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फ्री देसी सेक्स गर्ल स्टोरी में पढ़ें कि मैं अपनी कामवाली की जवान बेटी को पटाने के चक्कर में उसे दाने पे दाना डाले जा रहा था. लग रहा था कि चिड़िया जाल में फंस जायेगी.
“सच कहता हूँ अब तो मेरा मन भी तुम्हारा बॉयफ्रेंड बन जाने को करने लगा है.” मैंने हंसते हुए कहा।
इस्स्स्स … सानिया तो लाज के मारे गुलजार ही हो गई थी।
“मुझे ऐसी बातों से शर्म आती है।” उसने मुंडी झुकाए हुए ही कहा।
मेरा लंड ठुमके पर ठुमके लगा रहा था। उसमें तनाव इतना ज्यादा हो गया था कि मेरा मन तो मुठ मार लेने को करने लगा था। साली इस मीठी छुरी ने तो मुझे हलाल ही कर दिया है।
मैंने अपना तुरुप का पत्ता चल दिया था और अब तो सानिया नामक इस कबूतरी को मेरे जाल में फंसने से कोई नहीं रोक सकता। मेरा जाल पुख्ता बन चुका था और मैंने चिड़िया के लिए दाना भी डाल दिया था। अब तो यह चिड़िया गुटुर-गूं करती दाना चुगने के लिए जरूर इस जाल पर बैठेगी और फिर तो मैं अपने जाल की डोरी जब जी चाहेगा खींच ही लूंगा।
मैंने कई दिनों से पप्पू की सफाई नहीं की थी तो आज पहले तो पप्पू की सफाई की फिर शेव भी बनाई। मैं सन्डे के दिन शेव नहीं करता हूँ पर आज मैंने शेव भी बनाई और बढ़िया परफ्यूम भी लगाया। आज तो मैंने अपने आप को चिकना बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आज मैंने वही लकी सुनहरी रंग का कुर्ता और पायजामा पहन लिया जिसे मैं किसी ख़ास मौके पर ही पहनता हूँ।
जब मैं नहाकर बाथरूम से वापस आया तब तक सानिया ने सफाई बर्तन आदि साफ़ कर लिए थे और दूसरे बाथरूम में पड़े कपड़े भी धोकर सुखा दिए थे। आज तो उसके काम करने की तेजी देखने लायक थी।
बस मैं आज उसे झाड़ू लगाते समय उसके गोल कसे हुए उरोजों और मखमली जाँघों को देखने से महरूम (वंचित) जरूर हो गया था। सानिया भी अब तक हाथ मुंह धोकर आ गई थी। “सानिया मैडम, आज क्या नाश्ता बनाने वाली हो?” “आप जो बोलो मैं बना देती हूँ?” सानिया ने चुनमुन चिड़िया की तरह चहकते हुए कहा। “आज मेरी नहीं तुम अपनी पसंद का नाश्ता बनाओ हम भी तो देखें हमारी सानिया मैडम के हाथों में कितना जादू है?” कहकर मैं भी हंसने लगा।
“आपके लिए गोभी और प्याज के पलाठे बना दूं?” सानिया ने कुछ सोचते हुए पूछा। “अरे वाह … क्या तुम्हें भी पसंद हैं परांठे?” “हओ.” सानिया ने थोड़ा शर्माते हुए अपनी मुंडी नीचे झुका ली। “चलो ठीक है आज हम मिलकर पराँठे सेकते हैं … मेरा मतलब बनाते हैं … तुम एक काम करो.” “क्या?” “वो गोभी प्याज वगेरह सब चीजें यहीं ले आओ हम मिलकर तैयारी करते हैं.”
