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मेरा नाम संजय चोपड़ा है और पेशे से मैं एक डाक्टर हूँ, रायपुर छत्तीसगढ़ में रहता हूँ।
एमबीबीएस करने बाद सरकारी हस्पताल में नौकरी मिल गई। 3-4 नौकरी करने के बाद रायपुर से करीब 150 किलोमीटर दूर एक गाँव में पोस्टिंग हो गई, गाँव का नाम था खतौली।
गाँव में एक छोटी सी डिस्पेन्सरी थी, एक स्कूल था और करीब 70-80 कच्चे पक्के मकान थे।
एक बड़ी सी हवेली थी ज़मींदार की, जो गाँव का सरपंच भी था।
जब मैं चार्ज लेने पहुँचा तो देखा वहाँ पर डॉ बलविंदर सिंह थे। हम दोनों ने साथ साथ ही एमबीबीएस की थी, पर हम दोनों दोस्त नहीं थे। पर यहाँ पे तो बस वही थे जिन्हें मैं जानता था।
तो चार्ज लेने देने में 1-2 दिन का समय लग गया और रिलीव होने से पहले उन्होंने मुझे गाँव के बारे में कुछ चौंकाने वाले किस्से बताए। गाँव के ज़मींदार ठाकुर राम सरन की पूरे गाँव में पैठ थी, उसका हुकम सब पर लागू होता था।
देखने में तो वो कोई रिक्शा चलाने वाला ही लगता था, पर गाँव में उसका पूरा रोब था।
उसके बाद सबसे ताकतवर थी उसकी बीवी, सब उसको ठुकराइन कहते थे। वो राम सरन से बिल्कुल विपरीत थी, गोरा रंग, मांसल बदन, लंबी चौड़ी, बहुत ही शानदार औरत थी। गाँव में सबसे ज़्यादा हयड्रोसिल की बीमारी थी, जिसमे मर्द के टेस्टीक्ल्स में पानी भर जाता है और वो बहुत फूल जाते हैं।
यह भी पता लगा कि ज़मींदार का हुकम था कि उसके सिवा डॉक्टर किसी और का इस बीमारी का इलाज ढंग से न करे ताकि गाँव की हर औरत जिसके पति को यह बीमारी है, अपनी खुशी से या मजबूरी से उसके पास ही आए।
यह बात भी पता चली कि गाँव की बहुत से औरतें ऐसी भी थी, जो किसी न किसी इलाज के बहाने आ जाती और डॉक्टर को भी भोग लगवा जाती थी।
मतलब यह कि इस गाँव में जिसके लण्ड में दम हो उसके तो पौ बारह समझो।
अब मैं तो बचपन से गोरा चिट्टा, लंबा चौड़ा, कद्दावर नौजवान, बालों से भरा सीना और खास बात यह कि मेरा तो लण्ड भी गोरा था, जबकि हम हिंदुस्तानियों के तो काले होते हैं, पर मेरा काला नहीं था।
जब मैंने चार्ज संभाल लिया तो धीरे धीरे पता लगने लगा। गाँव की कई औरतें और लड़कियाँ, इलाज के बहाने आती और समस्या भी जान बूझ कर ऐसी के मुझे उनके कपड़े खुलवा कर देखने पड़ें। फिर हौले हौले मैं भी चालू हो गया, तो जो ठीक लगती, उसके साथ जो मेरा जी करता वैसा कर लेता। मतलब मेरा सिर्फ इतवार ही खाली जाता था क्योंकि उस दिन डिस्पेन्सरी बंद होती थी। खाना पीना सब कुछ ज़मींदार के घर से आता था। जमींदार के साथ भी अच्छी जान पहचान हो गई थी, उसको 1-2 सेक्स बढ़ाने वाली दवाइयाँ दे दी जिससे वो बहुत ही खुश हुआ।
करीब महीने भर बाद की बात है, मैं डिस्पेन्सरी में बैठा था कि हवेली से सन्देश आया कि ठुकराइन ने बुलाया है।
मैंने अपनी ज़रूरत का सामान उठाया और हवेली को चल पड़ा।
हवेली पहुँच कर जमींदार से मिला उसे सन्दे्श के बारे में बताया, उसने एक औरत को बुलाया और कहा- डॉक्टर साहब को ठुकराइन के पास ले जाओ, और वहीं रहना।
वो औरत आगे आगे चल पड़ी मैं पीछे पीछे! उसकी मटकती चाल मुझे बहुत अच्छी लगी।
‘क्या नाम है तेरा?’ मैंने पूछा।
‘बीमार मैं नहीं हूँ, ठुकराइन है।’ उसने बड़ी बेरुखी से जवाब दिया।
‘तो क्या हुआ इलाज तो मैं तेरा भी कर सकता हूँ।’ मैं थोड़ा आगे बढ़ा।
वो एकदम पलटी- मुझे क्या हुआ है?
