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पीटर धीरे धीरे अपना मोटा लण्ड मेरी गाण्ड में घुसाने की कोशिश करने लगा था। उसका लण्ड का आगे का मोटा टोपा जो किसी बड़े आलूबुखारे जैसा दिख रहा था, धीरे धीरे मेरी गाण्ड में घुस रहा था और मुझे उसका एहसास दर्द के माध्यम से होने लगा था।
जैसे ही उसके लण्ड के टोपे का बड़ा भाग़ जो टोपे के आखिरी सिरे होता है मेरे अंदर जाने लगा मेरा दर्द और भी ज्यादा बढ़ने लगा और मैं दर्द से कराहने लगी- आअह्ह्ह्ह्हा… ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह… हाआआयय्य्य्ईई… ऊऊऊह्ह्हह्ह… अह… उउइज्ज्ज…
पर पीटर पर मेरे दर्द का जरा भी असर नहीं पड़ा और फिर वो हुआ जिसका मुझे डर था। उसका टोपा मेरी गाण्ड के अंदर जा चुका था और वो धीरे धीरे पीछे का अपना मोटा लम्बा लण्ड भी मेरी गाण्ड में घुसाता जा रहा था और मेरी दर्द बढ़ता जा रहा था।
इस दर्द का अंदाजा आप इसी से लगा लीजिये कि इतना दर्द तो मुझे तब भी नहीं हुआ जब मैं पहली बार चुदी थी। यह दर्द उस दर्द का 5 गुणा था। मैं दर्द से चीख रही थी- आअह्ह्ह्ह… ह्ह्ह्ह्हह… ऊऊऊओह्ह्ह्ह्ह… पर पीटर अपनी चुदाई में मग्न था।
जैसे ही पीटर का अधिकतर लण्ड मेरी गाण्ड में घुस गया, उसने धीरे धीरे लण्ड बाहर की तरफ खींचा और आधा बाहर आते ही फिर से अंदर घुसा दिया और फिर उसने मेरी गाण्ड में लण्ड को तेजी से ठूंस दिया। अब पीटर मेरी कमर पकड़ कर अच्छी गरि से मेरी गाण्ड फाड़ रहा रहा था और मुझे अभी भी दर्द हो रहा था।
करीब 5 मिनट तक तो मुझे बहुत ज्यादा दर्द हुआ पर धीरे धीरे दर्द कम और मज़ा ज्यादा आने लगा। थोड़ी ही देर में मैं उठ खड़ी हुई और बिस्तर के कोने को पकड़ कर घुटनों के बल मज़े से पीटर की गाण्ड फाड़ चुदाई के मज़े लूटने लगा। बीच बीच में पीटर मेरे कूल्हों पर हाथ भी मार रहा था जैसे कोई बैलगाड़ी चलाते समय बैल के पुट्ठे पर हाथ मारता है। मुझे भी अच्छा लगने लगा और मैं भी गाण्ड हिला हिला कर काले मुसण्ड लण्ड के मज़े लेने लगी।
कुछ ही देर में हम दोनों निढाल होने वाले थे और पीटर का वीर्य भी गिरने वाला था। पीटर ने अपना लण्ड मेरी गाण्ड से निकाला, मेरी कमर को दोनों हाथों से पकड़ कर उल्टा लटका लिया और मेरा सर ज़मीन के बल कर के मेरे मुँह में अपना लण्ड डाल दिया। अब पीटर का वीर्य कहीं और नहीं मेरे मुख में निकल रहा था।
