शोर.. दूर-दूर से आता बारात के गानों का शोर और मेरे मन के ख्यालों का शोर.. मैं वहाँ पर अकेला होता हुआ भी अकेला नहीं था।
यहीं बैठे-बैठे अब तक चार बारात मैं देख चुका था.. ना जाने कितने ही आशिकों के दिल वीरान होंगे आज की रात..
अभी मैं सोच ही रहा था कि एक और बारात गुजरने लगी। उसी में से एक उम्र में मुझसे थोड़ा बड़ा लड़का मेरे पास आया।
‘भाई यहाँ दारू की दुकान है क्या आसपास?’ मैं- नहीं भाई… अपनी आधी बची बोतल आगे बढ़ाते हुए मैंने कहा- यही ले लो।
वो साथ में ही बैठ गया। बोतल लेने के साथ ही पूछा- पानी और चखना कहाँ है? मैंने इशारे में ही कहा- नहीं है।
उसने पूछा- क्यूँ भाई आशिक हो क्या? मैंने कहा- नहीं.. दीवाना हूँ।
वो हंसने लग गया। हाथ बढ़ाते हुए बोला- हैलो मैं रवि.. मैंने भी उससे हाथ मिलाया। ‘मैं नक्श।’
रवि- चलो मेरे साथ.. ये बारात भी दीवानों की ही है।
वैसे भी मैं क्या करता, मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं तृषा की शादी होता देख सकता। मैं रवि के साथ ही चल पड़ा।
बारात पास की ही थी। रवि और उसके दोस्तों के साथ थोड़ी देर के लिए ही सही.. पर मैं भूल गया था कि आज तृषा की शादी है। बारात पहुँचने पर वहाँ भी शराब और कबाब का दौर चला।
अब नशा हावी हो चला था मुझ पर… सो थोड़ी देर के लिए नींद सी आ गई।
मैं वहीं बारात की गाड़ी में सो गया। तकरीबन पांच बजे मेरी नींद खुली, ऐसा लगा जैसे किसी ने मुझे गहरी नींद से जगाया हो।
कहानी पर आप सभी के विचार आमंत्रित हैं। कहानी जारी है। [email protected]
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