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दोस्तो, यह कहानी उन सबकी कहानी है जिन्होंने अपने अपोज़िट सेक्स वालों से स्कूटी चलानी सीखी है या सिखाई है। स्कूटी सीखना कितना मज़े का काम है, यह मैं आप को बताता हूँ।
बात उस समय की है जब एक्टिवा का जन्म होने को था और लोग स्कूटी पर मजा लेते थे। उस वक्त मैं बी.कॉम. के दूसरे वर्ष में था। मेरे पड़ोस मे एक लड़की रहती थी और वो 12वीं में थी। उम्र 19 के आस-पास थी, पर लगती कॉलेज की लड़कियों जैसी मस्त गोल-मटोल, अपनी माँ की तरह उस के बड़े-बड़े मम्मे, मस्त गोल-गोल कूल्हे, ऊँचाई साढ़े 5 फुट की रही होगी, पर देखते ही लण्ड खड़ा हो जाए.. ऐसी थी।
पड़ोसी होने के कारण मेरी मम्मी और उसकी मम्मी सहेली थीं। मेरी मम्मी टीचर होने के वजह से 10.30 को घर से निकल जाती थीं और 5 बजे आती थीं। पिताजी का भी यही टाइम था मैं कॉलेज से आकर घर पर अकेला रहता था और उन दोनों माँ-बेटी के बारे में सोचता रहता था कि बाहर से इतनी जबरदस्त है तो अन्दर कितनी मस्त होगी…! वैसे कुछ काम होता था, तो आंटी मुझे ही बुलाती थीं और मैं ही एक ऐसा लड़का था जो उनके घर कभी भी आ-जा सकता था।
एक दिन शाम को नेहा और उसकी मम्मी हमारे घर आईं, बातों-बातों में आंटी बोलीं- नेहा के 12वीं पास होने पर उसके पापा उसे स्कूटी दिलानी वाले हैं!
मैं भी चुपके-चुपके नेहा को ताक रहा था। ऐसा लग रहा था कि उसे पकड़ कर अभी चोद दूँ क्योंकि मैंने कई बार उसके घर उसके पोज देखे थे, पर उसे हाथ लगाने में डर रहा था कि कहीं आँखें सेंकना भी बंद ना हो जाएँ। उन लोगों की बातों में तय हुआ कि मैं नेहा को स्कूटी सिखाऊँ।
मम्मी ने मुझसे पूछा- तुम नेहा को स्कूटी चलाना सिख़ाओगे? तो मैंने झट से ‘हाँ’ कर दी और बोला- 2-4 दिन में ही सिखा दूँगा!
फिर मैं भी नेहा के पास बैठ कर बातें करने लगा, दूसरे दिन सुबह स्कूटी सीखने जाना तय हुआ। फिर वो दोनों घर चली गईं, पर मैं रात भर सो नहीं पाया कि कल नेहा के पीछे बैठूँगा और उसे कैसे सहलाऊँगा!
यह सोचते हुए मैं सो गया था। दूसरे दिन सुबह 6 बजे मैं तैयार हो गया और स्कूटी निकाल ही रहा था कि नेहा आ गई। उसने लाल रंग की नाइट पैंट और पीले रंग की टी-शर्ट पहनी थी।
मैं तो उसे देखता ही रह गया, उसके कपड़ों से उसकी ब्रा और पेंटी हल्की-हल्की दिख रही थी। हम दोनों ने एक-दूसरे को गुड-मॉर्निंग कहा।
फिर मैंने उसे कहा- तुम पीछे बैठो आगे खाली सड़क पर तुम चलाना! वो बोली- ठीक है!
और मेरे पीछे चिपक कर बैठ गई। मुझे ऐसा मज़ा आया कि क्या बताऊँ.. उसके मम्मे तो मेरे पेट पर चिपके ही थे, उसकी बुर भी मेरे कूल्हों पर घिस रही थी। मेरा तो टाइट हो गया।
फिर मैंने ब्रेक दबाया हो तो वो और चिपक गई। मेरा तो हाल-बेहाल था। फिर एक सुनसान सड़क पर मैंने उसे आगे आने कहा, वो स्कूटी से उतरी।
मैंने उससे कहा- लो पकड़ो इसे! वो बोली- आप भी पकड़े रहना! उस वक्त पहली बार मेरा हाथ उसके हाथ से छुआ। अब मैं भी उसके पीछे चिपक कर बैठ गया।
पीछे चिपकते ही मेरा लण्ड उसके चूतड़ों से पीठ तक चिपक गया। फिर मैंने उसके दोनों हाथों पर हाथ रखते हुए कहा- यह लेफ्ट वाला ब्रेक है और राईट वाला एक्सीलेटर है। इसके नीचे के बटन को दबाओ तो स्टार्ट होगी ब्रेक दबाओ तो गाड़ी रुकेगी।
उसने वैसा ही किया स्कूटी स्टार्ट हो गई। ‘अब धीरे-धीरे एक्सीलेटर घुमाओ..!’
