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प्रेम मेरी इस कहानी के पिछले भाग में आप सभी ने पढ़ा कि भाभी की मस्त चुदाई करने के बाद मैं वहीं उस पर ढेर हो गया। थोड़ी देर हम ऐसे ही एक-दूसरे की बाँहों में पड़े रहे। कुछ देर सोने के बाद वो उठी, अपनी पैन्टी पहनी और जैसे ही वो नाईटी पहनने लगी, मैं उठा और उसको पकड़ लिया और कहा- आज तुम सिर्फ़ ब्रा और पैन्टी ही पहनोगी मेरे लिए..! थोड़ी सी ना-नुकुर के बाद वो मान गई। अभी तो पूरा दिन था चुदाई के लिए, आगे भी बहुत कुछ होना बाकी था। अब आगे… उसने नाईटी रख दी और अपनी पैन्टी पहनी। ‘अब खुश??’ उसने पूछा। ‘हाँ..बहुत खुश..!’ मैंने भी जवाब दिया। मैं वापस बेड पर लेट गया, भाभी बोलीं- तुम आराम करो, मैं नहाने जा रही हूँ। मैंने फ़िल्मी अंदाज़ में कहा- जान, हमें यूँ अकेला छोड़ के ना जाओ, तेरे बिना हम कैसे जियेंगे…! यह सुन कर वो मुस्कुराई, पास आई और मेरे लबों को चूम कर बोलीं- वादा करती हूँ ज्यादा इन्तजार नहीं करना होगा। भाभी ने बताया- बगल वाले कमरे में कम्पयूटर है, नेट कनेक्टीविटी के साथ… चाहो तो यूज कर लो….! और फिर बाथरुम में चली गईं। मैंने जा कर कम्पयूटर ऑन किया और नेट चालू कर दिया और अन्तर्वासना खोल कर पढ़ने लग गया, तभी सोचा क्यों न मैं भी कहानी लिखूँ..! और बस ठान लिया कि भाभी की चुदाई की कहानी भी लिखनी है, तो मार डालोगे क्या…? लिखकर भेजी। खैर कहानी पढ़ते-पढ़ते फ़िर से चुदाई करने को मन किया, सोचा जाकर भाभी को नहाते देखने का अच्छा मौका है। तो मैं चुपके से बाथरूम तक पहुँचा। भाभी ने दरवाजा खुला ही छोड़ा था। मैं वहाँ से झाँकने लगा, भाभी गुनगुना रही थीं और शावर में नहा रही थीं। मैंने उनको छेड़ने के लिये सीटी मारी… मुझे देख कर जैसे उनको बिलकुल हैरानी नहीं हुई। वो बोली- पता था जरुर आओगे…अब आ जाओ अन्दर…! मैं बस कच्छे में था, फ़टाक से निकाला और घुस गया बाथरुम में। जाकर सीधा भाभी से लिपट गया और चूमने लगा। बाथरुम छोटा था, इसलिए वहाँ चुदाई मुमकिन नहीं थी। तो हमने सिर्फ़ रगड़ने का मज़ा लिया। फिर बाहर आकर खुद को पोंछा और फिर से कच्छा पहन लिया। भाभी ने भी खुद को पोंछ्कर सफ़ेद ब्रा और काली पैन्टी पहन ली। मैं जाकर फ़िर से नेट सर्फ़ करने लगा। थोड़ी देर बाद भाभी आकर बगल में बैठ गईं, हम यहाँ-वहाँ की बातें करने लगे, हम बातों-बातों में एक-दूसरे को छू रहे थे। वैसे ज्यादातर मैं भाभी को बार-बार छू रहा था, कभी चूची मसल देता तो कभी चूत पर हाथ फ़ेर देता। भाभी ने बताया उनके कंप्यूटर में काफ़ी ब्लू-फ़िल्में पड़ी हैं, उन्होंने बताया कि कौन से फ़ोल्डर में रखी हैं। मैंने फ़ोल्डर खोल कर देखा तो बहुत सी ब्लू-फ़िल्में थीं, सारी हाई डेफ़िनेशन में थीं और लगभग 15-16 ज़ीबी की तो सिर्फ़ ब्लू-फ़िल्में ही थीं। मैंने एक फ़िल्म चला दी। उसमे एक भूरे बालों वाली लड़की खुद को नंगा कर रही थी। वो लड़की अपने पूरे जिस्म पर हाथ फ़ेर रही थी। मैंने भाभी को