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अच्छा खासा फंक्शन चल रहा था, अचानक मेरी सास मेरी मम्मी के पास आई और बोली- बहन जी, आपकी बेटी की शादी को 7 साल हो गये, जरा इससे ये तो पूछो कि हमें पोते-पोती का मुँह भी दिखायेगी या नहींॽ
मेरी सास ने भरी महफिल में मेरी माँ से ऐसा सवाल पूछ लिया जिसका जवाब उस समय कोई भी नहीं दे सकता था।
बहुत हंगामा हुआ, मेरे पापा भी कोई इतनी छोटी चीज नहीं थे जो अपनी बेटी की इस तरह भरी महफिल में बेइज्जती सहन कर लेते। उसी दिन शाम को मम्मी पापा मुझे अपने साथ घर लिवा लाये। आशीष के लाख कहने के बाद भी उन्होंने मुझे उस घर में नहीं रहने दिया।
मेरी सास के इस व्यवहार से मैं भी हतप्रभ थी पर मैं किसी भी कीमत पर आशीष से दूर नहीं होना चाहती थी। मजबूरी ऐसी कि असली बात किसी को बता भी नहीं सकती थी।
अब मायके में मेरे दिन महीने ऐसे ही कटने लगे, अनेको बार फैसले की बातें हुई। आशीष लेने भी आये पर मेरे पापा थे कि मुझे भेजने को तैयार ही नहीं हुए।
रिटायरमेंट के बाद पापा ने भी पेंट की एक फैक्ट्री लगा ली थी आगरा में जिसका सारा काम मुकुल देखता था। मुकुल मेरे बचपन का साथी था। मुकुल के पापा मेरे पापा के आफिस में ही चपरासी थे, वो शुरू से ही हमारे साथ रहे।
मुकुल और मैं एक साथ खेलकूद कर बड़े हुए क्योंकि बड़े होने के बाद मुकुल को काम की जरूरत थी और पापा को विश्वसनीय आदमी की तो उन्होंने मुकुल को अपने साथ ही रख लिया।
मेरे घर आने के बाद तो पापा अक्सर बीमार ही रहने लगे, अब सारा काम मुकुल अकेले ही देखने लगा।
धीरे धीरे मुझे घर आये एक साल बीत गया, एक दिन मैंने पापा से कहा- पापा, मैं सारा दिन घर में बैठकर बोर हो जाती हूं अगर आप बुरा ना मानो तो मैं फैक्ट्री का काम देख लूंगी इस बहाने आपकी मदद भी हो जायेगी और मेरा समय भी कट जायेगा। पापा ने मेरे सुझाव पर सहर्ष सहमति दे दी।
अब मुकुल रोज मुझे फैक्ट्री ले जाता वहाँ सारा काम समझाता और शाम को घर छोड़ भी जाता। पापा ने मुकुल से मुझे परचेजिंग और एकाऊँट्स सिखाने को कहा।
इस बार तय हुआ कि इस बार परचेजिंग के लिये मुकुल मुझे साथ दिल्ली ले जायेगा। तय दिन पर मैं समय से पहले ही तैयार होकर गाड़ी लेकर मुकुल के घर की तरफ चल दी। सोचा कि मुकुल यहाँ तक आयेगा उससे बेहतर यह है कि मैं मुकुल तो उसके घर से ही ले लूँगी।
मैंने कार मुकुल की सोसायटी की पार्किंग में लगाई और ऊपर मुकुल के फ्लैट के बाहर पहुँची।
अभी मैं डोर बैल बजाने ही वाली थी कि अन्दर से लड़ाई की आवाजें आने लगी। मुकुल और उसकी पत्नी मोनिका बहुत तेज तेज लड़ रहे थे। मोनिका शायद मुकुल के साथ नहीं रहना चाहती थी।
मुकुल कह रहा था- तुम मेरी पत्नी हो, तुमको प्यार करना मेरा अधिकार है उसको कोई नहीं रोक सकता।
मोनिका बोली- प्यार का मतलब यह नहीं कि जब दिल किया आये और बीवी पर चढ़ गये। मुझे ये सब बिल्कुल भी पसन्द नहीं है। बहुत दर्द होता है, बर्दाश्त नहीं होता।
अब उन दोनों की बात मुझे कुछ कुछ समझ आने लगी, मैं कोई दूध पीती बच्ची तो थी नहीं।
अब मैंने देर ना करते हुए डोर बैल बजाई। अन्दर एकदम शान्ति हो गई। मुकुल बाहर आया और मुझे देखकर सीधा मेरे साथ ही नीचे आ गया। उसका मूड खराब था।