एक्सीलेटर घुमाते वक्त मेरा हाथ उसके हाथ पर था और मेरा लण्ड उसके पीठ और मेरे बीच दब रहा था। फिर मैंने हाथ उसके कन्धे पर इस तरह पकड़ा कि ऊँगलियों से उसके मम्मे दब सकें, पर जैसे ही मैंने हाथ रखा वो एकदम झिझक सी गई।
फिर मैं बोला- हाथ सीधे रखो!
फिर जब टर्न लेनी थी, मैंने फिर उसके हाथ पर हाथ रखा और गर्दन पर अपनी ठुड्डी रखते हुए यू-टर्न लिया। फिर हाथ से उसके मम्मों को हल्के से दबाते हुए कन्धे पकड़े रहा।
उसने कुछ भी आपत्ति नहीं जताई तो मैंने हाथ उसकी जाँघों पर रख दिए।
अब तो उसके बदन में आग लगी थी, मुझे पता चल गया, मैंने उससे पूछा- नेहा, तुम्हारा कोई बॉय-फ्रेण्ड है?
तो उसने कहा- होता तो उसी से ना सीखती?
फिर मैंने उसकी कमर को पकड़ा और कहा- नेहा, तुमने मेरा बुरा हाल कर दिया है!
वो अनजान होकर बोली- वो कैसे?
मैं बोला- कल बताऊँगा.. अभी 7.30 हो गया है, चलना चाहिए, बाकी कल सिखाऊँगा! वो बोली- आज बहुत मज़ा आया! मैं बोला- कल और ज्यादा आएगा!
फिर हमने सीट चेंज़ की, वो मेरे पीछे इस तरह बैठी और हाथ इस तरह रखे, जैसे मेरा लण्ड पकड़ने की कोशिश कर रही हो।
घर के पास आते ही वो पीछे सरक गई। सामने आंटी खड़ी थीं। मुझे देख कर बोलीं- नेहा ने चलाया? मैं बोला- आंटी आप देखना जल्दी ही नेहा ही चलाते हुए लाएगी! उसे छोड़कर मैं घर आ गया।
पूरा दिन पूरी रात कल की सुबह का इंतज़ार कर रहा था। सुबह मैंने बिना अंडर-गारमेंट के पैंट पहना। वो भी लूज़ वाला और टी-शर्ट..!
मैं स्कूटी निकाल ही रहा था कि देखा नेहा उसके गेट पर खड़ी ही वाइट लैगीज़ और पिंक टी-शर्ट पहने खड़ी थी।
पास आते ही उसने गुड मॉर्निंग कहा।
मैंने भी वैरी गुड-मॉर्निंग कहते हुए पीछे बैठने का इशारा किया।
उसने भी आज अंडर-गारमेंट नहीं पहना था, क्योंकि पास आते ही मुझे उसके निप्पल दिख रहे थे।
कल की तरह उसकी पेंटी की किनारी नहीं दिख रही थी।
अब वो मेरे पीछे इस तरह चिपक कर बैठी कि उसकी बुर की फांकें मेरे चूतड़ को घिस रही थीं और चूची पीठ से टकरा रही थी।
मेरा लण्ड टेंट की तरह खड़ा हो गया। अब खाली रोड पर मैंने उसे आगे आने को कहा। मैं नहीं उतरा क्योंकि मेरा लण्ड खड़ा होने की वजह से मैं पीछे सरका। वो उतर कर आगे आई, उसने मेरे टेंट नुमा लण्ड को देखा फिर अपने चूतड़ को मेरे पीठ से घिसते हुए इस तरह बैठी कि लण्ड उसकी बुर के नीचे आ सके। उसके बैठते ही मेरा लण्ड और आण्ड दब गए।
दबते ही मैंने उसके मुलायम-मुलायम चूतड़ों को दोनों हाथों से उठाते हुए इस तरह रखा कि वो मेरे लण्ड पर आराम से बैठ सके।
उसकी बुर की फांकें मेरे लण्ड को महसूस हो रही थीं और वो भी अपनी बुर आगे-पीछे हिला रही थी।