पीटर की स्फूर्ति ने एक बार फिर मुझे आश्चर्य चकित कर दिया जिस तरह उसने एकदम से मुझे खींचा और लण्ड मेरे मुँह में डाला, यह मेरे लिए बिलकुल नया और साथ ही साथ मज़ेदार और रोमांचक था। इधर जहाँ मेरे मुँह में पीटर का वीर्य था, उधर पीटर मेरी चूत चाटने में व्यस्त था। मैंने पीटर का वीर्य उसके लण्ड से चूस डाला और फिर उसके मुरझाए फिर भी बाकियों के मुकाबले मोटे लण्ड को चूसने लगी, और जैसे ही मुंह में थूक की मात्रा बढ़ जाती, मैं वो थूक पीटर के लण्ड पे लगाती और फिर से चूसने लगती। कुछ ही देर में पीटर का लण्ड फिर से जंग लड़ने के लिए तैयार हो गया था। मैं भी बिना देरी किये उसी पोजीशन में वापस आ गई और फिर मैंने वैसे ही गाण्ड की चुदाई करवाई। पर इस बार मामला आसान था, और दर्द हल्का सा तो फिर भी था, पर अगर उससे ध्यान न दें तो इस चुदाई में सिर्फ मज़ा ही मज़ा था।
पीटर ने दो बार और ऐसे ही मेरी कोमल गाण्ड की मदमस्त चुदाई की और फिर उसने कहा- वाना ट्राई समथिंग न्यू? मैं भी कहाँ पीछे रहने वाली थी, मैंने मुस्कुरा कर हाँ में सर हिलाया। फिर थोड़ी देर में पीटर बिस्तर पर लेट गया और कहा कि मैं उसके ऊपर आकर बैठ जाऊँ।
उसने मुझे अपने पेट पर बिठाया और फिर कमर पकड़ के मुझे अपने लण्ड के पास ले गया। उसने अपना लण्ड पकड़ा और मेरी गाण्ड में डालने लगा पर उसके हाथ पहुँच नहीं रहे थे।
अब तो मैं भी तजुर्बेकार हो गई थी इसलिए मैंने उसका लण्ड पकड़ा और अपनी गाण्ड की छेद के पास लेकर आई। पीटर ने मुझे फिर से उठने की कहा और बोला कि मैं अपने दोनों पैर नीचे न रखकर उसके जांघों के ऊपर रखूँ, फिर लण्ड अपनी गाण्ड में डलवाऊँ।
मैंने अपने दोनों एड़ियाँ पीटर की दोनों जांघों पर रख कर लण्ड गाण्ड में डलवाने लगी पर उसके टाँगों पर मुझसे सन्तुलन नहीं बन पा रहा था इसलिए उसके मुझे पीछे से पकड़ भी रखा था। मैंने धीरे से उसका लण्ड अपनी गाण्ड में सटाया और बैठने लगी। फिर पीटर ने कहा कि अब ऊपर नीचे होना शुरू करो।
पीटर ने अपनी पकड़ थोड़ी हल्की की और मैं पीटर के लण्ड पर कूदने लगी, पोजीशन नई, मज़ेदार और थोड़ी खतरनाक भी थी अगर गिरी तो सर पांव सब टूटते, पर धीरे धीरे पीटर पर भरोसा बढ़ने लगा था, मैं पीटर के लण्ड पर कूदने लगी पर बिल्कुल नीचे तक नहीं जा रही थी क्योंकि अगर उतना नीचे जाती तो ऊपर आने में दिक्कत होती और फिर पीटर का लण्ड है, कोई दीवार नहीं जिस पर कोई असर नहीं होता, इसलिए मैं 80 % तक ही नीचे आती थी। और फिर पीटर का लण्ड था भी तो इतना लम्बा और मोटा जो बाकियों के मुकाबले वैसे भी बहुत ज्यादा था। हमने थोड़ी देर तक इसका मज़ा लिया और फिर पीटर मुझे अपनी ओर घुमा कर सीधा बिठा लिया पर इस बार निशाना मेरी गाण्ड नहीं मेरी चूत थी।
पर मेरी चूत पीटर के लण्ड का स्वाद कल रात को ही चख चुकी थी इसलिए इसमें घबराने की कोई बात नहीं थी। पीटर ने इस बार मेरे घुटने नीचे रखे और मुझे लण्ड पर बैठने को कहा। उसने यह भी कहा कि हम पैरों वाली चुदाई इधर भी करेंगे पर अभी नहीं क्यूंकि उसके पैर एक ही पोजीशन में रह कर अकड़ गए हैं।
