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इरफ़ान मैंने उसका हाथ अपने लंड पर और भींच दिया। उसने कहा- मामू, भाई का तो बहुत छोटा है? मैंने उसके हाथ से अपने लंड को सहलाते हुए कहा- अलीफ़ा वो अभी छोटा है इसलिए है, जब वो मेरी तरह बड़ा हो जायेगा तब उसका भी ऐसे ही बड़ा हो जायेगा। अलीफ़ा अब इत्मीनान से मेरे लंड को पकड़े धीरे धीरे लंड को ऊपर नीचे करने लगी थी। जब वो मेरे लंड से आराम से खेलने लगी तब मैंने अपना हाथ उसके हाथ से उठ लिया और उसकी नंगी पीठ को सहलाने लगा। वो मुझसे चिपकी हुई थी और मैं भी उसके हर अंग को सहलना चाहता था, मैंने पीठ सहलाते हुए हाथ नीचे किया और सलवार के अंदर डाल कर उसके चूतड़ों को मसलने लगा, मेरी उंगली उसकी गांड की दरार में जाकर उसे कुरेदने लगी। वो चिहुंक सी गई और मैंने उंगली सिर्फ ऊपर ही रखी ताकि वो बिदक न जाये। मैं एक तरफ उसके कभी होंठों को चूमता, कभी उसकी चूची को मुँह में लेकर चूसता और साथ में उसकी मदमस्त चूतड़ों को दबाता। अलीफ़ा बिल्कुल अपनी सुध खोती जा रही थी, उसने धीरे से कहा- मामू, पता नहीं मेरे दिल में कुछ हो रहा है। ‘क्या हो रहा है जान?’ ‘पता नहीं अंदर से बड़ी बेचैनी हो रही है।’ मैं समझ गया कि अलीफ़ा बिल्कुल गर्म हो गई है, मैंने कहा- अलीफ़ा, अपनी शमीज़ उतार दो, ठीक लगेगा। यह कहत हुए मैंने उसकी शमीज़ ऊपर खींच दी और उसने उसको अपने बदन से अलग होने दिया, मैंने भी फ़ौरन अपनी बनियान उतार दी और वो मेरे नंगे सीने से चिपट गई। मैंने अपना सर उस पर झुका कर उसकी नंगी चूचियों को मुँह में ले लिया और उनको चूसने लगा। मैंने चूसते हुए उससे कहा- अलीफ़ा, तुम्हारी अम्मी ने मुझसे दूध पिने को कहा था लेकिन मैंने मना कर दिया क्योंकि मुझे तो आज अपनी अलीफ़ा का दूध पीना था। वो ‘आई’ कह के रह गई। मैं अब उसकी छोटे से निप्पल को अपनी जीभ से फेरने लगा और अपना हाथ पीछे से हटा कर आगे उसकी सलवार में डाल दिया। मेरा हाथ सीथे उसकी टांगों के बीच नर्म सी चूत पर पहुँच गया, मैंने उसकी चूत अपनी हथेली से दबा ली, मेरा उसकी चूत छूना था कि उसने अपनी दोनों जांघों को सिकोड़ लिया और मेरा हाथ उसकी चूत पर और कस कर दब गया। उसकी चूत में हल्के हल्के बाल थे, बिल्कुल रेशम की तरह। मैंने पूछा- अलीफ़ा, तुम अपने बाल नहीं बनाती हो? उसने कहा- अम्मी ने अभी मना किया है। मैं तो जन्नत में पहुँच गया था, इतनी छोटी, इतनी नर्म चूत आज से पहले मैंने कभी महसूस नहीं की थी। मेरी उंगली उसकी चूत की फांकों से खेलने लगी और मेरी उंगली धीरे से उसके मदन दाने (क्लिट) पर पहुँच गई। मेरी इस हरकत से उसका बदन कड़ा हो गया और अपने पैरों को रगड़ने लगी। मैं उसकी चूत को रगड़ रहा था और वो हांफ़ने लगी थी, उसने मेरा लंड भी छोड़ दिया था। मैंने तब कहा- रानी, अपना मुँह नीचे की तरफ करो। यह कह मैं अपनी कोहनी के बल थोड़ा ऊपर आ गया और उसका सर अपने लंड की तरफ ले गया और कहा- अलीफ़ा, इसको मुँह में लेकर