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इमरान यह कहानी भी मेरे एक दोस्त शकील की है, उसके कहने पर ही मैंने लिख कर भेजी है। उसी के शब्दों में पेश है आज से तक़रीबन 6 साल पहले की बात है जब मैं अपनी आपा ज़न्नत जहाँ से मिलने के लिए कन्नौज गया था। मेरी आपा की एक बेटी और एक बेटा है। बेटे का नाम शाहिद और बेटी का नाम अलीफ़ा है। मैं सुबह वाली ट्रेन से चला था और शाम को करीब 6 बजे अपनी आपा के यहाँ पहुँच गया था। मार्च का महीना था वह, दिन में गर्मी लेकिन शाम खुशगवार हो जाती थी। जब मैं वहाँ पहुँचा तो सब लोग बहुत खुश हुए। मेरी आपा के बच्चे शाहिद और अलीफ़ा मुझे बहुत प्यार करते थे, खास तौर पर अलीफ़ा, वो कहती थी- मामा तो और भी हैं लेकिन जितना आप हंसी मज़ाक करता हो, और कोई नहीं करता। पिछली बार तीन साल पहले आया था तब वो मेरे साथ ही लगी रहती थी और सोने की ज़िद भी मेरे साथ ही करती थी। घर में देखा अलीफ़ा नहीं दिखाई दी, मैंने आपा से पूछा- अलीफ़ा नहीं दिखाई दे रही? तब आपा ने बताया वो ट्यूशन पढ़ने गई है, और तकरीबन एक घंटे में आ जायेगी। मैं गेस्टरूम में चला गया और दिन भर की थकान उतारने लगा, ऊंघ भी गया था। तभी मुझे अलीफ़ा की आवाज सुनाई पड़ी, वो वापिस आ गई थी। उसने पूछा- बड़ी चलकदमी है… क्या कोई बात है? शाहिद ने कहा- मामूजान आये हैं। अलीफ़ा उछल कर बोली- वाकयी? मामू कहाँ हैं? ‘कमरे में हैं, लेटे हैं।’ अलीफ़ा ने ख़ुशी से अपना बैग फेंका और दौड़ती हुई मेरे कमरे में घुस आई और ‘मामूँ’ कहते हुए मेरे गले लग गई और मेरे ऊपर गिर गई। मैं चाह कर भी उठ भी नहीं पाया, मैं थोड़ा अचकचा भी गया था, इससे पहले मैं कुछ कहता उसने सवाल दाग दिया- मामू आपको अब फुर्सत मिल गई? इतने दिनों से कह रहे थे कि आप आ रहे हैं… आ रहे हैं… और अब आये? मैं भौंच्चक रह गया था। तीन साल पहले जिसको मैंने देखा था वो बिल्कुल बच्ची थी और अब जो अलीफ़ा मेरे ऊपर गिरी पड़ी थी वो बड़ी हो गई थी। अलीफ़ा बेहद खूबसूरत लग रही थी और उसके शरीर में निकलते हुए जोबन मेरे सीने से रगड़ रहे थे। सही कह रहा हूँ, उसके छोटी चूचियों का रगड़ना मुझमें एक वासना का सैलाब ले आया, मैंने उसको प्यार से उसके माथे को चूमा और कहा- अरे ऐली, कम से कम आ तो गया! मेरा बायां हाथ उसके पेट पर था और अनजाने में सहलाने लगा और एक सिहरन मेरे अंदर दौड़ गई, बड़ी शर्म आई, अलीफ़ा मेरी भांजी थी, पर उसने मेरे अंदर सुप्त वासना को कहीं बहुत तेजी से हिला दिया था। थोड़ी ही देर में मैंने अपने होश पर काबू किया, अपने को धिक्कारा और उसको अपने से उठाते हुए कहा- जाओ, मेरे लिए पानी ले आओ। उसने चहकते हुए कहा- मामू, अभी लाई। और वह कमरे के बाहर चली गई। उसके जाने के बाद मैं सोचने लगा उस हलचल की जो मेरे अंदर होने लगी थी जब वह मेरे ऊपर गिरी थी। मुझको अपने पर शर्म आ रही थी कि अलीफ़ा तो अब भी बच्ची बन कर मुझसे मिल रही थी लेकिन मैं उसके मिलने के तरीके से, उसके शरीर को अपने से मसलता पाकर बिल्कुल ही बेचैन हो गया था, मेरा लंड भी पैंट के अंदर कसमसा कर कड़ा हो गया था। मैं अपनी इन्हीं उलझनों में घिरा हुआ बाहर निकल आया और सबसे मिल कर बातें करने लगा।