मैंने पीटर का लण्ड अपनी चूत में डलवाया और फिर अपने चूतड़ उठा उठा कर चुदाई के मज़े लेने लगी। कभी मैं अपनी चूतड़ों को उठा कर नीचे करती तो कभी पीटर अपनी कमर उठा कर ऊपर धकेलता, हम दोनों का तालमेल अच्छा था क्योंकि मुझे और पीटर दोनों को समझ आ रहा था कब हम थकने वाले हैं और कब किसका नंबर है उठने का। दोनों एक दूसरे को अच्छे से समझने लगे थे जिससे चुदाई का मज़ा और बढ़ गया था।
थोड़ी देर बाद जब पीटर का वीर्य फिर से गिरने वाला था तो इस बार मैंने पीटर को पहले ही कह रखा था इस बार वीर्य से मेरे चेहरे की मालिश करेंगे। पीटर ने मुझे लिटाया और मेरे चेहरे पर अपना ढेर सारा वीर्य, इतना कि आधा कप भर जाये, मेरे चेहरे पर गिरा दिया और फिर मुझसे पूछने लगा कि क्या वो मेरे चेहरे की मालिश कर दे एक नए स्टाइल से? तो मैंने भी हामी भर दी। पर पीटर का यह स्टाइल तो सच में ऐसा था जो कोई सोच भी नहीं सकता। पीटर मेरे चेहरे पर आकर अपने कूल्हों से मेरे चेहरे की मालिश करने लगा, मुझे हंसी आने लगी पर यह मज़ेदार भी था। मैंने भी अपनी जीभ बाहर निकाल ली और जब पीटर मेरे चेहरे की मालिश कर रहा था, उसकी गाण्ड मैंने होठों से अच्छे से चाट ली थी।
उसके मुझसे पूछा कि क्या मैंने पहली किसी मर्द की गाण्ड चाटी है? तो मैंने कहा- नहीं! तो पीटर बोला- ठीक है, कभी न कभी तो शुरुवात करनी होती है।
मुझे भी हंसी आ रही थी इसलिए मैंने हंसते हंसते हाँ में सर हिला दिया और फिर हम थोड़ी देर वहीं लेटे रहे। थोड़ी देर में मैंने नाईट ड्रेस पहनी और नीचे चली गई। नीचे पहुँची तो देखा सविता नाश्ता बना रही थी।
मैंने अपना बैग खोला टुथब्रश निकाला और बाथरूम में चली गई ब्रश करने के लिए, सविता और मैंने कुछ बात नहीं की। मैंने ब्रश किया और फिर बैग में से ब्रा-पैंटी टीशर्ट पजामा निकाल कर बाथरूम जाने लगी नहाने के लिए!
तभी सविता ने मुझे रोक दिया- अरे रुक अभी, बाथरूम मत जा, मुझे कपड़े धोने हैं, अभी धूप निकली है तो सूख भी जायेंगे, तब तक एक काम कर, तू नाश्ता कर ले और ऊपर से पीटर को भी बुला ले। मैंने कहा- रहने दो, मैं नाश्ता लेकर ऊपर ही चली जाती हूँ, वही दोनों नाश्ता भी कर लेंगे और मैं नहा भी लूँगी, तब तक तुम यहाँ कपड़े धो लो।
सविता ने हम दोनों का नाश्ता मुझे दिया और मैं अपने कपड़ों के साथ नाश्ता और पानी लेकर ऊपर चली गई। पीटर भी फ्रेश हो गया था और तौलिया लपेटे लैपटॉप को वीडियो देख रहा था। मुझे आते देख पीटर मुस्कुराने लगा मैं भी उसे मुस्कुराता देख मुस्कुरा दी।
मैं नाश्ता लेकर बेड पर आ गई और पीटर भी बिस्तर पर आ गया। हम दोनों नाश्ता करने लगे। कहानी जारी रहेगी। अपनी प्यारी चुदक्कड़ जूही को अपनी प्रेम भरी इमेल्स भेजना मत भूल जाना मेरी चूत प्रेमियो! [email protected]
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