सानिया रसोई में सामान लेने चली गई। पहले तो मैंने सोचा था ये नाश्ते वाला झमेला रहने देते हैं बाज़ार से ही डोसा या समोसे-कचोरी आदि ले आते हैं पर मुझे तो सानिया के साथ समय बिताना था और किसी तरह उसे अपने जाल में फंसाने का प्रोग्राम आगे बढ़ाना था तो नाश्ता बनाने का बहाना तो सबसे ज्यादा मुफीद (सटीक) था।
थोड़ी देर में सानिया गोभी, हरी मिर्च, प्याज, लहसुन, धनिया आदि ट्रे में रख आकर ले आई। मैंने उसे आराम से सोफे पर बैठ जाने को कहा। सानिया थोडा झिझकते हुए सोफे पर बैठ गई और प्याज हरी मिर्च आदि काटने लगी।
“लाओ गोभी मैं काट देता हूँ?” मैंने कहा. “इसे काटना नहीं है.” “तो?” “इसे कद्दूकस किया जाता है.” “ओह … मुझे तो पता ही नहीं था.” कह कर मैं हंसने लगा तो सानिया भी मेरे अनाड़ीपन पर मंद-मंद मुस्कुराने लगी।
“एक बात बताऊँ?” मैंने कहा. “हओ?” “एक बार गौरी और मैं दोनों ब्रेड के टोस्ट बना रहे थे तो मैंने प्याज और मिर्च काटते समय गलती से अपने हाथ आँखों पर लगा लिए थे तो मुझे बहुत जलन हुई थी।” कह कर मैं हंसने लगा। “फिर?” “फिर क्या! मेरी तो हालत ही खराब हो गई! आँखों में जलन के कारण से आंसू ही निकलने लगे।” “ओह … फिल?” “फिर गौरी ने मेरी आँखों पर ठन्डे पानी के छींटे मारे और बहुत देर तक बर्फ से सिकाई की तब जाकर ठीक हुआ।”
“आप भी अनाड़ी हो … मिर्च वाले हाथ आँखों पर थोड़े ही लगाते हैं.” “अब मुझे क्या पता कि हाथ लगाने से ऐसा हो जाएगा? इसीलिए अब मैंने मिर्ची और प्याज काटने से डरता हूँ। पर अब सोचता हूँ कि …” “क्या?” “एक बार फिर से मिर्ची वाले हाथ आँखों पर लगा लूं.”
“अरे ??? वो क्यों?” “जलन हुई तो तुम अपने हाथों से ठन्डे पानी के छींटे मार देना और अपने नाजुक हाथों से मेरा चेहरा भी पौंछ देना. इस बहाने मुझे तुम्हारे हाथों की नाजुकी का भी सुख मिल जाएगा.” मैंने हँसते हुए कहा. “हट! कोई जानकार ऐसे थोड़े ही करता है.” कहकर सानिया मंद-मंद मुस्कुराने लगी थी।
“इसका मतलब तुम मेरी जलन को बिल्कुल ठीक नहीं करगी?” “अले नहीं मैंने ऐसा थोड़े ही बोला है. आपको कोई तकलीफ हो तो मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ.” “थैंक यू यार … मैं तो सोच रहा था क्या पता तुम शर्मा जाओ और मुझे ऐसे ही छोड़ दो?” “ऐसे थोड़े ही होता है.” कह आकर सानिया जोर-जोर से हंसने लगी।
“अच्छा सानिया एक बात बताओ?” “क्या?” “वैसे सानिया नाम है तो तुम्हारी तरह है तो बहुत सुन्दर पर कोई निक नेम होता तो बहुत अच्छा होता? तुम्हें घर वाले भी सानिया नाम से ही बुलाते हैं या कोई और छोटा नाम भी है?” “घर पर तो तो सभी मुझे मीठी के नाम से बुलाते हैं … पल मुझे तो यह नाम अच्छा नहीं लगता.” सानिया ने उदास लहजे में कहा।
“हाँ मीठी नाम तो मुझे भी अच्छा नहीं लगता है लेकिन मैं अगर तुम्हें सानू नाम से बुलाऊँ तो तुम्हें कैसा लगेगा?” “हो … यह तो बहुत अच्छा नाम है कई बार मधुर दीदी भी मुझे इसी नाम से बुलाती हैं।”
“चलो आज से मैं भी तुम्हें सानू के नाम से ही बुलाया करूंगा। ठीक है ना?” सानिया ने अपनी पलकें झपकाते हुए ‘हओ’ कहा। उसके चहरे पर खूबसूरत मुस्कान ऐसे फैल गई जैसे फलक (आसमान) पर सहर (सुबह) के उजाले की लाली फ़ैल जाती है।
