This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000
आज से मेरे बेटे का नाम करण पड़ गया। कई दिनों से नामकरण संस्कार की तैयारियों में पूरा परिवार व्यस्त था। किसी के पास सांस लेने भर की फुर्सत नहीं थी। परन्तु अब सभी कुछ आराम करना चाहते थे।
सारे मेहमान भी जाने लगे थे। मैं भी करण को अपनी गोदी में लेकर अपने कमरे में आ गई।
मेरे पति आशीष आज बहुत ही खुश थे। आखिर शादी के करीब 9 साल बाद उनको यह दिन देखना नसीब हुआ था।
वैसे भी हम दोनों ही नहीं घर में सभी मेरे सास ससुर, मम्मी पापा और ननद सभी तो इसी दिन के लिये पता नहीं कितनी दुआयें माँग रहे थे। करण मेरे बराबर में सो रहा था।
आशीष बहुत खुश थे, मेहमानों के जाने के बाद आशीष ही पूरा बचा-खुचा काम पूरा कराने में लगे हुए थे। परन्तु आज आशीष शायद खुद अपने हाथों से सबकुछ करना चाहते थे। आखिर आज उनके बेटे का नामकरण संस्कार हुआ था। उनकी खुशी देखते ही बनती थी।
पूरा काम निपटाकर आशीष कमरे में आये और मुझे बाहों में भरकर चूम लिया। हालांकि मेरी प्रतिक्रिया मिली जुली थी क्योंकि मैं बहुत थकी हुई थी पर आशीष की खुशी तो मानों सातवें आसमान पर थी।
अन्दर से तो मैं भी बहुत खुश थी आखिर अब मेरे माथे पर बांझपन का कलंक मिट गया था।
पापा मेरी शादी में कोई कोर-कसर नहीं रखना चाहते थे। मैं उनकी इकलौती बेटी जो हूँ और पापा ने अपनी सारी सरकारी नौकरी में इतना माल बनाया था कि खर्च करते नहीं बन रहा था।
हमारी शानो-शौकत देखने लायक थी, कम तो आशीष का परिवार भी नहीं था, आशीष दो-दो फैक्ट्री के मालिक थे देशभर में उनका बिजनेस फैला था।
चूंकि शादी दो बड़े घरानों के बीच हो रही थी इसीलिये शायद जयपुर क्या राजस्थान की कोई बड़ी ऐसी हस्ती नहीं थी जो मेरी शादी में शामिल नहीं हुई।
मैं तो बचपन से ही बहुत सुन्दर थी और आज शादी वाली रात मुझे सजाने के लिये ब्यूटीपार्लर वाला ग्रुप मुम्बई से आया था।
उन्होंने मुझे ऐसा सजाया कि देखने वालों की नजरें बार-बार मुझ पर ही जम जाती।
आशीष भी बहुत सुन्दर लग रहे थे। 5 फुट 10 इंच लम्बाई के चौड़े सीने वाले आशीष किसी हीरो से कम नहीं लग रहे थे। देखने वाले कभी हम दोनों को राम-सीता की जोड़ी बताते तो कभी राधा-कृष्ण की।
शादी के बाद मैं मायके से विदा होकर ससुराल में आ गई। मन में अनेक प्रकार की खुशियाँ घर करने लगी थी। आशीष को पाकर को मैं जैसे धन्य ही हो गई थी। एक पल के लिये भी मुझे अपने 23 साल पुराने घर को छोड़ने का मलाल नहीं था।
मैं तो आशीष के साथ जीवन के हसीन सपने संजों रही थी। मेरी विदाई के समय भी मम्मी पापा से खुशी-खुशी विदा लेकर आई।
ससुराल में मेरा ऐसा स्वागत हुआ कि मैं खुद को किसी राजकुमारी से कम नहीं मान रही थी। राजकुमारी तो मैं थी भी, पापा ने मुझे हमेशा राजकुमारी की तरह ही पाला था। मैं उनकी इकलौती संतान जो थी, और घर में पैसे का अथाह समुन्दर।