अब उसके चेहरे से लगा कि जैसे उसे यह लगा हो कि मैंने उसकी कोई बीमारी पकड़ ली हो।
‘वो तो तुम्हारा चेकअप करके ही पता लगेगा, पर मुझे लगता है के तेरे पिछवाड़े में कोई समस्या है।’ मुझे उसकी चाल दिखी थी और चलते वक़्त अपनी दोनों टाँगें काफी दूर दूर रख कर चल रही थी जैसे दोनों टाँगों के बीच में कुछ अटका हो।
‘आप ठीक कर देंगे मुझे? मेरा नाम बिमला है।’ उसने पूछा तो मुझे लगा कि मेरा तीर सही निशाने पे लगा।
‘हाँ हाँ, किसी दिन डिस्पेन्सरी में आ जाना, मैं देख लूँगा।’ मैं मन में खुश हुआ कि चलो यह साली देखने में सबसे तगड़ी और करारी थी, लो यह भी जाल में आ गई।
खैर इतने में ठुकराइन का कमरा आ गया।
बिमला अंदर गई और पूछ कर आई। ‘जाइये’ उसने कहा तो मैं अंदर गया।
सामने बिस्तर पे एक बहुत ही शानदार औरत गहरी हरे रंग की साड़ी में लेटी हुई थी।
मैं पास जा कर खड़ा हो गया।
‘नमस्ते जी, कहिए कैसे याद किया?’ मैंने पूछा।
तो उसने कहा- कल से बदन में दर्द है, कानों में तार बज रही है, आँखों और साँसों में गर्मी निकल रही है।
मैं समझ गया कि बुखार है, पर थोड़ी फॉरमेलटी तो करनी थी तो स्टेथोस्कोप लगा कर उसके दिल की धड़कन चेक की। बहुत लाजवाब नर्म नर्म बूब्स थे उसके, नब्ज़ देखी हाथ भी बहुत मुलायम थे, शायद कोई काम धाम नहीं करती होगी। फिर पीठ करने को कहा, ब्लाउज़ लगभग बैकलेस ही था, खूबसूरत भरी हुई गोरी पीठ, छू कर मज़ा आ गया।
फिर सीधा होने को कहा, जब सीधी हुई तो सीने से साड़ी हट गई और जैसे ब्लाउज़ पीछे से बड़ा था वैसे ही सामने से भी गला बहुत गहरा था, जिस कारण उसकी आधी से ज़्यादा छातियाँ ब्लाउज़ से बाहर निकली पड़ी थी।
हुस्न की देवी थी समझो।
मैं एक दो दवाइयाँ तो उसे वहीं दे आया, और दवाइयों के लिये कह दिया कि डिस्पेन्सरी से मँगवा लें।
मैं जब कमरे से बाहर आया, तो बिमला ने पूछा- डॉक्टर साहब, मैं कब आऊँ?
अब ठुकराइन का हुस्न देख कर मुझे बिमला बेकार सी लगी, पर मैंने फिर भी कह दिया- कल आ जाना, दोपहर के बाद।
वापिस आते वक़्त वैसे ही मेरे मन में विचार आया, अगर ठुकराइन की ठुकाई करने का मौका मिल जाए तो मज़ा आ जाए, करीब 40-42 की उम्र में भी वो गाँव की किसी भी अल्हड़ लड़की से 20 थी।
अगले दिन करीब ढाई बजे बिमला आई। डिस्पेन्सरी बंद हो चुकी थी, मेरा सहायक लड़का भी चला गया था, मैं डिस्पेन्सरी में अकेला बैठा खाना खा रहा था।
जब बिमला आई तो मैंने उसे बैठने के लिए कहा।
खाना खाकर मैंने उसे पूछा- हाँ बिमला, अब बता, क्या तकलीफ है तुझे?’
