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नमस्कार दोस्तो, मैं अभिषेक.. 2007 से अन्तर्वासना का पाठक रहा हूँ.. बीते सालों में मैंने इस मंच पर लिखी सारी कहानियाँ पढ़ी हैं और आज मैं आप लोगों के सामने अपनी कहानी लेकर आया हूँ.. आशा करता हूँ आप सभी लोगों को पसंद आएगी।
जब तक मैं एक विद्यार्थी रहा.. मैं काफ़ी अंतर्मुखी व्यक्तित्व का लड़का था तकनीकी शिक्षा में डिप्लोमा करने तक मैं 18 साल का हो गया था… ना मुझे सेक्स का कोई ज्ञान था.. ना ही कभी समझने की कोशिश की.. बस मुठ मारना सीख गया था। मैं मुठ मारने में ही खुश था।
डिप्लोमा करने के बाद मैं जॉब की तलाश में दिल्ली आ गया और यहाँ आने के बाद मेरी जिंदगी में बदलाव आने शुरू हो गए। जिंदगी में पहली बार घरवालों से दूर रहकर काम कर रहा था और वयस्क होने के बाद भी सेक्स के मामले में मेरी समझ किसी छोटे बालक के जैसी ही थी।
इसी समय मेरी जिंदगी में वो आई.. जिसको मैं अपना पहले प्यार का आकर्षण कह सकता हूँ.. पर उसकी कहानी फिर कभी बाद में।
आज उसके बारे में बात करूँगा जो मुझे पहली बार सेक्स का पाठ सिखा गई।
दिल्ली में मैं शुरुआत में अपने मामाजी के यहाँ शुरुआत के 6 महीने तक रहा। इस दौरान मैंने एक जॉब ढूंढ ली और एक कन्स्ट्रशन साइट पर सुपरवाइज़र के तौर पर काम करने लगा। यहाँ मेरे साथ काम करने वाले सभी लोग पुरुष थे.. कुछ के परिवार दिल्ली में ही थे.. तो कुछ लोग अकेले ही काम कर रहे थे। मेरी पढ़ाई सिर्फ़ डिप्लोमा तक ही थी.. पर मुझे आगे और पढ़ना था और मैंने ग्रेजुएशन की तैयारी शुरू कर दी थी।
दिल्ली में पार्ट टाइम बी-टेक में एडमिशन लेकर मैं पढ़ने लगा।
जब मेरे साथ काम करने वाले वरिष्ठ लोगों को इसका पता चला तो उन्होंने भी मेरा उत्साहवर्धन किया।
मैं साइट पर काम करने वाले लोगों में उम्र में सबसे छोटा था और उन सभी का व्यवहार मेरे लिए एक छोटे बालक जैसा ही था.. पर जॉब की वजह से मेरे पास पढ़ने का ज़्यादा समय नहीं था, जिसके कारण मैं पढ़ाई में पीछे छूट रहा था।
जब मैंने ये समस्या अपने सीनियर शुक्ला जी को बताई.. तो उन्होंने मुझे अपने पड़ोस की एक लड़की का पता और कॉन्टेक्ट नंबर दिया और उससे मुझे पढ़ने के बात बोलकर उसको दो दिन बाद कॉंटॅक्ट करने के लिए बोला।
दो दिन के बाद जब मैंने उस लड़की से बात की.. तो उसने हर शनिवार और रविवार मुझे पढ़ाई के लिए वक़्त देने की बात की.. जिसे मैंने स्वीकार कर लिया।
शनिवार को मैं तय वक़्त पर उस लड़की के अपार्टमेंट पर पहुँच गया। जब दरवाजा खुला तो कुछ वक़्त के लिए मैं उस लड़की को देखता ही रह गया.. वो तकरीबन मेरे ही बराबर के कद की थी। बेहद खूबसूरत और उसकी आँखें ऐसी.. जैसे उसकी नज़र मुझे अन्दर तक भेद रही हों..।
मैं जड़वत दरवाजे पर खड़ा था कि उसकी आवाज़ ने मेरा ध्यान तोड़ा.. उसने पूछा- तुम्हें शुक्ला जी ने ही भेजा है ना?
