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प्रेषिका : रत्ना शर्मा सम्पादक : जूजाजी
मैंने देखा कि ससुर जी मुझे घूर रहे थे, शायद उन्हें मेरा नंगा बदन अच्छा लगा था।
मुझे तो शर्म आ रही थी कि ससुर जी ने आज से पहले तो मेरी तरफ़ ऐसे नहीं देखा था। फिर मैं खाना देकर अपने कमरे में आ गई।
कुछ देर बाद मुझे खबर लगी कि सासू जी बीमार हो गई हैं तो वे जेठ जी के घर पर ही रुक गई थीं और यहाँ हम दोनों ससुर और बहू ही थे।
फिर कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा, ना मैंने कुछ कहा और ना मेरे ससुर जी ने कुछ कहा।
मैं अपनी वासना की आग में जलने लगी थी और दिनों-दिन मेरी व्याकुलता बढ़ती ही जा रही थी।
मेरे मोहल्ले का एक शादीशुदा लड़का है जो 28/29 साल का होगा, उसका नाम नन्दू है, वो मुझे लाइन मारने लग गया।
जब मैं छत पर कपड़े सुखाने जाती हूँ या बाहर सब्जी लेने जाती हूँ तो वो मेरी तरफ़ देख कर मुस्कुराता है और इशारे करता है, कभी आँख मारता, कभी हवा में चुम्मी फेंकता।
मैं उसको थोड़ा पसन्द करने लग गई थी और उसके इशारों का जवाब देने लग गई थी।
हमारे मोहल्ले की बहुत लोगों और औरतों को भी मालूम हो गया था कि मेरे और नन्दू के बीच कोई चक्कर चल रहा है।
उधर नन्दू मुझे कभी मुझे चिठ्ठी भी भेजने लगा था।
कुछ दिन बाद नवरात्रि आ गई थीं। हमारे घर के बाहर ही मोहल्ले में डांडिया खेलते हैं और मेरे ससुर जी को ऐसे सामजिक कामों में बहुत दिलचस्पी है। हमारे यहाँ डांडिया में सब अलग-अलग समूह बनाते हैं। छोटे बच्चों का अलग, बड़े बच्चों का अलग, बड़ी उम्र के लोगों का अलग और औरतों का लड़कियों का अलग, मतलब सब अपने-अपने समूह में डांडिया खेलते हैं।
मेरे पति यहाँ नहीं रहते हैं तो मैं भी थोड़ा खुल कर रहने लग गई थी। वो होते तो मुझे डांडिया नहीं खेलने देते। लेकिन ससुर जी थे, जो कुछ नहीं कहते थे।
मैं गरबा में नाचने जाती थी और उधर नन्दू भी आ जाता था और कभी-कभी तो मेरे ससुर जी के सामने गरबा में मुझे आँख मार देता। मुझे भी ये सब अच्छा लगने लगता, मैं हल्के से मुस्कुरा देती थी। गरबा में औरतों को घाघरा और चोली पहनना पड़ता है। मैं भी वही पहन कर डांडिया खेलती हूँ। मैं घाघरा-चोली में बहुत खूबसूरत लगती हूँ। यह बात मुझे मेरे ससुर जी और नंदू ने भी कही थी, क्योंकि मेरे बोबे उस चोली में पूरे नहीं समा पाते थे और मेरी गोरी-गोरी टाँगें भी नंगी ही दिखती थीं, घाघरा घुटनों तक ही आता था।
अब नवरात्रि का आखिरी दिन आया और मैं घाघरे के नीचे जाँघों तक का पजामा पहनना भूल गई थी, तो जब मैं घूमर पर गरबा कर रही थी, तो घाघरा ऊपर हो जाने से मेरी कच्छी और मेरे चूतड़ सबको दिख गए और सब लोग और आवारा लौंडे मुझ पर सीटियाँ मारने लगे। मुझे मालूम ही नहीं था कि मैंने पजामा नहीं पहना हुआ है, मैं समझती रही कि ये सब मेरे नाच की वाहवाही कर रहे हैं।
फिर जब मेरा नाच खत्म हुआ, तो सब लोग मुझे ही घूर रहे थे। उस नाच पर मुझे 2000 रुपये का इनाम भी मिला था।
तभी नन्दू ने मुझे देखा और मुझे पास के कच्चे मकानों के पीछे आने का इशारा किया और मैं भी वहाँ चली गई।
वहाँ पर बहुत अँधेरा था क्योंकि पीछे की तरफ़ जंगल आ जाता है। तो मैं जैसे ही वहाँ पर गई, नन्दू ने मुझे गले से लगा लिया और मुझे पागलों की तरह चूमने लगा।
वो कभी मेरे गालों पर, कभी गर्दन पर, कभी मेरे होंठों पर चूमने लगा और उसने मेरे बोबों पर भी अपने होंठ लगा दिए।
उसके इस तरह से मुझे मसलने से मैं भी पागल हो गई थी और मैं भी उसका साथ देने लग गई।
उसने मेरे घाघरे का नाड़ा ढीला किया और मेरी कच्छी के ऊपर हाथ घुमाने लगा और उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी पैन्ट में डाल दिया। फिर मैं भी उसके लंड को पकड़ कर मसलने लगी।
वो मेरे बोबों को भंभोड़ता रहा और अगले ही पल वो भी नंगा हो गया और मेरे घाघरे में घुस गया और नाड़ा बाँध दिया। अब ऐसा लग रहा जैसे वो घाघरा हम दोनों ने पहन रखा हो।
मैंने कहा- नन्दू पागल हो गए हो क्या… कोई आ जाएगा तो क्या कहेगा.. मेरे ससुर जी को पता लग जाएगा।
तो उसने कहा- कुछ नहीं होगा मेरी जान रत्ना… तुम बहुत मस्त औरत हो आज तो तुमने गरबा में अपनी टांगों और चूतड़ों के जलवे दिखा कर सबको घायल कर दिया है। देखना आज सब अपने लंड पैन्ट में पकड़ कर तुम्हारे नाम की मूठ मारेंगे। मैंने कहा- क्यों?