चूसो ! अलीफ़ा चौंक गई और उसने चादर से सर निकाल कर कहा- छीः यह गन्दा है मामू, इससे पेशाब करते हैं। मैंने अलीफ़ा को वासनामयी चिढ़े स्वर में कहा- तुम मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकती? ठीक है तुम अंदर जाओ। वो हतप्रभ रह गई, उसे मेरे इस व्यवहार की उम्मीद नहीं थी, वो घबरा कर रुँआसी हो गई, उसकी आँख में आंसू भर आये। मैंने उसको रुँआसी देख कर अपने से चिपका लिया और उसको प्यार करते हुए कहा- चलो अब मुँह में अपने मामू का लंड ले लो, अच्छे बच्चे ज़िद नहीं करते। मैं ऐसे ही लेट जाता हूँ और तुम मेरे ऊपर उल्टी लेट जाओ। पहले मैं तुम्हारी चूत को चाटूँगा और चूसूंगा, तुम अपने आप समझ जाओगी। मैंने उसको अपने ऊपर खींच लिया और उसकी टाँगों को फैलाकर अपना मुँह उसकी नन्ही चूत पर रख दिया। जैसे ही मेरी जीभ ने उसकी चूत को छुआ, वो अपनी कमर कसमसाने लगी। मैं हाथ से उसको धक्का देकर इशारा किया और उसने सहमे सहमे मेरे लंड पर अपने लब रख दिए। मैं उसकी चूत को मलाई की तरह चाट रहा था और वो बेहाल हो रही थी। मैंने अपना एक पैर उठा कर उसके सर को नीचे की तरफ धक्का दिया और इशारा किया कि लंड वो मुँह के अंदर ले। उसने अपना मुँह धीरे से खोला और मेरा सुपारा उसके छोटे मुँह में चला गया। मेरे सुपारे को जैसे ही उसके मुँह की गर्मी मिली, मैंने अपनी कमर ऊपर उठा कर और लंड डालने की कोशिश की लेकिन उसका छोटा सा मुँह था और वो नहीं ले पा रही थी। मैंने और ज्यादा न डालने का मन बनाया और वैसे ही अपना लंड उसके मुँह में अंदर बाहर करने लगा। उसकी चूत में मेरी जीभ अंदर तक घूम रही थी और इधर मेरी जीभ उसकी चूत को चोद रही थी और उधर मेरा फनफनाता लंड अलीफ़ा के मुँह को चोद रहा था। मैं जोश में उसकी चूत में अपनी जीभ काफी अंदर तक उसकी झिल्ली तक ले जा रहा था, अलीफ़ा अपने आप कमर ऊपर नीचे करने लगी थी। तभी उसने मेरे लंड से अपना मुँह हटा लिया और कहा- मामू, अब नहीं कर पाऊँगी, बदन तप रहा है, अजीब से हो रहा है। मैंने अलीफ़ा को ऊपर खींच लिया और कहा- तबियत मेरी भी बहुत ख़राब हो गई है, बिना अब मेरा लंड तुम्हारी चूत में जाये तो हम दोनों की तबीयत ठीक होगी। क्या तुम मेरा लंड बर्दाश्त कर लोगी? अलीफ़ा ने कहा- मामू, यह मत कीजिये… आपका बड़ा है, अम्मी इतनी बड़ी हैं लेकिन जब अब्बू उनको करते हैं, तब अम्मी भी चिल्लाती हैं। मैंने उसको अपने से और चिपकते हुए उसकी चूत जो गीली थी में उंगली डालते हुए धीरे से कहा- रानी, अम्मी तुम्हारी दर्द से नहीं, मजे में चिल्लाती है, मैं आहिस्ते से डालूँगा, थोड़ा बर्दाश्त कर लेना, उसके बाद तो अम्मी की तरह तुम मजे से चिल्लाओगी। यह सब उससे कह रहा था और मैं उसकी चूत में उंगली घुसेड़ कर उसको उसी से ही चोद रहा था और उसकी चूत को थोड़ा ढीली भी कर रहा था। उसने कहा- मामू, आपको मेरी कसम जब कहूँगी तब निकाल देना, पूरा मत डालना। मैंने उसकी पुच्ची ली और कहा- शाबाश अलीफ़ा, बस थोड़ी हिम्मत कर