मैंने ‘हाँ’ कहा और उसके कहने पर मैं उसके अपार्टमेंट में आ गया। अन्दर दो और लड़कियाँ थीं.. उसने कहा- ये मेरी रूम-पार्ट्नर नीता और अनुष्का हैं और मेरा नाम शिवानी है।
इतना परिचय देने के बाद उसने मुझे अपने कमरे में बुला लिया और हम दोनों कमरे में चले गए। पहले दिन उसने मेरे बारे में सामान्य जानकारी ली और हमने पढ़ाई के विषय में बातचीत की।
फिर फीस आदि तय हो जाने के बाद उसने उसने मुझे दो नियम समझा दिए, पहला मुझे वक़्त का पाबंद रहना होगा और फीस समय पर देनी होगी।
मैंने मान लिया और अगले दिन से हम पढ़ने लगे.. शिवानी गंभीर किस्म की लड़की थी और जितना समय मैं उसके साथ व्यतीत करता गया, मेरे अन्दर शिवानी के लिए आकर्षण जागने लगा।
इस बीच में मुझे पता चलता गया कि वो अपार्टमेंट शिवानी का था। शिवानी की माँ की कई साल पहले मृत्यु हो चुकी थी और उसके पिता दूसरी शादी कर चुके थे और उनका व्यापार भी कनाडा में होने की वजह से वो देश से बाहर रहते थे।
शिवानी अपनी सौतेली माँ से दूर रहने के लिए पढ़ाई के नाम पर दिल्ली में आ गई थी और शुक्ला जी से जान-पहचान और अपना अध्यन मजबूत बनाए रखने के लिए उसने मुझे पढ़ाना मंजूर किया था।
अब तक 6 महीने बीत चुके थे और शिवानी की मुझ पर की गई मेहनत का नतीजा मेरे बढ़िया रिज़ल्ट के रूप में आ रहा था।
मेरा पहला सेमेस्टर ख़त्म होने वाला था इस बीच में नीता और अनुष्का भी मुझ से खुल चुकी थीं और नीता तो मुझसे ऐसे-ऐसे मज़ाक करती थी.. जिसे या तो मैं समझ नहीं पाता या उसका उन्मुक्त स्वाभाव ही वैसा था।
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दिसंबर की सर्दियों के दिन थे.. जब मैं शाम को शिवानी के अपार्टमेंट में पहुँचा.. इम्तिहान होने वाले थे और हम दोनों को पढ़ते हुए समय का पता नहीं चला, जब तक हम उठे रात के दस बज चुके थे।
जैसे ही मैं कमरे से बाहर निकला..
नीता ने मुझे देख लिया और मेरे पीछे से आती हुई शिवानी पर चुटकी ली- क्या बात है जानेमन.. आज तो बड़ा लंबा सेशन चला.. पढ़ रही थीं या पढ़ा रही थीं या अपने ब्वॉय-फ्रेण्ड के साथ मज़े कर रही थीं।
शिवानी कुछ नहीं बोली.. लेकिन मुझे अजीब सा लगा, मैं नीता को जबाब देने ही वाला था कि शिवानी ने मेरा हाथ दबा कर मुझे चुप रहने का इशारा किया.. तो मैं कुछ नहीं बोला।
मैं अब निकलने ही वाला था कि अनुष्का की आवाज़ आई- तुम कहाँ निकल रहे हो.. इतनी सर्दी है.. मैं खाना बना चुकी हूँ.. अब हमारे साथ ही खाना खा लो।
मैं कुछ बोलता.. उसके पहले ही नीता बोली- हाँ.. अब वैसे भी तुम्हें अपने कमरे पर जाने के लिए गाड़ी नहीं मिलेगी.. ऐसा करो कि आज हमारे साथ ही खा लो और आज रात यहीं रुक जाओ।
ऐसा बोलकर उसने शिवानी की ओर देखा और बोली- अगर मैडम की इजाज़त हो तो..!
नीता के बोलने का तरीका ऐसा था कि शिवानी मुस्कुराए बिना नहीं रह पाई और उसने भी मुझे रुकने के लिए बोल दिया।
अब मैं उनके साथ बैठकर खाने लगा। खाने के दौरान नीता सबको छेड़ रही थी अचानक उसने मुझसे पूछा- क्या तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है?
‘हाँ’ या ‘ना’ बोलने की जगह मेरे मुँह से निकला- गर्लफ्रेंड बना कर मैंने क्या करना है?
लेकिन जल्दी ही मुझे पता चल गया कि यह बोल कर मैंने ग़लती कर दी।
दूसरी तरफ नीता की शक्ल ऐसी हो गई.. जैसे उसकी लॉटरी निकल आई हो।
उसके बाद इन तीनों को पता चल चुका था कि मेरा सेक्स-ज्ञान शून्य है। अब नीता ने मेरी खिंचाई शुरू कर दी। मैं दुआ कर रहा था कि जल्दी से खाना ख़त्म हो और नीता मेरा मानसिक शोषण बंद करे।
खाना ख़त्म होने तक नीता मुझे देख कर हँसे जा रही थी और मेरे दिमाग़ में यही चल रहा था कि अब अगले कितने दिनों तक नीता मेरा मज़ाक उड़ाएगी।
खाना खाने के बाद तय हुआ कि अनुष्का शिवानी के कमरे में सो जाएगी और मैं अनुष्का के कमरे में रात बिताऊँगा।
अब 11 बज चुके थे और मैं थका हुआ था.. इसलिए मुझे जल्दी ही नींद आ गई।
रात में अचानक 2:30 बजे मुझे नीता ने जगा दिया और बोली- ओ कुम्भकरण.. जाग जा.. थोड़ी दिक्कत हो गई है.. शिवानी के पेट में दर्द हो रहा है.. शायद उसे हॉस्पिटल ले जाना पड़ेगा।
मैं शिवानी के कमरे में गया तो मुझे लगा.. शायद उसके पेट में गैस बन रही है.. मैं तुरंत रसोई में गया और वहाँ से अजवायन और सेंधा नमक लाकर शिवानी को गरम पानी के साथ दिया।
दस मिनट में शिवानी को आराम आ गया और वो सोने लगी। मैं भी अनुष्का के कमरे में आया और सोने ही वाला था कि तब तक किसी ने कमरे का दरवाजा खटखटाया।
आगे के हिस्सों में मैं अपनी कहानी के आगे लिखूँगा.. आप सभी की प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा। [email protected]
कहानी का अगला भाग : मेरे लण्ड का कौमार्य-2
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