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अर्जुन अन्तर्वासना पर कहानी पढ़ने वाले सभी दोस्तों को मेरा नमस्कार। अन्तर्वासना पर मेरी दो कहानियाँ ‘…बस एक बार’ तथा ‘शीशे का ताजमहल’ पाठक/पाठिकाओं को पसंद आई तथा इस बारे में मुझे बहुत सारे मेल मिले। मैं उन सभी का हृदय से आभारी हूँ।पाठक/पाठिकाओं की फरमाईश पर मैं एक नई कहानी ’उपकार’ प्रस्तुत कर रहा हूँ। आशा है अपनी पसंद-नापसंद तथा कहानी के संबंध में अपनी जीवंत प्रतिक्रिया से मुझे जरूर अवगत करायेंगे। मैं अमरावती से छः माह के लिए डेपुटेशन पर दिल्ली आया हुआ था। दिल्ली में एक बार के पास निर्मल से मुलाकात हो गई… अकस्मात् ही ! वो नशे में धुत्त था। हम वर्षों बाद मिले थे। उसने इतनी अधिक पी रखी थी कि चल नहीं पा रहा था। मैंने उसे सहारा दिया और उसे उसके घर तक छोड़ देने की पेशकश की। बड़ी मुश्किल से मैंने उसे उसके घर तक छोड़ा। दरवाजा दीपा ने खोला था… उसकी पत्नी ! दीपा लगभग 28 साल की अत्यंत खूबसूरत महिला है। निर्मल की हालत देखकर उसके चेहरे पर उदासी छा गई। उसने प्रश्नवाचक निगाहों से मेरी ओर देखा। मैंने अपना परिचय दिया- मैं निर्मल के बचपन का मित्र हूँ। आज अचानक उससे मुलाकात हो गई। उसे इस हालत में देखकर घर तक छोड़ने आया हूँ। वो आश्वस्त हुई… मुझे अभिवादन किया और फिर से आने का औपचारिक आमंत्रण देकर अंदर चली गई। मैं वापस अपने गेस्ट हाउस जहाँ मेरे रहने की व्यवस्था थी, लौट आया।खाना खाकर सोया तो निर्मल और दीपा के जीवन के बारे में सोचने लगा और ना जाने कब मुझे नींद लग गई। दो तीन दिन तक अपने कार्य में व्यस्त रहने के कारण मैं दीपा और निर्मल को भूल चुका था। उस दिन रविवार था, अवकाश का दिन, सुबह के दस बजे थे, मैं निर्मल के घर जाने के लिए निकला। दरवाजा निर्मल ने ही खोला और आत्मीयता से मेरा स्वगत किया। यह एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार था, घर साफ सुथरा और सजा संवरा हुआ था। मैं और निर्मल अपने बचपन के दिनों में खो गये, पुरानी बातें, संगी साथियों की बातें। हम काफी देर तक बतियाते रहे। इस बीच दीपा चाय और नाश्ता ले आई। निर्मल ने दीपा से मेरा परिचय कराया। मैंने ध्यान से दीपा को देखा। मुझे वह अत्यंत खूबसूरत लगी। कद ज्यादा नहीं पर शरीर गठा हुआ था, चेहरा हंसमुख था। उस दिन उन्होंने मुझे दोपहर का भोजन बिना किये आने नहीं दिया। निर्मल ने मुझे दिल्ली में रहने तक प्रतिदिन उसके यहाँ खाना खाने के लिए कहा तो मैंने असुविधा के कारण मना कर दिया। उन्होंने मुझे रात का खाना उनके यहां खाने के लिए राजी कर लिया। अब मैं प्रतिदिन आफिस के बाद उनके यहाँ चले आता था और खाना खाकर रात साढ़े नौ-दस बजे लौटता था। अब तक दीपा से मेरी घनिष्ठता हो गई थी जिसका एक कारण यह भी था कि वो नागपुर की रहने वाली थी। हम देर देर तक बैठकर बातें किया करते। निर्मल को पीने की बुरी लत थी, वो अक्सर पीकर देर से लौटता। दीपा ने