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दोस्तो, आप सभी को मेरा नमस्कार.. आप सभी लोगों ने मेरी पहली कहानी साले की शादी में साली की चुदाई तो पढ़ी ही होगी और मैं आशा भी करता हूँ कि आपको वो कहानी पसंद भी आई होगी। तो दोस्तो और भाभियों आंटियों और प्यारी-प्यारी मस्त मम्मों वाली लड़कियों.. अब फिर से अपनी चूत में अपनी-अपनी उंगली डाल कर मेरी कहानी का मज़ा लीजिए..
आप सभी मेरा नाम तो जानते ही हैं फिर भी मैं अपने बारे में आपको बता देता हूँ। मेरा नाम परवीन राजपूत है और मैं गाज़ियाबाद से हूँ। मेरी उम्र 25 साल है और मैं शादी-शुदा हूँ। मेरी बीवी बहुत ही अच्छी और सुंदर है.. पर हर आदमी को एक ही लालसा होती है कि किसी दूसरे की लुगाई को चोदे..
तो यही कहानी मेरे साथ अभी हुई है.. मेरी बीवी अपने घर पर गई हुई थी और मेरा भी मन नहीं लग रहा था। हमारे पड़ोस में एक फैमिली रहती है.. उस घर में चार सदस्य रहते हैं.. माँ-बाप.. और बेटा-बहू.. बेटे का नाम सुरेश और बहू का नाम कविता था। हमारा उनके घर आना-जाना था.. क्योंकि हमारे पड़ोस के ये अंकल जी.. बहुत ही मजाकिया किस्म के थे और उनका जो बेटा है.. वो भी मेरे ही उमर का है। हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त भी थे.. मगर मेरा ध्यान तो उसकी बीवी की ही तरफ लगा रहता था..। उसकी बीवी इतनी सुंदर और सेक्सी थी कि मेरा तो कई बार उसको देख कर ही खड़ा हो जाता था। उसकी उभरी-उभरी गाण्ड और उसके वो मस्त मोटे-मोटे सुडौल चूचे.. जो मानो हमेशा मुझसे कहते हों कि आओ और हमें चूस लो..
एक दिन की बात है.. हमारे अंकल और आंटी अपने गाँव जाने वाले थे.. तो वो सुबह-सुबह हमारे घर पर आए और उन्होंने मेरी मम्मी से कहा- हम एक हफ्ते के लिए गाँव जा रहे हैं तो हमारे बच्चों का ख्याल रखना। मेरी माँ ने कहा- आप लोग बेफिक्र होकर जाइए.. मैं सब देख लूँगी। फिर वो उसी दिन गाँव के लिए रवाना हो गए..
अब क्या था.. अब तो मैंने और सुरेश ने शाम का प्रोग्राम बनाया। सुरेश ने कहा- आज कुछ हो जाना चाहिए.. तो मैंने कहा- ठीक है.. शाम को मिलते हैं।
मैं भी अपने काम से बाहर चला गया। शाम को हम दोनों उसके ऊपर वाले कमरे में बैठ कर पैग लगा रहे थे.. तो मुझे सुरेश उदास सा नज़र आया। मैंने पूछा- क्या हुआ सुरेश.. आज तू कुछ उदास सा है? तो उसने कहा- हाँ यार.. कंपनी मुझे दस दिन के लिए मुंबई भेज रही है और मैं जाना नहीं चाहता.. क्योंकि घर पर कोई भी नहीं है और कविता यहाँ पर अकेले कैसे रह पाएगी। मैंने कहा- बस इतनी सी बात.. अरे यार तू मेरा दोस्त है और कविता मेरी भाभी जैसी है.. तू फिकर कर मत कर.. तू अपना काम देख.. भाभी का ख्याल में और मेरे घर वाले बहुत अच्छे से रख लेंगे।
