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एक शाम मैंने फिर मुठ्ठ मार कर उसकी चड्डी में पोंछ कर टांग दिया और अपने कमरे की खिड़की से उसकी प्रतिक्रिया देखने लगा। उसने जब कपड़े समेटे तभी महसूस कर लिया कि मैंने फिर वही हरकत की थी लेकिन इस बार उसने नीम अँधेरे में चड्डी को गौर से देखा, फिर मुड़ कर मेरे कमरे की दिशा में देख कर मेरा अंदाज़ा लगाया और फिर चड्डी को नाक के पास ले जाकर सूंघने लगी और सूंघते हुए ही नीचे चली गई।
मैंने राहत की मील भर लम्बी सांस ली कि मेरा मिशन अब सफल होने वाला था। दो दिन बाद मुझे अपने कमरे के बंद दरवाज़े के नीचे एक चिट्ठी पड़ी मिली। जिसमे लिखा था: “मैं भी वही चाहती हूँ जो तुम चाहते हो लेकिन मेरी शर्म मुझे ऐसा करने से रोकती है। आज शाम सभी लोग फ़िल्म देखने जाने वाले हैं, मैं कोई बहाना करके घर रुक जाऊँगी, तुम आओगे तो दरवाज़ा खुला मिलेगा, मैं अपने कमरे में रहूँगी लेकिन बिल्कुल अँधेरे में, मेरी हिम्मत नहीं कि मैं रोशनी में ऐसा कर सकूँ। तुम्हें भी याद रखना होगा कि अँधेरे को कायम रहने दोगे।”
उस रोज़ काम पर मेरा मन बिल्कुल न लगा और मैं शाम होते ही घर की तरफ भागा, लेकिन फिर भी पहुँचते-पहुँचते सात बज गए।
दरवाज़ा वाकई खुला मिला जो मैंने अन्दर होते ही बंद कर लिया,घर में सन्नाटा छाया हुआ था। मैंने निदा के कमरे की तरफ देखा, अँधेरा कायम था। मैं आहिस्ता से उसके कमरे में घुसा, कपड़ों कि सरसराहट बता गई कि वह मेरे इंतज़ार में थी, बाहर की रोशनी में बेड पर एक साया पसरा दिखा।
मैं आहिस्ता से चल कर उसके पास बैठ गया। “मैं कब से इस पल के इंतज़ार में था।” “बोलो मत, वक़्त इतना भी नहीं है।” उसने सरसराते हुए कहा।
फिर मैंने देर करने के बजाय उसे दबोच लिया। वह लता की तरह मुझसे लिपट गई। मैंने अपनी गर्म हथेलियों की छुअन से उसकी चूचियाँ और कमर सब रगड़ डाली। उसने भी बड़ी बेकली से मेरे होंठों से अपने होंठ चिपका दिए और एक प्रगाढ़ चुम्बन की शुरुआत हो गई।
मैंने अपनी ज़ुबान उसके मुँह में दे दी जिसे वह बड़ी मस्ती में चूसने लगी। फिर अपनी ज़ुबान उसने मुझे दी तो मैंने भी उसके होंठ और ज़ुबान जी भर के चूस लिए।
मेरा एक हाथ उसकी दाहिनी चूची पर रेंग रहा था और दूसरा उसके बालों को थामे था। फिर मैंने उसे खुद से अलग किया। “कपड़े उतारो।”
उसने कोशिश नहीं की, मैंने ही जल्दी-जल्दी उसके सारे कपड़े उतार फेंके, यहाँ तक कि चड्डी भी न रहने दी और फिर खुद के भी सारे कपड़े उतार डाले।
अब बेड पर हम दोनों नंग-धडंग एक-दूसरे से लिपटने लगे, मैं उसे बुरी तरह चूम रहा था चुभला रहा था और वो उसी बेकरारी से मुझे चूम कर जवाब दे रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे बरसों की प्यासी हो और आज सारी प्यास बुझा लेना चाहती हो।
उसकी नरम-नरम चूचियाँ.. उसकी उम्र के हिसाब से कुछ ज्यादा ही मुलायम थीं, शायद वैधव्य में अपने हाथों से ही मसलती रहती थी लेकिन निप्पल मज़ेदार थे और किशमिश जैसे मस्त थे जिन्हें चूसने में मज़ा आ गया।
जिस वक़्त मैं एक हाथ से उसके एक चूचे को चूस रहा था और दूसरे को मसल रहा था, वह पैरों से मुझे जकड़ने की कोशिश करती, मेरे बालों को मुट्ठियों में भींचे थी और सिसकारते हुए अपने हाथ से ही अपनी चूची मेरे मुँह में ठूँसने को ऐसे तत्पर थी, जैसे खिला ही देना चाहती हो।
चूचियों को चूसते हुए मैंने अपना घुटना उसकी जांघों के जोड़ पर लगाया तो चिपचिपा हो गया, तब मैंने एक हाथ नीचे ले जाकर उसकी चूत को छुआ तो वहाँ से कामरस की धारा बह रही थी।
