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हसबैंड वाइफ सेक्स स्टोरी में प्शें कि जब मेरी बीवी को बच्चा होने वाला था तो डॉक्टर ने सेक्स के लिए मना कर दिया. ये दिन कैसे बीते?
मेरी प्रिय साईट अन्तर्वासना के प्रिय पाठको और पाठिकाओ, नमस्कार! आशा है आप सब पूर्ण स्वस्थ और सुखी होंगे.
जैसा कि हम सब जानते हैं कि यह कोरोना महामारी का समय है और हमें अत्यंत सावधान और सजग रहने का है. बाकी तो सब आप लोग जानते ही हैं कि क्या करना है क्या नहीं करना है. तो सब लोग अपना अपना और अपने परिवार का ध्यान रखिये.
पिछले मार्च 2020 से लगभग चार माह के लॉकडाउन का अब तक का समय आप सबके साथ साथ मुझ पर भी बहुत भारी रहा; समय काटे नहीं कटता था. अन्तर्वासना की कहानियां, दैनिक अखबार और टी.वी. पर कोरोना कोरोना का रोना … बस इन्हीं सब में समय कट रहा था. साथ ही प्रशंसकों के सन्देश भी मुझे कुछ लिखने को प्रेरित कर रहे थे. पर मन था कि स्थिर ही नहीं हो रहा था कि लिखूं तो क्या.
हम लेखकों की भी अपनी मजबूरियां हैं अपनी सीमाएं हैं. जब कुछ लिखने बैठते हैं तो कई बार दिमाग चलता ही नहीं है. कागज पेन सामने होता है पर कुछ सूझता ही नहीं है कि लिखें तो क्या. सतही कहानियां जैसे कि मेरा नौ इंच का लंड उसकी सील बंद चूत में समा गया और वो चीख उठी और बेहोश हो गई फिर होश में आकर वो सहयोग करने लगी; वो अनगिनत बार झड़ चुकी थी, रातभर उसकी चुदाई की, लंड को सुबह उसकी चूत से निकाला, फिर मैंने उसकी गांड भी मारी पर मेरा निकल ही नहीं रहा था इत्यादि … इस टाइप फूहड़ सेक्स कथाएं लिखना मुझे गंवारा नहीं; जब तक बात दिल से न निकले, तब तक लिखने का आनंद ही नहीं आता. इसी ऊहापोह में लॉकडाउन का समय गुजर रहा था.
लिखने का मन तो हो रहा था सो बार बार किसी थीम को मन में लाता पर कुछ जम नहीं पा रहा था.
तभी एक दिन मन में आया कि क्यों न मेरे पहले बच्चे के पैदा होने के टाइम की वो रसीली बातें वो घटनाक्रम एक कहानी के रूप में लिखा जाय.
उन दिनों की उन घटनाओं को गहराई से सोचा तो बात जंच गई और उन्हीं सब बातों को लेकर यह कहानी गढ़ने की शुरुआत की. तो यह कहानी है जब मेरी मेरी पत्नी पहली बार गर्भवती हुई और मेरे बेटे अभिनव (अदिति बहूरानी का पति; अदिति तो सबको याद ही होगी न) का जन्म होना था.
मित्रो, इस कथा को कहने से पहले एक बात और कहना चाहूंगा कि आप सब इस कथा को धीरे धीरे रस ले ले कर पढ़ियेगा. आप सब को इसमें वो सब रस मिलेंगे जिनका आनंद लेने के लिए आप यहां अन्तर्वासना पर आते हैं. तो लीजिये हाजिर है मेरी ताजा कहानी: कड़कती बिजली तड़पती चूत
सरकारी विभाग में प्रतिष्ठित पद पर मेरी नौकरी लगने के एक वर्ष के भीतर ही मेरा विवाह शर्मिष्ठा से हो गया. उन दिनों मेरी पोस्टिंग उत्तरप्रदेश के शहर बरेली में हुआ करती थी. अपने सरकारी फ्लैट से सुबह साढ़े नौ बजे घर से निकलना होता था और देर शाम लौट पाना हो पाता था. पर जिंदगी मस्त चल रही थी.
