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दोस्तो, मेरा नाम आशु है। मैं अहमदाबाद से हूँ और 22 साल का भोला और शर्मीला लड़का हूँ। मैं इन्जीनियरिंग का स्टुडैन्ट हूँ और अन्तर्वासना का बहुत बडा फ़ैन हूँ।
मैं पहली बार लिख रहा हूँ, इसलिए अगर मेरी भाषा में कोई गड़बड़ी हो तो प्लीज, मुझे माफ़ करना। लेकिन मुझे पक्का यकीन है कि मेरी कहानी आपको बहुत पसंद आएगी।
यह घटना तब की है जब मैं 18 साल का था। मैं और मेरा चचेरा भाई, सोनू लगभग एक ही उम्र के हैं। उसकी बहन का नाम है सुहाना, जो हमसे एक साल बड़ी है। हम सब एक दूसरे को नामों से ही बुलाते थे।
मैं और सोनू बहुत पक्के दोस्त हैं क्युकि हम बचपन से ही एक साथ पले-बढ़े थे और साथ में खूब मस्ती किया करते। सुहाना भी मुझे अपनी दीदी जैसी ही लगती थी। जैसे ही हम बड़े होने लगे, हमें धीरे-धीरे सेक्स के बारे में पता चलने लगा। मैं और सोनू तो बहुत ही सीधे-साधे थे, पर हमारी क्लास में कुछ दोस्त बहुत हरामी थे, वो हमें बहुत कुछ सिखाते थे।
सुहाना भी अब बड़ी होने लगी थी, उसके शरीर की गोलाइयाँ साफ़ साफ़ दिखाई देती थी। उसका चेहरा कोई हीरोइन की तरह तो नहीं था, पर उसकी अदाएँ बहुत ही निराली थी। उसके होंठ, गाल और नटखट आँखों तो इतनी मस्त थी कि क्या बताऊँ। उन्हें देखकर तो कोई भी अपने अंदर की वासना को जगने से रोक नहीं सकता।
उसका गोरा बदन और उभरती जवानी, जो भी देखे दीवाना हो जाए। उसकी खास बात यह थी कि उसके दूध यानि चूचियाँ, उसके फ़िगर के हिसाब से थोड़े बड़े थे। हमारे कुछ दोस्त तो उसके दूधों के बारे में कमेन्ट भी करते थे लेकिन मैंने और सोनू ने सुहाना के बारे में कभी ऐसी बातें नहीं की, कभी उस नजर से देखा भी नहीं था।
हम दोनों को कम्प्यूटर पर गेम खेलने का बहुत शौक था। फ़िर एक दिन अचानक सोनू के मम्मी-पापा का प्लान बना घूमने का, कुछ 10-12 दिनों के लिए गर्मी की छुट्टी चल रही थी और सोनू और सुहाना घर पर अकेले ही रहते। तो कभी मैं चला जाता थ सोनू के घर, या कभी वो आ जाया करते थे मेरे यहाँ।
फ़िर हम सब साथ में बैठ कर खूब गप्पें लगाया करते थे, और गेम्स और मूवीज़ भी देखा करते थे।
एक-दो दिन तो ऐसे ही बीत गए। फ़िर अगले दिन सुहाना बाज़ार जा रही थी कुछ सब्ज़ियाँ लेने, उसने उस वक़्त एक बहुत ही सेक्सी टोप और स्कर्ट पहना था।
मैं और सोनू हाल में बैठ कर फ़िल्म देख रहे थे, उतने में सुहाना आई और जाते-जाते कहा- मैं बाज़ार जा रही हूँ सब्ज़ी लेने, थोड़ी देर में आ जाऊँगी।
हमने उसकी तरफ़ देखा और सिर हिलाते हुए हाँ कहा। तभी हमने देखा कि जैसे ही वो अपनी सैन्डल पहनने के लिए नीचे झुकी, हमें उसके चूतड़ों के दर्शन हुए।
वाह, क्या नज़ारा था दोस्तो, मैं तो बस मन ही मन में सुहाना के नाम की मूठ मार रहा था।
हम तो बस उसे देखते ही रह गए। कितने मोटे, चिकने और गोरे कूल्हे थे। पर उसे इस बात का पता नहीं चला कि हम दोनों उसे ताड़ रहे हैं, वो अपनी सैन्डल पहन कर चली गई और हम फ़िर टीवी देखने लगे। मैंने बहुत कंट्रोल किया पर फ़िर मुझसे रहा नहीं गया और मैं बोल पड़ा- अच्छा नज़ारा था, तुझे कैसा लगा?