लेना। मैंने उसको बिस्तर पर लेटा दिया और उसकी कमर उठा कर तकिया उसके कूल्हों के नीचे लगा दिया ताकि उसकी चूत उभर कर ऊपर आ जाये। मैंने उसकी टांगों को फैलाया और उस पर पहले लेट गया और उसके कान में कहा- अलीफ़ा दुपट्टा मुँह में रख लो, पहली बार जब लंड जायेगा तो आवाज निकल सकती है। यह कहते हुए मैंने दुपट्टा उसके मुँह में डाल दिया। अलीफ़ा को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, एक तरफ उसको इतना मज़ा मिल चुका था कि वो और भी आगे जाने को तैयार थी और दूसरी तरफ वो घबरा भी रही थी, इसलिए कहीं वो बिदक न जाये और चिल्ला न पड़े, मैंने उसके मुँह में दुप्पट्टा डाल दिया। फिर मैंने ढेर सारा थूक निकाल कर अपने लंड पर लगा दिया, वहाँ कोई तेल या क्रीम मिलनी नहीं थी और मैं उसको बिना चोदे आज की रात नही छोड़ना चाहता था। फिर और थूक निकाल कर मैंने उसकी चूत में अंदर अच्छी तरह लगा दिया ताकि चूत फिसलने वाली हो जाये। मैंने अपने लंड का सुपारा उसकी चूत को फैला कर रख दिया और उसको बांहो में जकड़ लिया। मैं उसको चूमने लगा और इसी बीच मैंने एक हल्का सा धक्का मारा और मेरा सुपारा उसकी चूत में घुसा और वो छटपटाने लगी। मैं परेशान हो गया, उसके मुँह से आवाज निकलने लगी और अपन सर इधर उधर पटकने लगी, मुझे कुछ नहीं सूझा और मैंने अपना हाथ उसके मुँह पर रख दिया और कस के धक्का मार कर लंड उसकी चूत में जबर्दस्ती डाल दिया। वो छटपटाने लगी और उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे और मुझसे इशारे से हटने को कहने लगी। मैंने 3/4 धक्के और मार कर अपना आधा लंड उसकी चूत में डाल दिया और फिर रुक गया। मैंने उसके कान में कहा- अलीफ़ा बस हो गया… अब और अंदर नहीं डालूँगा, चिल्लाना मत… मैं हाथ हटा रहा हूँ… नहीं तो दोनों पकड़े जायेंगे। यह कहते हुए मैं उसके सर को सहलाने लगा और जब थोड़ी वो शांत लगी, तब हाथ हटा लिया, उसने दुपट्टा मुँह से हटा दिया और रोते हुए कहा- मामू, अब निकाल दो, अंदर कटा जा रहा है, नहीं बर्दाश्त हो रहा ! मैंने कहा- अलीफ़ा श्श्श… चुप हो जाओ, जो होना था हो गया अब आराम हो जायेगा, अब इतना दर्द नहीं होगा, मजा आयेगा। मैं उसको चूमने लगा और उसकी चूचियों को भी चूसने लगा और वो थोड़ा शांत हो गई, तब मैं आहिस्ते से उसकी चूत में अपना लंड अंदर बाहर करने लगा। मैंने पूरा लंड अंदर नहीं डाला, सिर्फ आधा ही डाल कर बाहर कर लेता था। अब वो मेरे आधे लंड को ले रही थी हर हल्के धक्के में भी उसके चेहरे पर दर्द की लकीर आ जाती थी लेकिन उसको लंड का एहसास अपनी चूत के अंदर अच्छा भी लगने लगा था। थोड़ी तरह इस तरह चोदने के बाद मैंने अपना लंड उसकी चूत से निकाल लिया और उसको गोदी में ले लिया। गोदी में बैठ कर वो शांत हो गई, मेरा लंड उसके नंगे चूतड़ों से टकरा रहा था और मैं उसकी चूची दबा रहा था और साथ में उसकी चूत को भी सहला रहा था। मैं उंगली से ही उसको धीरे से चोद रहा था और वो वकई उंगली से चुदने का मज़ा