वो शर्माते हुये बोली- मुझे लगता है कि मुझे कोई गहरा रोग लगा है।
फिर उसने अपनी सारी तकलीफ मुझे बताई।
‘देख बिमला, इलाज तो मैं तेरा कर दूँगा, पर मुझे देखना पड़ेगा, दिखा सकती है?’ मैंने कहा।
तो वो शर्मा गई पर उसने इंकार भी नहीं किया, मैंने उसे बेड पे उल्टा लिटाया। जब वो लेट गई तो उसकी साड़ी ऊपर सरकाई, क्या शानदार सांवली माँसल और चिकनी जांघें थी।
मैंने उसकी साड़ी पूरी ऊपर उठा दी, वो अपने दोनों हाथों में अपना मुखड़ा छुपाए लेटी थी।
मैंने उसके दोनों चूतड़ खोल के देखे, उसकी गुदा में इन्फ़ैकशन था।
‘यहाँ पे कौन करता है?’ मैंने पूछा।
‘ठाकुर, और कौन!’ वो बोली।
‘अब भी करता है?’
‘नहीं, जब से मुझे तकलीफ हुई है, तब से नहीं, अब औरों से करता है हरामी!’ वो गुस्से से बोली।
‘तो तू क्या चाहती है ठाकुर सिर्फ तुझसे करे?’ मैंने पूछा।
‘नहीं जिस मर्ज़ी से करे, मुझे क्या, अपनी बीवी संभलती नहीं, औरों की बहू बेटियों की इज्जत खराब करता फिरता है।’
‘तो क्या ठुकराइन किसी और से चुदती है?’ मैंने पूछा।
‘किसी एक से, अरे अगर आप पे दिल आ गया तो कोई पता नहीं साड़ी उठा कर आपको भी कह दे चल आ और चोद !’
मुझे उसकी बात सुन कर बड़ी हैरानी हुई कि यह तो बहुत खुल्ला बोलती है।
‘क्या ठुकराइन इतनी प्यासी है?’ मैंने पूछा।
तो बिमला ने मुझे घूर के देखा- क्यों डॉक्टर बाबू? दिल आ गया ठुकराइन पर? वो हंसी।
‘अरे नहीं वो तो मैं वैसे ही पूछ रहा था।’ मैंने कहा।
‘अगर आप कहो तो मैं आपका काम कर सकती हूँ, एक मैं ही हूँ जो जानती है कि ठुकराइन की झांट में कितने बाल हैं, हम्म!!’ उसने आँखें मटका कर पूछा।
‘चल पूछ लेना, अगर वो मान जाए तो!’ मैंने भी खुली ऑफर दी।
‘और मेरा इनाम’ उसने पूछा।
‘तू क्या चाहती है?’ मैंने पूछा।
‘अगर आपका काम बन गया तो क्या आप मुझे यहाँ अपने पास डिस्पेन्सरी में लगवा लेंगे?’ उसने कहा। ‘तू यहाँ क्या करेगी?’
‘आपकी रोटी पकाऊँगी, कपड़े धोऊँगी, साफ सफाई करूंगी और…’
‘और?’ मैंने मुस्कुरा कर पूछा।
‘रात को भी यही रहूँगी, आपकी सेवा करूँगी, बस मुझे उनकी गुलामी से छुटकारा चाहिए।’
मतलब साफ था कि मुझे तो फ्री की बीवी मिल रही थी।
मैंने कहा- ठीक है, मैं ठाकुर से बात करूँगा।
मैंने उसको दवा दी और घर भेज दिया।
एक दो दिन बाद मैं ठाकुर से बात की कि बिमला का इलाज लंबा चलेगा और क्योंकि डिस्पेन्सरी में बहुत सी औरतें आती हैं तो मुझे एक महिला सहायक भी चाहिए।
तो ठाकुर सहर्ष बिमला को डिस्पेन्सरी के काम के लिए और मेरी देख भाल के लिए भेज दिया क्योंकि जब तक वो ठीक नहीं होती थी, तब तक तो ठाकुर के भी काम की नहीं थी।
अगले दिन सुबह ही वो मेरी डिस्पेंसरी में आ गई। मैंने कहा- डिस्पेन्सरी 8 बजे खुलती है और तुम पहले ही दिन लेट आई हो?