तो उसने कहा- तुमने पजामा नहीं पहना था।
तभी मुझे अहसास हुआ और मुझे उस बात पर बहुत देर तक दु:ख भी हुआ कि मेरे बारे में सब गाँव वाले क्या सोच रहे होंगे।
इतने में मेरे ससुर जी आ गए और बोले- रत्ना बहू… तुम यह क्या कर रही हो?
वहाँ पर अभी जो कुछ लोगों को दिखाया, वो क्या कम था… जो यहाँ इस बदमाश के साथ रंगरेलियाँ मनाने आ गई हो। तुम हमारे परिवार की इज्जत मिट्टी में मिलाने पर तुली हो।
डर के मारे मेरी जान सूख गई। मैंने जल्दी से घाघरे में नन्दू को निकाला और चुपचाप गर्दन नीचे करके घर पर आ गई और जो कुछ हुआ उसके बारे में सोचने लगी।
इतने में ससुर जी आ गए, वो बहुत गुस्से में लग रहे थे। आते ही उन्होंने कहा- रत्ना बहू मेरे कमरे में आओ।
मैं नीचे गई, उस वक्त रात के 12 बज रहे थे और मेरे पैरों तले ज़मीन खिसकती जा रही थी।
ससुर जी ने कहा- बहू.. क्यों किया ये सब.. और कितने दिन से चल रहा है। इधर आओ.. अब अपने कपड़े यहाँ पर मेरे सामने उतारो।
तो मैंने शरमाते हुए ससुर जी को कहा- बाबू जी ऐसा कुछ नहीं है, मैं ऐसी-वैसी नहीं हूँ।
उन्होंने कहा- तो तू कैसी है? जो मैंने अभी वहाँ पर नन्दू के साथ देखा है वो क्या था। अपने कपड़े उतार रत्ना बहू जरा मैं भी तो देखूँ तू कैसी है।
मैंने कहा- बाबू जी.. आपके सामने कैसे उतारूँ.. मुझे शर्म आती है।
फिर उन्होंने कहा- बहू मैं तुझे एक बार नंगी देख चुका हूँ, मुझसे शरमाने की कोई ज़रूरत नहीं है।
मेरे मुँह से ऐसे ही निकल गया- कब बाबू जी?
तो उन्होंने कहा- बहू जब तू अपने नंगे बदन को आईने में निहार रही थी और नंगे ही भाग कर अपने कमरे में ऊपर गई थी, तब मैंने तुमको पूरा नंगा देखा था। जब मैं गोदाम में तुम्हारी कच्छी-ब्रा पहन कर अपना लंड हिला रहा था।
मैं तो शर्म से मरी जा रही थी। मैंने कभी इस तरह से ससुर जी से बिना घूँघट के बात नहीं की थी और वो इस तरह से सब बोले जा रहे थे।
मैंने कहा- आपको कैसे पता लगा कि मैं गोदाम के पास थी? तो उन्होंने कहा- बहू मुझे पता था तू खिड़की से मुझे चुपके से देख रही हो और मैंने भी सोचा कि तुम्हें भी मेरा लंड अच्छा लग रहा होगा, इसलिए देख रही हो।
तो मैं अवाक थी और मुझे उस दिन के नंगे बाबू जी याद आने लगे उनका हवा में लहराता मूसल मेरी आँखों के सामने घूमने लगा।
मैंने कहा- बाबू जी उस दिन तो मैं कपड़े और तौलिया लाना भूल गई थी।
तो ससुर जी ने कहा- अच्छा हुआ कि तुम कपड़े और तौलिया नहीं लाई थीं बहू… नहीं तो मैं अपनी इतनी सेक्सी बहू को नंगी कैसे देख पाता, उस वक्त बहू तुम बहुत मस्त माल लग रही थीं।
मैंने कहा- बाबू जी… ये माल क्या होता है? अब मैं भी उनके साथ खुल कर कामुक बातें करने लग गई थी।
‘बहू… जो अच्छी बोबों वाली हो, जिसकी उठी हुई अच्छी गाण्ड हो, उनको अच्छी माल वाली बोलते हैं।’
मैंने कहा- इसका मतलब मेरे पास ये सब हैं?
‘तुम्हारे सब आइटम अच्छे हैं बहू.. अब अपने कपड़े खोलो और मुझे एक-एक करके ठीक से देखने दो।’ ससुर जी ने अपना लौड़ा सहलाते हुए मुझे एक आँख मारते हुए कहा।
मैंने भी लंड की खुराक पाने की चाहत में अपने कपड़े खोल दिए। अब मैं अपने ससुर जी के सामने ब्रा और कच्छी में खड़ी थी। ससुर जी भी पूरे नंगे हो गए थे।
मेरे मुँह से निकल गया- बाप रे… बाप..!
कहानी जारी रहेगी। आपके विचार व्यक्त करने के लिए मुझे लिखें।
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