दिन भर ऑफिस में ईमानदारी से अपनी ड्यूटी निभाना और शाम ढलते ही घर लौट कर अपनी नयी नवेली दुल्हन के आगोश में रातें कटती थीं.
जब विवाह हुआ तो शर्मिष्ठा की उम्र बाईस साल के करीब थी. बी एस सी करते ही उनका विवाह मेरे संग हो गया. मैं भी उन दिनों पच्चीस बरस का था. लंड में अतुलित बल हुआ करता था. डिनर के बाद कितने राउंड चुदाई करके सोना हो पाता था कुछ कहना मुश्किल है.
शर्मिष्ठा हालांकि सर्वगुण संपन्न धार्मिक है, सभी तीज त्यौहार होली दिवाली एकादशी प्रदोष इत्यादि सब विधि विधान से करती है. और चुदाई के टाइम बिस्तर में मेरे संग गजब की चौकड़ी भी भरती थी. नित्य पूजा पाठ, सुघड़ गृहणी और रसोई की रानी के अलावा चुदाई ही उनका प्रिय शगल हुआ करता था.
मुझे शर्मिष्ठा से सिर्फ एक ही शिकायत थी कि वो न तो मेरा लंड चूसती थी और न ही अपनी चूत चाटने देती थी. या अपने पिछवाड़े में कुछ करने देती थी. बाकी उसे जैसे चाहो वैसे रगड़ लो. उनके पारिवारिक संस्कारों का आदर करते हुए मैं भी चलो ‘जो है सो ठीक है’ सोच कर मस्त रहता था.
पर ये सब बातें इस कहानी का विषय नहीं हैं. इस कहानी की शुरुआत तब हुई जब शर्मिष्ठा को पहला बच्चा होने वाला था. जब वो प्रेग्नेंट हुई तभी से उसने अपना ध्यान रखना शुरू कर दिया था. रेगुलर मेडिकल चेकअप कराती थी, घूमना फिरना टहलना, डॉक्टरनी की बताई हुई सारी बातें फॉलो करती थी वो!
आप सब तो जानते ही हैं कि ये डॉक्टर लोग चुदाई करना तो प्रेगनेंसी होने के छह सात हफ़्तों बाद बंद करवा देते हैं. सो उन दिनों मुझे बिन चूत के रहना पड़ रहा था.
ऐसे ही एक दिन मैं शर्मिष्ठा को डॉक्टरनी के पास चेकअप करवाने ले कर गया था. “शर्मा जी, अब आप अलग सोने की आदत डाल लीजिये. नो सेक्स फ्रॉम नाउ ऑनवार्डस!” वो बोलीं. मैंने भी सहमति में संजीदगी से सिर हिलाया.
उस दिन घर लौटते ही शर्मिष्ठा ने भी साफ साफ ऐलान कर दिया कि अब सेक्स बिल्कुल भी नहीं करना है, डिलीवरी के बाद डॉक्टरनी से सलाह के बाद ही दूंगी आपको.
मैं उसे लाख समझाता कि धीरे धीरे कर लूंगा, तेरे पेट पर वजन नहीं डालूंगा बस चूत में आधा लंड घुसा कर धीरे धीरे अन्दर बाहर कर के पानी निकाल लूंगा बस. पर वो माने तब न! हां बहुत जोर देने पर कभी कभार मेरे लंड की मूठ जरूर मार देती थी. और कहती रहती थी कि जल्दी निकालो अपना पानी; मेरे तो हाथ दुख गये आपका ये हिलाते हिलाते! पर लंड तो लंड है. जब वो अपने क्लाइमेक्स पर पहुंचेगा तभी तो रस छोड़ेगा न!
मित्रो, अपने आने वाले पहले बच्चे की खुशी तो मुझे भी बहुत थी. और जल्दी ही बाप बन जाने का रोमांच भी था. डॉक्टरनी की सलाह मानते हुए मैंने अपने बेडरूम में एक फोल्डिंग पलंग अपने लिए बिछा लिया था और शर्मिष्ठा से अलग सोने लगा.