मैंने कहा तो हंस कर बोली- माफ कर दो डॉक्टर साब, कल से ठीक टाइम पे आऊँगी।
उसके बाद जैसे मैं कहता रहा वो मेरी मदद करती रही।
पहले मेरा खाना मेरा सहायक लड़का ठाकुर के घर से जाकर लाता था, उसके बाद बिमला ने पकाना शुरू कर दिया।
उसके चलने के अंदाज़ से लगता था कि मेरी दवा से बिमला ठीक हो रही है।
बाद दोपहर जब डिस्पेन्सरी बंद हो गई तो, मैं खाना खाकर लेट गया, और बिमला खाना खा कर डिस्पेन्सरी का समान वगैरह साफ करने लगी।
मैं लेटा हुआ उसे ही देख रहा था, 26-27 साल की अलहड़, सांवला रंग, मांसल बदन, खास बात के बहुत ही खुश मिज़ाज। उसके आने से डिस्पेन्सरी में रौनक सी लग गई थी। अचानक उसके हाथ से गिर के बीटाडाइन की शीशी टूट गई।
वो एकदम से घबरा गई।
मैं उठ कर गया कि साफ करने में उसकी मदद करूँ।
जब मैं उसके सामने जाकर बैठा तो देखा, वो घुटनों के बल बैठी थी, जिस वजह से उसके ब्लाउज़ के गले से उसके आधे से ज़्यादा स्तन बाहर झांक रहे थे।
थोड़ा सा आँचल सामने था अगर उसे हटा दिया जाए तो इसके स्तनों के भरपूर दर्शन हो सकते हैं, यह सोचते सोचते पता नहीं कब मेरा हाथ आगे बढ़ा और मैंने उसके आँचल को साइड को कर दिया।
उसने नज़र उठा कर मेरी तरफ देखा, पर बोली कुछ नहीं, मगर मेरा ध्यान सिर्फ उसकी विशाल साँवली वक्ष रेखा पर था।
‘बिमला, तेरी छातियाँ बहुत बड़ी हैं।’ यह कहते कहते मैंने उसकी वक्ष रेखा पर हाथ फेरा और जितने वक्ष उसके ब्लाउज़ से बाहर दिख रहे थे, उनको सहलाया।
वो सिर्फ मेरी तरफ देख रही थी, पर बोल कुछ नहीं रही थी।
मैं खड़ा हुआ, उसे भी खड़ा किया और अपनी बाहों में भर लिया, उसने भी मुझे अपनी आगोश में कस लिया।
‘ओह, बिमला तू बहुत करारी है, अब मैं रह नहीं सकता, मैं तुझे बहुत प्यार करना चाहता हूँ।’ मेरे मुख से ये सब कुछ अपने आप निकाल रहा था।
वो बोली- डॉक्टर साब, मैं भी दिल ही दिल में आपसे बहुत प्यार करती हूँ।
यह तो सीधा सिग्नल था, मैं उसे अपने बिस्तर पे ले गया।
बिना मेरे कुछ कहे उसने अपनी साड़ी खोली और बिस्तर पर लेट गई।
मैं सीधा उसके ऊपर लेट गया। उसके हाथों की उँगलियों में अपनी उँगलियाँ फंसा कर मैं उसके हाथ खींच के पीछे ले गया और अपने होंठ उसके होंठों पे रख दिये, एक एक करके मैंने उसके ऊपर वाले और नीचे वाले होंठ को चूसा, जब मैंने अपनी जीभ निकाल कर उसके होंठों पर फेरी तो उसने भी अपने मुंह से अपनी जीभ निकली और मेरी जीभ से लड़ाई।
कितनी देर हम दोनों इसी तरह एक दूसरे को चूमते चाटते रहे।
ना जाने क्या क्या बातें करते रहे, बातों बातों में पता चला कि बिमला बहुत छोटी थी तब से ठाकुर की हवेली में काम कर रही थी, मगर जब जवान हुई तो ठाकुर ने अपने साथ लगा लिया और एक रात नशे में उसने बिमला को लड़की से औरत बना दिया।
