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प्यारे दोस्तो, मैं अन्तर्वासना का बहुत पुराना फैन हूँ.. मैंने अन्तर्वासना की सभी कहानियाँ पढ़ी हैं। मेरे दोस्त भी कहते हैं.. अगर अन्तर्वासना अपने पाठकों को कोई अवॉर्ड दे तो तू फर्स्ट आएगा.. इसके साथ ही मुझे सेक्स का ज्ञान और दूसरों की इज़्ज़त का ख़याल रखने का भी अच्छा ज्ञान है।
मैं पहली बार आप लोगों की सेवा में हाजिर हुआ हूँ.. निवेदन करता हूँ कि यदि मुझसे ग़लती हो जाएँ तो माफ़ कीजिएगा।
मैं गौरव गुप्ता.. सूरत से हूँ और अभी दिल्ली में रहता हूँ.. मेरी उम्र 26 वर्ष है.. मेरे घर में मेरे माता-पिता हैं.. पापा डॉक्टर अशोक हैं.. जो एक कैंसर-सर्जन हैं और मॉम भी एक जनरल फिजिशियन डॉक्टर हैं.. उनका नाम शीतल है। मेरे घर में मेरे एक चाचा हैं.. मेरे चाचा का नाम प्रदीप है.. वो 50 साल के हैं और बहुत व्यस्त रहते हैं। वो दिल्ली में ही डॉक्टर हैं और मेरी चाची भी डॉक्टर हैं.. पर वो डॉक्टरी छोड़ कर समाज-सेवा में ज़्यादा हिस्सा लेती हैं। वो स्वभाव से बहुत ही अच्छी हैं। मेरी चाची का नाम शीला गुप्ता है.. वो 42 साल की हैं लेकिन दिखने में सिर्फ 32 की लगती हैं। उन्होंने बहुत अच्छे से अपने आप को संवार कर रखा है। उनकी यह फेयरनेस.. आजकल की विभिन्न क्रीमों और खुद को संवार कर रखने की लगातार कोशिश का भी नतीजा था।
अब हर अच्छे घर में उम्रदराज औरतें भी अपने आप को बना-ठना रखने में व्यस्त रहती हैं। मैं पेशे से एक डॉक्टर हूँ इसीलिए आप सभी से कह रहा हूँ कि अपने साथी के सम्भोग करते समय अपने स्वास्थ्य का ख़याल रखें।
लड़कियों के लिए मेरी सलाह है कि दिन में 10 गिलास पानी पिएं.. यह आपके चेहरे को खिला देगा और वजन भी कम कर देगा। अपने चेहरे पर से पसीना जरूर पोंछते रहें.. क्योंकि मेरे जैसे लड़के पसीने से भरे चेहरे पर चुम्बन लेना पसन्द नहीं करते हैं।
आपने अक्सर देखा होगा कि डॉक्टर हमेशा साफ़-सुथरे और गुड-लुकिंग मिलेंगे.. क्योंकि वो अपनी केयर करते हैं।
अब मेरी चाची की चुदाई की कहानी पेश कर रहा हूँ। बात तब की है.. जब मैं 20 साल का था और मेडिकल कॉलेज में पढ़ता था।
शायद आप जानते होंगे कि हर डॉक्टर अपने बच्चे को डॉक्टर ही बनाना चाहता है.. इसीलिए मैं भी मेडिकल कॉलेज में सिलेक्ट हो गया। मेरे 12वीं में थोड़े नंबर कम आए थे.. इसीलिए मुझे अपनी मेडिकल की पढ़ाई के लिए दिल्ली जाना पड़ा।
मैं सूरत से नॉएडा शिफ्ट हो गया, वैसे तो मैं नॉएडा में चाचा-चाची के यहाँ रह चुका हूँ.. इसीलिए मुझे कोई परेशानी नहीं हुई। मैं मेडिकल कॉलेज में पहले दिन गया और देखा तो बहुत सी अच्छी लड़कियाँ थीं। उनके पहनावे को देख कर तो मुझे ऐसा लगा कि जैसे मैं कोई फैशन ले कॉलेज में आ गया हूँ।