तभी कविता भी ऊपर आ गई और उसने सुरेश से कहा- परवीन सही तो बोल रहे हैं.. आप अपने काम से खुद को परेशानी में क्यों डाल रहे हो.. यहाँ पर सभी तो हैं ना.. मेरा ध्यान रखने के लिए और ये भी तो हमारे परिवार की तरह ही हैं। तभी सुरेश बोला- परवीन.. यार तूने मेरी बहुत बड़ी समस्या हल कर दी.. वो अगले ही दिन मुंबई के लिए निकल गया। मेरे मन में तो बहुत ख़ुशी हो रही थी।
अब मैंने भी कंपनी से एक हफ्ते की छुट्टी ले ली और घर वालों को बोल दिया कि कंपनी एक हफ्ते के लिए बंद है। अब मैं तो हर वक़्त घर पर ही रहता था.. क्योंकि मुझे पता था कि अब तो कविता सुबह से शाम तक हमारे घर पर ही रहा करेगी।
उसी दिन कविता भाभी दोपहर को करीबन एक बजे आई और हम सबसे बात करने लगी। लंच टाइम हो गया था तो मम्मी ने सबके लिए खाना लगाया.. तो कविता भी उनकी मदद करने लगी।
हम सबने साथ में बैठ कर लंच किया कुछ देर बाद भाभी बोली- आओ परवीन, मेरे घर पर चलते हैं.. वहाँ पर दोनों साथ में कैरम खेलेंगे.. तभी मम्मी ने कहा- चला जा.. उसका भी मन लग जाएगा।
मैं तो मन ही मन खुश हो गया और मैंने सोच लिया था कि आज कुछ भी हो जाए.. मैं आज कविता को अपना बना कर ही छोड़ूँगा। हम दोनों उसके घर पर चले गए.. भाभी ने टीवी ऑन किया और गाने चला दिए। फिर हम दोनों कैरम खेलने लगे। जैसे ही वो गोटी पर निशाना लगाने के लिए नीचे झुकती.. उसकी आधी चूचियाँ बाहर की तरफ आ जातीं.. मेरा तो गेम की तरफ कम.. और उसकी चूचियों पर ध्यान अधिक था।
उसके वो मस्त मम्मों को देख कर तो मैं पागल ही हुए जा रहा था। मेरा लंड भी एकदम से अकड़ कर खड़ा हो गया।
अचानक कविता बोली- क्या हुआ.. खेलो ना.. तो मैंने झटके से कहा- खेल तो रहा हूँ.. वो बोली- तुम्हारा ध्यान कहाँ है.. मैं सब जानती हूँ.. तो मैंने बोला- क्या जानती हो? उसने मेरे पैन्ट में उभार को देखते हुए कहा- ये क्या छुपा रहे हो? तो मैंने कहा- कुछ नहीं..
तभी उसने एकाएक झट से मेरे लवड़े को पकड़ लिया। मेरा तो दिमाग़ ही हिल गया और मैंने उसे अपनी ओर खींच कर अपनी बाँहों में भर लिया। उसने कुछ भी विरोध नहीं किया तो मैंने उसके होंठों को अपने होंठों में लेकर चूसने लगा।
उसने भी मेरा साथ देना शुरू कर दिया और वो मेरे लंड को पैन्ट के ऊपर से ही सहलाती जा रही थी। मैं भी उसको एक हाथ से पकड़ कर चुम्बन कर रहा था और दूसरे हाथ से उसके मम्मों को ज़ोर-ज़ोर से मसल रहा था।
तभी मैंने उससे कहा- मैंने तो सोचा था कि तुम बहुत शरीफ़ हो.. वो बोली- मैं तो तुम्हें कब से चाहती थी.. मगर तुमसे कुछ कह पाने का कभी मौका ही नहीं मिला.. मैंने कहा- अच्छा जी.. क्यों तुम्हें सुरेश पसंद नहीं है क्या?
