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पिछले भाग में आपने पढ़ा:
माया ने जैसे ही देखा कि मैं अकेला ही आ रहा हूँ तो जोर से बोलते हुए कि वो लोग कहाँ है..? वो मेरे पास आई और बोली- अन्दर कुछ गड़बड़ तो नहीं हुई न? तो मैंने उसके गालों को चूमते हुए बोला- आप परेशान न हों.. किसी को कुछ भी शक नहीं हुआ है। ये कहते हुए मैं डाइनिंग टेबल पर बैठ गया।
अब आगे..
फिर मैं वहीं उन दोनों का इंतज़ार करने लगा और आंटी जी भी अपने कमरे में चली गईं.. शायद कपड़े बदलने गई थीं.. क्योंकि उन कपड़ों में काफी सिकुड़न पड़ चुकी थी.. जिसको किसी ने ध्यान ही नहीं दिया.. वरना रूचि तो तुरंत ही समझ जाती।
खैर.. करीब 10 मिनट बाद विनोद आया और उसके कुछ ही देर बाद रूचि भी आ गई।
हम बैठे.. इधर-उधर की बात करते-करते नाश्ता करने लगे.. लेकिन रूचि कुछ भी खा नहीं रही थी.. तो मैंने उसकी तरफ मुस्कुराते हुए उससे पूछा- तुम कुछ ले नहीं रही हो?
तो वो बोली- ये बहुत ही हैवी नाश्ता है.. मुझे कुछ हल्का-फुल्का चाहिए.. क्योंकि कल मेरी तबियत कुछ ख़राब हो गई थी.. पर अब थोड़ा सही है।
यह सुन कर आंटी आईं और बोलीं- सॉरी बेटा.. मैं तो जल्दी में भूल ही गई थी.. तुम बस 1 मिनट ठहरो.. मैं अभी तुम्हारे लिए कुछ लाती हूँ।
वो रसोई में गईं और थोड़ी देर बाद रूचि के लिए थोड़ा पपीता और केला काट कर लाईं और उसे देते हुए बोलीं- लो इसे खा लो.. ये तुम्हारे लिए बहुत अच्छा रहेगा.. इससे पेट में आई हुई खराबी भी सही हो जाएगी।
तब तक मेरा और विनोद का नाश्ता हो चुका था.. तो हम उठे.. और हाथ धोकर करके सोफे पर बैठ गए।
अब मैंने आंटी से बोला- आपने नाश्ता नहीं किया?
तो वो मेरी ओर देखते हुए हँसते हुए बोलीं- अभी जब ये लोग आ रहे थे.. तभी मैंने बड़ा वाला ‘केला’ खाया है और अब इच्छा नहीं है..
यह कहते हुए वे आँख मारकर हँसते हुए चली गईं।
उनकी यह बात कोई नहीं समझ पाया और फिर कुछ ही देर बाद जब रूचि भी अपना नाश्ता करके हमारे बीच आई तो मैंने विनोद से बोला- अच्छा भाई.. अब मैं चलता हूँ.. मुझे नहीं लगता कि अब मेरी यहाँ कोई जरूरत है। अब तो तुम लोग भी आ गए हो.. वैसे तुम लोगों से बिना पूछे तुम्हारे कमरे का इस्तेमाल करने के लिए सॉरी..
तो विनोद बोला- साले पागल है क्या तू.. जो ऐसा बोल रहा है।
मैंने बोला- यार गेस्ट-रूम भी था और मुझे तुमसे पूछना चाहिए था।
तो वो बोला- अरे तो कोई बात नहीं.. वैसे भी हमें बुरा नहीं लगा.. क्यों रूचि तुम भी सहमत हो न?
तो रूचि बोली- अरे कोई बात नहीं.. हो गया.. अब जो होना था.. कहती हुई वो मुस्कुरा उठी।
तो मैंने मन में सोचा चलो भाई अब तो हो चुका जो होना था.. अब तो वो करना है.. जो बाकी है.. यही सोचते हुए मैंने रूचि की आँखों में झांकते हुए कहा- वैसे यार सच बोलूँ इतना मज़ा तो कभी खुद के बिस्तर पर नहीं आया.. जितना यहाँ के बिस्तर में आया है.. यार वास्तव में मज़ा आ गया।
तो रूचि का चेहरा शर्म से लाल हो गया और उसके चेहरे पर मुस्कान छा गई जो कि उसके अंतर्मन को दर्शाने के लिए काफी थी।
तब तक विनोद बोला- साले.. ऐसा क्या हो गया?