मुझे बताया था कि शादी के सात साल बाद भी उन्हें कोई संतान नहीं है, इसी कुंठा में निर्मल दो तीन साल से अधिक शराब पीने लगा था, इस कारण घर पर अशांति भी होती थी। कभी-कभी मेरे ही सामने निर्मल शराब पीकर दीपा से अभद्र व्यवहार करता तो मुझे बीच बचाव करना पड़ता। मैं शालीन था या मुझमें कोई ऐसी बात थी कि निर्मल मेरी बातों को बुरा नहीं मानता था, वो मुझ पर विश्वास करता था। दीपा भी निर्मल को लेकर या अन्य कोई समस्या होती तो मुझे ही बताती थी। मैं निर्मल को शराब पीना कम करने के लिये को काफी समझाता परंतु मेरे सामने तो वो आईंदा ना पीने की बात कहता पर शाम होते ही उसके पांव अनायास किसी बार की ओर चले जाते और वो नशे में धुत्त होकर घर लौटता। इस तरह से मैं दीपा के काफी करीब आता जा रहा था, हमारे संबंध भावनात्मक थे, दोनों एक दूसरे के प्रति आकर्षित थे। एक दिन मैंने दीपा से कहा कि मेरे एक परिचित वैद्य हैं जिनकी दी हुई दवा से अनेक निःसंतान दंपत्तियों को लाभ हुआ है। यदि वो लोग चाहें तो मैं उन्हें वह दवा मंगाकर दे सकता हूँ। दीपा ने निर्मल से इस बारे में बात की तो निर्मल भी राजी हो गया। एक सप्ताह बाद मैंने वह दवा मंगाकर उन्हें दे दी। वह आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों से निर्मित चूर्ण जैसी दवा थी जिसे प्रतिदिन सुबह एक चम्मच खाली पेट खाना था। निर्मल ने दवा का नियमित सेवन प्रारंभ कर दिया। दिन बीतते गये, मुझे दिल्ली में चार माह हो गये थे, हमारे संबंधों में प्रगाढ़ता आ गई थी, निर्मल ने भी पीना कुछ कम कर दिया था। मुझे दफ्तर के काम से दो तीन दिनों के लिए नागपुर जाना था, मैंने दीपा से भी साथ चलने को पूछा तो वो राजी तो हो गई पर इसके लिए निर्मल की अनुमति जरूरी थी। मैंने निर्मल से कहा कि दीपा को भी मेरे साथ नागपुर भेज दे, वो अपने मम्मी-पापा से मिल आयेगी। निर्मल दीपा से बहुत प्यार करता था। उसने थोड़ी ना-नुकुर के बाद इस शर्त पर हामी भर दी कि दीपा दो तीन दिन के बाद मेरे साथ ही वापस आ जायेगी। दीपा खुश हो गई। एक तो मेरा साथ और दूसरे काफी अर्से बाद वो अपने मम्मी-पापा से मिलने जा रही थी। मैंने नागपुर जाने और आने का ए.सी. फर्स्ट क्लास के एक ही कूपे के चारों टिकट बुक करा लिए। निर्मल हमें स्टेशन तक छोड़ने आया था। उसे यह मालूम नहीं था कि फर्स्ट क्लास के उस कूपे का चारों टिकट मेरे ही पास है। नियत समय पर हल्के से हिचकोले लेते हुए ट्रेन ने स्टेशन छोड़ा, निर्मल और दीपा ने हाथ हिला-हिलाकर एक दूसरे से विदा ली। ट्रेन के स्टेशन छोड़ते ही मैंने कूपे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। उस दिन दीपा पहले से ज्यादा खूबसूरत लग रही थी। उसने यात्रा की सुविधा के लिए गहरे नीले रंग का कुरता जिस पर सफेद धागे से खूबसूरत कढ़ाई की गई थी, और सफेद रंग की सलवार पहन रखी थी। उसके बड़े बड़े स्तन कुरते को चीरकर बाहर आने को बेताब लग रहे थे। कुरते की