मेरा लण्ड उसकी बुर के सामने तक आ रहा था। मैंने अपने दोनों हाथों से इस तरह उसके कन्धे के नीचे पकड़ा कि उसके कन्धों पर अंगूठा और ऊँगलियों में मम्मे आ रहे थे।
मैंने मम्मों को हल्के-हल्के दबाया फिर सीधा हाथ उसके पीठ पर रखते हुए नीचे सरकाया। अब मेरा हाथ उसके बुर और नाभि के बीच घूम रहा था और दूसरे हाथ से मम्मे दबा रहा था और ठुड्डी को उसकी गर्दन पर रख दिया था।
वो तो मानो पागल हो उठी। मैंने सीधा हाथ उसकी बुर की तरफ़ सरकाया, तो हल्के-हल्के झटके लगे और अब उसकी बुर मेरे हाथ में थी। उसकी फांकें मोटी होने के कारण हाथ में आ रही थीं।
मैंने बुर पर हाथ घुमाया, वो गीली हो गई थी।
उसने स्कूटी रोकी और मेरे लण्ड को पकड़ा और बोली- मुझे ये चाहिए।
मैं बोला- इसे भी तू चाहिए!
वो बोली- आज दोपहर को मैं एक मैथ्स का सवाल लेकर तुम्हारे घर आऊँगी..!
मैंने सोचा कि लड़की तो मुझसे भी आगे है। उसके बोलते ही मैं समझ गया कि बुर का जुगाड़ हो गया और उसको कसके दबाया।
मेरा लण्ड तो कुतुब मीनार की तरह खड़ा था, मैंने उससे पूछा- दोपहर को पक्का आओगी ना?
वो बोली- तुमसे ज्यादा मुझे इंतज़ार ही दोपहर का..!
फिर वो पीछे बैठी और मेरे पैंट में हाथ डाल कर लण्ड पकड़ लिया, बोली- कितने दिनों से सोच रही थी लण्ड पकड़ने को..!
अब हम घर के पास आए वो पीछे सरक कर बैठ गई।
दोपहर को मैं घर पर अकेला ही रहता था। उसके इंतज़ार में मैंने दरवाज़ा उड़का कर रखा था और बेड पर लेटे-लेटे कब आंख लग गई, पता ही नहीं चला। क्योंकि दो रातों से नेहा को चोदने के विचार से नींद नहीं आ रही थी।
अचानक मेरे लण्ड पर कुछ महसूस हुआ। मैंने आँख खोल कर देखा, नेहा मेरे लण्ड को चूसने में लगी थी। मेरा लण्ड मिसाइल की तरह खड़ा था और नेहा उसे चूस रही थी। मैंने एक हाथ उसके सर पर रखा, वो एकदम खड़ी हो गई।
मैं बोला- नेहा चूसती रहो, बहुत अच्छा लग रहा है!
नेहा फिर से चूसने लगी। मैंने अपने हाथ उसके चूतड़ों पर घुमाते हुए उसके लैगीज़ को नीचे सरकाया, तो मस्त गोल-गोल गोरे-गोरे चूतड़ देखते ही मज़ा आ गया। मैं उसकी चूतड़ों से बुर तक हाथ घुमा रहा था। वो मेरा लण्ड चूस रही थी।
मैं बोला- नेहा ऊपर आ जाओ.. 69 के पोज में चूसते हैं..!
वो झट से लैगीज उतार कर 69 के पोजीशन में ऊपर आ गई। अब हम एक-दूसरे को मस्त चूस रहे थे, उसकी बुर की फांकें मोटी-मोटी थीं, पर उसका छेद काफ़ी छोटा था। ऐसा लग रहा था कि अभी तक उसने उसमें ऊँगली तक नहीं घुसाई है।
अब मैंने पूछा- नेहा पहले कभी चुदी हो क्या?
वो बोली- नहीं, पर आज चुद कर रहूँगी!
वो उठ कर साइड में आ गई और बोली- लो अपना लण्ड मेरी बुर में डाल दो! मेरा बुर चोदन कर दो!