मैं बोला- यार यहाँ सुबह जल्दी नहीं उठना पड़ता था न.. इसलिए..
मैंने बात को घुमा दिया.. ताकि विनोद अपना ज्यादा दिमाग न लगाए.. और मैंने बात यहीं ख़त्म कर दी।
फिर मैंने बोला- मुझे मेरा जवाब चाहिए.. जितनी जल्दी हो सके दो..
यह मेरा रूचि से पूछा गया सवाल था.. जो कि कुछ देर पहले ही कमरे पर मेरी और रूचि के बहस से सम्बंधित था।
तो विनोद बोला- कैसा जवाब?
मैं बोला- अब मैं घर जा सकता हूँ.. तो वो बोला- थोड़ी देर में चले जइयो बे.. मैं बोला- नहीं यार.. घर में भी देखना पड़ेगा.. दो दिन से यहीं हूँ.. आंटी के साथ.. अब तुम लोग आ ही गए हो तो..
इतने में आंटी पीछे से आते हुए बोलीं- मुझे बहुत खलेगा राहुल.. तुमने मेरा बहुत ध्यान रखा.. हो सके तो शाम को आ जाना.. तुम्हारी याद आएगी।
तो मैंने रूचि की ओर देखते हुए बोला- आंटी अब मैं आज नहीं आऊँगा.. हो तो आप भी माँ जैसी.. पर माँ नहीं.. पर मैं आपका बहुत सम्मान करता हूँ.. तो अब दुबारा मैं कैसे आ सकता हूँ.. समझने की कोशिश कीजिए..
ये मैंने केवल रूचि को झांसे में लेने के लिए तीर छोड़ा था.. जो कि ठीक निशाने पर लगा.. क्योंकि उसका चेहरा उतर चुका था।
इतने में माया बोली- जब तुम मेरी इतनी इज्जत करते हो तो.. क्या मेरे कहने पर आ नहीं सकते।
तो मैं बिना बोले ही रूचि की आँखों में आँखे डालकर शांत होकर देखने लगा.. जिससे उसे ऐसा लगा.. जैसे मैं उससे ही पूछ रहा होऊँ कि मैं आऊँ या न आऊँ..
तब तक विनोद भी बोला- बोल न यार.. शाम को आ जा..
पर अब भी मुझे शांत देख कर रूचि ने अपनी चुप्पी तोड़ी और बोली- क्यों न आप आज भी यहीं रुक जाएँ.. हम मिलकर मस्ती करेंगे और कल फिर आपको देर तक सोने को मिलेगा।
सच बोलूँ तो यार उसकी ये बात सुन तो मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना ही न रहा।
मेरी ख़ुशी को देखकर रूचि बोली- देखना माँ.. राहुल भैया जरूर मान जायेंगे.. क्योंकि लगता है.. उनको सोने का बहुत शौक है और ये शौक वो अपने घर में पूरा नहीं कर पाते हैं।
तो विनोद बोला- हाँ यार.. चल अब जल्दी से ‘हाँ’ बोल दे.. सबकी जब यहीं इच्छा है.. तो तू आज रात यहीं रुक जा..
तो मैंने भी बोला- चलो ठीक है.. जैसी आप लोगों की इच्छा.. पर मुझे अभी घर जाना ही होगा। फिर शाम तक आ जाऊँगा।
मैं मन में सोचने लगा कि मैंने तो सोचा था कि अब आना ही कम हो जाएगा.. पर यहाँ तो खुद रूचि ही मुझे रुकने के लिए बोल रही है। ये मैं कैसे हाथ से जाने दूँ।
इतने में रूचि बोली- अब क्या सोच रहे हो.. आप जल्दी से आप अपने घर होकर आओ। मैंने बोला- अब घर पर क्या बोलूँगा कि आज क्यों रुक रहा हूँ? तो कोई कुछ बोलता.. उसके पहले ही रूचि बोली- अरे आप परेशान न हों.. मैं खुद ही आंटी जी को फ़ोन करूँगी। तो मैंने बोला- वो तो ठीक है.. पर बोलोगी क्या?
