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सुधा अचानक जीजा जी रुक गए, मैंने पूछा- क्या हुआ ? रुक क्यों गए? जीजा जी बोले- बुर के बाल गड़ रहे हैं..! और अब तो इसका राज जान कर ही आगे चुदाई होगी। मैं जीजा जी के पीठ पर घूँसा बरसते हुए बोली- जीजा जी खड़े लण्ड पर धोखा देना इसे ही कहते हैं…! अच्छा तो अब ऊपर से हटिए, पहले राज ही जान लो..! जीजाजी मेरे बगल में आ गए, फिर मैं धीरे-धीरे राज खोलने लगी: मम्मी ने अपनी एक सहेली को मेरी बुर को दिखा कर इस राज को खोला था। उन्होंने उसे बताया था कि जब मैं पैदा हुई तो एक नई और जवान नाइन नहलाने के लिए आई। पुरानी नाइन बीमार थी और उसने ही उसे एक महीने के लिए लगा दिया था। मम्मी को नहलाने के बाद उसने मुझे उठाया और मेरी बुआ से कहा- बीबीजी, ज़रा चार-पाँच काले बैंगन काटकर ले आइए, इसे बैंगन के पानी से भी नहलाना है। मेरी मम्मी ने पूछा कि अरी..! नहलाने में बैंगन के पानी का क्या काम? इस पर उसने हँसते हुए बताया कि बैंगन के पानी से लड़कियों को नहलाने पर उनके बाल नहीं निकलते, लेकिन नहलाते समय यह ध्यान रखना पड़ता है कि वह पानी सर पर ना लगे। मम्मी ने कहा कि मैं इस बात को कैसे मानूँ? तो उसने अपनी बुर मम्मी को दिखाते हुए कहा- भाभी जी, मेरी देखिए इस पर एक भी बाल नहीं दिखेगा। मम्मी और बुआ मान गईं और बोलीं- ठीक है नहला दो, पर ध्यान से नहलाना। बुआ ने हल्के कुनकुने पानी में बैंगन काट कर डाल दिए और नाइन ने मुझे नहलाने के बाद बड़ी सफाई से बैंगन के पानी से मेरे निचले भाग को धो दिया, इसी तरह उसने दो-तीन दिन और बैंगन के पानी से मेरे निचले भाग को धोया। बात आई-गई खत्म हो गई, मम्मी भी इस बात को भूल चुकी थीं। मैं अठारह की हुई मेरी सहेलियों को काली-भूरी झाँटें निकल आईं पर मेरी बुर पर बाल ही नहीं निकले। एक दिन कपड़ा बदलते समय मम्मी की नज़र मेरे बुर पर गई और उन्होंने मुझे टोकते हुए कहा- बेटी..! अभी से बाल साफ करना ठीक नहीं है, बाल काले और सख्त हो जाएँगे। मैंने कहा- मम्मी, मेरे बाल ही कहाँ हैं कि मैं उसे साफ करूँगी..! और अचानक मम्मी को उस नाइन का ख्याल आया और उन्होंने मुझे पास बुलाया और मेरी बुर को हाथ लगा कर देखा और बड़ी खुश हुईं। सचमुच मेरे बदन पर बाल निकले ही नहीं। अब जब भी मम्मी की कोई खास सहेली मेरे घर आती हैं तो मुझे अपनी बुर उसे दिखानी पड़ती है, लेकिन मम्मी सब को इस रहस्य को बताती नहीं। एक दिन मम्मी की एक सहेली बोली- तू तो बड़ी किस्मत वाली है, तेरा आदमी तुझे दिन-रात प्यार करेगा, बस यही है इस बिना बाल वाली बुर की कहानी..!” इस बीच जीजाजी बुर को सहला-सहला कर उसे पनिया चुके थे। अब वे मेरी टाँगों के बीच आ गए और अपना शिश्न मेरी यौवन-गुफा में दाखिल कर दिया। मैं चुदाई का मज़ा लेने लगी। नीचे से चूतड़ उचका-उचका कर चुदाई में भरपूर सहयोग करने लगी। “हाय मेरे चोदू-सनम तुम्हारा लौड़ा बड़ा जानदार है तीन-चार बार चुद चुकी हूँ, पर लगता है पहली बार चुद रही हूँ…! मारो राजा धक्का… और जोर