वो बोली- पसंद तो है.. मगर वो मुझे शान्त नहीं कर पाते हैं.. उनका लंड बहुत ही छोटा सा है.. और वो जल्दी ही झड़ जाते हैं .. मैं अन्दर ही अन्दर जलती रहती हूँ… कभी-कभी तो मुझे अपनी चूत में उंगली डाल कर शान्त होना पड़ता है। मैंने कहा- यार मैं भी तुम्हारी सुंदरता का दीवाना हूँ और कब से तुम्हारी चूत का मज़ा लेने का सपना सोचे जा रहा था.. मगर आज मेरी हर इच्छा पूरी हो जाएगी।
मैंने फिर से उसे अपनी बाँहों में भर लिया और हम दोनों एक-दूसरे को चुम्बन करने लगे। कभी वो मेरी जीभ को चूसती तो कभी मैं उसकी चूची को चूसता।
हम दोनों को काफ़ी मज़ा आ रहा था। मैं उसके गाल पर.. गर्दन पर.. गले पर.. उसे चूमे ही जा रहा था.. तो उसने मुझे चुम्बन करते हुए मेरी जिप खोल दी.. और मेरे लंड को बाहर निकाल कर ज़ोर-ज़ोर से हिलाने लगी।
मैंने भी उसका कुरता उतार दिया और सलवार भी खोल दी। अब वो सिर्फ़ बसन्ती रंग की ब्रा-पैन्टी में रह गई थी। वो इतनी मस्त लग रही थी और मुझे ऐसा लग रहा था कि उसका सारा बदन खा जाऊँ।
फिर मैंने उसकी ब्रा के हुक को खोल कर उसके दोनों मम्मों को आज़ाद कर दिया और एक मम्मे को अपने मुँह में भर लिया और दूसरे मम्मे को ज़ोर-ज़ोर से भंभोड़ने लगा।
उसे बहुत ही मज़ा आ रहा था.. बीच-बीच में उसके गुलाबी रंग के दोनों निप्पलों को अपने दांतों से काट भी लेता था। वो मज़े लेकर सिसकारियाँ भरने लगी.. फिर वो घुटने के बल बैठ गई और मेरे लंड को अपने मुँह में लेकर ऐसे चूसने लगी थी कि पूछो मत.. इतना मज़ा आ रहा था.. वो लंड को गले तक ले-लेकर चूस रही थी।
अब मैं भी पूर जोश में आ चुका था और मैंने उसके बालों को पकड़ कर उसके मुँह में ज़ोर-ज़ोर से लंड पेलना शुरू कर दिया। वो मुझे पीछे हटाने लगी.. पर मैं रुका नहीं और ज़ोर से उसके मुँह में अपना लंड पेलने लगा। करीब 15 मिनट उसको लंड चुसाने के बाद मैंने अपना सारा माल उसके मुँह में ही झाड़ दिया।
वो बड़े मजे से मेरा सारा माल पी गई और फिर बड़े प्यार से मेरे लंड को चाट- चाट कर साफ कर दिया। मेरा लंड झड़ने के बाबजूद उसके चाटने के कारण अभी भी तना हुआ था.. तो मैंने उसे फर्श पर ही सीधा लिटा दिया और उसके मम्मों को ज़ोर-ज़ोर से चूसने और चाटने लगा।
वो मेरे सर को पकड़ कर अपने मम्मों में दबाए जा रही थी। कुछ देर मम्मे चूसने के बाद मैं उसके पेट को चूमते हुए उसकी नाभि पर आ गया और उसकी नाभि में मैंने अपनी जीभ डाल दी.. वो एकदम से मचल गई।
मैं वहाँ से चूमते हुए उसकी जाँघों से लेकर पैर तक चूमता गया और फिर हम दोनों 69 की अवस्था में आ गए। उसने गप्प से मेरे लण्ड को अपने मुँह में भर लिया और खींच-खींच कर चूसने लगी। मैंने भी उसकी चूत के छेद को खोल कर उसकी चूत में अपनी जीभ डाल दी और चूसने और चाटने लगा। मेरी जीभ जैसे-जैसे उसकी चूत को चूसती.. वैसे ही वो मचल पड़ती। फिर मैंने उसके दाने को हल्के से काटा.. वो एकदम से मस्त हो गई और अपनी गाण्ड को उठा-उठा कर मेरी जीभ से चुदने लगी।
मेरे होंठ उसकी चूत के होंठों को लगातार चूस रहे थे और वो भी ज़ोर-ज़ोर से सिसकारियां भर रही थी। ‘अहहाहा.. ओहोहोहोहो.. उफ्फ..’
कुछ देर ऐसे ही चूसने और चाटने के बाद उसका जिस्म अकड़ने लगा और उसने मुझे अपनी चूत में दबाते हुए अपना पानी छोड़ दिया.. मैंने सारा पानी पी लिया और कुछ ही पलों में मैंने फिर से अपना सारा माल उसके मुँह में छोड़ दिया और वो भी उसे बड़े मज़े से पी गई। फिर हम दोनों ने एक-दूसरे को चाट-चाट कर साफ कर दिया था। अब हम दोनों ही कुछ देर ऐसे ही लेट गए.. इतने में बाहर से मम्मी ने आवाज़ लगाई।
तो दोस्तो, आपको मेरी यह पूर्णतः सच्ची कहानी कैसी लग रही है.. अभी कविता की चुदाई होना बाकी है अगले भाग में आपको कविता की रसीली चूत की चुदाई की दास्तान सुनाऊँगा.. अन्तर्वासना से जुड़े रहिए और पढ़ते रहिए। आप मुझे ईमेल पर जरूर लिखिएगा।
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