अब उसकी चूची छोड़ कर मैंने उसे चूमते हुए नीचे सरका और वहीं रुका जहाँ उसके कामरस के ख़रबूज़े जैसी महक मेरे नथुनों से टकराई। मैंने वहीं मुँह घुसा दिया। अब ज़ुबान से जो कामरस चाटना शुरू किया तो उसकी सीत्कारें और तेज़ हो गई और बदन में ऐंठन पड़ने लगी। उसकी कलिकाएँ मध्यम आकर की थीं, जिन्हें मैं ज़ुबान और अपने होंठ से दबा के पकड़ कर खींचने लगा और साथ में उसके क्लिटोरिस हुड को भी छेड़े जा रहा था और वो किसी नागिन की तरह मचलने लगी थी।
फिर मैंने अपनी बिचल्ली ऊँगली उसके गीले छेद में अन्दर सरका दी, वह एकदम से तड़प उठी और उसके मुँह से एक ज़ोर की ‘आह’ जारी हुई। मुँह से लगातार उसकी चूत पर हमला करते मैंने अपनी ऊँगली अन्दर-बाहर करनी शुरू की तो उसकी कराहें और तेज़ हो गयीं। उसने एक हाथ से बिस्तर की चादर दबोच ली थी, तो दूसरे हाथ से मेरे सर के बाल नोचे जा रही थी।
जब मुझे लगा कि अब वो जाने वाली है, तो मैंने मुँह हटा लिया और ऊँगली भी निकाल ली। ऐसा लगा जैसे उसकी जान निकल गई हो, पर जल्दी ही मैंने उसकी खुली बुर के छेद पर अपना लंड रख कर अन्दर सरका दिया। उसने मुझे दबोचना चाहा लेकिन मैंने उसे दूर ही रखा और बाकायदा उसकी टांगों के बीच बैठ कर दो तीन बार में लंड गीला कर के पूरा अन्दर ठांस दिया।
वह होंठ भींचे ज़ोर-ज़ोर से कराह रही थी और मैंने उसके पांव पकड़ कर धक्के लगाने शुरू किये। ऐसा लग रहा था जैसे हर धक्के पर उसके अन्दर कोई करेंट प्रवाहित हो रहा हो। अपनी तरफ से वह कमर उचका-उचका कर हर धक्के का जवाब देने की कोशिश कर रही थी।
फिर उसी पोजीशन में वह ऐंठ गई और मुझे अपने ऊपर खींच कर दबोच लिया और कांप-कांप कर ऐसे झड़ने लगी, जैसे बरसों का दबा लावा अब फूट-फूट कर निकल रहा हो।
पर अभी मेरा नहीं हुआ था, मैंने उसे फिर से चूमना, सहलाना शुरू किया और लंड बाहर निकाल कर फिर अपनी ऊँगली से उसकी कलिकाओं को छेड़ने लगा और चूचियों को चूसने लगा। जल्दी ही वह फिर तैयार हो गई और मैंने इस बार उसे बेड से नीचे उतार लिया।
एक पांव नीचे और एक पांव ऊपर और इस तरह हवा में खुली चूत में मैंने अपना लंड ठूंस कर उसके नरम गद्देदार चूतड़ों पर, जो धक्के मारने शुरू किये, तो उसकी ‘आहें’ निकल गईं और जल्दी ही वह खुद भी अपनी गाण्ड आगे-पीछे करके सहयोग करने लगी।
इसी तरह वह सिस्कार-सिस्कार कर चुदती रही और मैंने हांफते हुए चोदता रहा और जब लगा के अब निकल जाएगा तो लंड उसकी बुर से बाहर निकाल कर उसके चूतड़ पर दबा दिया और जो ‘फच-फच’ करके माल निकला, वह उसके चूतड़ों पर मल दिया। फिर दोनों बिस्तर पर गिर कर हाँफ़ने लगे।
“सुनो, मैं बिना गाँड मारे नहीं रह सकता। तुम्हें अच्छा लगे या बुरा, दर्द हो या छेद फट ही क्यों न जाए मैं बिना मारे छोड़ूँगा नहीं।” उसने कोई जवाब नहीं दिया।
वह पड़ी रही और मैं उसी हालत में उठ कर कमरे से निकला और रसोई में आ गया। तेल ढूंढने में ज्यादा देर न लगी, मैं उसे लेकर वापस उसके पास पहुँचा और उस पर चढ़ कर फिर उसे गरम करने लगा।
थोड़ी ही कोशिश में वह मचलने लगी और बुर जो उसने पोंछ ली थी, वो फिर से रसीली हो गई।
मैंने इस बार सीधे अर्ध उत्तेजित लंड को उसकी बुर में डाला और धक्के लगाने लगा। वह गर्म होने लगी और उसकी बदन की लहरें मुझे बताती रही। जब उसे चुदने में खूब मज़ा आने लगा और मेरा लंड भी पूर्ण उत्तेजित हो गया तो मैंने लंड निकल कर उसे कुतिया की तरह चौपाया बना लिया और अब तेल में ऊँगली डुबा डुबा कर उसकी गा्ण्ड के कसे छेद में करने लगा।
शुरू में वह कसमसाई पर फिर एडजस्ट कर लिया और य़ू ही एक के बाद दो और दो के बाद तीन ऊँगलियाँ तक उसके कसे चुन्नटों से भरे छेद में डाल दी। जब मुझे लगा कि अब लंड जाने भर का रास्ता बन गया है, तो लंड को तेल से नहला कर मैंने ठूँसना शुरू किया.
