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प्रेषिका : रत्ना शर्मा सम्पादक : जूजाजी
बस में मेरे ससुर जी एक हाथ पीछे करके अपने एक हाथ से मेरी चूत को साड़ी के ऊपर से ही सहलाने लगे। मुझे बहुत ही आनन्द आ रहा था।मेरे आगे-पीछे दोनों तरफ से मेरे अंगों को मसला जा रहा था।
तभी बस रुकी और देखा कि सब्जी मंडी आ गई। हम उतरे और सब्जी ली और वापस घर आ गए।
रात को ससुर ने मुझे खूब चोदा। फिर एक दिन हमारे गाँव में मेला लगा तो ससुर जी ने मुझे बहुत सी सिंगार की चीजें दिलाईं और मुझे खूब घुमाया।
मुझे ऐसा लग रहा था जैसे हम पति-पत्नी हों।
उन्होंने बैंक में मेरे नाम पर 10000/- एफ़डी भी करवा दी और फिर एक दिन मेरा बेटा राजू उदयपुर से आया और हम कुछ दिन ऐसे ही सामान्य रहे।
पर उन्हीं दिनों एक दिन जब राजू सो रहा था और बाबू जी मेरे कमरे में आ गए और मेरे पास आकर मुझे छत पर ले गए, बोले- रत्ना मेरी जान.. आज चाँदनी रात है आज यहीं छत पर तुम्हें चोदने का मन हो रहा है।
‘बाबू जी.. राजू यहीं है.. यदि उसको पता लग गया तो? नहीं.. नहीं… आप उसके जाने के बाद कर लेना, जो भी करना है।’
‘नहीं रत्ना जानू.. प्लीज़।’
और वे मुझे पागलों की तरह चूमने लग गए। मैं पेटीकोट-ब्लाउज में थी, उन्होंने वो भी खींच कर खोल दिए।
अब मैं कच्छी और ब्रा में थी।
‘बिल्कुल कयामत लग रही हो बहू रानी.. मेरी जान.. चाँदनी रात में चुदाई का मज़ा ही कुछ और है।’
‘कोई देख लेगा बाबू जी.. प्लीज़ नीचे चलो ना..’
‘नहीं बहू.. कोई नहीं देखेगा.. तुम मेरा साथ दो बस..’
मैंने भी वासना के वशीभूत होकर अपनी ब्रा का हुक खोल कर पिंजड़े में बन्द अपने कबूतरों को आजाद कर दिया। मेरे दोनों बोबों को जो मेरी छोटी ब्रा में समा ही नहीं रहे थे, ससुर जी उनको चूसने लग गए और मेरी चूत में उंगली करने लगे।
अब वो भी नंगे हो गए और उनके लंड को मैंने हाथ में लेकर आगे-पीछे करने लगी।
मुझे भी मज़ा आने लगा और मैंने उनका लंड अपने मुँह में लेकर चूसने लगी।
अब मुझे उनका लौड़ा बहुत टेस्टी लगने लगा था, चाँदनी रात में चुदाई के पहले चुसाई का असीम आनन्द मिलने लगा था।
‘आह.. जानेमन रत्ना हय.. बहुत अच्छा चूसती हो.. तुम मेरा लंड आज बहुत मजे से चूस रही हो.. आह्ह…आ।’
फिर उन्होंने मुझे दीवार के सहारे खड़ा कर दिया और अपना लौड़ा पीछे से मेरी चूत में ठूंस दिया और धकाधक चूत मारने लगे।
गली में कुत्ते भौंक रहे थे, रात के एक बज रहे थे और मैं अपने ससुर के साथ चुदाई करवा रही थी।
उस रात ससुर जी ने अलग-अलग आसनों में लिटा कर मुझे 4 बजे तक चोदा।
मैं थक गई और वो भी नीचे आकर अपने कमरे में जाकर सो गए। सुबह सब कुछ सामान्य रहा जैसे कुछ नहीं हुआ हो।
कुछ दिन बाद राजू वापस उदयपुर चला गया, उसकी छुट्टियाँ ख़त्म हो गई थीं।
फिर एक दिन में ससुर जी के साथ खेत पर गई थी। हमारे पास खेत पर एक गाय भी है। जिसका ससुर जी ही दूध निकालते हैं।
‘बहू तुम्हें गाय का दूध निकालना आता है?’
‘नहीं बाबू जी..’
‘अच्छा बहू, मैं सिखाता हूँ तुझे.. इधर आ… बैठ मेरे पास नीचे..”
‘हाँ बाबू जी..’ मैं खेत पर घाघरे चोली में गई थी।
फिर ससुर जी ने मुझे दूध निकालना सिखाया। उसी वक्त बाहर एक बैल किसी दूसरी गाय के ऊपर चढ़ा हुआ था।
मैंने पूछा- बाबू जी, यह बैल गाय के ऊपर क्यों चढ़ा हुआ है?