पर इस घर का अहसास कुछ ही घंटों में मुझे अपना सा लगने लगा।
मैं तो एक दिन में ही पापा का घर भूल गई। सारा दिन रिश्तेदारों में हंसी खुशी कैसे बीत गया पता ही नहीं चला।
शाम होते होते मुझे बहुत थकान होने लगी। खाना भी सब लोगों ने मिलकर ही खाया। ज्यादातर रिश्तेदार भी अपने अपने घर जा चुके थे। परिवार में दूर के रिश्ते की बहुओं और मेरी ननद ने मुझे नहाकर तैयार होने को कहा।
मैं भी उनकी आज्ञा मानकर नहाने चली गई। आशीष के रूम से सटे बाथरूम से नहाकर जैसे ही मैं नहाकर जैसी ही मैं बाहर आई तो देखा कमरे का दरवाजा बाहर से बंद था।
मैं समझ गई कि यह सब जानबूझ कर किया गया है। मैं खुशी-खुशी ड्रेसिंग के सामने खड़ी होकर अपनी खूबसूरती को निहारती हुई हल्का सा मेकअप करने लगी। आखिर बेवकूफ तो मैं भी नहीं थी। मुझे भी आभास था कि आज की रात मेरे लिये कितनी कीमती है।
मैंने नहाकर खुद को बहुत अच्छे से तैयार किया।
मैं आशीष को दुनिया की सबसे रूपवान औरत दिखना चाहती थी। इसीलिये मैंने अपनी थ्री-पीस नाइटी निकला ली। टावल हटाकर तसल्ली से अपनी कामुक बदन को निहारा। मुझे खुद पर ही गर्व होने लगा था।
अब मैं नाइटी पहनकर आशीष का इंतजार करने लगी। घड़ी की टिक-टिक करती सुई की आवाज मेरे दिल की धड़कन बढ़ा रहा थी।
इंतजार का एक-एक पल एक-एक घंटे जैसा बीत रहा था। घड़ी में 10 बज चुके थे पर आशीष की अभी तक कोई खबर नहीं थी।
इंतजार करना बहुत मुश्किल था पर घर में पहले दिन ही नाईटी पहनकर बाहर भी तो नहीं जा सकती थी ना, इसीलिये बैठी रही।
समय पास करने के लिये टीवी चला लिया।
जी क्लासिक चैनल पर माधुरी दीक्षित की फिल्म दयावान चल रही थी।
मुझे लगा यह मुआ टीवी भी मेरा दुश्मन बन गया है, फिल्म में माधुरी और विनोद खन्ना का प्रणय द़श्य मेरे दिल पर बहुत ही सटीक वार करने लगा।
मैं अब आशीष के लिये बिल्कुल तैयार थी पर वो कम्बख्त अन्दर कमरे में तो आये।
टीवी देखते देखते पता ही नहीं चला कब थकान मुझे पर हावी हो गई और मुझे नींद आ गई।
अचानक मेरी आँख खुली मैंने देखा कि आशीष मुझे बहुत ही प्यार से हिलाकर बिस्तर पर ही सीधा करने की कोशिश कर रहे थे, वो बराबर इस बात का भी ध्यान रख रहे थे कि मेरी नींद ना खुले।
पर मेरी नींद तो खुल गई।
आशीष को सामने देखकर मैं तुरन्त उठी और अपने कपड़े ठीक करने लगी।
‘सो जाओ, सो जाओ, जान… मुझे पता है तुम बहुत थक गई होगी आज…’ कहते हुए आशीष मेरे बराबर में लेट गये और मेरा सिर अपनी दांयी बाजू पर रखकर मुझे सुलाने की कोशिश करने लगे।
इतने प्यार से शायद कभी बचपन में पापा ने मुझे सुलाया था।
आशीष का प्रथम स्पर्श सचमुच नैसर्गिक था।
आशीष का दांया हाथ मेरे सिर के नीचे था और बांया हाथ लगातार सिर के ऊपर से मुझे सहला रहा था। आशीष का इतने प्यार से सहलाना मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।
