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अन्तर्वासना परिवार के सभी पाठको से मेरा अनुरोध है कि जज्बातों को समझें पर उनमें बहें नहीं… कुछ लोगों को लगता है कि यह कहानी मनगढ़ंत है तो उनके लिए सन्देश है कि अगर आपको इसमें ही मजा आ रहा है तो मज़ा लो, फालतू की बातों पर ध्यान लगाकर समय जाया मत करो। क्योंकि अभी तक मैं इस कहानी का एक पात्र रहा हूँ और इस साइट अन्तर्वासना डॉट कॉम के माध्यम से मुझे शब्द देने का मौका भी मिला तो मैंने भी जितना हो सका, पूरी ईमानदारी के साथ इसे लिखा है!
मैं अपनी कहानी पर आता हूँ, कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा..
मैंने आंटी के माथे को चूमा और स्तनों को भींचते हुए बोला- अच्छा, अब मैं चल रहा हूँ, वरना मैं शाम को जल्दी नहीं आ पाऊँगा। कहते हुए मैं उनके घर से चल दिया और आंटी भी मुस्कुराते हुए बोली- चल अब जल्दी जा, और आराम से जाना और तेरी माँ को बिल्कुल भी अहसास न होने देना।
अब आगे: मैं उनके घर से जैसे तैसे निकला और रास्ते भर अपने खड़े लण्ड को दिलासा देता रहा कि ‘प्यारे अभी परेशान न कर, दुःख रहा है, तू बैठ जा, तेरा जुगाड़ जल्दी ही होगा…’ क्योंकि माया की हरकत ने मेरे लौड़े को तन्ना कर रख दिया था, उसके हाथों के स्पर्श से मेरा लौड़ा इतना झन्ना गया था कि बैठने का नाम ही नहीं ले रहा था।
जैसे तैसे मैं घर पहुँचा, दरवाज़ा खटखटाया तो माँ ने ही दरवाज़ा खोला और मुझे देखते ही बोली- अरे राहुल बेटा, तुम आ गए। मैंने बोला- हाँ माँ! तो वो बोली- तुम इतनी देर से क्यों आये? तो मैं बोला- आ तो जल्दी ही रहा था पर वो लोग अभी तक नहीं आये और फ़ोन भी नहीं लग रहा था तो आंटी बोली शाम तक चले जाना। तो मैं अब आ गया।
फिर माँ बोली- वो लोग आ गए? मैं बोला- नहीं, अभी तक तो नहीं आये थे, आ ही जायेंगे। वो बोली- अच्छा जाओ मुँह हाथ धो लो, मैं चाय बनाती हूँ। बस फिर क्या था, मैं तुरंत ही गया और सबसे पहले जींस को उतार कर फेंका और रूम अंदर से लॉक करके अपने लौड़े को हाथ से हिलाते हुए बाथरूम की ओर चल दिया, इतना भी सब्र नहीं रह गया था कि मैं अपने आप पर काबू रख पाता और बहुत तेज़ी के साथ सड़का मारने लगा।
आँखें बंद होते ही मेरे सामने रूचि का बदन तैरने लगा और कानो में उसकी ‘अह्ह ह्ह्ह शिइई इइह…’ की मंद ध्वनि गूंजने लगी। मैं इतना बदहवास सा हो गया था कि मुझे होश ही नहीं था की मैं सड़का लगा रहा हूँ या उसकी चूत पेल रहा हूँ। खैर जो भी हो, आखिर मज़ा तो मिल ही रहा था और देखते ही देखते बहुत तेज़ी के साथ मेरे हाथों की रफ़्तार स्वतः ही धीमी पड़ने लगी और मेरा वीर्य गिरने लगा।
मैं सोचने लगा ‘जब इन दो पलों में इतना मज़ा आया है, तो मैं उसे जब चोदूंगा तो कितना मज़ा आएगा!’ ‘पर कैसे चोदूँ’ उसे यही उधेड़बुन मेरे अंतर्मन को और मेरी कामवासना धधकाये जा रही थी कि कैसे करूँगा मैं रूचि के साथ… अब तो घर में माया के साथ साथ विनोद भी है। ‘क्या करूँ जो मुझे रूचि के साथ हसीं पल बिताने का मौका मिल जाये!’ इसी के साथ मैंने मुँह पर पानी की ठंडी छींटे मारे और लोअर पहनकर बाहर आ गया, पर मन मेरा रूचि की ओर ही लगा था, इन दो दिनों में मुझे हर हाल में उसे पाना ही होगा कैसे भी करके!
तब तक माँ ने आकर चाय सोफे के पास पड़ी मेज़ पर रख दी थी जिसे मैं नहीं जान पाया था, मेरी इस उलझन की अवस्था को देखते हुए माँ ने कहा- क्या हुआ राहुल, तुमने चाय पी नहीं?
मैं बोला- कुछ नहीं माँ, बस यही सोच रहा हूँ कि मेरा दोस्त घर पहुँचा या नहीं क्योंकि आंटी को बच्चों की तरह डर लगता है। माँ बोली- होता है किसी किसी के साथ ऐसा… मैं बोला- माँ, बस उन्हें होरर फिल्म की आवाज़ सुना दो, फिर देखो ! माँ बोली- अच्छा ऐसा क्या हुआ?