वो अपनी कहानी सुना रही थी और मैं उसे यहाँ वहाँ चूम रहा था।
चूमते चूमते मैं नीचे उसके बूब्स पे आ गया, उसके ब्लाउज़ से बाहर जितने जितने स्तन दिख रहे थे मैं तो अपनी जीभ से चाट गया और बीच बीच में अपने दाँतो से काट लेता तो वो सिसकारियाँ मारती।
अब तो बर्दाश्त से बाहर हो रहा था, मैंने अपने हाथों से उसके ब्लाउज़ के सभी हुक खोले और ब्लाउज़ उतार दिया।
सफ़ेद ब्रा और पेटीकोट में वो कमाल के सेक्सी लग रही थी।
बिना मेरे कहे उसने अपने ब्रा का हुक खोला और फिर से लेट गई।
मैंने दोनों कंधों से उसके ब्रा के स्ट्रैप पकड़े और उसका ब्रा उतार कर दूर फेंक दिया।
दो बहुत ही खूबसूरत, साँवले रंग के मगर कड़क स्तन, मेरे सामने थे, मैंने दोनों को अपने हाथों में पकड़ा और निप्पल मुंह में लेकर चूसे तो वो तड़प उठी- डॉक्टर साब, काट के खा जाओ इन्हे! और उसने मुझे अपनी बाहों में कस के जकड़ लिया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! मैंने भी खूब चूसे, चाट चाट कर उसकी सारी छाती अपने थूक से गीली कर दी और करीब करीब सारी जगह काट खाया, उसके स्तनों पर हर जगह मेरे दांतों के काटने के निशान पड़े हुए थे।
‘बस डाक्टर, अब और मत तड़पाओ।’ वो अब पूरी तरह से गर्म थी और भट्टी की तरह तप रही थी।
मैंने अपने कपड़े उतारे और उसने अपना पेटीकोट का नाड़ा खोला और उतार कर साइड पर रख दिया।
बेशक उसका रंग सांवला था पर उसका जिस्म बहुत ही शानदार और तराशा हुआ था।
मैंने उसे पीछे से ही अपनी बाहों में भर लिया, मेरा लण्ड उसकी गुदा से जा लगा।
‘ना डॉक्टर साहब, ये मत करना।’ वो बोली।
‘डरो मत मेरी जान, मुझे तुम्हारे दर्द का एहसास है, मैं जो भी करूँगा, बड़े प्यार से करूंगा।’ मैंने आश्वासन दिया।
वो मेरी तरफ घूमी और मुझ से लिपट गई।
उसकी विशाल गोल छातियाँ मेरे सीने से लगी थी। मैंने उसे कंधो से झुका कर नीचे बैठाया, वो बैठी और उसने मेरा लण्ड अपने हाथों में पकड़ा- यह तो बहुत गोरा है, कितना सुंदर है। यह कह कर उसने बहुत बार मेरे लण्ड को चूमा, फिर सुपारा बाहर निकाल कर उसे चाटा और अपने आप मुंह में लेकर चूसने लगी। उसकी चुसाई बिल्कुल किसी पेशेवर रंडी जैसी थी, उसे पता था कि क्या चूसना है, क्या चाटना है।
थोड़ा चुसवाने के बाद मैंने उसे ऊपर उठाया और बेड पे लिटाया, उसने खुद ही अपनी टाँगें फैलाई और पाँव ऊपर उठाकर अपने हाथों में पकड़ लिए, इस तरह से उसकी चूत उभर कर बाहर को बिल्कुल मेरे सामने आ गई।
इससे उसकी काली चूत के होंठ खुल गए और उसके बीच में से उसकी गुलाबी रंग की अंदरूनी चूत भी नज़र आने लगी।
मैंने आगे झुक कर अपने लण्ड को उसकी चूत पे रखा तो वो बोली- चाटोगे नहीं?
मैंने कहा- नहीं, आज नहीं, अब सब्र नहीं हो रहा!