मैं झट से उसके ऊपर हुआ, उसका टॉप उसके गले तक उठाया, दोनों दूद्दू हाथ में लिए और लण्ड उसकी बुर में डालने लगा।
पर बुर इतनी टाइट थी कि लण्ड घुस नहीं रहा था।
बुर पर लण्ड की गर्मी आते ही वो तड़प उठी बोली- अन्दर डालो ना जल्दी से..!
पर लण्ड घुस नहीं रहा था। मैं घुटनों के बल बैठा और लण्ड पर थूक लगाया। एक हाथ से बुर की फांकें खोलीं, दूसरे हाथ से लण्ड को उसकी बुर के छेद पर बराबर से रखा, उसने भी मेरी कमर को अपनी टांगों से पकड़ा। फिर सब सैट हो जाने के बाद मैंने एक जोरदार धक्का मारा!
लण्ड बुर में घुस गया। पहले तो उसने कस कर मुझे दबाया.. फिर चिल्लाई- बाहर निकाल साले.. इससे बहुत दर्द हो रहा है!
मैंने उसके कंधे पकड़ कर और ज़ोर से अन्दर घुसाया।
वो बोली- प्लीज़ बाहर निकालो… दर्द सहा नहीं जा रहा है!
उसकी आँख से आँसू निकल आए।
मैंने लण्ड बाहर निकाला तो देखा मेरा लण्ड गाजर की तरह लाल-लाल हो गया था और उसकी बुर से खून निकल रहा था। बुर लॅप-लॅप कर रही थी।
वो उठ कर बैठी, बुर का हाल देखकर बोली- दूर रहो मुझसे..!
और रोने लगी।
मुझे तो पता था कि इसकी सील टूट गई है।
मैंने दिलासा देते हुए कहा- चुप रहो थोड़ी देर में ही खून बंद हो जाएगा।
फिर उसको एक गिलास पानी दिया।
पानी पीकर फिर बोली- तुम लण्ड धोकर मेरे लिए व्हिस्पर ला दो!
मैंने सोचा इसे इस हाल में रख कर व्हिस्पर कैसे ला दूँ। फिर याद आया और मम्मी की अलमारी से एक पीस लाकर दिया और बोला- कल लेके आना ताकि वापस रख सकूँ!
पर व्हिस्पर लगाती कैसे, उसने तो पेंटी पहनी नहीं थी।
फिर मैंने उसे अपनी फ्रेन्ची दी पहले तो वो हिचकिचाई फिर बोली- ला दे.. लगाना तो पड़ेगा ही..!
बेडशीट उसके ब्लड से लाल हो चुकी थी।
वो बोली- आंटी पूछेगी नहीं कि बेडशीट लाल कैसे हुई..! मैं बोला- मैं धो लूँगा, क्योंकि नाइट-फेल होने पर मैं ही बेडशीट धोता हूँ।
फिर वो अपनी बुक और कॉपी लेकर चली गई।
दूसरे दिन सुबह हम फिर स्कूटी लेकर निकले। आज वो कल की तरह चिपक कर नहीं बैठी थी। आगे आई, पर कुछ बोल नहीं रही थी।
मैंने दुद्धू दबाते हुए पूछा- क्या हुआ? बोली- ब्लड रुका नहीं, और दर्द बहुत हो रहा है!
मैं बोला- दोपहर को आना मैं देखता हूँ, मेडिकल स्टोर से गोली लाकर देता हूँ।
मेरा लण्ड तो खड़ा हो गया था, बोला- इसे शांत नहीं करोगी क्या? वो बोली- देखती हूँ दोपहर को।
वो दोपहर को नहीं आई तो शाम को मैं ही उसके घर गया, पूछा- आई क्यों नहीं? वो बोली- हिम्मत ही नहीं हुई!
मैंने उसे अपने लण्ड पर ही बिठाया और बोला- इसको शांत कब करोगी? वो बोली- दर्द कम होने दो.. फिर करेंगे! मैं बोला- आगे दर्द हो रहा है तो पीछे डलवा ले या मेरा माल चूस कर निकाल दे…!
वो बोली- ठीक है आज आती हूँ।
फिर हम घर आ गए। दोपहर को वो आई आते ही मैंने उसे कस कर पकड़ लिया। उसने भी मुझे पकड़ा फिर हम चिपक कर ही मेरे पलँग पर आ गए। उसकी लैगीज, मेरा पैंट टी-शर्ट उतर गया। उसकी कुरती गले तक उठाई और उस के ऊपर चढ़ गया। अपना लण्ड हाथ में पकड़ कर उसकी बुर में घुसाया, लण्ड घुसते ही वो फिर बोली- दर्द हो रहा है निकालो..!