मैंने गाड़ी की चाबी मुकुल को दे दी, उसने स्टेयरिंग सम्भाला और हम दिल्ली की तरफ चल दिये।
मुकुल चुपचाप गाड़ी चला रहा था उसका मूड खराब था, मूड मेरा भी ठीक नहीं था। पर हम दोनों के कारण अलग अलग थे।
मैं सोच रही थी कि एक तरफ तो मुकुल है जिसकी पत्नी उसको झेल नहीं पा रही।
दूसरी तरफ मैं हूं जिसका पति उसको वो सुख नहीं दे पा रहा। ईश्वर भी ऐसा अन्याय क्यों करता हैॽ पर दुनिया में अक्सर जोड़े ऐसे बन ही जाते हैं।
सोचते-सोचते मेरे दिमाग ने काम करना शुरू किया, मैंने सोचा क्यों ना मुकुल को वो सुख मैं दूं जो मोनिका नहीं दे पा रही और मुझे मुकुल से वो सुख मिल सके जो आशीष से नहीं मिला।
इस तरह हम दोनों एक दूसरे के पूरक बन सकते थे। पर मुकुल स्वभाव से ऐसा नहीं था डर यही था कि मुकुल तैयार होगा या नहीं। पता नहीं कब मैंने फैसला कर लिया कि अब मुझे मुकुल को अपने लिये तैयार करना ही होगा। मैंने मुकुल की ओर देखा, वो चुपचाप गाड़ी चला रहा था।
मैंने मन ही मन मुकुल पर डोरे डालने का निर्णय लिया, मैंने अपना दुपट्टा उतार कर पीछे की सीट पर फेंक दिया, कुर्ती को ठीक किया और अपने खूबसूरत स्तनों को कुछ ज्यादा ही उभार लिया।
मैंने मुकुल से साईड में गाड़ी रोकने को कहा, उसने गाड़ी रोकी तो मैंने पूछा- अब बताओ क्या बात हैॽ तुम्हारा मूड क्यों खराब हैॽ
मुकुल ने कोई जवाब नहीं दिया।
अब मैंने मुकुल को अपनी पुरानी दोस्ती का वास्ता दिया- देखो मुकुल, यह ठीक है कि आज तुम पापा की फैक्ट्री में हो पर मेरे लिये पहले मेरे दोस्त हो मुझे नहीं बताओगे क्या बात हुईॽ
पर मुकुल अब भी चुप ही रहा। आखिर में मजबूर होकर मुझे ब्रह्मास्त्र चलाना पड़ा, मैंने कहा- मैंने तुम्हारे घर के बाहर तुम्हारी और मोनिका की सब बातें सुन ली थी।
मेरा इतना बोलना था कि मुकुल फट पड़ा, बोला- तुम ही बताओ, मेरी क्या गलती हैॽ आखिर तीन साल हो गये हमारी शादी को। मोनिका है कि मुझे हाथ तक नहीं लगाने देती। क्या मैं इंसान नहीं हूंॽ मेरा दिल नहीं करता कि अपनी पत्नी को प्यार दूंॽ उसके शरीर को प्यार करूंॽ पर मोनिका तो यह समझती ही नहीं।
मुकुल एक ही सांस में सब बोलकर रूआँसा सा होकर बैठ गया।मैंने अपनी दांई बांह पसारकर मुकुल की गर्दन में डाल दी और मुकुल को जानबूझ कर अपनी छाती से चिपकाकर कहा- कोई बात नहीं। सब ठीक हो जायेगा, तुम टैंशन मत लो।
मुकुल चुप था, मैं मुकुल को कुछ ज्यादा ही दबाव देकर अपने स्तनों पर चिपका रही थी पर मुकुल ने खुद को छुड़ाते हुए कहा- पता नहीं कब ठीक होगा। होगा भी या नहीं।
मेरे अन्दर खुद ही ऊर्जा का संचार होने लगा था, मैं अब मुकुल पर पूरा ध्यान दे रही थी, मैं खुद को बहुत गर्म महसूस कर रही थी, दिल तो था कि ऐसे ही मुकुल को पकड़ लूं पर हिम्मत नहीं कर पा रही थी।
अगर मुकुल ने ना कर दिया तो? बस यही सोच रही थी।
मैं चाहती थी कि ऐसा जाल फैला दूं कि मुकुल चाहे तो भी मना ना कर पाये। मैं बार-बार मुकुल तो अलग अलग बहाने से छू रही थी। मैंने रात को दिल्ली में ही रूकने को बोला।
