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प्रेषक : दीप कविता- रूको दीप, वहाँ चलो। सामने पड़े सोफे की तरफ इशारा करते हुए ! मैंने कविता को गोद में उठाया और सोफे पर ले गया। उसके चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी। उसने खड़े होते ही पोर्न-स्टार की तरह मुझे हल्का सा धक्का दिया और सोफे पे बैठा कर मेरी शर्ट उतार दी और अपनी दोनों टाँगों के बीच मेरे शरीर को फँसा लिया और मेरे ऊपर आ गई। वो मेरी छाती पर चुम्बन करते हुए मेरी छाती की घुंडियों को चूसने लगी। मुझे अजीब सा, पर अच्छा लग रहा था। मैंने कविता को रोका नहीं और मजे लेने लगा। मैंने उसकी पैन्ट उतार दी। अब वो मेरे सामने सिर्फ काली पैन्टी में थी और कमाल लग रही थी। पैन्टी ने कविता के चूतड़ों और चूत को पूरी तरह कस रखा था और चूत के होंठों की शेप साफ दिखाई दे रही थी। कविता अब तक पैन्टी गीली कर चुकी थी, चूत के दर्शन करते ही मेरे लण्ड का साईज दोगुना हो गया। मन कर रहा था कि अभी पैन्टी निकाल कर चोद दूँ, पर मुझे कविता की शर्त याद थी। अब कविता ने मेरी पैन्ट और अन्डवियर निकाल दिए और लण्ड हाथ में लेकर सहलाने लगी। कविता के छूते ही लण्ड का सुपारा फूलने लगा। कविता- आपका ‘ये’ मुझे बहुत अच्छा लगा। दीप- आप ही की सेवा में है मैडम। कविता- प्लीज आाप मुझे बार-बार मैडम या कविता जी मत कहो, सिर्फ कविता कहो डार्लिंग ! दीप- ठीक है कविता डार्लिंग ! मेरे इतना कहते ही वो हँस पड़ी और लण्ड का सुपारा मुँह में लेकर चूसने लगी। मैं सोफे पर बैठा था और कविता मेरे सामने जमीन पर मेरी दोनों टाँगों के बीच बैठी, मेरा लण्ड चूस रही थी। ऐसा मैंने सिर्फ फिल्मों में देखा था, पर आज जब सच में कविता मेरा लण्ड चूस रही थी तो मैं जन्नत की सैर कर रहा था। कविता लण्ड चूसते-चूसते पूरा मुँह में लेने लगी। कभी वो बाहर निकाल देती, सुपारे के ऊपर थूक लगाकर फिर से अन्दर-बाहर करने लगती। कभी पूरा लण्ड मुँह के अन्दर ले रूक जाती.. फिर बाहर निकाल कर पूरा लण्ड नीचे से लेकर सुपारे तक जीभ से चाट जाती। मेरे मुँह से अपने आप कामुक सिसकारियाँ निकलने लगीं, “आह-आह चूसो मेरी जान चूसो आह.. आह..” जब वो लण्ड को अन्दर-बाहर करती तो मेरे हाथ अपने आप उसका सर दबाने लगते और मैं लण्ड उसके मुँह में पेलने लगता। लण्ड चुसवाते हुए मैंने कविता को घुटनों के बल खड़ा किया और उसकी पैन्टी नीचे सरका दी और चूत और चूतड़ पर हाथ फिराने लगा और चूत में ऊँगली करने लगा, जिससे कविता ने लण्ड चूसना और तेज कर दिया। पूरे कमरे मे ‘पुच..पुच’ की आवाजें गूँजने लगीं। कविता जब चूसते-चूसते लण्ड मुँह से निकालती तो ‘पुच.. आह.. पुच.. आह..’ की आवाज आती। कविता ने लण्ड मुँह से निकाला और मुझे खड़ा होने को कहा, मैं खड़ा होकर तेजी से उसके मुँह में लण्ड पेलने लगा, अचानक मेरे दिमाग में एक आईडिया आया और मैंने कविता के मुँह से लण्ड निकाल लिया। कविता- निकालो नहीं आह.. प्लीज निकालो नहीं.. मैं तुम्हारा दूध पीना चाहती हूँ। मैंने लण्ड निकाल कर कविता के मम्मों पर रख दिया, मेरा इशारा समझते ही कविता ने लण्ड दोनों मम्मों के बीच में फंसा लिया और अपने दोनों हाथ से मम्मों को दोनों तरफ से दबा लिया और अब मैं उसके मम्मों में लण्ड पेलने