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अन्तर्वासना के सभी पाठकों को मेरा प्यार भरा नमस्कार। मेरा नाम राज है.. मैं 26 साल का युवक हूँ। मैं पुणे शहर (महाराष्ट्र) में रहता हूँ। मैं अन्तर्वासना का बहुत पुराना पाठक हूँ.. मैं क्या.. आज कौन अन्तर्वासना का पाठक नहीं है। मुझे अन्तर्वासना पर कुछ कहानियाँ बनावटी लगती है और कुछ सच्ची होती हैं, जो भी हो लेकिन बहुत दिलचस्प होती हैं।
यह मेरी पहली और सच्ची कहानी है.. जो कि मैं किसी के कहने पर लिख रहा हूँ। किस के कहने पर.. वो मैं आपको बाद में बताऊँगा। मैं चाहता हूँ कि मेरी कहानी पढ़ कर आप अपने अमूल्य विचार और सुझाव मेरी ईमेल पर लिखें।
यह घटना 2012 की है.. मैं पुणे में जॉब ढूँढने आया था। जैसे कि सारे लोग यहाँ-वहाँ जाते हैं.. उन सब की तरह मैं भी अपना नसीब आजमाना चाहता था, मेरे मन में कुछ करने की तमन्ना थी.. जोश था.. जुनून था।
आप सब सोच रहे होंगे 2012 की कहानी में आपको आज क्यों बता रहा हूँ? तो आपको बता दूँ.. हेमा अब यूएसए (अमेरिका) में रहती है। कल उसने काफी दिनों बाद मुझे मेल किया और कहा- हम दोनों के बीच जो भी हसीन पल थे.. वे मैं कहानी के जरिए आप सबके बीच रखूँ और इसे अमर बना दूँ। मेरी तरफ से मैं हर एक पल अच्छी तरीके से लिखने की कोशिश करूँगा। ‘आय लव यू हेमा…’
मई 2012 में मैंने अपनी जंग शुरू की.. पहला एक महीना तो जॉब ढूँढने में ही चला गया.. काफी तकलीफ हुई। पर कहते हैं ना.. भगवान के घर देर है.. पर अंधेर नहीं।
आखिरकार मुझे एक एमएनसी कंपनी में जॉब मिल गई।
जैसे कि मैंने आपको बताया मैं पुणे में जॉब ढूँढ़ने के लिए आया था.. यहाँ मैं सब से अनजान था। बड़ी मुश्किल से मुझे स्वारगेट (पुणे का एक एरिया) में एक कमरा किराए पर मिल गया।
जब हर रोज इन्टरव्यू देकर मैं थका हारा कमरे पर आता.. तो बहुत अकेला महसूस करता।
मेरे मकान मालिक ने बताया- यहाँ नजदीक एक गार्डन है.. सारसबाग.. जो कि बहुत ही फेमस है। हर शाम मैं वहाँ जाता और अपना मन बहलाता रहता। वहाँ मेरा मन बहुत खुश हो जाता.. क्योंकि वहाँ बहुत अच्छी हरियाली थी.. पेड़ों की और लड़कियों की भी.. जिनको देख कर मेरी सारी थकान दूर हो जाती थी।
मैंने गौर किया.. वहाँ रोज एक औरत अपनी 5 साल की बच्ची को लेकर आती थी।
एक दिन मैं वहाँ लॉन में बैठा था.. तभी एक बॉल आकर मुझे लगी। जब मैंने मुड़ कर देखा तो वही बच्ची थी। जब मैंने उसका नाम पूछा तो उसने स्नेहा बताया। मैंने बॉल को उठाया और उसके साथ खेलने लगा।
यहाँ मैं एक बात बता दूँ कि मुझे छोटे बच्चे बहुत पसन्द हैं। मैं उन के साथ पूरा दिन गुजार सकता हूँ और चूंकि मेरा स्वभाव भी बहुत अच्छा है.. इस वजह से कोई भी मेरा दोस्त बन जाता है।
स्नेहा की मम्मी हम दोनों को एक साथ खेलते देख खुश नजर आ रही थी और मुस्कुरा रही थी। उसकी मुस्कुराहट क्या थी दोस्तों.. देख कर कोई भी दीवाना हो जाए। वो मुझे एक अलग ही नजर से देख रही थी। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया और स्नेहा के साथ खेलने लगा।