से.. पूरा पेल दो अपना लौड़ा …! आज इसे कुतिया की तरह बुर से निकलने नहीं दूँगी… लोग आयेंगे और देखेंगे कि जीजा का लौड़ा साली की बुर में फँसा है… जीजा … अच्छा बताओ… अगर ऐसा होता तो क्या आप मुझे चोद पाते…!” मैं थोड़ा बहकने लगी। जीजू मस्त हो रहे थे बोले- चुदाई करते समय आगे की बात कौन सोचता है.. फंस जाता तो फंस जाता। जो होना है होगा पर इस समय चुदाई में ध्यान लगाओ मेरी रानी…! आज चुदाई ना होने से मन बड़ा बेचैन था, उससे ज़्यादा तुम्हारा राज जानना चाहता था …! अब चोदने का मज़ा लेने दो.. ले लो अपनी बुर में लौड़े को और लो.. आज की चुदाई में मज़ा आ गया… हाँ रानी अपनी चूत को इस लौड़े के लिए हमेशा खोले रखना…लो मजा आाआआ आआआ लो..! रानीईईईईईई..!” जीजा जी ऊपर से बोल रहे थे और मैं नीचे से उनका पूरा लौड़ा लेने के लिए ज़ोर लगाते हुए बड़बड़ा रही थी, “ऊऊओ मेरे चुदक्कड़ राजा चोद दो… अपनी बिना झाँटों वाली इस बुर्र्र्र्र्र को और चोदोऊऊऊ फाड़ दोओ.. इस साली बुर को… बड़ी चुदासी हो रही थी… सुबह से…जीजाजी साथ-साथ गिरना … हाँ अब… मैं आने वाली हूँ … कस-कस… कर दो-चार धक्के और मारो चुसा दो अपनी मुनिया को मदन-रस… मिलने दो सुधा-रस को मदन-रस से… ओह जीजू आप पक्के चुदक्कड़ हो… ना जाने कितनी बुरों को अपने मदन-रस से सींचा होगा…आज तो रात भर चुदाई का प्रोग्राम है… तीन बुरों से लोहा लेना है… लेकिन मेरी बुर का तो यहीं बाजा बजा दिया… मारो राजा और ज़ोर से… थक गए हो तो बताओ.. मैं ऊपर आ कर चोद दूँ…… इस भोसड़ी को… ओह अब मैं नहींईईई रुक्क सकती ओह अहह लो मैं गइईई ओह राजा तुम भी आजाऊऊऊ..!” मैं नीचे से झड़ने के लिए बेकरार हो रही थी और जीजा जी ऊपर से दनादन धक्के पर धक्के मार रहे थे। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! पूरे कमरे में चुदाई धुन बज रही थी। मम्मी भी नीचे नहीं थी इसलिए और निश्चिन्तता थी। खूब गंदे-गंदे शब्दों का आदान-प्रदान हो रहा था। आज का मज़ा ही और था… बस चुदाई ही चुदाई… केवल लौड़े और बुर की घिसाई ही घिसाई हो रही थी। जीजाजी अब झड़ने के करीब आ रहे थे और ऊपर से कस-कस कर धक्के लगा कर बोलने लगे, “ओह मेरी बिना झाँटों वाली बुर की शहज़ादी तेरी बुर तो आफताब है…चोद-चोद कर इसे इतना मज़ा दूँगा कि मुझसे चुदे बिना रह ही नहीं पाओगी…चुदाई के लिए सब समय बेकरार रहोगी…ओह रानी…! एक बार फिर साथ-साथ झड़ेंगे… ओह अब तुम भी आआजाओ…!” कहते हुए जीजू मेरी बुर की गहराई में झड़ गए और मैं भी साथ-साथ खलास हो गई…! जीजू मेरी छाती से चिपक गए, कुछ पल के लिए तो ऐसा लगा कि मुनिया ने उनके लौड़े को फँसा लिया है। थोड़ी देर इसी तरह चिपके रहे। फिर मैंने जीजा जी को उठाते हुए कहा- अब उठिए..! कामिनी के यहाँ नहीं चलना है क्या? जीजू बोले- जब अपने पास साफ-सुथरा लैंडिंग प्लेटफॉर्म है, तो जंगल में एयरोप्लेन उतारने की क्या ज़रूरत है..! उनकी बात सुनकर दिल बाग-बाग हो उठा और मैंने उन्हें चूमते हुए कहा- जीजाजी..! कामिनी के यहाँ तो चलना ही है, आपने जुबान दे दी