इशारा किया, वो मेरी बात समझ गईं कि मैं क्या चाहता हूँ। वे खड़ी हुईं और सामने दीवार के पास जाकर अपना जलवा बिखेरने लगीं। जैसा कि मैंने उनको बोला था, वे सिर्फ़ ब्रा-पैन्टी में थीं। वो बड़ी कामुक अदा मे अपने जिस्म पर हाथ फ़िरा रही थी, फ़िर अपनी बीच वाली ऊँगली को मुँह में लेकर चूसने के बाद उसे अपनी पैन्टी के अन्दर डाल दिया। यह करते वक्त़ वे अपने नीचे के होंठ को दाँतों से चबाने लगीं। मैं ये सब बहुत मज़े से देख रहा था, तभी भाभी ने होंठों से ‘किस’ का इशारा किया और ऊँगली के इशारे से मुझे बुलाने लगीं। मैं भी कब तक कन्ट्रोल करता, उठ कर भाभी को दबोच लिया। उनको दीवार और अपने बीच में भींच लिया, उनके स्तन मेरी छाती में गड़ रहे थे। मेरा लन्ड कड़क था जो उनकी चूत पर दस्तक दे रहा था। अब तक फ़िल्म में एक काला आदमी उस लड़की की चुदाई शुरु कर चुका था और लड़की की सिसकारियाँ लेने की आवाजें आने लगीं। यह देख कर मुझे भी जोश आने लगा, मेरे दोनों हाथ जो अब तक भाभी के पूरा बदन नाप रहे थे, उनको भाभी के दोनों नितम्बों पर ले गया और भाभी को वहाँ से पकड़ कर अपनी तरफ़ खींचा। मैं उनके होंठों को जीभ से चाटने लगा, वो भी बार-बार अपनी जीभ बाहर निकाल कर मेरी जीभ से छुआ रही थी। इतने में फ़िल्म खत्म हो गई, मतलब हम पिछले बीस मिनटों से चूमा-चाटी ही कर रहे थे। हम अलग हुए तो मैंने जाकर दूसरी फ़िल्म लगा दी। जब मुड़ कर देखा तो भाभी अपनी चोली और कच्छी उतार चुकी थीं और बिस्तर पर लेट कर चुदने को तैयार थीं। मैं भी जाकर भाभी के ऊपर लेट गया। थोड़ी देर तक उनके होंठों का रस पीने के बाद थोड़ा नीचे आया और उनके मम्मों का मज़ा लेने लगा। मैं मम्मों को चूस-चाट रहा था, दाँतों से काट रहा था। मेरी इन सब हरकतों से वो और भी उत्तेजित हो रही थीं। मेरे सर को अपने हाथों से मम्मों पर दबा रही थीं। फ़िर मैं थोड़ा और नीचे आया और चूत पर हाथ साफ़ करने लगा। कुछ देर बाद जब मुझे लगा कि अब उससे नहीं रुका जा रहा और मेरी हालत भी कुछ वैसी ही थी, तो मैंने बिना देर किए अपना लौड़ा भाभी की चूत में पेल दिया और धकापेल चुदाई शुरू कर दी। हमने ब्लू-फ़िल्म वाले कई आसन ट्राई किए, कुछ आए तो कुछ नहीं। मैंने उनको घोड़ी बना कर चोदना शुरू किया और मुझे सबसे ज्यादा मजा तब आया, जब मैंने उनके लटकते आमों को अपनी हथेलियों से खूब मसका। भाभी की सीत्कारें अब तेज होती जा रही थीं। मैंने भी दनादन शॉट मारने आरम्भ किए और हम दोनों एक साथ झड़ गए। मैं निढाल होकर उनके ऊपर ही ढेर हो गया और भाभी प्यार से मेरे बालों में हाथ फेरने लगीं। खैर, वो दिन भाभी से चुदाई का आखरी दिन साबित हुआ क्योंकि उसके बाद हमें कोई और मौका नहीं मिला और भैया का ट्रान्सफ़र बैंगलोर में कहीं हो गया और हम बिछड़ गए। आज भी कभी-कभी उनकी याद में मुठ मार लेता हूँ। यह थी मेरी और भाभी की दास्तान आपको कैसी लगी? जरुर मेल करें। [email protected]
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