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कुछ ही देर में पीटर का दोस्त भी ऊपर आ गया और मुझे मेरी गाण्ड के आस पास कुछ मोटा मोटे लण्ड जैसा एहसास होने लगा था। क्योंकि मेरी गाण्ड पीछे की तरफ थी इसलिए अब्दुल आराम से अपना लण्ड घुसा सकता था। और उसने ऐसे किया भी। वैसे भी कौन भला इतनी चिकनी गाण्ड छोड़ सकता है।
उसने अपने लौड़े का मोटा टोपा मेरी गाण्ड से सटाया और पीटर ने मुझे पैरों के बल से उठकर घुटनों के बल झुका कर अपने ऊपर बिठा लिया ताकि अब्दुल को गाण्ड में लण्ड घुसाने में आसानी हो।
मेरी गाण्ड बिस्तर के बिल्कुल छोर पर थी इसलिए अब्दुल ने मेरी कमर पर अपनी हाथ रखा और अपना लण्ड धकेल कर मेरी गाण्ड में घुसाने का प्रयास करने लगा और उसे सफलता भी मिल रही थी क्योंकि मेरी गाण्ड के छेद को पीटर ने पहले ही बड़ा कर रखा था, और अब्दुल का लण्ड पीटर से थोड़ा छोटा था इसलिए वो तो आसानी से गाण्ड के अंदर जाने लगा था।
धीरे धीरे जैसे जैसे अब्दुल का लण्ड मेरे अन्दर घुस रहा था, मुझे धीरे धीरे दोनों लण्डों का एहसास हो रहा था, एक आगे और एक पीछे। कुछ ही देर के भीतर जैसे ही अब्दुल का लण्ड मेरे गाण्ड में अच्छे से घुस गया, अब्दुल ने अपनी चुदाई शुरू कर दी और शुरू में प्यार से और धीरे धीरे गुस्से से मेरी गाण्ड को मारने लगा और मेरे कूल्हों को सहलाने लगा।
अब मुझे दर्द हो रहा था। ऐसा नहीं था कि मैंने पहली बार दो लण्ड लिए हैं पर ऐसा पहली बार था जब मैं दो काले लण्ड जो चार लण्ड के बराबर हैं, वो आगे पीछे लिए हैं। उधर अब्दुल अपनी गति बढ़ाये जा रहा था और पीटर धीमे करते जा रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो दोनों को पता है कब कौन क्या करने वाला है, या फिर कह सकते हैं दोनों की अच्छी सांठ-गांठ या तालमेल है।
थोड़ी देर तक दोनों ने मुझे चोदने के बाद मेरे दोनों छेदों को कुछ पल के लिए आज़ाद किया और मुझे पीटर के बगल में लेटा दिया। पीटर ने अपनी शर्ट पहनी और नीचे चला गया। मैं समझ गई कि वो सविता को मनाने जा रहा है कि वो भी हमारे साथ आ जाये।
उधर अब मैं और अब्दुल पहली बार एक दूसरे को नंगा देख रहे थे। अब्दुल मेरे बगल में बिस्तर पर आकर दीवार से पीठ टेक कर बैठ गया। अब्दुल की जीन्स खुली थी बस। मैंने अब्दुल के शर्ट के बटन खोले और उसके छाती को चूमने लगी।
अब्दुल का लण्ड भले ही पीटर से थोड़ा छोटा हो पर अब्दुल का शरीर पीटर से भी गठीला और मरदाना था। थोड़ी देर तक अब्दुल के बदन को चूमने के बाद अब्दुल ने मुझे अपनी गोद में बिठा लिया। अब्दुल ने अपना लण्ड मेरी चूत पर सटाया और मुझे नीचे अपने लण्ड पर बिठाने लगा।
मैंने अपने दोनों पैर अब्दुल की कमर के पास रखे और उसके लण्ड को अपनी कोमल सी चूत में समा लिया। अब्दुल भी चूत चोदना शुरू कर चुका था, साथ ही साथ मेरे मम्मों को भी अपने होंठों से चूसने लगा था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