तब उसने जो बोला उसे सुन कर तो मैं हैरान हो गया और मुझे ऐसा लगा कि ये तो माया से भी बड़ी चुदैल रंडी बनेगी। साली मेरे साथ नौटंकी कर रही थी। उसकी बात से केवल मैं ही हैरान नहीं था बल्कि बाकी माया और विनोद भी बहुत हैरान थे।
उसने बोला ही कुछ ऐसा था कि आप अभी अपने घर जाओ और आंटी पूछें कि हम आए या नहीं.. तो आप बोलना मैं जब निकला था.. तब तक तो वो लोग नहीं आए थे और उनका फ़ोन भी स्विच ऑफ था..। फिर आप अपने काम में लग जाना.. जैसे आप सही कह रहे हों और फिर 6 बजे के आस-पास मैं ही आपकी माँ को काल करूँगी और उनसे बोलूँगी कि आंटी अगर भैया घर पर ही हों तो आप उनसे बोल दीजिएगा कि हम आज नहीं आ पा रहे हैं। हमारी ट्रेन कैंसिल हो गई है.. तो हम कल ही घर पहुँच पायेंगे..
मैं उस अभी सुन ही रहा था कि वो और आगे बोली- और हाँ.. वैसे कल की जगह परसों ज्यादा ठीक रहेगा और आपके साथ वक़्त बिताने के लिए दो दिन भी ठीक है न.. तो मैंने भी मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ बोला।
फिर उसने अपनी बात शुरू की- हाँ.. तो अब ये बोलूँगी कि ट्रेन कैंसिल हो जाने से रिजर्वेशन परसों का मिला है.. तो आप प्लीज़ उनसे बोलिएगा कि वो दो दिन घर पर ही रहें.. क्योंकि माँ को अकेले रहने में बहुत डर लगता है और उन्हें कोई शक न हो इसलिए बाद मैं ये भी बोल दूँगी कि पता नहीं क्यों.. माँ और राहुल भैया का फ़ोन भी नहीं मिल रहा है.. इसलिए आप ही उन्हें कह देना। फिर अपनी बात को समाप्त करते हुए बोली- क्यों कैसा लगा सबको मेरा आईडिया?
तो सब ने एक साथ बोला- बहुत ही बढ़िया..
मैंने मन में सोचा- यार इससे तो संभल कर रहना पड़ेगा.. ये तो अपनी माँ से भी ज्यादा चालाक लड़की है।
फिर हमने एक साथ बैठकर चाय पी। इस बीच रूचि बार-बार मुझे ही घूरते हुए हँसे जा रही थी.. पर कुछ बोल नहीं रही थी। जबकि मैं उससे सुनना चाहता था कि वो ऐसा क्यों कर रही है.. पर मुझे कोई मौका ही नहीं मिल रहा था।
इतने में विनोद उठा और वहीं सोफे के पास पड़े दीवान पर लेटते हुए बोला- मैं तो चला सोने.. अब मुझे कोई डिस्टर्ब न करना। मैंने भी सोचा.. चलो अब तो बात करने का मौका मिल ही जाएगा। मैं वक़्त की नजाकत को समझते हुए बोला- अच्छा विनोद.. तुम सो.. मैं चला अपने घर.. फिर शाम को मिलते हैं।
तो बोला- ठीक है।
आंटी भी वहीं बैठी थीं.. वो तुरंत बोलीं- शाम को क्या खाओगे? तो मैंने उनके रसभरे चूचों की ओर घूरते हुए कहा- जो आप पिला और खिला पाओ? तो वो मेरी निगाहों को समझते हुए बोलीं- ठीक है.. देखते हैं फिर क्या बन सकता है। फिर मैंने बोला- अब आप सोचती रहो.. शाम तक.. मैं चला अपनी पैकिंग करने.. घर जल्दी ही पहुँचना पड़ेगा। तो रूचि भी खुद ही बोली जैसे वो भी मुझसे बात करना चाह रही हो, खैर.. वो मुझसे बोली- हाँ भैया.. चलिए मैं भी आपकी कुछ मदद कर देती हूँ ताकि आपका ‘काम’ जल्दी हो जाए।
वो ‘काम’ तो ऐसे बोली थी.. जैसे कामशास्त्र की प्रोफेसर हो और मुझे नीचे लिटाकर ही मेरा काम-तमाम कर देगी। लेकिन फिर भी मैंने संभलते हुए बोला- अरे मैं कर लूँगा.. तुम परेशान न हो। तो बोली- अरे कोई बात नहीं.. आखिर मैं कब काम आऊँगी।
मैंने भी सोचा.. चलो ‘हाँ’ बोल दो.. नहीं तो ये काम-काम बोल कर मेरा काम बढ़ा देगी। फिर मैंने भी मुस्कुराते हुए बोल दिया- ठीक है.. जैसी तेरी इच्छा..