कुछ देर तो मैं ऐसे ही लेटी रही, फिर मैंने पीछे मुड़कर आशीष की तरफ देखा- ‘यह क्या…!?! आशीष तो सो चुके थे।’
नींद में भी वो कितने मासूम और प्यारे लग रहे थे, मैं उनकी नींद खराब नहीं करना चाहती थी इसीलिये वापस उनकी तरफ पीठ की और उनसे चिपक कर सो गई।
सुबह मेरी आँख 6 बजे खुली तो मैंने देखा मेरे मासूम से पतिदेव अभी तक गहरी नींद में थे।
मैं एक अच्छी बहू की तरह उठते ही अपने बैडरूम से सटे बाथरूम में गई और तुरन्त नहा धोकर तैयार होकर बाहर सास-ससुर के पास पहुँची।
मेरी ससुर टीवी में मार्निंग न्यूज देख रहे थे और सासू माँ ससुर जी के लिये चाय बना रही थी।
घर की नौकरानी भी काम पर लग चुकी थी। मैंने सास से कहा- मम्मी जी, अगर आपको एतराज ना हो तो मैं आप दोनों को चाय बना दूँ?
उन्होंने उसके लिये भी तुरन्त मेरे ससुर को शगुन निकालने को कहा। मैं पहले ही दिन घर में घुलने मिलने की कोशिश कर रही थी।
सास-ससुर को चाय पिलाकर और अपना शगुन लेकर मैं अपने कमरे में आशीष के पास पहुँची तो वो भी जाग चुके थे पर बिस्तर में पड़े थे।
मेरे पास जाते ही उन्होंने मुझे खींचकर अपनी छाती से चिपका लिया और एक मीठा सा चुम्बन दिया। मैं तो शर्म से धरती में गड़ी जा रही थी पर उनकी छाती से चिपकना न जाने क्यों बहुत ही अच्छा लग रहा था।
तभी बाहर से ससुर जी की आवाज आई और आशीष उठकर बाथरूम में नहाने चले गये।
घर में सास के साथ और सारा दिन कैसे निकल गया पता ही नहीं चला। शाम को मेरे मायके वालों के और सहेलियों के फोन आने शुरू हो गये।
मेरी सहेलियाँ बार बार पूछतीं- रात को क्या हुआ…!?! अब मैं हंसकर टाल जाती, आखिर बताती भी तो क्या…!?!
मुझे आज फिर से रात का इंतजार था, आशीष का मैं बेसब्री से इंतजार करने लगी।
पापा और आशीष 8 बजे तक घर आये। मैंने और मम्मी जी ने मिलकर डायनिंग पर खाना लगाया।
मैं जल्दी-जल्दी काम निपटाकर अपने कमरे में जाकर तैयार होना चाहती थी, सोच रही थी शायद आज मेरी सुहागरात हो…’
खाना खाकर कुछ देर परिवार के सभी सदस्यों ने साथ बैठकर गप्पें मारी।
फिर मम्मी जी जी ने खुद ही बोल दिया-…बेटी तू जा, थक गई होगी अपने कमरे में जाकर आराम कर।
मैं तो जैसे इसी पल का इंतजार कर रही थी, मैं तुरन्त उठी और अपने कमरे में आ गर्इ, अपना नाईट गाऊन उठाकर बाथरूम में गई, नहाकर फिर से कल की तरह तैयार होकर अपने बिस्तर पर लेटकर टीवी देखने लगी।
मुझे आशीष का बेसब्री से इंतजार था। कल तो कुछ मेहमान और दोस्ते थे घर में पर आज तो कोई नहीं था, आशीष को कमरे में जल्दी आना चाहिए था।
देखते देखते 10 बज गये पर आशीष बाहर ही थे।
मैंने चुपके से कमरे का दरवाजा खोलकर ओट से बाहर देखा आशीष हॉल में अकेले बैठे टीवी ही देख रहे थे।
‘तो क्या उनको मेरी तरह अपनी सुहागरात मनाने की बेसब्री नहीं है… ‘क्या उनका मन नहीं है अपनी पत्नी के साथ समय बिताने का…?’