मैंने लण्ड निकाला और उसके बुब्बू चूसने लगा। फिर उसके चूतड़ों को हाथ से दबाए जा रहा था। बोला- पीछे डालूँ क्या?
तो वो घूम कर घोड़ी बन गई। मैं भी उसके पीछे डालने लगा। लण्ड को थूक लगाया और गाण्ड के छेद पर रख कर भीतर धकेला, लण्ड का सुपारा उसकी गाण्ड के छेद में घुस गया। वो दर्द के मारे चिल्लाई और गाण्ड को जम कर दबा लिया। मैं शान्त था, वो भी थोड़ी देर में शान्त हुई।
मैं बोला- बाहर प्रेशर लगाओ और ढीला छोड़ो.. फिर मैं लण्ड को धीरे-धीरे अन्दर दबाते गया। पूरा लण्ड अन्दर जाने पर ही मैं रुका।
फिर जब पीछे खींच रहा था, तो वो बोली- रहने दो.. हिलो मत..!
मैं लण्ड उसके गाण्ड में डाल कर उसके मम्मे दबा रहा था। वो गाण्ड को खींच-खींच कर लण्ड का माल निकालने में लगी थी और मेरा गिरने पर आया। मैंने दो-चार धक्के मारे और उसकी गाण्ड में ही अपना माल छोड़ दिया।
तब वो बोली- हो गया शान्त? मैं बोला- माल तो अन्दर ही गिर गया! वो बोली- कोई बात नहीं गाण्ड में गिरने से कुछ नहीं होता। फिर हमने बेड पर ही एक-दूसरे पर पड़े-पड़े थोड़ा समय बिताया।
वो बोली- तुम्हारा लण्ड तो पापा के लण्ड जैसा ही है! मैंने बोला- तुम्हें कैसे पता? तो वो बोली- एक दिन मैं रात को टॉयलेट करने के लिए उठी तो मम्मी-पापा के रूम की लाइट चालू थी।
मैंने दरवाजे के गैप से झाँक कर देखा तो पापा-मम्मी को चोद रहे थे। तब से मैं रोज़ रात को मम्मी-पापा की धकापेल देखती हूँ तब सोती हूँ। हफ्ते में 3 या 4 बार मम्मी चुदती ही हैं। तब से मुझे भी चुदने की इच्छा होने लगी थी, पर चुदूँ किससे स्कूल में किसी से चुदना यानि सब को पता चल जाता, इसलिए मैंने ही मम्मी को बोला कि वो तुम्हें मुझे स्कूटी सिखाने को बोलें।
यह बोलते-बोलते उसने मेरा लण्ड पकड़ा। नीचे बैठ कर चूसना शुरू किया। अब मैंने उसे उठाया और गाण्ड में डालने की कोशिश की, तो वो बोली- पहले सामने डालो!
मैंने उसे बेड पर लिटाया और खुद नीचे खड़ा होकर लण्ड उसकी बुर में डाला और मस्त चोदा। उसने प्यार से मेरे कूल्हों को पकड़ रखा था उसका माल निकलने पर उसने प्यार से छोड़ दिए।
फिर मेरा लण्ड हाथ से हिला-हिला कर मेरा भी माल निकाल दिया।
मैं बोला- तुझे तो बहुत पता है! तो वो बोली- मम्मी-पापा जैसा ही सब करेंगे। मैं बोला- कल कब आओगी?
बोली- दोपहर को.. जब मम्मी सो जाएँ तब.. और तभी से हमारा चुदाई का समारोह जब भी मौका मिलता, होता था। कभी मेरे यहाँ कभी उसके यहाँ और इस बीच वो 12 वीं पास हो गई। इंजीनियरिंग में दूसरे शहर में दाखिला मिल गया, तबसे हमारा चुदाई का प्रोग्राम काफ़ी कम हो गया, फिर धीरे-धीरे बंद ही हो गया।
शायद उसे नया लण्ड मिल गया हो और आज भी मुझे बुर की तलाश है। आपको मेरी कहानी पसंद आई हो तो प्लीज़ मुझे जरूर ईमेल कीजिए। [email protected]
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