पत्नी जी के प्रति मेरी जिम्मेवारियां बढ़ गयीं थीं. उनका रूटीन चेकअप करवाना, सुबह सुबह उन्हें वाक पर ले जाना, उनके खाने पीने का ध्यान रखना इत्यादि. दिन ऐसे ही कटते जा रहे थे. और फिर डिलीवरी का समय भी बहुत नजदीक आता जा रहा था.
अगस्त का महीना शुरू हो चुका था. शर्मिष्ठा की डिलीवरी की ड्यू डेट 20 अगस्त के आस पास थी. अपने हिंदी महीनों के हिसाब से सावन का महीना चल रहा था. बरेली में उन दिनों खूब घनघोर बरसात होती, बिजली कड़क के चमकती और मस्त ठण्डी हवाओं के झोंके तन मन में वासना की आग लगा देते थे.
आप सब तो जानते ही हैं कि इन बरसातों में जब तेज घनघोर बारिश हो रही हो बिजली कड़क रही हो तो उस टाइम चूत मारने में कितना आनंद मिलता है. ऐसे मौसम में मुझे चूत की कमी बहुत खलने लगती थी. पर मैं कर भी क्या सकता था सिवाय अपना हाथ जगन्नाथ करने के; क्योंकि वो ही तो एकमात्र सहारा बचा था.
उन दिनों मेरी सासू माँ का फोन शर्मिष्ठा के पास लगभग रोज ही आता और वो अपनी मम्मी से बात करके अक्सर मुझे फोन पकड़ा देती कि लो मम्मी को आपसे बात करनी है.
मुझे सास जी हिदायतें देती रहती, तरह तरह के इंस्ट्रक्शनस देतीं मुझे. कभी कभी एक ही बात को दस दस बार रिपीट करतीं. मैं तो बस हां मम्मी जी ओके मम्मी जी करता रहता था.
शर्मिष्ठा की डिलीवरी की ड्यू डेट नजदीक आती जा रही थी. और मैं सोचने लगा था कि अपनी मम्मी को जाकर ले आऊंगा. जब मैंने शर्मिष्ठा से ये बात कही तो वो बोली कि उनकी मम्मी यानि मेरी सास को लेकर आना; मैंने सोचा चलो ये भी ठीक है. शर्मिष्ठा अपनी माँ के होने से ज्यादा अच्छा ज्यादा सेफ महसूस करती.
तो मैं अपनी ससुराल जाकर अपनी सासू माँ को लिवा लाया और साथ में मेरी एकलौती साली निष्ठा भी चली आई.
इन दोनों के आने से घर में रौनक और चहल पहल बढ़ गई और शर्मिष्ठा भी खूब खुश रहने लगी. क्यों न रहती जब उसे अपनी माँ और छोटी बहन का संग मिल गया था.
मेरी कुंवारी साली निष्ठा उन दिनों अपने ग्रेजुएशन के सेकंड इयर में थी. निष्ठा देखने में शर्मिष्ठा से भी सुन्दर है. शर्मिष्ठा से थोड़ी सी लम्बी 5’4″ ऊंचाई और छरहरा सा सुतवां बदन; न मोटी न दुबली पतली, भोला सा सुन्दर गोल मासूम चेहरा; उजला गोरा रंग, भरा भरा सा निचला रसीला होंठ, तीखे नयन नख्श और लम्बे रेशमी घने गहरे काले काले बाल.
यूं जीजा साली का रिश्ता तो हंसी मजाक छेड़छाड़ वाला होता है, ‘साली आधी घरवाली’ टाइप का. पर ये सब बातें मेरे स्वभाव में निष्ठा के प्रति कभी नहीं रहीं. अतः अपने स्वभाववश मैं अपनी साली से अत्यंत सामान्य संतुलित शालीन व्यवहार ही करता था, बात भी उतनी करता जितनी जरूरत हो बस.
मैं अपनी शादी के बाद कुछ ही बार ससुराल गया होऊंगा वो भी एक दो दिन के लिए. तो इस तरह निष्ठा से मेरी कोई प्रगाढ़ता या कंटीन्यूटी नहीं थी. कभी उससे बात होती भी तो उसकी पढ़ाई को लेकर या उसके बनाए खाने की तारीफ़ करने को लेकर.