मुकुल तैयार नहीं था पर मैंने कहा- मुझे आज दिल्ली घुमाना, मैंने सुना है शाम को इंडिया गेट पर बहुत भीड़ होती है। तुम पापा को कोई भी बहाना बनाओ पर आज रात यहीं रूकेंगे कल सुबह सुबह वापस चलेंगे।
मेरे जोर देने पर मुकुल को मानना पड़ा पर बोला कि पहले अपना काम करेंगे फिर घूमना। बस मेरा काम बनता दीखने लगा।
फटाफट अपना काम निपटाकर हम जल्दी ही फ्री हो गये। एक तो मैं वैसे ही आग में जली जा रही थी ऊपर से मौसम की गर्मी बेहाल कर रही थी। मैंने सबसे पहले मुकुल को कहीं एक कमरा लेने की सलाह दी ताकि वहाँ फ्रैश होकर कुछ आराम करें।
वहीं करोलबाग में होटल क्लार्क में कमरा लिया। मैं तेजी से कमरे में पहुँची जबकि मुकुल गाड़ी पार्क करके बाद में आया। मैं अपना दिमाग बहुत तेजी से चला रही थी। जब जो जितनी तेजी से सोच रही थी उसी पर उतनी तेजी से ही अमल कर रही थी। मुझे पता था कि मेरे पास आज की रात है मुकुल को अपनाने के लिये, कल तो आगरा जाना ही होगा।
कमरे में आते ही मैं कपड़े उतारकर बाथरूम में चली गई। मुझे बाथ लेना था और यह मेरी योजना का एक हिस्सा भी था।
मैं शावर के पानी का आनन्द ले रही थी तभी कमरे में दरवाजा खुलने और बंद होने की आवाज हुई।
शायद मुकुल ही कमरे में आया था फिर भी मैंने सुनिश्चित किया- कौनॽ
‘अरे मैडम मैं हूं…’ यह मुकुल ही आवाज थी। तभी शायद मुकुल ने देखा बैड पर मेरे सारे कपड़े फैले हुए थे तो वो बोला- आते ही नहाने चली गई। इतनी गर्मी लग रही थी क्या?
मैंने कहा- हाँ, अब नहा तो ली, पर मैं वो पसीने वाले कपड़े नहीं पहनूंगी और कपड़े तो लाई नहीं तो अब क्या पहनूँ।
हंसते हुए मुकुल बोला- यह तो नहाने जाने से पहले सोचना था ना। अब तो फंस गई बैठो सारी रात बाथरूम में।
मुझे मुकुल का हंसना अच्छा लगा।
मैंने कहा- मैं ऐसे ही बाहर आ रही हूं तू कौन सा पराया है मेरे लिये; तू तो वैसे भी मेरा बचपन का दोस्त है।
इतना बोलकर मैं सिर्फ तौलिये में ही बाथरूम से बाहर आ गई, मैंने जानबूझ कर अपना बदन भी नहीं पोंछा।
मुकुल ने मुझे देखा तो जैसे पलक झपकाना भी भूल गया। मैंने पूछा- क्या हुआॽ मुकुल बोला- क्यों मुझ पर कहर बरपा रही हो। मैं कोई विश्वामित्र नहीं हूँ।
‘पर मैं तो मेनका हूँ ना !’ इतना बोलते हुए मैंने मुकुल की तरफ पीठ की और ड्रेसिंग टेबल की तरफ घूम गई।
अब मैं ड्रेसिंग के शीशे में देखकर अपने बाल ठीक करने लगी, और कनखियों से लगातार पीछे बैठे मुकुल को देख रही थी। वो पीछे से मेरी गोरी टांगों को मेरी पिंडलियों को मेरी जांघों को लगातार घूर रहा था।
मुझे मुकुल का यूं घूरना बहुत अच्छा लग रहा था।
हालांकि वो मुझसे नजरें बचाकर मुझे घूर रहा था पर तब वो मुझसे नजरें कैसे बचा सकता था जब ये जलवा मैं खुद ही उसको दिखा रही थी। हाँ मैं बिल्कुल नार्मल होने का नाटक कर रही थी।
बाल ठीक करके अचानक मैं मुकुल की तरफ मुड़ी क्योंकि मैं उसे रंगे हाथों पकड़ना चाहती थी पर वो भी बहुत तेज था उसने तेजी से अपनी गर्दन दूसरी तरफ घुमाने की कोशिश की।
मैंने सीधे सवाल दागा- क्या देख रहा था बदमाश…?
कहानी जारी रहेगी। पाठकगण अपनी प्रतिक्रिया [email protected] पर अवश्य दें।
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