मैं अब अब्दुल के लण्ड पर उछल उछल कर लण्ड को अपने चूत के अंदर लेने लगी और वो भी अपने दांतों से मेरे निप्पलों को काटने लगा और मेरी चीख निकलने लगी। अब्दुल ने दोनों हाथों से मेरे दोनों मम्मों को पकड़ रखा और एक एक करके दोनों तरफ से मेरे मम्मों को चूसने लगा। अब मेरा मूड कुछ अलग कने का था इसलिए अब मैं अब्दुल के लण्ड पर ऊपर नीचे उछलने लगी, अगल बगल गोले में अपनी गाण्ड घूमाने लगी।
मैं अब्दुल के लण्ड को धुरी बना कर अपनी कमर से चारों तरफ घूमने लगी। अब्दुल को भी मज़ा आ रहा था, वह भी मेरी कमर पकड़ कर मुझे घुमाने लगा। पहले मैंने अपनी गाण्ड थोड़ी ऊपर की और आधा लण्ड ही अंदर घुसे रहने दिया और अपनी गाण्ड गोलाकार में घुमाने लगी। तत्पश्चात मैंने पूरा लण्ड चूत के अंदर समां लिया और फिर अपनी कमर को चारों तरफ घुमा कर अब्दुल के लण्ड के मज़े लेने लगी।
अब अब्दुल को मज़ा आने लगा था और मुझे समझ आ रहा था किसी भी क्षण अब्दुल का वीर्य स्खलन हो सकता है इसलिए मैंने अब्दुल का लण्ड अपनी चूत से निकला और 69 की पोजीशन में आ गई और उसका लण्ड चूसने लगी। कुछ ही सेकंड में उसका वीर्य मेरे मुँह के अंदर गिर गया।
पर मैंने हार नहीं मानी और अब्दुल के लण्ड को चूसना जारी रखा। मैं अब्दुल के लण्ड से निकले वीर्य को उसी के लण्ड पर चूस चूस कर मलने लगी और जैसे ही मैंने अब्दुल का लण्ड आने मुंह से बाहर निकला वीर्य के जबरदस्त चिपचिपा होने के कारण वो अभी भी मेरे होंठों से चिपका हुआ था।
मैंने अब्दुल के गोटों को चूसना शुरू कर दिया और मेरे मुंह में बचे वीर्य को अब्दुल के गोटों पर मलने लगी और गोटों को जीभ से सहलाने लगी चूसने लगी और वीर्य मलने लगी। कुछ ही देर में अब्दुल का लण्ड के चारों तरफ वीर्य लिपटा हुआ था।
उधर अब्दुल मेरी चूत को चाटने में मग्न था। ऐसे लग रहा था सदियों से उसकी जो चूत की प्यास थी, अब जा कर बुझी है।अब्दुल इतनी देर से मेरी चूत चाट रहा था कि चूत से सफ़ेद झाग आने लगे थे पर पर अब्दुल को तो चाटने से मतलब था। कभी चूत में उंगली डाल कर घुमाने लगता कभी जीभ घुसा देता तो कभी दांतों से चूत की पंखुड़ियों को काटने लगता। अब मैं थक गई थी और मैं अब्दुल के मुँह की तरफ गाण्ड और थोड़ा उठा कर उसके पेट पर ही लेट गई।
अब मेरी चूत अब्दुल के होंठों पर आराम कर रही थी और अब्दुल के जीभ मेरी चूत से साथ अठखेलियाँ कर रहा था। तभी मैंने देखा कि पीटर सविता को गोद में उठा कर ला रहा है, मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई। आगे की कहानी अगले भाग में।
आपको मेरी कहानी कैसी लगी, मुझे [email protected] पर मेल करके जरूर बताइयेगा। प्लीज इस कहानी के नीचे अपने कमेंट जरूर लिखियेगा, धन्यवाद। आपकी प्यारी चुदक्कड़ जूही परमार
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