मेरी शादी के बाद जब पहली होली आई थी तब मैं पहली बार ससुराल गया था. गया क्या था रीती रिवाज के अनुसार जाना ही पड़ा था. अब साली से तो होली खेलनी ही थी; उन दिनों निष्ठा इंटरमीडिएट के फर्स्ट इयर में थी, छुई मुई सी शर्मीली लगी थी मुझे वो.
जब होली खेलने की नौबत आई तो वो डरी सी, घबराई हुई सी आँगन में बैठ गयी थी और अपना सिर उसने घुटनों में छिपा लिया था. जैसे कह रही हो कि लो जीजू खेल लो होली.
सच कहूं तो निष्ठा से ज्यादा असमंजस में तो मैं खुद था और जैसे तैसे होली खेलने की इस रस्म को निभा कर चलता बनने की इच्छा थी मेरी.
रस्म अदायगी की नियत से मैंने बाल्टी में रंग घोला और निष्ठा के ऊपर उड़ेल दिया और अलग हट गया. न तो मैंने अपने हाथों में रंग लगाया न ही निष्ठा को कहीं से भी टच किया.
कुछ देर निष्ठा यूं ही भीगी बिल्ली सी बनी बैठी रही फिर उसने खड़े होकर मुझे एक बार असमंजस भरी निगाहों से देखा; जैसे उसने जो जो एक्स्पेक्ट किया होगा कि जीजू संग होली ऐसी होगी वैसी होगी. पर वैसा कुछ भी नहीं हुआ था.
फिर उसने मुट्ठीभर गुलाल मेरे सिर पर डाल दी और मुंह पर भी मल दी और फिर मुझे बांकी चितवन से देखती हुई निकल ली जैसे आंखों ही आंखों से कह रही हो कि जीजू आप तो एकदम लल्लू टाइप के हो. इस तरह हम जीजा साली का यूं ही फॉर्मल टाइप का रिश्ता हुआ करता था.
अब बात उस दिन की जिस दिन शर्मिष्ठा को लेबर पेन हुआ था. दोपहर के कोई तीन बजने वाले थे कि शर्मिष्ठा के पेट में दर्द शुरू हो गए और वो कराहने लगी.
सासू माँ बोलीं- दामाद जी, जल्दी से इसे हॉस्पिटल ले चलो, डिलीवरी बस होने ही वाली है. मैंने आननफानन में टैक्सी का इंतजाम किया और हम लोग हॉस्पिटल चल दिए.
टैक्सी में शर्मिष्ठा, निष्ठा और सास जी पिछली सीट पर थे जबकि मैं अपनी बाइक से टैक्सी के पीछे पीछे चल रहा था. बाइक मैंने इसलिए ले ली थी कि पता नहीं कब क्या जरूरत पड़ जाये.
रिमझिम रिमझिम बरसात हो रही थी और मौसम बहुत ही मस्त लग रहा था. मैं भीग रहा था पर मज़ा भी बहुत आ रहा था भीगने में. मैं इन्हीं ख्यालों में खोया था कि पता नहीं लड़का होगा या लड़की! जो भी हो हमने कभी कोई जांच नहीं करवाई थी कि आने वाला बच्चा लड़की होगी या लड़का, जो भी भाग्य से होगा वो ख़ुशी ख़ुशी मंजूर था हमें.
शाम के पांच बजे के करीब शर्मिष्ठा को हॉस्पिटल में भर्ती कर लिया गया. समय गुजरता रहा, शाम हुई शाम से रात हो गयी शर्मिष्ठा की प्रसव पीड़ा बढ़ती जा रही थी. वो अब कराहने के स्थान पर जोर जोर से हाय हाय करने लगी थी.
हम लोग लेबर रूम के बाहर ही बेंच पर बैठे इन्तजार कर रहे थे कि खुशखबरी अब आई कि तब आई. घर से आते समय मैं हल्की बारिश में भीगता हुआ आया था तो अब मुझे जुकाम महसूस होने लगा था और छींके आनें लगीं थीं.