लेने लगी थी। तभी उसका बदन अकड़ गया और सिसयाने लगी, मुझे समझ में आ गया कि अलीफ़ा को ओर्गास्म हो गया है और उसने पानी छोड़ दिया ह। मैं उसको चूमने लगा और वो मुझसे चिपक गई। मैं उसके नंगे बदन को सहलाने लगा और उसको बिस्तर पर फिर से लेटा दिया, इस बार अलीफ़ा चुपचाप लेट गई और मैंने उसकी जांघों को फैलाकर अपना लंड उसकी चूत पर रख दिया। मेरा सुपारा महसूस करते ही वो मचलने लगी, मैंने उसके होंठों पर अपने ओंठ रख दिए और एक झटके में आधा लंड उसकी चूत में घुसेड़ दिया। उसका बदन मेरा लंड पाकर तन गया और मैं उसी हालत में ही उसकी बहुत संकरी छोटी चूत में अपना लंड पेलने लगा। आहिस्ता आहिस्ता मेरा लंड वो लेने लगी और मैंने महसूस किया जब मेरा लंड उसके अंदर जाता और निकालता वो भी अपनी कमर हिलाने लगी और उसको चुदने का असली मजा आने लगा था। 2-3 मिनट बाद मैं अपने को रोक नहीं पाया और कस के धक्के मारने लगा और पूरा लंड उसकी चूत में डालने की कोशिश करने लगा। मेरे झटकों से उसके मुँह से उफ़ आह की आवाजें आने लगी थी। मैं भी अब अपने को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था और झड़ने के करीब पहुँच गया था। मैंने अलीफ़ा को जकड़ लिया और कस के धक्के मारने लगा, वो ‘आह आह मामूं… बस बस…’ करने लगी। मैं भी जूनूनी हो गया था, भूल गया था कि सब लोग कुछ ही दूरी पर कमरे में सो रहे हैं। और जैसे ही मुझे लगा कि अब नहीं रुक पायेगा, मैंने अपना लंड उसकी चूत से निकाल दिया, मैं उसके पेट पर ही झड़ गया और हांफ़ते हुए अपनी भांजी अलीफ़ा के ऊपर गिर गया। थोड़ी देर बाद में होश आया और एहसास हुआ कि वासना की आग में मैंने क्या कर दिया और कितना बड़ा खतरा ले लिया। मैंने अपने सिरहाने रखे रुमाल से लंड पोंछा और जब अलीफ़ा को पोंछने गया तब होश उड़ गए उसकी कुंवारी चूत फट चुकी थी और खून निकला था। तकिया के लिहाफ पर खून के निशान थे। मैंने उसको उठाया वो लड़खड़ाते हुए उठी और कपड़े पहने। मैंने उसको इशारे से कहा कि वो बाथरूम जाये, मैं बाद में जाऊँगा। वो थोड़ी देर बाद लौटी, तब मैं गया और साथ में तकिये का लिहाफ भी ले गया। खून ताज़ा था इसलिए साबुन से धोकर बाहर लटका दिया। वापिस चारपाई पर आया तो देखा अलीफ़ा नहीं है वो अपनी चादर लेकर अंदर सोने चली गई थी। मैं अपने बिस्तर पर जो हुआ था उसको सोचते हुए सो गया। सुबह जब उठा तो एहसास हो गया कि मैंने वाकयी क्या कल रात वो सब किया, अजीब डर अंदर घर कर गया। अगले दिन अलीफ़ा के स्कूल जाने के बाद बहाना बना कर आपा के घर से चला गया। उसके बाद अलीफ़ा से फिर मिला था और डर रहा था जब मिला, लेकिन वो डर एक चुदाई में बदल गया। मैंने अलीफ़ा को कई बार और चोदा फिर उसको और साथी मिल गया, शादी हो गई और उसके बाद हम कट कट कर रहने लगे, केवल शादी या मरने पर ही मुलाकात होती है। न उसने कुछ याद रखने की कोशिश की, न मैंने उसको याद दिलाने की कोशिश की।
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