बात करते करते और खाना खाते रात के नौ बज गए। रात में बत्ती अक्सर चली जाती थी इसलिए सबने चारपाइयाँ बाहर वरांडे में निकाल ली थी। हम लोग उन पर लेट गए और लेटते ही बिजली चली गई। शाहिद और अलीफ़ा की अधकचरी नींद उखड़ गई और कहने लगी- मामू, कुछ सुनाओ, नहीं तो ऐसे नींद नहीं आने वाली ! मुझे भी नींद नहीं आ रही थी इसलिए मैं भी उन सबको कहानी किस्से सुनाने लगा और वो लोग भी अपनी चारपाई छोड़ मेरे अगल-बगल आ गये। अलीफ़ा मेरे सर के बगल में आकर बैठ गई और जब मैं कहानी सुना रहा था, अलीफ़ा मेरे सर पर हाथ फेरने और दबाने लगी। वो सर दबा रही थी और मैं बेचैन होने लगा था, मुझे उस धुँधले अँधेरे में वो साफ दिख रही थी और मेरी आँखों के सामने उसके उभरते हुए गेंद जैसे चूचे ही नज़र आ रहे थे। थोड़ी देर बाद मैं जब अपने लंड के कड़ेपन से परेशान हो गया तब मैंने उसके हाथ को हटाने के लिए अपना हाथ ऊपर किया और उस कोशिश में मेरा हाथ उसके उभारों से टकरा गया, एक करेंट सा लग गया मुझे, मैं पत्थर सा अपना हाथ वहीं रखे रहा और उसकी चूची सांस लेने से हिलते हए मेरे हाथ से टकराती रही। मुझे घबराहट भी हो रही थी लेकिन मेरा मन उस जगह से हटाने का भी नहीं कर रहा था। तभी अलीफ़ा ने दूसरे हाथ को मेरे उस हाथ पर रख दिया और मेरा हाथ उसके हाथ और उसकी चूची के बीच कैद हो गया और अब उसकी छोटी से चूची पूरी तरह से मेरे हाथ को दबाव देने लगी थी क्यूंकि लाइट नहीं थी, इसलिए किसी को भी एहसास नहीं था कि मेरा हाथ उसके उरोज से अठखेलियाँ खेल रहा है। अब मेरे अंदर वासना उफान पर चढ़ चुकी थी और उसने मुझे मामू से एक जवान मर्द बना दिया था और अलीफ़ा की चूची मुझे सिर्फ एक लड़की बुलावा देती हुई लग रही थी। मेरे हाथ का उसके हाथ का दबाना मुझे हौसला दे गया, मैंने अपने हाथ के पंजों को ढील दी और उसकी छोटी चूचियों को हौले हौले दबाने लगा। मैं जैसे जैसे उसकी चूचियाँ दबाता, अलीफ़ा मेरा सर और तेजी से दबाने लगती। इसी दौरान आपा की आवाज आई और मैंने घबरा कर अपना हाथ तेजी से उसकी चूचियों से हटा लिया। आपा ने कहा- शकील, तुम दूध पीओगे? मैंने कहा- नहीं, मुझे नहीं चाहिए। उन्हें कहाँ पता था कि आज उनका भाई अपनी आपा की बेटी का दूध पीने ले लिए पगला गया है। मैंने हाथ जब नीचे खींचे थे, तब मेरा हाथ उसके पेट पर आ गया था। मैंने महसूस किया कि वहाँ से कपड़ा थोड़ा उधड़ा था और मेरा हाथ उसके नंगे पेट से टकरा रहा था। मैंने उस नंगी जगह पर हाथ रख दिया। उसके थोड़े से नंगेपन पर हाथ रख कर मुझे अजीब सी गर्मी लगी और डर के मारे चूहा हुआ लंड फिर से गरमा कर कड़ा हो गया। मैं उसके नंगे पेट को आहिस्ते से सहलाने लगा, मैं जानता था कि जो कर रहा हूँ वो खतरनाक है लेकिन पता नहीं वासना ने मेरी सब समझ छीन ली थी। अलीफ़ा बिल्कुल पत्थर बनी बैठी थी, उसकी साँसें लम्बी और सिसयाती हो गई थी, बिजली अभी भी नहीं आई थी और मैं उसका पूरा फायदा उठा रहा था। तभी अँधेरे में आपा की आवाज़ आई- बिजली अब कब आयेगी, पता नहीं ! दस से ऊपर का वक्त हो गया है, चलो अब सब सो जाओ। हम लोग अंदर जा रहे हैं। अलीफ़ा चल आकर सो जा ! मेरे तो होश उड़ गए ! सारे अरमानों पर पानी फिर गया ! सही कह रहा हूँ मैं, बिल्कुल सांस रोके लेटे रहा, मेरे हाथ जहाँ था वहीं रुक कज रह गया। एकदम से अलीफ़ा फुसफुसाई- मामू, आप अम्मी को कहो न कि अलीफ़ा सो गई है। मैं चौंक गया और तुरंत आवाज ऊँची करके बोला- आपा, अलीफ़ा सो गई है। आपा बोली- यह तुझे रात भर नहीं सोने देगी, सारी रात लातें मारती है, तुम थके होगे। मैंने कहा- कोई बात नहीं, पहले भी तो साथ में सोती थी, सो गई है तो सोने दो, कल की कल देखी जाएगी। आपा ने आवाज लगाई- ठीक है लेकिन देखना यदि तंग करे तो भीतर भेज देना। मैंने कहा- ठीक है आपा, यदि नींद में खलल होगा तो मैं भेज दूँगा। इसके बाद सन्नाटा छा गया। मैंने थोड़ा सर उठाकर देखा तो पाया मेरा भांजा पैर पसारे दूसरी चारपाई पर सो गया है और अलीफ़ा भी शांत पड़ी है। मैं