लगा, पर मुझे पेलने में थोड़ी दिक्कत हो रही थी। कविता- रूको, लण्ड बाहर निकालो। मैंने मम्मों में से लण्ड निकाल लिया, कविता ने लण्ड मुँह में लेकर अच्छी तरह गीला कर दिया और ढेर सारा थूक मम्मों पर गिरा लिया और फिर से लण्ड पेलने को कहा। मैं फिर से लण्ड पेलने लगा अब लण्ड आसानी से पेला जा रहा था और मजा भी दुगना हो गया था। जब मैं मम्मों में लण्ड पेल रहा था, तो लग रहा था जैसे लण्ड रूई के गोलों में जा रहा हो। सच दोस्तों मम्मों में लण्ड पेलने का मजा तो पेलने वाला ही जानता है। मैं तो जन्नत की सैर कर रहा था। कविता कभी लण्ड निकाल कर मुँह में ले लेती और कभी हाथ में लेकर मुठ मारने लगती। दीप- रूको कविता मैं झड़ने वाला हूँ ! कविता- मुँह में डालो दीप.. मुँह में प्लीज..! कविता सिसकारियाँ लेते हुए जोर-जोर से लण्ड चूसने लगी। अब मैं झड़ने लगा था… कविता ने लण्ड को मुँह खोलकर जीभ पर रख लिया और एक हाथ से जोर-जोर से मुठ मारने लगी। मैंने अपना सारा पानी कविता के मुँह में निकाल दिया, जिसे वो मजे से पीने लगी और चाट-चाट कर पूरा लण्ड साफ कर दिया। कविता- कैसा रहा दीप मजा आया? दीप- खूब.. डार्लिंग ! कविता- तो अब मजा दोगे भी क्या ? मैं कविता का इशारा समझ चुका था, मैंने उसे सोफे पर बैठाया और टाँगें ऊपर कर उसकी दोनों टाँगों के बीच बैठ कर अपनी जीभ गीली चूत पर रख दी और जब चूत पर जीभ चलाने लगा। तो कविता ने एक लम्बी कामुक सिस्की भरी, “आह.. सी ई, आह थैक्स डार्लिंग सी..ई।” मैं चूत चाटने लगा मैं चूत के दोनों होंठों को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा और दाने पर जीभ रगड़ने लगा तो कविता ‘उफ.. उफ’ कर उठी। मुझे भी चूत चाटने मे मजा आ रहा था। कविता का तो कामुकता से बुरा हाल था। वो अपने हाथ से मेरे सर को चूत के ऊपर दबाने लगी और चूतड़ उठा-उठा कर चूत को मेरे मुँह पर रगड़ने लगी। हम दोनों 69 अव्सथा में आ गए। कविता मेरे लण्ड को मुँह में लेकर खड़ा करने लगी, जो कि देखते ही फिर से खड़ा होकर सलामी देने लगा। मैंने चूत चाटना और तेज कर दिया, जिससे कविता की सिसकारियाँ और तेज होने लगीं। कविता- आह उफ आह सी ई… आह चाटो प्लीज चाटो जोर से पहली बार मेरी इच्छा पूरी हो रही है चाटो सीई..! उसका शरीर अकड़ने लगा और वो मेरे मुँह पर झड़ गई। मैंने उसकी चूत चाट-चाट कर साफ कर दी, जिससे वो बहुत खुश हुई। अब बारी थी चूत चुदाई की। दीप- कविता, कैसा रहा? कविता- बहुत अच्छा, मैं तो तुम्हारी दीवानी हो गई हूँ। बहुत समय से चूत चटवाने को तरस रही थी, पर तुमने आज मेरी इच्छा पूरी कर दी। अब मेरी काई शर्त नहीं.. तुम जो चाहो मेरे साथ कर सकते हो। मेरा लण्ड महाराज खड़ा हो चुका था। मैं सोफे पर बैठ गया और लण्ड खड़ा कर कविता को ऊपर बैठने को कहा। कविता के बिना देरी किए वैसा ही किया और धीरे-धीरे लण्ड अन्दर लेने लगी, आधा लण्ड चूत में जाते ही उसकी चीख निकल गई। कविता- आह उई माँ … आ सी आ ..निकालो प्लीज निकालो… तुम्हारा मेरे पति से बहुत बड़ा है मैं नहीं झेल पाऊँगी.. प्लीज मुँह में कर लो दीप..! दीप- घबराओ नहीं कविता बस थोड़ी तकलीफ के बाद मजा ही मजा है, तुम बस मेरा साथ दो और फिर आप को तो पोर्न स्टार की तरह चुदना है। कविता- ठीक है.. पर प्लीज ध्यान से..! मैंने धीरे-धीरे लण्ड अन्दर करना शुरू कर दिया। कविता- आहआह उफ आह.. उई मां.. धीरे प्लीज..! धीरे-धीरे पूरा लण्ड अन्दर चला गया, अब मैंने नीचे से लण्ड पेलना शुरू किया, तो कुछ ही धक्कों के बाद कविता को भी मजा आने लगा। उसने भी सिसकियाँ लेते हुए ..