बांह छोटी होने से उसकी सुडौल गोरी बांहें उसके सेक्स अपील को और अधिक बढ़ा रही थी। उसने गहरे नीले रंग की चूड़ियाँ पहन रखी थी जो उसकी हल्की सी हरकत पर खनखना उठती थी। उसके सफेद और गाढ़े नीले रंग के झुमके उसकी गालों से टकरा रहे थे। उसने नीले रंग की बड़ी सी बिंदी लगा रखी थी जिस पर एक छोटा सा नग जड़ा हुआ था। उसका मंगल सूत्र उसकी वक्ष-रेखा में लटक रहा था। खुशमिजाज तो वह है ही… उस दिन कुछ ज्यादा ही बेतकल्लुफ हो गई थी। मैं उसके बगल में उससे सटकर बैठ गया, उसने कोई विरोध नहीं किया। मैंने उसके पीछे से हाथ ले जाकर उसके बाहों पर रखा और अपनी ओर खींच लिया, वो मेरे सीने से चिपक गई। मेरा लिंग सख्त हो रहा था, मेरे हाथ उसके स्तनों पर चले गये और उसकी गोलाइयों से खेलने लगे। उसने आँखें बंद कर ली और मुझे कस कर पकड़ लिया। मैंने उसके होठों पर अपने होंठ रख दिए और उसके होंठों को चूमना-चूसना शुरू कर दिया। उसने भी मेरा साथ देना शुरू कर दिया। वह अपना सर उठाकर अपने चेहरे के हर उस भाग को मेरे होंठों के सामने कर देती जहाँ उसे चुम्बन की जरूरत होती। मैं उसकी बाहों को अपने होंठों से सहलाता हुआ उसकी उंगलियों तक ले आता। ट्रेन एक के बाद एक स्टेशन पार करती जा रही थी। मैंने दीपा के कुरते को ऊपर उठाना चाहा तो दीपा ने अपने दोनों हाथों को ऊपर उठा दिया। मैंने कुरते को उसके शरीर से अलग कर दिया, उसने खुद ही अपनी ब्रा उतार दी। उसके शरीर का उपरी हिस्सा बिल्कुल नग्न हो चुका था। मैंने उसके सलवार की गांठ खोलनी चाही तो दरवाजे पर दस्तक हुई, हम हड़बड़ाकर अलग हुए। दीपा चादर से अपने शरीर के उपरी हिस्से को ढक कर किनारे खिड़की के पास बैठ गई। मैंने दरवाजे को थोड़ा सा खोलकर बाहर झांका तो टी.टी.ई. खड़ा था। मैंने उसे टिकट दिखाया, उसने टिकट को गौर से देखा और अंदर झांका… अंदर का दृश्य देखकर उसे सब कुछ समझने में दिक्कत नहीं हुई। एक अर्थपूर्ण मुस्कान के साथ उसने टिकट मुझे वापिस किया और चला गया। मैं दरवाजा बंद कर अंदर आया। मैंने उसके शरीर से चादर हटाया तो देखा कि दीपा खुद ही अपनी सलवार औंर पैंटी उतारकर संपूर्ण नग्न हो चुकी है। वो जन्नत की परी लग रही थी। उसने मुझे भी अपने वस्त्र उतारने को कहा तो मैंने भी अपने सारे कपड़े उतार दिए। मेरे तने हुए लंबे चौड़े लिंग को देखकर उससे रहा नहीं गया। उसने मुझे दोनों जांघों को फैलाकर सीट पर बैठने का इशारा किया और खुद मेरे जांघों के बीच फर्श पर बैठकर मेरे लिंग को अपने मुंह में लेकर जोर जोर से चूसने लगी। चलते हुए ट्रेन की हिचकोलों से हमें आनन्द आ रहा था। मैं अपनी उंगलियों को फैलाकर उसके कान के पास से बालों को सहलाने लगा। अब वो सीट पर बैठ गई और मैं नीचे उसके दोनों पैंरों के बीच फर्श पर बैठ गया। उसने अपनी दोनों मांसल जांघों को उठाकर मेरे कंधे पर रख दिया, उसकी योनि मेरे मुंह के सामने थी, मैंने उसकी जांघों को अपने बाहों में लपेटकर उसकी योनि को चाटना