मेरी चालू बीवी-44

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इमरान

केवल एक मिनट में ही नीलू ने अपना गोरा चिकना नंगा बदन अपने दो कपड़ों में ढक लिया… मैंने भी अपने पप्पू मियां को अंदर कैद कर पैंट ठीक कर ली…

मगर शैतान नीलू को तो अपनी चुदाई बीच में रुकने का बदला लेना था… वो तुरंत बाथरूम की ओर गई.. एक बार मुझे पलट कर देखा… मुस्कुराई… और एक झटके में दरवाजा खोल दिया…

दरवाजा अंदर की ओर खुलता था… अंदर सफ़ेद लाइट झमाझम चमक रही थी… उसमे एक तरफ ही वेस्टर्न सीट लगी थी… मैं जहाँ खड़ा था, वहाँ से वो जगह साफ़ दिख रही थी..

कहते हैं ना कि कोई-कोई दिन आपके लिए बहुत भाग्यशाली होता है.. तो आज यह भी देखना था.. मैंने सबसे पहले शानदार पूरे नंगे चूतड़ देखे…

क्या लुभावना दृश्य था..!!! मेरी आँखें तो पलक झपकना ही भूल गई.. मैं एकटक उसको निहार रहा था..

दरअसल रोज़ी अभी अभी ही शू शू करके उठी होगी.. उसने अपनी नीली साड़ी पूरी ऊपर कर अपने बाएं हाथ से पकड़ी हुई थी…

और उसकी कच्छी जो शायद गुलाबी ही थी.. जैसी वहाँ से दिख रही थी… उसने अपने घुटनों तक उतार रखी थी.. और वो हल्के से झुक कर फ्लश कर रही थी…

वो इतनी मग्न थी कि उसको पता ही नहीं चला कि बाथरूम का दरवाजा खुल गया है… मेरी आँखों ने भरपूर उसके मतवाले चूतड़ों के दर्शन किये…

अभी मैं कुछ सोच ही रहा था कि नीलू ने एक और हरकत कर दी… उसने ऐसे जाहिर किया जैसे उसको कुछ पता ही नहीं है, वो तेज आवाज में बोली- अररररर ऐ एई… तू यहाँ रोज़ी…? और स्वभाविक ही रोज़ी ने घूमकर उसको देखा…

उसने वो कर दिया जिसकी उम्मीद न तो मुझे थी और ना शायद नीलू को ही… रोज़ी- हाय राम… और उसने अपनी साड़ी दोनों हाथों से पकड़ी.. और शरमा कर अपने चेहरे तक ले जाकर ढक ली… इस दृश्य की तो मैंने कल्पना भी नहीं की थी..

रोज़ी के घूमने से उसकी गुलाबी कच्छी ढीली हो उसके घुटनों से सरक कर नीचे गिर गई… उसकी साड़ी और उसका पेटीकोट दोनों वो खुद पूरा उठाकर अपने चेहरे तक ले गई थी…

उसका कमर के नीचे का भाग पूरा नंगी अवस्था में बाथरूम की सफ़ेद चमकती लाइट से भी ज्यादा चमक रहा था.. पतली कमर, पिचका हुआ पेट, लम्बी टाँगें, गोल सफ़ेद चिकनी जांघें… और जांघों के बीच फूली हुई चूत का उभार खिला खिला साफ दिख रहा था…

यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! यह तो नहीं पता चला कि उस पर बाल थे या नहीं.. और अगर थे तो कितने बड़े..

वैसे जितनी साफ़ वो दिख रही थी उस हिसाब से तो चिकनी ही होगी.. या होंगे तो थोड़े थोड़े ही होंगे… दिल चाह रहा था कि अंदर जाऊं और उसके इन प्यारे होंठों पर अपने होंठ रख दूँ…

रोज़ी की तो जैसे आवाज ही नहीं निकल रही थी…

मगर नीलू पूरे होश में थी… वो चाहती तो दरवाजा बंद कर देती और सब कुछ सही हो जाता…

मगर वो तो किसी और ही मूड में थी.. वो अंदर जाकर रोज़ी के कंधे पर हाथ रख कर बोली- अरे सॉरी यार… मुझे नहीं पता था कि तू अंदर है… चल अब तेरा तो हो गया ना… रोज़ी- तू बहुत गन्दी है रे ! तू बाहर जा ना…

नीलू- हा हा… क्या बात करती हो दीदी? आपका तो हो गया ना… अब आप बाहर जाओ ना.. मुझे भी तो करनी है…

और अस्वभाविक रूप से नीलू नीचे बैठ गई और रोज़ी की कच्छी को पकड़ ऊपर करने लगी.. इतनी देर में मैंने रोज़ी की चूत के भरपूर दर्शन कर लिए थे… नीलू- अब कपड़े तो सही कर लो दीदी.. कब तक अपनी मुनिया को हवा लगाओगी?