खैर.. मुझे बहुत अच्छा लगा.. फिर मैं शाम को घर आया तो चाची कहीं बाहर गई थीं। मैं अपने कमरे में गया और अपने लैपटॉप पर ब्लू-फिल्म देखने लगा।
थोड़ी देर के बाद जब दरवाजे की घन्टी बजी.. तो मैंने दरवाजा खोला। चाची आ गई थीं.. आते ही उन्होंने मेरे पहले दिन के बारे में पूछा।
यहाँ मैं यह बता दूँ कि मेरी चाची का कोई बेटा नहीं है.. एक बेटी है.. वो भी विवाहित, जिन्हें मैं पूनम दीदी कहता हूँ। अब घर में मैं और चाचा-चाची ही रहते हैं।
चाची को मैं कई बार अपने सपनों में चोद चुका हूँ.. लेकिन कभी सपनों में चुदाई से आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं हुई क्योंकि वो मुझे अपने बेटे जैसा मानती थीं और हमेशा ‘सन्नी बेटा’ ही कह कर पुकरती थीं।
जहाँ तक मुझे पता है.. उनके मन में भी मेरे बारे में शायद कोई गंदा ख़याल नहीं होगा।
तकरीबन एक महीना बीत गया था कि एक दिन मैं अपने कमरे में एकदम नंगा हो कर मुठ्ठ मार रहा था और ब्लू-फिल्म देख रहा था कि मुझे तभी ख़याल आया कि मैं तो खिड़की के सामने खड़ा हूँ और मैंने नोटिस किया कि सामने वाली आंटी मुझे देख रही हैं।
मेरे तो पसीने छूट गए.. क्योंकि मैं पहली बार ऐसा काम करते हुए पकड़ा गया था। ऐसे वक्त पर सभी को डर लगता है। मैंने फटाक से खिड़की बंद की और अपने कमरे में छुप कर बैठ गया।
शाम को वो आंटी घर आईं.. उन्होंने मुझे पुकारा पर मैंने उनके सामने जाना ठीक नहीं समझा.. क्योंकि वो आंटी मेरी चाची को अच्छे से जानती थीं।
देर रात जब 9 बजे चाचा घर लौटे तो मैं अपने कमरे से बाहर निकला और फटाफट उनके साथ डिनर निपटा कर वापस अपने कमरे में चला गया और जा कर सोचने लगा कि उस आंटी ने चाची को कुछ बताया भी होगा या नहीं.. पर मैं कुछ नहीं समझ पाया।
दूसरे दिन भी मैं देर से उठा.. बाहर देखा तो कोई नहीं था। मैं नहा-धो कर कॉलेज के लिए निकल गया। जैसे ही मैंने घर लॉक किया तो देखा कि वो आंटी मेरे सामने थीं और अपना बरामदा साफ़ कर रही थीं.. लेकिन मुझे देख कर वो अपने घर में अन्दर चली गईं और तेजी से अपना दरवाजा बंद कर दिया।
शाम को मैं घर लौटा तो भी सब सामान्य था.. मुझे यकीन हो गया कि इन आंटी को बस गुस्सा आया है.. उन्होंने मेरी चाची को कुछ नहीं बताया।
उधर घर में चाची भी सामान्य थीं और चाचा भी.. मैं अब बिंदास था..
ऐसे ही दो दिन निकल गए.. मैं अपने काम में मस्त था.. लेकिन अब ध्यान रखने लगा था कि कोई मुझे पकड़ ना ले।
फिर उस दिन शाम को चाचा का कॉल आया कि वो सर्जरी में व्यस्त हैं उन्हें इसी वजह से देर हो जाएगी.. तो चाची ने मुझे डिनर के लिए बुलाया और मैं डिनर टेबल पर आ गया। मैं रसोई में उनकी मदद करने लगा और मैंने सारा खाना टेबल पर सज़ा दिया।
आंटी आज खुश लग रही थीं और मैं भी कि मैं बच गया हूँ।
फिर हम खाना खाने लगे और बातें करने लगे।
चाची- खाना कैसा बना है.. सन्नी?