जब हम दोनों खेल कर थक गए.. तब स्नेहा मेरा हाथ पकड़ कर उसकी मम्मी के पास ले गई और अटक-अटक कर कहा- मम्मी.. ये मेरा.. आज से.. बेस्ट फ्रेंड है… मैं रोज इसी के साथ खेलूंगी। स्नेहा की इस प्यारी सी बातों ने हम दोनों को हँसा दिया।
उसकी मम्मी ने उसे गले से लगाया और कहा- अगर ये तुम्हारा बेस्ट फ्रेंड है.. तो आज से ये मेरा भी फ्रेंड है। यह कहते हुए उसने दोस्ती के लिए मेरी तरफ हाथ आगे बढ़ाया।
जैसे ही मैंने उसका हाथ अपने हाथों में पकड़ा.. मुझे तो जैसे एक करंट सा लगा। मैं सोचने लगा कि ये हाथ है या गुलाब की पंखुड़ियाँ.. एकदम नरम-नरम मुलायम हाथ.. उस पर उसकी कातिल नजर.. हय.. मैं तो उसकी खुबसूरत आँखों में खो गया।
अब मुझे उसकी खूबसूरती का अंदाजा हुआ। लाल-लाल टमाटर जैसे गाल.. होंठ थे जैसे कि स्ट्रॉबेरी.. काले घने बाल.. जो कि हवा के झोंके से लहरा रहे थे। वो पूरी खूबसूरत बला थी.. जो भी देखे उसके प्यार में पागल हो जाए।
खैर.. हमारा परिचय हुआ.. उसने अपना नाम हेमा बताया और मैंने राज.. हमने कुछ देर बातें की.. कुछ स्नैक्स खाया.. कोल्ड-ड्रिंक पी और फिर दोबारा मिलने का वादा करके वहाँ से निकल गए।
उस दिन मुझे बहुत सुकून मिला.. काफी दिनों के बाद मुझे कुछ दोस्त जो मिले थे। उस रात में जल्दी सो नहीं पाया.. मैं पूरी रात हेमा के बारे में ही सोचता रहा। हर जगह मुझे वो ही नजर आ रही थी। मैं कल का इंतजार करने लगा और उसकी खूबसूरती को याद करते-करते सो गया।
अब मेरी हर शाम स्नेहा और हेमा के साथ गुजरने लगी.. हम ढेर सारी बातें करते और खूब हँसते.. हम तीनों को एक-दूसरे का साथ काफी पसंद आने लगा। हेमा और मैं अब अच्छे दोस्त बन गए थे। वो मुझसे हमेशा मेरी गर्ल-फ्रेंड के बारे में पूछती.. मैं कहता- मैं एक गरीब घर से हूँ.. लड़कियों पर उड़ाने के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं.. मुझ पर घर की जिम्मेदारियां हैं। आजकल की लड़कियों को ब्वॉय-फ्रेंड उनके खरचे उठाने के लिए चाहिए होते हैं.. उनको प्यार से कोई मतलब नहीं होता। उनको तो बस कपड़े.. पिज्जा.. बर्गर.. स्मार्ट-फ़ोन आदि चीजें चाहिए.. और मैं ये सब नहीं दे सकता हूँ। मेरे पास तो सच्चा प्यार मिल सकता है।
वो हँसने लगी और बोली- अरे पागल.. एक लड़की को और क्या चाहिए.. उसे सच्चा प्यार ही तो चाहिए होता है, पैसा तो आज है.. कल नहीं.. तुम्हारे जैसा प्यार करने वाला नसीब वालों को ही मिलता है। इतना कहते ही वो रोने लगी।
मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैं उसे चुप कराने की कोशिश कर रहा था.. पर उसका रोना बंद नहीं हो रहा था। मैंने अपना हाथ ज्यों ही उसके कंधे पर रखा.. वो मेरे कंधे पर सर रख कर और जोर से रोने लगी।
इधर उसके जिस्म की नजदीकी से मेरी हालत ख़राब हो रही थी.. और मुझे डर भी लग रहा था.. क्योंकि लोग मेरी तरफ घूर-घूर कर देख रहे थे।
मैंने हेमा से कहा- देखो तुम रोना बंद करो.. वरना लोग मुझे गलत समझेंगे और मेरी पिटाई होगी। जैसे-तैसे मैंने उसे शांत किया और पूछा- आखिर मैंने ऐसा क्या गलत कहा कि तुम रोने लगीं?