तो मैं बोला- माँ, अभी कल ही मैं टीवी देख रहा था कि अचानक सोनी चैनल लग गया और उस वक़्त उसमें ‘आहट’ आ रहा था तो उसमे डरावनी आवाज़ सुनते ही आंटी पागल हो उठी उन्होंने झट से टीवी बंद कर दिया और मुझसे बोली- अब रात को मेरे कमरे में ही सोना, नहीं तो मुझे डर लगेगा तो पता नहीं क्या होगा।
उस पर मैं बोला- अच्छा आंटी कोई बात नहीं! और फिर सोते समय जान बूझकर वही सीन उन्हें दिलाने लगा मस्ती लेने के लिए… आंटी बाथरूम जा ही रही थी कि फिर से मारे डर के दौड़ के मेरे पास आने लगी और उनका कपड़ा पता नहीं कैसे और कहाँ फंसा तो वो गिर पड़ी।
तो माँ ने मुझे डांटा कि ऐसा नहीं करते हैं।
हम चाय पीने लगे और चाय ख़त्म होते ही माँ कप लेकर किचन की ओर जाने लगी, तभी उनका फ़ोन बजा और मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई।
माँ ने फ़ोन उठाया और चहक कर बोली- अरे रूचि, अभी राहुल तुम्हारे ही घर की बात कर रहा था।
फिर दूसरी तरफ की बात सुनने लगी और कुछ देर बाद फिर बोली- हाँ, वो यहीं है, अभी आया है कुछ देर पहले…
‘क्यों क्या हुआ?’ कहकर फिर शांत हो गई, उधर की बात सुनने लगी और क्या बताऊँ यारो, मेरी फटी पड़ी थी क्योंकि अबकी बार सब नाटक हो रहा था फिर तभी मैंने सुना, माँ बोली- अरे कैसे? फिर शांत हो कर कुछ देर बाद बोली- अब कैसे और कब तक आओगी?
तो वो जो भी बोली हो फिर माँ बोली- अरे कोई नहीं, परेशान मत हो, मैं राहुल को भेज दूंगी, तुम लोग अपना ध्यान रखना।
मैं तो इतना सुनते ही मन ही मन बहुत खुश हो गया कि चलो अब तो ऐश ही ऐश होने वाली है।
तभी माँ फ़ोन रखकर किचन में गई, मैं उनके पीछे पीछे गया, पूछने लगा- माँ क्या हुआ? रूचि घर क्यों बुला रही थी?
तो माँ ने जो बोला उसे सुनकर मैं तो हक्का बक्का सा हो गया, ‘साली बहुत ही चालू लौंडिया थी क्योंकि प्लान दो दिन का था पर अब 5 दिन का हो चुका था! वो कैसे? तो अब सुनें, माँ ने बोला कि उसकी तबीयत कुछ खराब हो गई थी जिसकी वजह से उनकी ट्रेन छूट गई थी और वापसी के लिए उन्हें रिजर्वेशन भी नहीं मिल पा रहा है। जैसे तैसे उनका रिजर्वेशन तो हो गया पर पांच दिन के बाद का मिला है। और हाँ, वो बोली है कि माँ से पैसे लेकर विनोद के अकाउंट में ट्रांसफर कर दें कल, क्योंकि उनके पास पैसे भी कम हो गए हैं।
तो मैं बोला- ठीक है, पर अब मैं क्या करूँ?
तो वो बोली- करना क्या है, अपना बैग उठा और आंटी के पास जा और हाँ अब उन्हें डराना नहीं, नहीं तो मैं तुझे मारूँगी और उनसे पूछूँगी कि कोई शरारत तो नहीं की तूने फिर से… इसलिए अब अच्छे बच्चे की तरह रहना 5 से 6 दिन… अब जा जल्दी, देर न कर !
तो मैं बोला- ठीक है माँ! और मैं ख़ुशी में झूमता हुआ अपने दूसरे कपड़ों को निकाल कर रखने लगा और अपनी उस चड्डी को जो की रूचि की चूत रस भीगी हुई थी, उसे बतौर निशानी मैंने अपनी ड्रॉर में रख दी जिसकी चाभी सिर्फ मेरे ही पास थी, उसे मेरे सिवा कोई और इस्तेमाल नहीं करता था। फिर बैग पैक करके मैं उनके घर की ओर चल दिया पर मैं रूचि को चोदना चाहता था इसलिए मैं प्लान बना रहा था कि कैसे हमें मौका मिल सकता है। तभी मेरे दिमाग में विचार आया कि क्यों न माया से इस विषय पर बात की जाये।
…अब आप लोग सोच रहे होंगे कि माया से में किस विषय पर बात करने की सोच रहा हूँ तो अब आप लोग भी सोचें कि मैं माया आंटी से किस विषय पर बात करूँगा। कहानी जारी रहेगी। आप सभी खड़े लण्ड वालों को और चिपचिपाती चूत वालियों को मेरा चिपचिपा अभिनन्दन… इसी तरह आप मुझे सहयोग देते रहें ताकि मैं आपका मनोरंजन अपनी सच्ची घटनाओं के जरिये करता रहूँ। धन्यवाद आप अपने सुझावों को मेरे मेल पर भेज सकते हैं और इसी मेल आईडी के माध्यम से फेसबुक पर भी जुड़ सकते हैं। [email protected]
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