सोच रहा था कि अलीफ़ा जो बगल की चारपाई पर जाकर लेटी है, उसे उठाऊँ या नहीं ! तभी अलीफ़ा करवट लेते हुए मेरी चारपाई पर आ गई और साथ में ही लेट गई। मैंने हाथ से अलीफ़ा के सर को सहलाया और धीमी आवाज में कहा- अलीफ़ा, मामू की याद आती थी? अलीफ़ा ने मासूमियत से मेरी तरफ देखा और अपना हाथ मेरे सीने पर रख कर बोली- मामू, मैंने आपको बहुत मिस किया। और वो और मेरे से लाड़ में और सिमट गई। उसको अपने से बिल्कुल चिपटा पाकर मेरा लंड बेहद खुश हो गया और पजामे से बाहर आराम से दिख रहा था। मैं जानता था कि मेरी वो भांजी है, मुझे बहुत प्यार करती है और यह सब उसकी नादानी में ही हो रहा है लेकिन मुझे उसके शरीर का सुख मिल रहा था और बस मैं उसे भोगना चाहता था, जो भी सुख बिना किसी को पता चले मिल सकता था। मैंने इस रात को पूरा उठाने की साध ली थी। मैंने अपना बायाँ हाथ उसके सर से नीचे किया और उसके चेहरे और गाल को सहलाने लगा। मैंने उसका चेहरा थोड़ा अपनी तरफ घुमाया और उसकी आँखों में देखते हुए अपनी उंगली उसके लबों पर फिराने लगा। वो वैसे ही अधमुंदी आँखों से मेरी तरफ देखते हुए पड़ी रही। मेरा उसके चेहरे को इस तरह उंगली फिराने से अलीफ़ा भी बैचन हो रही थी, उसकी साँसें बहुत भरी चल रही थी। उस अँधेरे में भी वो मुझे एक अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। हालांकि उसकी चूचियाँ अभी ज्यादा बड़ी नहीं हुई थी लेकिन उसके बदन की गर्मी मुझको पागल किये दे रही थी। चेहरा सहलाते सहलाते मैंने उसके गाल पर अपने ओंठ रख दिए और कान में कहा- अलीफ़ा तू बहुत प्यारी है… मुझे तुझ पर बहुत प्यार आ रहा है, तुझे बुरा तो नहीं लग रहा? उसने हल्के से अपना सर हिलाकर अपनी मौन स्वीकृति दी और अपना सर मेरे बगल में और घुसा लिया। उसकी इस हरकत के बाद तो मैं एक नए जोश में आ गया और उसको कस के भींच लिया और अपने होंठ उसके होंठों पर रख कए एक जोरदार बोसा लिया, फ़िर उसके लबों को चूसने लगा। मेरे गर्म लबों से वो भी बिलबिला गई थी, शायद वो खुद में ही बेसुध हो गई थी। मैं उसको चूम रहा था और इधर मेरे हाथ अपने आप उसके सीने पर चले गए और उसकी छोटी चूचियों को टटोलने लगा। अपनी हथेलियों से उन्हें दबाते हुए मैंने कहा- अलीफ़ा तुम तो काफी बड़ी हो गई हो। उसने मिमयाते हुए कहा- मामूँ, मैं तो आपके लिए अभी भी बच्ची हूँ। अब मैं काफी इत्मीनान में हो गया था और इस नन्ही कली को पूरी तरह चखने के लिए बेकरार हो गया। मैंने हाथ से उसकी शमीज़ ऊपर कर दी और उसके नंगी चूचियों को अपने हाथ से मसलने लगा, उसके नन्हे चुचूकों को मेरी उंगली छेड़ रही थी और वो और तनी जा रही थी। मैं थोड़ा से नीचे सरक गया और उसकी पूरी चूचि को अपने होंठों में लेकर चूसने लगा। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! अलीफ़ा के मुँह से सिसयाती हुई बंद आवाज़ ही निकल रही थी, उसको भी आवाज़ होने की चिंता थी जितनी मुझको थी। मैंने उसकी चूचियों को चूसते चूसते ही एक हाथ से अपने पायजामे का नाड़ा खोल कर सरका दिया। मेरा लंड भनभना कर आज़ाद हो गया, मुझे अँधेरे में भी अपने पगलाये लंड का एहसास हो रहा था। झट से मैंने चादर को अपने दोनों पर डाल दिया ताकि कुछ भी दिखाई न दे, फिर मैंने उसके छोटे से हाथ को अपने हाथ में ले लिया और नीचे ले जा कर अपने लंड पर उसको रख दिया। मेरे लंड को छूते ही वो चौंक गई और हाथ हटाने लगी लेकिन मैंने उसके हाथ में अपना लौड़ा पकड़वा दिया। उसने घबराई आवाज़ में कहा- ‘मामू, इतना बड़ा है! कहानी जारी रहेगी।
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