है। फिर हँसते हुए बोली- कहीं तीन की वजह से डर तो नहीं रहे हैं..! मैंने उनकी मर्दानगी को ललकारा। “अब मेरी प्यारी साली कह रही है तो चलना ही पड़ेगा, कुछ नया अनुभव होगा..!” जीजा जी उठे और हम दोनों ने बाथरूम में जा साफ-सफाई की और कपड़ा पहनने लगे। तभी नीचे मैं गेट खुलने की आवाज़ आई। मैंने जीजाजी से कहा- अब आप दीदी के कमरे में चलिए, मम्मी आ गई हैं। जीजाजी अपने कमरे में चले गए। मैं तैयार हो कर अपने कमरे से निकली तो देखा चमेली चाय लेकर ऊपर आ रही है। हम दोनों साथ-साथ जीजा जी के कमरे में घुसे देखा जीजाजी तैयार होकर बैठे हैं, चमेली चहकी, “वाह..! जीजाजी तो तैयार बैठे हैं, कामिनी दीदी से मिलने की इतनी जल्दी है..?” मैंने उससे कहा- चमेली तुझे बोलने की कुछ ज़्यादा ही आदत पड़ती जा रही है, चल चाय निकाल।” चमेली ने दो कप में चाय निकाली और एक मुझे दी और एक जीजाजी को पकड़ा कर मुस्करा दी और बोली- जीजाजी लगता है दीदी ने ज़्यादा थका दिया है, सिगरेट निकालूं..!” “हाँ रे पिला,.. लेकिन मेरे पैकेट में तो नहीं है..!” “अरे दीदी ने मुझसे पैकेट मंगवाया था, यह लीजिए।” और उसने अपने चोली से निकाल कर जीजाजी को सिगरेट पकड़ा दी। जीजाजी चाय पीते हुए बोले- अरे एक सुलगा कर दे ना ! चमेली ने सिगरेट सुलगाई और एक कश लगा कर धुआँ जीजाजी के ऊपर उड़ाते हुए बोली- दीदी का मसाला लगा दूँ या सादा ही पिएगें..!” हम लोग उसकी दो-अर्थी बातें सुनकर हँस पड़े। मैंने उसे डांटते हुए कहा- चमेली तू हरदम हँसी-मज़ाक करने के मूड में क्यों रहती है..!” “क्या करूँ दीदी दुनिया में इतने गम हैं कि उससे झुटकारा नहीं मिल सकता खुशी के इन्हीं लम्हों को याद करके इंसान अपना सारा जीवन बिता देता है।” “अरे वाह मेरी छमिया फिलॉसफर भी है..!” जीजा जी बोले। चमेली के चेहरे पर ना जाने कहाँ से गमों के बादल मंडराए, पर जल्दी ही उड़न-छू भी हो गए। “जीजाजी ये छमिया कौन है..!” फिर हम सब हँस पड़े। मैंने चमेली से कहा- चलो नीचे गैरेज का ताला खोलो, कार कई दिनों से निकली नहीं है साफ कर देना और मम्मी जो दे उसे रख देना, मेरा एक बैग मेरे कमरे से ले लेना, पर उसे मम्मी ना देख पाएं।” जीजाजी बोले- अरे उसमें ऐसी क्या चीज़ है..!” मैं बोली जीजाजी आपके लिए भाभी के कमरे से चुराई है, वहीं चलकर दिखाऊँगी..!” हम लोग मम्मी से कह कर घर से कार पर निकले। एक जगह गाड़ी रोक कर जीजाजी अकेले ही कुछ खरीद कर एक झोले में ले आए और मुझसे कहा- सुधा अब तुम स्टेयरिंग सम्भालो। मैंने उन्हें छेड़ते हुए कहा- जीजाजी को आज तीन गाड़ी चलानी हैं इसी लिए इस गाड़ी को नहीं चलाना चाहते। और मैं ड्राइवर सीट पर बैठ गई, मेरे बगल में जीजू और चमेली को जीजाजी ने आगे ही बुला कर अपने बगल में बैठा लिया हम लोग कामिनी के घर के लिए चल पड़े, जो थोड़ी ही दूर था। प्रिय पाठकों आपकी मदमस्त सुधा की रसभरी कहानी जारी है। आपके ईमेल की प्रतीक्षा में आपकी सुधा बैठी है। [email protected] gmail.com
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