उसने कहा- राज तुम बहुत अच्छे हो.. तुम्हारा दिल बहुत साफ है.. अगर तुम चाहो तो किसी भी लड़की को खुश रख सकते हो। आज हर लड़की को सिर्फ प्यार चाहिए.. पैसा नहीं.. मेरे पास पैसा तो बहुत है.. पर प्यार नहीं है।
यह सुन कर मैं चौंक गया और मैंने पूछा- क्यों..? तुम्हें तुम्हारे पति से प्यार नहीं मिलता?
उसने बताया उसके पति एक बड़ी कंपनी में बहुत बड़े ओहदे पर है और उन्हें हमेशा काफी दिनों तक विदेश में रहना पड़ता है, उसे मालूम हुआ है कि उधर उनका अफ़ेयर चल रहा है।
उसकी बातों से मुझे यह मतलब समझ आया कि स्नेहा के पैदा होने के बाद से हेमा को उसके पति से पति वाला प्यार नहीं मिला।
उसने आगे बताया- दिन तो जैसे-तैसे निकल जाता है.. पर रात की तन्हाई काटने को दौड़ती है। इतना कहते ही वो फिर से रोने लगी।
मुझे उस पर बहुत तरस आ रहा था और उसके पति के लिए गुस्सा आ रहा था। मैं हेमा के सामने ही.. उसके पति को गालियाँ देने लगा था।
वो मेरे सीने से लग कर रोए जा रही थी, मुझे उसका दर्द महसूस हो रहा था। मैं अच्छी तरह से जानता हूँ कि एक औरत को पति का प्यार ना मिले.. तो वो बिन जल मछली की तरह तड़पती रहती है। औरत के दर्द को और उसके नाजुक से मन को मैं भली-भांति जानता हूँ। मैंने बहुत सारी किताबें पढ़ी हैं।
मैंने उसे समझाया और चुप किया, फिर उससे कहा- मैं तुम्हारा दोस्त हूँ.. अब स्नेहा की और तुम्हारी जिम्मेदारी मेरी है। तुम दोनों को मैं अकेलापन महसूस नहीं होने दूँगा। मैं तुमको और स्नेहा को प्यार की ज़रा सी भी कमी महसूस नहीं होने दूँगा।
यह सुन कर उसका चेहरा खिल गया और उसके चहरे पर मुस्कराहट आ गई। बाद में हमने पाव-भाजी खाई और स्नेहा मुझे ‘बाय’ बोल कर कार में चली गई।
उस रात मैंने काफी देर तक हेमा के बारे में सोचा और बहुत दु:खी हुआ। ऊपर वाला भी क्या खेल खेलता है? इतनी खुबसूरत बीवी को छोड़ कर कोई पति किसी और की बाँहों में कोई कैसे सो सकता है?
मैंने आज तक हेमा के बारे में कभी गलत नहीं सोचा था.. पर उस रात पता नहीं मुझे क्या हुआ था.. मेरे मन में उसके लिए गलत विचार आ रहे थे। उसका चेहरा नजरों के सामने से जाने के लिए तैयार ही नहीं था.. उसका सेक्सी जिस्म मुझे सोने नहीं दे रहा था। उसी को सोच-सोच कर मैं अपने लंड को सहला रहा था। फिर मुझे रहा नहीं गया और हेमा के नाम की मुठ मार कर मैं सो गया।
आप यह कहानी अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
आज कहानी को इधर ही विराम दे रहा हूँ। आपकी मदभरी टिप्पणियों के लिए उत्सुक हूँ। मेरी ईमेल पर आपके विचारों का स्वागत है।
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