रात्रि साढ़े आठ के करीब मुझे भूख भी लगने लगी थी तो मैं हॉस्पिटल की कैंटीन से कुछ फ़ास्ट फूड्स और चाय ले आया और हम तीनों ने चाय नाश्ता किया. और फिर डिलीवरी होने का इंतज़ार करने लगे.
बाहर तेज घनघोर बरसात हो रही थी और बादलों की गरज डरा रही थी.
इसी तरह टाइम होते होते रात के दस बज गए फिर ग्यारह बज गए पर डिलीवरी नहीं हुई. उधर शर्मिष्ठा दर्द के मारे लगातार चिल्ला रही थी. सुना था कि पहले बच्चे के साथ स्त्री का दूसरा जन्म होता है, मुझे भी वही लग रहा था. सच कहूं तो मुझे बहुत डर लगने लगा था और घबराहट भी होने लगी थी कि कुछ अनहोनी न घट जाय.
मैं मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था कि हे भगवान इस बार शर्मिष्ठा का दर्द हर लो. आगे से मैं कभी इसे हाथ भी नहीं लगाऊंगा और हमारा बच्चा सकुशल हो जाय बस. साथ ही यह भी सोच रहा था कि जब ये कोमलांगी मेरा लंड ही आराम से नहीं झेल पाती तो इसकी टाइट चूत में से बच्चे का बड़ा सा सिर फिर बाकी शरीर कैसे बाहर निकल पाएगा? पर मुझे पता था कि प्रकृति की अपनी लीला है वक़्त आने पर सब संभव हो जाता है.
इस तरह वो रात बहुत भारी थी मुझ पर.
रात के डेढ़ बजे एक नर्स घबराई हुई आई और उस ने मुझे दवाई का एक पर्चा दिया और बोली- आपके पेशेंट के साथ कुछ इमरजेंसी है. आप ये दवाइयां और इंजेक्शन अभी ला के दो. हमारे स्टॉक में खत्म हो गए हैं.
बाहर घनघोर बारिश बदस्तूर जारी थी. मैं तो पहले ही भीगा था. पर दवाई लेने तो जाना ही जाना था.
मैंने बाइक स्टार्ट की और चल दिया दवा लेने. मुझे पता था कि रेलवे स्टेशन के पास एक मेडिकल स्टोर रातभर खुला रहता है. मैं उस बरसात में आंधी तूफ़ान की तरह बाइक दौड़ाता वहीं जा पहुंचा और दवा लेकर वैसी ही स्पीड से वापिस अस्पताल आया इसके बाद भी आने जाने में मुझे सवा घंटा के करीब लग गया.
डॉक्टरनी और नर्स मेरा ही वेट कर रहीं थीं उन्होंने झट से दवाइयां मुझसे ले लीं और फिर लेबर रूम में जा घुसीं. शर्मिष्ठा के दर्द से छटपटाने की आवाजें तब भी लगातार बाहर आ रहीं थीं. इधर मेरी तबियत भी खराब हो रही थी. लगातार भीगते रहने के कारण मुझे छींकें आने लगीं थीं और कंपकंपी सी महसूस होने लगी थी साथ ही बदन तपने लगा था.
लेकिन उस टाइम मुझे अपनी परवाह बिल्कुल नहीं थी. बस यही चिंता सताए जा रही थी कि शर्मिष्ठा की डिलीवरी सकुशल हो जाय बस.
सुबह के चार बजने में दस मिनट थे जब लेबर रूम से बच्चे के रोने की आवाजें सुनाई दीं और कुछ देर बाद एक महिला अटेंडेंट ने आकर बताया कि बेटा हुआ है और जच्चा बच्चा दोनों स्वस्थ हैं. इस शुभ समाचार के साथ ही मेरा टेंशन ख़त्म हो गया. आधे घंटे बाद मेरी सास भी लेबर रूम में जाकर शर्मिष्ठा और बच्चे को देखकर आ गई और हमें बताया कि सब ठीक है चिंता की कोई बात नहीं है. शुभ समाचार सुनकर जैसे मेरे मन से कोई बड़ा बोझ उतर गया.
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