हालांकि अभी मैं उससे दो अर्थी शब्दों में बात नहीं कर रहा था.. पर अपने नैनों के बाणों से उसके शरीर को जरूर छलनी कर रहा था। जिसे वो देख कर मुस्कुरा रही थी। शायद वो ये समझ रही होगी कि मैं उसे प्यार करता हूँ। मुझे वो उसकी अदाओं और बातों से लगने भी लगा था कि बेटा राहुल तेरा काम बन गया.. बस थोड़ा सब्र रख.. जल्द ही तेरी इसे चोदने की भी इच्छा पूरी हो जाएगी।
फिर वो अपने भारी नितम्बों को मटकाते हुए मेरे आगे चलने लगी। उसकी इस अदा से साफ़ लग रहा था कि वो मुझे ही अपनी अदाओं से मारने के लिए ऐसे चल रही है.. क्योंकि वो बार-बार साइड से देखने का प्रयास कर रही थी कि मेरी नज़र किधर है।
साला इधर मेरा लौड़ा इतना मचल गया था कि बस दिल तो यही कर रहा था कि अपने लौड़े को छुरी समान बना कर इसके दिल समान नितम्ब में गाड़ कर ठूंस दूँ। पर मैं कोई जल्दबाज़ी नहीं करना चाहता था.. क्योंकि मेरे मन में ये भी ख़याल आ रहे थे कि हो सकता है कि रूचि अभी कुंवारी हो.. और न भी हो.. पर यदि ये कुवांरी हुई.. तो सब गड़बड़ हो जाएगी और वैसे भी उसकी तरफ से लाइन क्लियर तो थी ही.. ये तो पक्का हो ही गया था कि आज नहीं तो कल इसको चोद कर मेरी इच्छा पूरी हो ही जाएगी।
फिर ये सब सोचते-सोचते हम दोनों कमरे में पहुँचे तो रूचि बोली- भैया आप दरवाज़ा बंद कर दीजिए। तो मैंने प्रश्नवाचक नज़रों से उसकी ओर देखा तो बोली- अरे आप परेशान न हों.. मैं आपकी तरह नहीं हूँ। तो मैंने भी तुरंत ही सवाल दाग दिया- क्या मेरी तरह.. मेरी तरह.. लगा रखा है।
वो बिस्तर की ओर इशारा करते हुए बोली- यही.. जो आप दरवाज़ा बंद करके मेरे बिस्तर और माँ की चड्डी से करते थे।
मैंने भी बोला- मैं कैसे समझाऊँ कि मुझे नहीं मालूम था कि वो तेरी माँ की चड्डी है। उतो वो तुरंत ही बोली- और ये बिस्तर.. मैंने बोला- हाँ.. ये तो मालूम था। तो वो बोली- बस यही तो मैं बोली कि आप दरवाज़ा बंद करो.. मैं आपकी तरह आपका चोदन नहीं करूँगी।
साली बोल तो ऐसे रही थी.. जैसे बोल रही हो कि राहुल आओ जल्दी से.. और मेरा चोदन कर दो और मेरे शरीर को मसलते हुए कोई रहम न करना।
मैंने बोला- फिर दरवाज़ा बंद करने की क्या ज़रूरत है? तो बोली- आप भी इतना नहीं मालूम कि एसी चलने पर दरवाजे बंद होने चाहिए! मैंने बोला- तो ऐसे बोलना चाहिए न.. तो वो हँसते हुए बोली- आप इतने भी बुद्धू नहीं नज़र आते.. जो आपको सब कुछ बताना पड़े.. कुछ अपना भी दिमाग लगाओ।
फिर मैंने दरवाज़ा अन्दर से बंद करते हुए सिटकनी भी लगा दी।
अब बंद कमरे में आगे क्या हुआ जानने के लिए अगले भाग का इंतज़ार कीजिए। तब तक के लिए चूत चिपचिपाती चूतवालियों और खड़े लौड़े वालों को मेरी चिपचिपी चुदाई के रस सा चिपचिपा नमस्कार और मैं उम्मीद करता हूँ कि आगे भी इसी तरह मैं अपने साथ घटी घटना से आपका मनोरंजन करता रहूँगा। मेरी चुदाई की अभीप्सा की ये मदमस्त कहानी जारी रहेगी।
आप अपने सुझावों को मेल के माध्यम से भेज सकते हैं और इसी मेल आईडी के माध्यम से फेसबुक पर भी जुड़ सकते हैं। धन्यवाद। आपका राहुल [email protected]
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