मैंने मन में सोचा ‘मेरी जान अब तो मैं तुम्हें सानू की जगह जल्दी ही जानू के नाम से बुलाना शुरू करने वाला हूँ।’
सानिया ने … सॉरी सानूजान ने पराँठों की पूर्व तैयारी कर ली और फिर रसोई में चली गई।
मेरा मन तो रसोई में उसके साथ ही जाने का कर रहा था पर मैं हॉल में ही बैठा टीवी देखता रहा।
थोड़ी देर में सानिया 7-8 पराँठे बना कर ले आई साथ में दही, अचार और चाय का थर्मोस आदि भी ले आई। पराँठे ठीक-ठाक बने थे पर मुझे तो उसके हाथों के हुनर की तारीफ़ करनी थी तो मैंने कहा- वाह … सानू … मेरी जान, तुमने तो बहुत बढ़िया पराँठे बनाए हैं. “अच्छे बने हैं?” “अरे अच्छे नहीं लाजवाब बने हैं ऐसे पराँठे तो गौरी भी नहीं बनाती थी? वाह … मजा आ गया।”
सानिया को अपनी तारीफ़ बहुत अच्छी लगी थी। और ख़ास बात तो यह भी थी कि गौरी से अपनी तुलना होते देख उसे शायद बहुत अच्छा लग रहा था। अब तो वह अपनी पाक-कला की निपुणता पर मंद-मंद मुस्कुराने लगी थी।
मैंने उसे भी साथ में ही खाने को कहा तो उसने थोड़ा सकुचाते हुए अपने लिए भी प्लेट में 2 पराँठे डाल लिए और चार और दही के साथ खाने लगी।
बार-बार मेरी निगाहें उसकी जाँघों की ओर ही जा रही थी। मेरा लंड तो उसे सलामी पर सलामी दिए जा रहा था। सानिया भी नीची निगाहों से मेरे खड़े लंड को देखती जा रही थी। लंड तो सानिया की कुंवारी बुर की खुशबू पाकर जैसे हिलोरें ही लेने लगा था।
“सानू तुमने ये पराँठे बनाने की कला कहाँ से सीखी यार! तुम्हारे हाथों में तो सच में जादू लगता है।” “ऐसे ही कई बार मैं घर पर भी बनाती हूँ और वो जहां मैं काम करती हूँ वो आंटी भी कई बार ऐसे पराँठे बनवाती हैं।” “भई अब तो मेरा मन रोज ही तुम्हारे हाथों के बने पराँठे खाने को करेगा.” “तो क्या हुआ आपको इतने पसंद हैं तो मैं रोज बना दिया करुँगी.” सानिया ने हंसते हुए जवाब दिया।
मैंने भी आज तीन पराँठे खाए और बाकी के सारे सानिया मिर्ज़ा (सॉरी सानू जान) ने लपेट लिए।
चाय पीने के बाद वह जब बर्तन आदि समेट कर जाने लगी तो मेरी निगाहें उसके पैरों पर पड़ी। उसके पैरों की एड़ियां थोड़ी फटी हुई सी लग रही थी। “अरे सानू? ये तुम्हारी एड़ियों को क्या हुआ? फटी हुई सी लग रही है?” “हाँ” सानिया को कुछ शर्मिंदगी सी हुई।
“तुम शूज नहीं पहनती क्या?” “मेले पास जूते नहीं हैं और दीदी रसोई में जूते ले जाने को मना भी करती हैं।”
“ओह … मैं आज तुम्हारे लिए आज स्पोर्ट्स शूज लाकर देता हूँ दिन में उन्हें पहना करो और हाँ बिवाइयों के लिए क्रेक क्रीम आती है मैं वह भी ला दूंगा तुम रोज रात को सोते समय अपनी एड़ियों पर लगा लिया करो उससे 5-7 दिन में ही तुम्हारे पैरों की एड़ियां ठीक हो जायेगी।” “सच्ची?” सानिया को तो जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था।
“हाँ भई! तुम मेरी इतनी अच्छी दोस्त हो तो मैं तुम्हारे लिए इतना काम तो कर ही सकता हूँ. एक काम करो तुम अपने पैरों का नाप मुझे बताओ क्या साइज है?” “पता नहीं?” सानिया ने भोलेपन जवाब दिया। “कोई बात नहीं तुम ये बर्तन आदि रखकर आओ, मैं नाप ले लेता हूँ।”