जैसे ही सुपाड़ा अन्दर गया, वह जोर से कराह कर आगे खिसकी.. लेकिन मैं भी होशियार था। मैंने उसकी कमर थाम ली थी और निकलने नहीं दिया, उलटे तेल की चिकनाहट के साथ पूरा लंड अन्दर ठेल दिया। “उई ई ई .. ऊँ ऊँ …ओ..! “बस हो गया, डरो मत, तुम अपने हाथ से अपनी क्लिटोरिस सहलाओ, चूत गरम रहेगी तो मरवाने का भी मज़ा आएगा।”
उसने ऐसा ही किया और फिर जब मैंने उसके गुदाज नरम चूतड़ों पर थाप देते हुए उसकी गाँड़ में लंड पेलना शुरू किया, तो थोड़ी ही देर में उसे मज़ा आने लगा और इसके बाद फिर उसे नीचे चित लिटा कर, फिर उसकी टांगें उठा कर उसके घुटने पेट से मिला दिए तो उसकी गाँड़ का छेद इतना ढीला हो चुका था कि उसने मेरे लंड का कोई विरोध ना किया और आसानी पूरा अन्दर निगल लिया।
फिर कुछ ज़ोर-ज़ोर के धक्कों के बाद मेरा फव्वारा छूट ही पड़ा और मैंने पूरी ‘ट्यूब’ उसकी गाण्ड में खाली कर दी और उसके बगल में गिर कर हाँफ़ने लगा।
इतनी मेहनत और दो बार के डिस्चार्ज ने इतनी हालत खस्ता कर दी कि होश ही न रहा। होश जब आया जब बाहर घन्टी बजी। जल्दी-जल्दी दोनों ने कपड़े पहने और मैं ही बाहर निकल कर दरवाज़ा खोलने पहुँचा, पर ये देख कर हैरान रह गया कि बाहर असलम भाई के साथ उनके दोनों बच्चे तो थे लेकिन उनकी बीवी ज़रीना के बजाय उनकी बहन निदा भी मौजूद थी। “अरे तुम… ज़रीना कहाँ है?” मेरी एक ठंडी सांस छूट गई और मैंने आहिस्ता से सर हिला कर कमरे की तरफ इशारा किया और जीने से ऊपर बढ़ आया। मेरे लिए समझना मुश्किल नहीं था कि कमरे में मेरे लौड़े के नीचे जरीना थी और मेरे साथ क्या हुआ था, लेकिन अजीब कमीनी औरत थी कि इतना चुदने के बाद भी हेकड़ी बरक़रार थी और क्या मज़ाल कि उसके चेहरे से ऐसा लगता कि मुझसे चुद चुकी हो।
बहरहाल जो मेरा शिकार थी, वह पच्चीस साल की बेवा, वो वैसे ही नरमी तो दिखा रही थी लेकिन चुदने जैसा कोई इशारा नहीं दे रही थी, उसके चक्कर में ही मैं रात को अपने कमरे का दरवाज़ा खुला रख के ही सोता था कि उसे आने में दिक्कत न हो और अँधेरे में ही अपनी शर्म छुपा कर चली आए।
फिर भाभी की चुदाई के चार रोज़ बाद एक रात ऐसा मौका भी आया… जब रात के किसी पहर मेरी आँख खुल गई। खुलने का कारण मेरे लंड का खड़ा होना और उसका गीला होना था। मैंने अपनी इंद्रियों को सचेत कर के सोचा तो समझ में आया कि कोई मेरे लंड को अपने गीले-गीले मुँह में लिए लॉलीपॉप की तरह चूसे जा रहा था।
मैंने देखने की कोशिश की पर साये से ज्यादा कुछ न दिखा।
कहानी जारी रहेगी। मुझे आप अपने विचार यहाँ मेल करें।
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