जब मम्मी जी और पिताजी दोनों ही अपने कमरे में जा चुके थे, मैं भी अपने कमरे में थी, घर के नौकर भी अपने सर्वेन्ट रूम में चले गये थे तो आशीष क्यों अकेले हॉल में बैठकर टीवी देख रहे थे !?!
मैं आशीष को अन्दर कमरे में बुलाना चाहती थी पर चाहकर भी हिम्मत नहीं कर पाई।
मैं वापस जाकर उनका इंतजार करते करते टीवी देखने लगी। आज भी मुझे पता नहीं चला कब नींद आ गई। रात को किस वक्त आशीष कमरे में आये मुझे नहीं पता।
सुबह जब मेरी आँख खुली तो वो मुझसे चिपक कर सो रहे थे।
उनका यह व्यवहार मुझे बहुत अजीब लग रहा था, मैं कुछ भी समझ नहीं पा रहा थी- क्या मैं आशीष को पसन्द नहीं थी…? यदि नहीं… तो वो मुझसे ऐसे चिपक कर क्यों सो रहे थे। यदि ‘हाँ…’ तो फिर वो रोज रात को कमरे में मेरे सोने के बाद ही क्यों आते हैं?
‘किससे अपनी बात बताऊँ, किससे इसके बारे में समझूं… कहीं मैं ही तो गलत नहीं सोच रही थी…’ यही सोचते सोचते मैं आज फिर से बाहर आई। मम्मी जी और पिताजी के पांव छुए और खुद ही उनके लिये चाय बनाने रसोई में चली गई।
उनको चाय देते ही पिता जी बोले- बेटा, जरा आशीष को बुला।
‘जी पिताजी…’ बोलकर मैं अपने कमरे में गई आशीष को जगाया।
आँखें खुलते ही उन्होंने दोनों बाहों में मुझे जकड़ लिया और मेरे होठों पर एक प्यारा सा चुम्बन दिया।
मैंने शर्माते हुए कहा- बाहर पिताजी बुला रहे हैं जल्दी चलिये।
आशीष तुरन्त एक आज्ञाकारी बेटे की तरह उठकर बाहर आये और पिताजी के सामने बैठ गये।
पिताजी बोले- बेटा, फैक्ट्री में ज्यादा काम की वजह से तुम दोनों हनीमून के लिये नहीं गये। यह बात मेरी समझ में आती है पर कम से कम एक दिन को बहु को कहीं बाहर घुमा लाओ।
पहले तो आशीष ने फैक्ट्री के काम का हवाला देकर पिताजी को मना किया पर पिताजी के जबरदस्ती करने पर वो आज दिन में कहीं बाहर जाने के लिये मान गये, मुझसे बोले- चलो आज बाहर घूमने चलते हैं, तुम तैयार हो जाओ जल्दी से और मैं भी नहाकर आता हूँ।
मैं तो जैसे उनके आदेश की ही प्रतीक्षा कर रही थी। फिर भी एक बहू होने के नाते मैंने पहले मम्मी जी और पिताजी को नाश्ता करवाकर चलने को कहा तो मम्मी जी बोली- नहीं बेटा, ये ही दिन हैं घूमने फिरने के, तुम जाओ घूम आओ।
‘जी मम्मी जी…’ बोलकर मैं तुरन्त अपने कमरे में गई और नहाकर तैयार होने लगी।
मेरे बाहर आते ही आशीष भी बाथरूम में घुस गये अभी मैं अपना मेकअप कर ही रही थी कि आशीष नहाकर बाहर आये और मुझे मेकअप करता देखकर पीछे से मुझसे लिपटकर बोले- कितनी सैक्सी लग रही हो तुम…
मैंने उनकी आँखों में झांकते हुए पूछा- फिर घूमने का प्रोग्राम कैंसिल कर दें क्या?
कहानी जारी रहेगी! [email protected]
This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000