सानिया बर्तन समेत कर रसोई में चली गई और मैं एक कागज़ और पेन लेकर आ गया।
अब मैंने पेपर को टेबल पर रखकर सानिया से अपना एक पैर टेबल पर पड़े कागज़ पर रखने को कहा। सानिया ने बिना किसी हील-हुज्जत के अपना एक पैर कागज़ पर रख दिया। अब मैंने पहले तो उसके पैर पर हाथ लगाया और फिर उसकी पिंडलियों को पकड़कर थोड़ा एडजस्ट किया। आह … क्या रेशम जैसी मुलायम पिंडलियाँ थी। हल्के-हल्के रोयें और घुटनों से ऊपर का भाग तो मक्खन जैसा। मेरा मन तो बार-बार उसके पिंडलियों को ही नहीं जाँघों को भी सहलाने का करने लगा था।
लंड तो उसकी बुर की खुशबू पाकर खूंखार ही हो चला था। मेरी साँसें बहुत तेज हो गई थी और साथ ही दिल की धड़कन भी बहुत तेज हो गई थी। मैंने महसूस किया सानिया की साँसें भी तेज सी हो चली हैं और उसका शरीर भी लरजने सा लगा है। उसने अपनी आँखें बंद कर ली थी और अपनी मुट्ठियाँ भी कस ली थी। उसके उरोजों की घुन्डियाँ तो अब स्कर्ट में साफ़ महसूस होने लगी थी।
अब तो उसके पैरों का नाप लेने की मजबूरी थी। मैंने पेन से कागज़ अपर उसके दोनों पैरों का ग्राफ बनाया। मेरे पास इस समय उसकी पिंडलियों को छूने और सहलाने का अच्छा बहाना और मौक़ा भी था तो मैं भला उसे कैसे हाथ से जाने देता। मैं इस समय उसकी जाँघों को मसल तो नहीं सकता था पर मैंने एक-दो बार बहाने से उसकी जाँघों को जरूर स्पर्श कर लिया था। रेशमी मखमली अहसास पाकर लंड ने तो पाजामे में कोहराम ही मचा दिया था। मुझे डर लगने लगा था कहीं वह ख़ुदकुशी ही ना कर ले।
नाप ले लेने के बाद मैंने तसल्ली से उस कागज़ पर बने पैरों के निशानों को देखा और फिर उन पर अपना हाथ फिराया। सानिया मेरी इन सभी हरकतों को देखकर मुस्कुराए जा रही थी।
प्यारे पाठको और पाठिकाओ! आपको शायद यह सब बातें फजूल सी लग रही होगी पर मेरा मकसद तो सानिया को यह अहसास दिलाने का था कि वह मेरे लिए कितनी स्पेशल है और मैं उसकी कितनी क़द्र करता हूँ। मुझे नहीं लगता वह इतनी नासमझ होगी कि उसे मेरी इस मनसा का आभास ना हो गया हो। स्त्री कभी भी प्रत्यक्ष रूप से प्रणय निवेदन तो नहीं करती अलबत्ता उसे भगवान् ने ऐसा गुण जरूर दिया है कि वह झट से आदमी के नियत और मनसा जरूर पहचान लेती है। और सानिया जितनी जल्दी मेरी मनसा जान ले मेरे लिए अच्छा ही है।
अब तक का सफ़र मेरे प्लान के मुताबिक़ सही चल रहा था। अब आगे के सोपान में तो बस उसे बांहों में भरने की योजना के बारे में सोच रहा था।
मैंने उसके घुटनों के ऊपर उसकी जाँघों पर एक थपकी सी लगाते हुए कहा- लो भई सानू जान, तुम्हारा नाप वाला काम तो हो गया अब शाम को मैं तुम्हारे लिए बढ़िया शूज और जुराब ले आऊंगा।” सानिया तो जैसे रोमांच और लाज के मारे लरजने ही लगी थी। उसके होंठ कुछ बोलने के लिए जैसे फड़फड़ाने लगे थे। “वो तुम साड़ी बांधना सीखने का बोल रही थी ना?” “हओ?” “तो फिर एक काम करो तुम ये बर्तन आदि बाद में साफ़ कर लेना आओ तुम्हें साड़ी पहनना सिखाता हूँ.”
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फ्री देसी सेक्स गर्ल स्टोरी जारी रहेगी.
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