आह उफ उई.. करते हुए नीचे-ऊपर होना शुरू कर दिया। हम दोनों ने अपनी गति बढ़ा दी। थोड़ी देर में कविता ने पानी छोड़ दिया और वो ढीली पड़ने लगी। मैंने कविता को खड़ा करके घोड़ी बनने को कहा। कविता घोड़ी बन गई और मैंने पीछे से लण्ड पेलना शुरू कर दिया। मेरी गति फिर से तेज हो गई। उसकी आवाजें भी तेज हो गईं। कविता- आह..आह सी ई.. आह चोदो और तेज चोदो फाड़ दो.. मेरी चूत आज आह आह..और तेज प्लीज..! दीप- हाँ ले कविता आज आपकी सारी गर्मी निकाल देंगे आह.. आई लव यू मेरी कव्वो। कविता- आह.. आई लव टू ..डार्लिंग चोदो आज से जिस्म तुम्हारा ..मेरी प्यास बुझा दो.. आज आह चोदो..! ऐसा करते हुए कविता एक बार फिर से झड़ गई। मैं अभी मैदान में ही था। थोड़ी देर चोदने के बाद मैं भी झड़ने वाला था। दीप- मैं भी आ रहा हूँ कविता कहाँ छोडूँ? कविता- चूत में ही प्लीज.. मैं तुम्हारे वीर्य से अपनी चूत ठण्डी करना चाहती हूँ। दीप- आई एम कमिंग कविता..! मैंने अपना लावा उसकी चूत में छोड़ दिया और धीरे-धीरे लण्ड बाहर करने लगा। कविता ने मेरा लण्ड चाट कर साफ कर दिया और कहने लगी। कविता- थैंक्स दीप.. तुमने मुझे बहुत मजा दिया है, आगे से कभी भी मुझे चोदने का मन करे तो कॉल करके आ जाना। दीप- जी कविता जी.. मैं भी आप जैसी पोर्न-स्टार को ही चोदना पसंद करूँगा..। जिस पर वो खूब हँसी। मैं कविता की गांड मारना चाहता था, पर उसे घर जाने की जल्दी थी, इसलिए उसने कहा। कविता- नहीं प्लीज आज नहीं.. फिर कभी वैसे भी अब तो मैं तुम्हारी ही हूँ ! इस के बाद कविता ने अपने पर्स से मुझे कुछ रूपए देने चाहे पर मैंने मना कर दिया, तो कविता ने कहा। कविता- रख लो दीप ये कीमत नहीं.. हमारी तरफ से ईनाम और तोहफा है। मैंने पैसे नहीं लिए कविता के गाल पर एक जबरदस्त चुम्बन कर दिया और कहा- ये तोहफा अच्छा है। कविता- ठीक है…पर अगर मैं तुम्हें कल कॉल करूँ तो प्लीज आ जाना। दीप- ठीक है पर 5 बजे के बाद ही कॉल करना। अगले दिन कविता की कॉल आई तो मैं चला गया वो मुझे अपनी गाड़ी में बाजार ले गई और मुझे खूब सारी शॉपिंग करवाई। जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि उसके पति एक अच्छे बिजनेस-मैन थे तो पैसे की कोई कमी नहीं थी। फिर हमने एक होटल में कमरा बुक किया। यहाँ मैंने कविता की गांड का उद्घाटन किया। फिर कविता ने मुझे अपनी अलग-अलग दो सहेलियों के पास भी एक कॉल-बाय के रूप में भेजा और पैसे लेकर ही चोदने को एडवाईज किया। इस तरह मुझे कुछ कमाई भी हो गई और कविता की सहेलियों के मजे। इस तरह मैं पिछले कुछ दिनों से कॉल-बाय का काम कर रहा हूँ। कविता की गांड का उद्घाटन और उसकी एक सहेली की चुदाई की कहानी भी जल्द ही आपको मिलेगी.. पर सिर्फ एक सहेली की कहानी को.. क्योंकि कविता की एक और सहेली ने उसकी कहानी लिखने को मना किया है, इसलिए अब कस्टमर्स से तो धोखा नहीं..! मुझे आप अपने विचार यहाँ मेल करें।
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