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रेणुका प्रिय पाठको, मैं एक बहुत ही सेक्सी बदन की मलिका 22 साल की भरी-पूरी लड़की रेणुका हूँ। यह कहानी कोई चार साल पहले तब शुरू होती है जब मैं एक कमसिन अल्हड़ लड़की थी और सब मुझे प्यार से पिंकी कहते थे। मेरे पिताजी सरकारी नौकरी में एक बड़ी पोस्ट पर थे। अपने माँ-बाप की इकलौती औलाद होने के कारण मैं बचपन से ही बहुत लाड़-प्यार में पली थी। हमारे घर में एक बिहारी नौकर रामदीन था। मेरे बचपन से ही वह हमारे घर में था और उसी की गोद में पल कर मैं बड़ी हुई थी। रामदीन एक कोई 45 साल का मजबूत किस्म का आदमी था और वह घर का सारा काम करता था, मैं उसे रामू चाचा कहती थी। हमारे पड़ोस में एक बंगाली परिवार रहता था, सान्याल अंकल और आंटी। वे मेरे पिताजी के अच्छे दोस्त थे। उनके कोई बच्चा नहीं था और सान्याल अंकल और आंटी दोनों ही मुझे बहुत प्यार करते थे। मैं भी उनको बहुत चाहती थी और मेरा काफ़ी समय उनके ही घर में बीतता था। कम उम्र में मेरी तन्दरूस्ती बहुत अच्छी थी और मैं 5’1″ की और कुछ भरे हुए बदन की एकदम गोरी-चिट्टी थी। मैं एक अच्छे इंग्लिश मीडियम के स्कूल में पढ़ती थी। मुझे अच्छी तरह से याद है कि मेरी चूचियाँ मेरी उम्र के हिसाब से कुछ ज़्यादा ही बड़ी थीं। मैंने एक साल पहले से ही ब्रा पहननी शुरू कर दी थी। मेरी कई सहेलियों ने तो अब तक ब्रा पहननी शुरू ही नहीं की थी। कई बार तो सहेलियाँ ‘बहुत बड़े हैं.. बहुत बड़े हैं..!’ कहते हुए मेरे मम्मों को हाथों में पकड़ कर सहला देती थीं। मुझे यह अच्छा भी लगता था। हर सुबह जब मैं बाथरूम में नहाती थी तो मैं एकदम नंगी होकर नहाती थी। बाथरूम के आईने में मैं अपनी चूचियाँ देख कर फूली नहीं समाती। मेरी चूत पर ढेर सारे बाल उग आए थे और मैं उन पर ऊँगलियाँ फेरते-फेरते कभी कभी चूत में अपनी एक उंगली घुसाने का प्रयास करती लेकिन जब दर्द होने लगता तो उंगली वहाँ से हटा लेती। मेरा बहुत मन करता था चूत में कुछ करने का ! तभी एक शाम मम्मी-पापा ने कहा कि वे एक रिश्तेदार के यहाँ शादी अटेंड करने जाएँगे। मेरी माँ ने कहा- पिंकी, तुम किसी बात की चिंता मत करो घर पर रामदीन है, वह तुम्हारी पूरी देखभाल करेगा। फिर तुम्हें कोई भी परेशानी हो तो तुम सान्याल अंकल और आंटी के पास चली जाना। केवल 3 दिन की ही तो बात है। फिर दूसरे दिन सुबह ही वे चले गए। दूसरे दिन मैं दोपहर को स्कूल से लौटी और खाना खाकर रामदीन को कहा- मैं सान्याल अंकल के यहाँ जा रही हूँ और अंकल के साथ कैरम खेलूँगी। मैं सान्याल के घर पहुँची जहाँ अंकल अकेले थे। आंटी बाज़ार गई हुई थीं। मैंने अंकल से कहा- अंकल चलिए.. कैरम खेलते हैं। हमने बोर्ड सज़ा लिया और खेलने लगे पर अंकल कैरम बहुत अच्छा खेलते थे और मैं हर बोर्ड में उनसे हार जाती। तब अंकल मेरे पीछे आकर मुझे समझाने लगे कि शॉट कैसे खेलना चाहिए। वह मेरी बगल से हाथ आगे बढ़ा स्ट्राइकर पर उंगली रखते और झुकते हुए निशाना साधते। इससे कई बार उनका हाथ मेरी चूची की साइड से रगड़ खा जाता। उनके हाथ वहाँ लगते ही मैं सिहर जाती और मेरी यह सिहरन अंकल से छुप नहीं सकी। उन्होंने पूछा- पिंकी, तोम्को भालो लॉगता है? यह कह कर उन्होंने मेरी एक भारी चूची पर अपनी एक हथेली फैला कर जमा दी, फिर वह हल्के-हल्के उसे दबाते हुए चूची पर मुट्ठी बंद करने लगे। सान्याल अंकल की इस हरक़त से मेरा चेहरा लाल सुर्ख हो गया और मैंने अंकल का हाथ वहाँ से हटाना चाहा और बोली- अंकल, अब मैं घर जाऊँगी, स्कूल का होमवर्क भी करना है। ‘पिंकी कुछ देर इधर रूको, तॉमको भालो लगेगा।’ ‘पर अंकल मुझे कैसा-कैसा लगता है।’ ‘किधर में तॉमको कैसा-कैसा लॉगता है…! तुम्हारा टाँग के बीच कुछ होता है..?’ यह कहते-कहते अंकल ने ठीक मेरी चूत पर हथेली रख उसे हल्के से दबा दिया। मैंने सिर हिलाया और वापस वहाँ से जाने के लिए मुड़ी। लेकिन वह 40 साल का सान्याल अंकल बड़ा बदमाश निकला और उसने मेरी पैन्टी में ही हाथ डाल दिया। मेरी चूत कुछ गीली होने लग गई थी और वह चूत की दरार में उंगली दबाते हुए ऊपर-नीचे करने लगा। मैं कुछ देर तो छटपटाई पर बाद मैं इससे मुझे एक अनोखा ही मज़ा मिलने लगा और मैंने अपने आप को ढीला छोड़ दिया था। तभी मेरा ध्यान बँटा। रामदीन दरवाजे पर खड़ा कठोर आवाज़ में कह रहा था- यह क्या हो रहा है बिटिया? सान्याल अंकल तुरंत मेरे से दूर हट गए, तो मैं और रामदीन भी उनके घर से बाहर आ गए और उन्होंने फ़ौरन दरवाजा बंद कर लिया। रामदीन ने मुझे बालों से पकड़ा और घर की तरफ खींचते हुए कहा- तू रंडी कब से बन गई? घर पहुँच कर मैंने उसे बताया- यह सब अंकल ने ही शुरू किया था, मैं तो कैरम खेल रही थी। अब मैं और सान्याल के घर नहीं जाऊँगी। ‘नहीं, तू दोबारा ज़रूर करेगी। चुदवाने का इतना ही शौक है ना.. तो हम तुझे चोद कर अभी तेरी ख्वाइश पूरी कर देते हैं।’ यह कहते हुए वह मुझे लगभग घसीटते हुए मम्मी-पापा के रूम में ले आया। अब मुझे उसकी कही बात का मतलब समझ में आया तो मन ही मन मैं खुश हुई कि जो मैं चाहती रही थी, वो शायद आज हो जाए पर मैं रोने का नाटक करते हुए उसके सामने गिड़गिड़ाने लगी। वह ज़ोर-ज़ोर से बोलने लगा, तो मैंने कहा- धीरे बात करो ना..! ‘कुतिया कहीं की….! क्या हमने तुझे इसी लिए इतने प्यार से पाल-पोस कर बड़ा किया था कि तू शादी के पहले ही अपने आपको चुदवाए।’ रामदीन ने गुस्से से कहा और मेरी स्कर्ट खींच कर उतार दी। अब मैं ब्रा और पैन्टी में उसके सामने अधनंगी खड़ी थी और मेरी नज़रें नीचे झुकी हुई थीं। तभी फोन की घन्टी बज उठी। रामदीन के चहरे पर कुछ हैरानी के भाव आए और बड़बड़ाया- किसका फोन हो सकता है? ‘मम्मी का होगा..!’ मैंने कहा और भगवान को धन्यवाद दिया। पर रामदीन ने मुझे चुप रहने के लिए कहा और फोन कान से लगा लिया- हालो… नमस्ते मेमसाहिब.. हाँ सब ठीक है.. पिंकी भी ठीक है, अभी बाहर खेलने गई हुई है। मैंने रामदीन से फोन लेने की नाकाम कोशिश की और वह कहने लगा- ठीक है.. आप फिकर मत कीजिए.. मैं उसका पूरा ख्याल रखूँगा। यह कह कर उसने फोन रख दिया और एक झटके में मेरी ब्रा के हुक तोड़ते हुए उसे मेरे शरीर से अलग कर दिया। फिर उसी तरह एक झटके के साथ मेरी पैन्टी खींची और उसका इलास्टिक टूट वह उसके हाथ में झूलने लगी जिसे उसने एक और फेंक दिया। अब मैं रामू चाचा के सामने बिल्कुल नंगी थी। मैंने एक बार और कोशिश करते हुए कहा- प्लीज़ रामू चाचा, मैं तो बचपन से तुम्हारी गोद में खेलती आई हूँ, तुम तो मुझे बेटी की तरह प्यार करते हो…! पर उसने एक न सुनी और अपनी धोती उतार डाली। धोती के उतारते ही मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं। उसका 7” का काला लंड मेरी आँख के आगे तना हुआ था, जिसे मैंने आज तक नहीं देखा था। ‘हाँ तुझे मैं बचपन से गोद में खिलाते आया हूँ और वह भी नंगा… देखो आज भी तो तुम्हें अपनी गोद में इस डन्डे पर बैठा कर खिलाऊँगा। आज भी तो तुम्हें बिटुआ की तरह खूब प्यार करूँगा। देखो मेरा लॉलीपॉप तुझे दूँगा।’ ‘चाचा.. तेरा यह बहुत ही लंबा और मोटा है!’ मुझे इस बात का पता था कि मरद चुदाई में ‘इसे’ हम लोगों के ‘बिल’ में डालते हैं। ‘जैसा भी है, लेकिन यह मर्द का लौड़ा तेरी चूत में आज ज़रूर घुसेगा।” उसने अपना लंड सहलाते हुए मुझे कहा। कहानी जारी रहेगी। मुझे आप अपने विचार यहाँ मेल करें। [email protected]
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