मैं- बहुत अच्छा.. आपके हाथ से कभी खाना बुरा बनता ही नहीं…
चाची- अच्छा.. तो फिर एक रोटी और लो..
मैं- नहीं आंटी.. अभी पेट भर चुका है।
चाची- अच्छा सन्नी.. एक बात तो बताओ..
मैं- हाँ आंटी..?
चाची- तुममें अकल है कि नहीं?
मैं- क्यूँ आंटी.. मैंने क्या किया है?
चाची- तुम पड़ोस वाली आंटी के सामने क्या कर रहे थे?
मैं तो चौंक ही गया.. मेरी तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था.. कि क्या बोलूँ और क्या करूँ..
फिर मैंने इतने में सोच लिया कि आंटी से बहाने करने में कोई फायदा नहीं.. वो मुझसे ज़्यादा होशियार हैं। मेरी बहानेबाजी को तो पकड़ ही लेंगी..
तो मैंने अपनी गर्दन शर्म से नीचे झुका ली.. मुझे पता था कि अब वो कुछ नहीं कहेगीं.. क्योंकि मैं परिवार में एक ही लड़का था और वो भी मुझे बेटे जैसे मानती थीं।
मैं शर्म से नीचे देख रहा था और कोई जवाब देने की कोशिश नहीं की।
चाची- अरे बोलते क्यूँ नहीं.. तुम नहीं जानते कि तुमने क्या किया या फिर मैं बताऊँ कि तुमने क्या किया?
मैं- सॉरी चाची.. अब आगे से ऐसा नहीं करूँगा..
चाची- देखो सन्नी.. मुझे पता है कि तुम जवान हो गए हो और यह सब लड़के करते ही हैं.. लेकिन हमारी आज सोसाइटी में कुछ इज़्ज़त है.. तुम ऐसे करोगे तो फिर हम सबको जवाब कैसे दे पाएँगे।
मैं- आई एम सॉरी चाची.. लेकिन मैं वो…
चाची- अच्छा.. ठीक है.. सामने वाली आंटी मेरी अच्छी दोस्त हैं.. इसीलिए उसने सिर्फ़ मुझसे बात की.. सोचो अगर तुम्हारे अंकल को इस बात का पता चल गया होता तो?
मैं- चाची.. अब आगे से नहीं करूँगा..
चाची- फिर से झूठ.. ऐसे कहो कि आगे से खिड़की और दरवाजा बंद कर के करोगे.. क्योंकि मुझे पता है कि तुम आख़िर मर्द हो.. समझे…!
मैं- जी चाची..
फिर वो खाना निपटा कर उठीं और सब प्लेट्स वगैरह टेबल से उठा कर रसोई में रखने लगीं। मैं भी उनका हाथ बटाने लगा और जब सब ख़त्म हो गया.. तब मैंने आंटी से कहा।
मैं- चाची.. एक बात पूछूँ?
चाची- हाँ पूछ सन्नी..
मैं- चाची आप मुझसे नाराज़ तो नहीं है ना..
चाची- हम्म.. थोड़ी सी डिस्टर्ब तो हुई थी, लेकिन नाराज़ नहीं हूँ।
मैं- थैंक्स, आंटी कैन आई हैव ए टाइट हग फ्रॉम यू?
चाची- ओके कम..
फिर मैं चाची से ज़ोर से गले लग गया और उन्हें कस कर अपने में समेट ही लिया। यह मेरा पहली बार था जब मैं किसी औरत के गले लगा था। मैंने अपने हाथ आंटी के पीछे कन्धों से लेकर चाची के चूतड़ों तक फेरने लगा। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
आंटी अब मुझे शायद समझ रही थीं.. वो भी मुझसे मानो एकदम टाइट सटी हुई थीं। फिर जैसे ही उन्हें कुछ समझ आया.. वो तुरन्त मुझसे दूर हो गईं।
उन्होंने मुझे देखा और आँखें मुझसे ना मिलाकर वो अपने काम में लग गईं और मुझसे कहा- जाओ तुम जा कर सो जाओ..