यह कह कर मैंने उसकी गीली चूत में अपना लण्ड घुसाया जो बड़े ही आराम से अंदर चला गया। और दूसरे धक्के में तो मेरा पूरा लण्ड उसकी चूत में समा गया, मतलब ठाकुर ने उसको खूब बजाया था।
जब लण्ड अंदर घुस गया और मैं ऊपर से ज़ोर लगा रहा था तो उसने अपनी टाँगों की मेरी कमर के ऊपर गांठ बांध ली और अपनी मजबूत बाजुओं में मुझे कसके भींच लिया।
‘अब आप कुछ मत करो, सिर्फ भीतर डाल के रखो, बाकी काम मेरा !’
मैंने वैसा ही किया, सच कहता हूँ, मैंने आज तक इतनी ताकतवर औरत पहले कभी नहीं देखी थी, उसी पोज में वो नीचे से कमर उचका उचका कर खुद चुदने लगी। बिना रुके, बिना थके वो धड़ाधड़ नीचे से कमर चला रही थी और मेरा लण्ड ले रही थी, कहने का मतलब मैं खड़ा था और वो खुद चुद रही थी।
कोई 7-8 मिनट तक वो लगातार चलती रही और मैं यही सोच रहा था कि मैं तो सिर्फ ऊपर अपना संतुलन बना के खड़ा हूँ और थक रहा हूँ, यह जो नीचे से इतना ज़ोर लगा रही है, इसको थकावट का नाम निशान नहीं।
मेरा करीब आधा लण्ड वो अंदर बाहर कर रही थी और मुझे तो बस ऐसे लग रहा था, जैसे अपनी चूत से वो मेरा लण्ड चूस रही हो। उसका सारा बदन पसीने से भीग गया था, सर से लेकर पाँव तक वो पसीना पसीना थी मगर उसके जोश में या रफ्तार में कोई कमी नहीं आ रही थी।
‘डॉक्टर साब, मुझे काटो, मुझे मारो, जल्दी !’
मुझे लगा शायद वो झड़ने वाली है, मैंने उसके स्तन पे इतनी ज़ोर से काटा के मेरे दाँत गड़ गए, मैंने उसके दो तीन जोरदार चांटे भी मारे और उसके बाल भी खींचे, जितना वो दर्द के मारे तड़पती थी, उतने ही और जोश से उछलती।
फिर अचानक वो मुझसे लिपट गई, बस तभी मैंने अपना पूरा ज़ोर लगा दिया। मैं उसे चोद रहा था और वो शोर मचा रही थी। उसने अपनी नाखून मेरी पीठ में गड़ा दिये और अपनी जीभ निकाल के मेरे मुँह में ठूंस दी। मैंने उसकी जीभ पे भी काट लिया, और बस तभी वो अकड़ गई, मुझे अपनी जांघों और बाहों से इतनी ज़ोर से कसके पकड़ा कि जैसे मुझे किसी ने बांध दिया हो। मैं हिल भी नहीं पा रहा था। इसी सुखद एहसास में मैं भी झड़ गया, मेरा सारा वीर्य उसकी चूत में झड़ा। कितनी देर वो मुझे अपने में कस के समेटे पड़ी रही। फिर जब उसने मुझे छोड़ा तो मुझे आराम की सांस आई।
इतनी मजबूत, ताकतवर और सेक्स की भूखी औरत मैंने पहले कभी नहीं देखी थी।
‘मान गए तुझे बिमला, तेरे जैसे औरत आज तक नहीं देखी।’ मैंने कहा।
‘क्यों, आपकी बीवी आपको देती नहीं क्या?’ वो बोली।
‘देती है, पर ऐसा सुख नहीं देती जो आज तूने दिया है, कसम से मार डाला तूने तो !’
‘यह आज की बात नहीं डॉक्टर साहब, आज से मैं हमेश के लिए तुम्हारी, 50 साल बाद आकर भी कहोगे तो ऐसे ही मजा दूँगी।’
‘असली मज़ा तो तब जब ठकुराइन को चोदूँगा।’
‘वो मेरी जिम्मेवारी, जितनी जल्दी होगा, ठकुराइन आपके नीचे से न निकलवाई तो बिमला मेरा नाम नहीं।’ [email protected]
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