शुरू कर दिया। उसकी योनि फैल चुकी थी इसलिए मेरी जीभ उसकी योनि के भीतर तक जा रही थी। ट्रेन थिरक रही थी, वो भी थिरक रही थी। उसने मेरे बालों को कस कर पकड़ रखा था, वो चीख रही थी और मैं कुत्ते की तरह गुर्राता हुआ उसकी योनि को चाट रहा था। थोड़ी देर में वो शान्त हो गई, उसे आर्गेस्म हो चुका था। लगभग पांच मिनट सहलाने के बाद वो फिर से तैयार हो गई, उसकी योनि मेरे लंबे-चौड़े लिंग को आत्मसात करने के लिए मचलने लगी। मैंने उसे फर्श पर लिटा दिया और उसकी जांघों को फैलाकर उनके बीच आ गया। उसने अपने दोनों पैर उपर उठा लिए उसकी योनि थोड़ी फैल गई तो मैंने अपने भारी भरकम लिंग को योनि के मुख पर रखकर अंदर धकेल दिया। आनन्द की अतिरेकता में उसकी आँखें फैल गईं, वो चीख उठी। मैंने लिंग को थोड़ा बाहर निकालकर पुनः एक जोरदार धक्का मारा तो मेरा लिंग पूरा का पूरा उसमें समा चुका था। मैं उसके दोनों पंजों को अपनी हथेलियों से बांधकर जोर जोर से संभोग में लीन हो गया। वह भी अपने नितम्बों को उठा उठाकर मेरा सहयोग कर रही थी। मेरी रफ़्तार बढ़ गई। उसने मेरे बालों को कस कर पकड़ लिया और उसे जोर जोर से खींचने लगी। मैं उसके दोनों स्तनों को पकड़कर उससे संभोग करने लगा। वो चिल्ला रही थी, उसने अपनी जांघों को फैला लिया था और… मैंने जोर जोर से चिंघाड़ते हुए अपने पौरूष द्रव से उसके योनिपात्र को लबालब भर दिया। लगभग आधे धंटे तक हम यूं ही पड़े रहे, मुझे लगभग नींद सी आ गई थी। अचानक मुझे उत्तेजना सी महसूस होने लगी, मुझे मेरे शरीर पर कोमल अंगों का स्पर्श महसूस होने लगा। मेरा लिंग सख्त होने लगा, दीपा अपने सख्त हो चुके उरोजों से मेरे शरीर को सहला रही थी। वह मेरे गालों को पकड़कर मेरे होठों को चूमने लगी। उसने अपनी जीभ मेरे मुंह में डाल दी और फिर अपने लबों को मेरे लबों के भीतर डालकर चूसने लगी। मैं भी पूर्ण उत्तेजित हो चुका था, मैंने उसे अपने बाहों में समेटा और उसके लबों का रसपान करने लगा। वह मेरे ऊपर थी, उसके स्तन मेरे सीने पर थे, मैंने उसे कसकर जकड़ लिया। वह कसमसाई। दीपा उत्तेजित हो चुकी थी और फिर से चुदने के लिये बेकरार… वह उठी और मेरे उत्तेजित और अप्रत्याशित रूप से मोटे और सख्त हो चुके लिंग पर अपना योनिमुख को रखकर धीरे-धीरे दबाना शुरू कर दिया। मेरा लिंग दीपा के गर्म योनि में प्रवेश करता जा रहा था, मुझसे रहा नहीं गया, अचानक मैंने एक झटके से अपने नितम्बों जोर से उछालकर पूरे के पूरे लिंग को उसकी योनि में प्रवेश करा दिया। वह चिल्ला उठी उईईईईई आआहहह… हहहहहह… अब वह बार बार मेरे लिंग को अपनी योनि से बाहर निकाल कर ज्यों ही अंदर लेती, मैं अपने नितम्बों को उछाल देता और मेरा लिंग एक झटके से उसकी चूत में बहुत अन्दर तक समा जाता। यह क्रिया अब हम एक लय से करने लगे बार-बार… देर… तक… उसके कंठ से उत्तेजना पूर्ण सीत्कारें निकल रही थी… उंउंउंहह… उंउंहहह…आआआहहह… आआआहहह… अब मैंने उसे एक झटके से नीचे कर दिया और उसके नितम्बों के नीचे एक तकिया रख दिया, उसके दोनों पैंरों को फैलाकर अपना लंड उसकी रतिगुहा में डाल दिया और जोर जोर से चोदने लगा।