अब जैसे रोज़ी को होश आया.. कि चेहरा छुपाने के लिए उसने क्या कर दिया था !?! और नीलू तो पिछले एक साल में मेरे साथ रहकर पूरी बेशर्म हो ही गई थी…

उसने कच्छी को रोज़ी के चूतड़ों पर चढ़ाते हुए अपने एक हाथ से रोज़ी की गुलाबी चूत को सहलाया और कच्छी के अंदर करते हुए बोली- बहुत प्यारी है दीदी अपनी मुनिया… इसको धो तो लिया था ना?

और रोज़ी ने अब अपनी साड़ी छोड़कर नीचे कर दिया और नीलू के धप्प लगाते हुए बोली- पूरी पागल ही है तू… चल हट…

अभी तक शायद उसको पता नहीं था.. या वो मेरे बारे में बिलकुल भूल ही गई थी.. कि मैं बाहर कमरे में से दोनों की हर हरकत को देख रहा हूँ…

रोज़ी बाहर आ दरवाजा अभी बंद ही कर रही थी, इतनी देर में नीलू अपनी कुर्ती ऊपर उठा अपनी लेग्गिंग चूतड़ों से नीचे खिसका सीट पर बैठने की तैयारी कर रही थी…

रोज़ी- अरे दरवाजा तो बंद करने देती… तू सच पूरी पागल है… हे… हे…

और जैसे ही रोज़ी दरवाजा बंद कर घूमी, मुझे देख उसे सब कुछ अहसास हो गया… वो बुरी तरह झेंप गई और अब शरमा रही थी…

रोज़ी- अरे सर, आपने नीलू को रोका नहीं… वो अंदर.. मैं.. ये… मैं- अरे… मैं काम में बिजी था… और वो पता नहीं कैसे.. मुझे पता ही नहीं चला… रोज़ी- वो.. ओह… मैं तो…

मैं- अरे इतना घबरा क्यों रही हो? शादीशुदा हो.. समझदार हो… हो जाता है ऐसा… कोई बड़ी बात नहीं है.. रोज़ी- वो सब अचानक… मेरे को तो पता ही नहीं था.. और आप भी…?

मैं- अरे यार, कुछ नहीं हुआ… इतनी सुन्दर तो हो तुम.. जरा सा देख लिया तो क्या हो गया? वैसे एक बात बोलूँ… रोज़ी ने अपनी नजर बिल्कुल नीचे कर रखी थी.. वो बहुत शरमा रही थी…

लेकिन इतना शुक्र था कि वो कमरे से बाहर नहीं गई थी.. वो मुझसे बात कर रही थी… रोज़ी- क्या सर?

मैं- तुम अपने नाम से लेकर.. अंदर तक गुलाब ही हो.. मतलब गुलाबी… रोज़ी- धत्त.. क्या कह रहे हो सर आप?

मैं- सच यार… मजा आ गया… कच्छी से लेकर अंदर तक सब गुलाबी था… रोज़ी- आप भी ना सर… अपने सब देख लिया…?

मैं- अरे यार इतना सुन्दर दृश्य कौन.. छोड़ता है… और वाकयी बहुत प्यारी लग रही थी… रोज़ी के चेहरे से लग रहा था कि उसको मेरी बात अच्छी लग रही है.. रोज़ी- यह नीलू भी बहुत गन्दी है.. ये सब उसकी वजह से हुआ…

मैं- हा हा.. मेरे लिए तो बहुत लकी रही यार.. और तुमको उससे बदला लेना हो तो ले लो.. जाओ दरवाजा खोल दो.. हा… हा… रोज़ी- धत्त.. मैं ऐसी नहीं हूँ… आपका मन कर रहा हो तो आप खुद खोलकर देख लीजिये…

मैं- अरे इतनी खूबसूरत देखने के बाद तो अब किसी और की देखने का दिल ही नहीं करेगा… सच बहुत सुन्दर है तुम्हारी…

और अब रोज़ी तुरंत केबिन से बाहर निकल गई ! मगर हाँ केबिन का दरवाजा बंद करते हुए उसके चेहरे की मुस्कुराहट उसकी ख़ुशी को दर्शा रही थी।

कुछ देर बाद नीलू भी अपने काम में लग गई। अब ऑफिस का कुछ काम भी करना था।

कहानी जारी रहेगी। [email protected] hmamail.com

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