‘बहू रानी.. तुम भी भोली हो, जैसे मैं तुम्हारे ऊपर चढ़ कर चुदाई करता हूँ ना… वैसे ही यह बैल भी इस गाय की चुदाई कर रहा है। वैसे यह बैल नहीं साण्ड है।’
‘बाबू जी.. बाप रे… इसका तो…!’ मेरे मुँह से अनायास ही निकल गया। फिर मैं शरमा गई।
‘बहू साण्ड का इतना बड़ा ही होता है… मेरे जैसा.. क्यों बहू रानी रत्ना..!’
ससुर जी अश्लील भाव से हँसने लगे।
मैं वहाँ से हट गई, मुझे कुछ कपड़े धोने थे, मैं धोने वाले कपड़े खेत पर लाई थी। खेत पर एक कुँआ है और वहीं एक छोटी सी कुण्डी बनी है जिसमें मैंने पानी भर लिया और मैं कुण्डी के पास बैठ कर कपड़े धोने लगी।
ससुर जी दूसरी तरफ़ देख-रेख करने चले गए।
कपड़े धोते-धोते मैं गीली भी हो गई थी और मुझे पता ही नहीं चला। तभी पीछे से मेरे ससुर जी ने आकर मुझे कुण्डी में धक्का दे दिया जिससे मैं पूरी पानी में भीग गई।
‘बाबू जी, ये क्या किया… आपने तो मुझे गीला कर दिया..!’
‘रत्ना बहू, जिस दिन से तुमको घर पर नंगा नहाते हुए देखा, उस दिन से ही बड़ी इच्छा थी कि तुम्हें नहाते हुए देखूँ।’
‘नहीं.. बाबू जी, यह ग़लत बात है, हम लोग अभी घर पर नहीं… खेत पर हैं। आप घर पर चल कर कुछ भी कर लेना, बस अब इधर कुछ नहीं।’
‘बहू यही एक बार.. जान प्लीज़.. अपने पति की बात नहीं मानोगी?’
‘पति कौन?’
‘मैं और कौन?’
‘आप मेरे पति हो?’
‘हाँ रत्ना..’
‘तब तो ठीक है।’
अब मेरे कपड़े उन्होंने खोल दिए, मेरे तन पर केवल घाघरा और चोली ही थी। तो उन्होंने मुझे अगले ही पल नंगा कर दिया और मुझसे बोले- रत्ना, अब मैं भी नंगा हो जाता हूँ, अब दोनों साथ में ही नहाते हैं।
‘हाँ.. बालू राजा..आ जा!’
हम दोनों साथ में कुण्डी में उतर कर नहाने लगे।
‘रत्ना, तेरे नंगे बदन पर पानी की बूंदें बहुत ही अच्छी लग रही हैं।’
‘बालू आपका भी…’
‘मेरा क्या? रत्ना बोल ना.. इधर खेत पे हम दोनों की सिवा कोई नहीं है, तू खुल कर बोल रानी!’
‘आपका लंड भी पानी में सलामी देते हुए अच्छा लग रहा है।’
उन्होंने एक किलकारी मारी- वाह.. मेरी जान..
मुझे पानी में ही चूमने लग गए।
‘आह रत्ना जान.. कितना गदराया हुआ माल हो तुम.. आह..’
उन्होंने मेरे दूध दबा कर मसलना शुरू कर दिया, मैंने भी उनके लौड़े से खेलना चालू कर दिया।
‘मेरी जान, आज तुमको जी भर कर चोदूँगा.. आह्ह..!’
‘तुम्हें मालूम है बालू, मेरे सनम, मैं कहीं जा रही हूँ क्या… प्यार से करो ना!’
तभी ससुर जी ने मेरी टाँगें अपनी कमर से लपेट लीं और अपना लंड मेरी चूत में पेल दिया।
‘आह.. उमाआ.. क्या किया अन्दर भी पेल दिया….आहह..’ तभी उन्होंने मुझे कुण्डी के दोनों तरफ़ पाँव करके संडास करते वक़्त जैसे बैठते हैं वैसा बैठा दिया और पानी में ही मेरी चुदाई करने लगे। मैंने तो आज तक ऐसा कोई आसन नहीं देखा या सुना था।
मेरा ससुर तो वात्सायन का भी गुरु निकला।
ससुर जी ने मुझे 20 मिनट तक खूब पेला, मुझे बहुत मज़ा आया।
फिर उन्होंने मुझसे कहा- ले चूस मेरा लंड.. आज इसका पानी तुझे पीना होगा।
उन्होंने मेरे मुँह और बोबों पर वीर्य छोड़ दिया। मुझे बहुत मज़ा आया।
फिर हम लोग घर पे वापस आ गए। फिर ऐसे कुछ दिन गुज़रते गए। कहानी जारी रहेगी। आपके विचार व्यक्त करने के लिए मुझे लिखें।
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