हर झटके में मेरा लिंग उसके योनि के बहुत अंदर तक उसके गर्भाशय से टकराने लगा। वो छटपटाने लगी, मैंने उसके बालों को कस कर पकड़ा और लगभग खींचते हुए उसके भीतर स्लखित हो गया। ट्रेन अपने गति से दौड़ रही थी और हम फर्श पर पूर्णतः नग्नावस्था में एक दूसरे से लिपटे हुए बेसुध पड़े हुए थे। थोड़ी देर बाद हम उठे और फिर शुरू हो गये। ट्रेन स्टेशन बदल-बदल कर आगे बढ़ रही थी और हम आसन बदल-बदल कर एक दूसरे को परितृप्त कर रहे थे जैसे वर्षों की प्यास बुझाने के लिए हमें ऊपर वाले ने बस एक ही मौका दिया गया था। उस रात हमने विभिन्न मुद्राओं में पांच बार संभोग किया। नागपुर में मैंने उसे उसके घर तक छोड़ा और अपने काम में व्यस्त हो गया। उसे मैंने जाते समय ही बता दिया था कि कब और किस ट्रेन से लौटना है, वो नियत समय पर स्टेशन पर आ गई। लौटती यात्रा में भी हमने तीन बार यौन सुख का परम आनन्द प्राप्त किया।नई दिल्ली स्टेशन पर निर्मल हमें लेने आया था, दीपा उसके साथ चली गई। मैं अपने कमरे में आकर दीपा के साथ बिताए गये उन मधुर पलों को याद करता रहा। मैं निर्मल के यहाँ पहले की तरह ही आता-जाता रहा, हमारे संबंध भी पहले जैसे ही थे। हाँ, इतना जरूर है कि मैं निर्मल की आँखों में आँखें डालकर बात करने से कतराने लगा था। मेरे जाने के दिन नजदीक आ गये, दस दिन के बाद मेरी डेपुटेशन की अवधि समाप्त होने वाली थी। दीपा उदास हो गई थी, निर्मल भी दुखी था। देखते देखते दस दिन बीत गये, मैं वापस अमरावती चला आया। मुझे अमरावती आए लगभग दस माह बीत चुके थे, अचानक मुझे एक खत मिला, खत दीपा का था, उसने लिखा था- …काफी दिनों से आपकी कोई खबर नहीं। मैं जानती हूँ आप मुझे भूले नहीं होंगे… भूल भी कैसे सकते हैं। हम आपको हमेशा याद करते रहते हैं। मैं भी… निर्मल भी… आपको यह जानकर खुशी होगी कि मुझे एक प्यारी सी बिटिया हुई है, अभी तीन माह की है, सब कहते हैं वो मुझ पर गई है पर मुझे उसमें आपकी झलक दिखाई देती है। निर्मल ने पीना बिल्कुल छोड़ दिया है, बिटिया पर जान छिड़कते हैं। उन्हें लगता है कि आपकी दी हुई दवा ने काम किया है पर मैं जानती हूँ कि वो दवा आपने उनके शराब की बुरी लत छुड़ाने के लिए दी थी। ट्रेन में आपके साथ बिताए हुए वे पल मैं कभी नहीं भूल सकती… आपकी कृपा से अब हमारा परिवार खुशहाल है, आपने हम पर जो ‘उपकार’ किया है उसे हम जीवन भर नहीं भूल पाएँगे। हो सके तो अपनी बिटिया से मिलने जरूर आईयेगा… दीपा खत को तह करके मैंने अपनी जेब में रखा और आसमान की ओर ताकता हुआ ‘उपकार’ और ‘विश्वासघात’ के बीच की महीन लकीर को ढूँढने लगा। यह कहानी आपको कैसी लगी, अपनी प्रतिक्रिया मेरे ईमेल आई डी [email protected] पर भेज सकते हैं। अर्जुन
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