मैं वहाँ से अपने कमरे में चला गया। लेकिन मैं अपनी चाची को अपनी फैंटेसी से फिर चोद रहा था और मुझे लगा कि वो बाहर जा रही है.. तो मैं भी उनके पीछे पीछे चल निकला और दरवाजे की आड़ में से मैंने देखा कि वो उस आंटी से बात कर रही हैं।
मैं उनकी बातें सुनने लगा।
वो आंटी पूछ रही थीं- क्या.. तूने अपने भतीजे से बात की या नहीं?
तो आंटी ने जवाब दिया- वो तो बेचारा डर ही गया.. फिर मैंने उसे समझाया कि यह सब सामान्य बात है पर आगे से ध्यान रखा करो.. फिर वो कुछ ठीक लगा..
फिर सामने वाली आंटी ने कहा- जो भी हो पर तेरे भतीजे का हथियार बहुत बड़ा है.. एक बार तो लगा कि बस उसे देखती ही रहूँ.. पर फिर अपनी इज़्ज़त का ख़याल आया और मैं रह गई..
इस पर मेरी आंटी ने कहा- क्या तुम सच कह रही हो?
यह सब बातें सुनकर मुझे लगा कि अब चाची भी मेरे लंड को देखने के लिए आतुर होगीं और अगर वो एक बार मेरा लंड देख लें.. तो शायद मेरा काम बन सकता है।
फिर मैं अपने कमरे में आ गया और चाची को पटाने का प्लान बनाने लगा।
इतने में चाची मेरे कमरे में आईं और कहा।
चाची- अरे सन्नी.. तुम अब तक सोए नहीं.. क्या सोच रहे हो? क्या तुम अब भी उस बात को लेकर परेशान हो? देखो मैंने सामने वाली आंटी से अभी बात की है और उन्हें समझा दिया है.. तुम चिंता मत करो और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो।
मैं- थैंक्स चाची..
फिर इस बार मैं चाची से बिना पूछे ही उनके गले लग गया और उनको पिछले बार से भी ज़ोर से गले लगा लिया। शायद इस बार आंटी अपनी पैरों की ऊँगलियों पर भी उठ कर ऊँची हो गई थीं।
मैं उन्हें सहलाने लगा था.. लेकिन वो भी अब मेरे इस व्यवहार पर शक कर रही थीं.. लेकिन इस बार वे कुछ बोली नहीं और चुपचाप मुझसे सटी रहीं। मैं अपने दोनों हाथों से उनके दोनों कंधे पकड़े और ज़ोर से दबाया और फिर दोनों हाथ चाची के ठीक ब्लाउज पर ले जाकर उनके ब्लाउज को दोनों हाथों से दबाया.. इसलिए उनके मम्मे मेरे सीने में और भी धँस गए।
अब वो मुझे गौर से देखने लगीं.. लेकिन अब भी उन्होंने कुछ कहा नहीं.. वो मुझे देख रही थीं। लेकिन मैंने उन्हें अनदेखा करके अपने दोनों हाथ नीचे ले जाते हुए उनकी कमर को सहलाते हुए अपने दोनों हाथ उनके चूतड़ों पर रख दिए और उतने में ही दरवाजे की घन्टी बजी।
अचानक आंटी को जैसे होश आया और वो खुद को मुझसे छुड़ा कर वहाँ से फटाफट निकल गईं।
बस अपने जवाब और प्यार मुझे ईमेल भेज कर कीजिएगा.. ये मेरी जिन्दगी का एक सच्चा अनुभव आप सब से साझा कर रहा हूँ.. अगर आपका प्रोत्साहन मिला.. तो और भी काफ़ी दिलचस्प हादसे लेकर आप लोगों के लंड खड़े करवाता रहूँगा.. और साथ ही सभी चूत वालियों को ऊँगलियों का मज़ा भी मिलता रहेगा… आपका अपना गौरव
कहानी जारी है।
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