सोनू थोड़ी देर तक कुछ नहीं बोला और फ़िर सिर हिलाते हुए धीरे से बोला- अच्छा लगा।
हम दोनों बाहर से भले ही भोले थे, पर अंदर से हम एक ही थे। हम साथ में इन्टरनेट पर पोर्न मूवीज़ भी देखते थे और लड़कियों को ताड़ते भी रहते थे।
मैंने फ़िर पूछा- मेरा लंड तो साफ़ खड़ा हो गया, तेरा कुछ भी नहीं हुआ क्या?
तो वो बोला- खड़ा तो मेरा भी हो गया।
हमारी नज़र अब भी टीवी पर थी।
मैं अब समझ गया था कि अब हम सुहाना के बारे में कुछ भी बातें कर सकते हैं।
मैं- तूने कभी मूठ मारी है उसको देख कर या याद करके?
सोनू- हाँ, एक बार मैं बेकाबू हो गया था और कंट्रोल ना होने कि वजह से एक बार मारी थी, पर फ़िर बाद में कुछ अच्छा नहीं लगा।
मैं- ऐसे कौन से हालात थे भाई जो तू कंट्रोल नहीं कर पाया? ज़रा हमें भी तो बताओ।
मेरा लंड तो फ़ूलता ही जा रहा था और सोनू का चेहरा देख कर लग रहा था कि उसे इन बातों में बहुत मज़ा आ रहा है।
सोनू- बस एक दिन हम टीवी देख रहे थे यहीं पर, और पता ही नहीं चला कि कब हम दोनों सो गए। जब मेरी नींद खुली तो मैंने देखा कि मेरा एक हाथ दीदी के चूतड़ों पर है। उसने पतली सी सलवार-कमीज़ पहनी हुई थी, जिसमें से उसकी पैन्टी भी महसूस हो रही थी। मुझे पता नहीं क्या हुआ, पर मैं उसकी गांड ले ऊपर से हाथ फ़ेरने लगा और उसे धीरे-धीरे मसलने लगा। तब वो थोड़ी सी हिली और मैं डर गया और अपना हाथ हटा दिया। फ़िर मैंने बाथरूम में जाकर अपना लंड हिलाया पर जल्दी झड़ गया। उस वक्त मैंने ज़िन्दगी में पहली बार मुठ मारी थी और सच बताऊँ, बहुत ही मज़ा आया था, पर कुछ देर बाद अच्छा नहीं लगा, इसलिए मैंने फ़िर कभी उसके बारे में ऐसा नहीं सोचा।
मैं तो बस हैरान हो गया था, मेरा दिल ज़ोर से धड़क रहा था और सोनू भी थोड़ी लंबी साँसें ले रहा था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि यह कैसी भावना है !
वो हमारी दीदी है, पर फ़िर भी हमें सेक्स का नशा चढ़ रहा है। ऐसा तो कभी पोर्न देखकर भी नहीं हुआ था। मेरे दिमाग में बहुत सारे गन्दे विचार आ रहे थे।
वैसे तो मैं पढ़ाई में इतना अच्छा तो नहीं था, पर व्यवहार (नेचर) में बहुत अच्छा था। कब किसको क्या बोलना है, किसको क्या नहीं बोलना है, मौके का कैसे फ़ायदा उठाना है, दूसरों से कैसे काम करवाना है, यह सब मुझे अच्छी तरह से आता था। फ़िर मैंने अपने विचारों को हकीकत में बदलने की ठान ली।
मैं- सोनू, मुझे तो मूठ मारनी है, पहले तू जाएगा या मैं जाऊँ?
सोनू- पहले तू ही जा।
मैं- मैं तो सुहाना की गाण्ड को सोचते हुए अपने लण्ड को हिलाउंगा, तू भी उसके बारें में ऐसा ही सोचना और अगर अच्छा नहीं लगे तो मुझे कहना।
इतना कह कर मैं अंदर चला गया और उसके नाम की मूठ मारनी शुरू की। मैंने अपनी आँखें बंद की तो मुझे बस सुहाना नज़र आने लगी। उसकी गोरी ज़ाँघ, मोटे चूतड़, आह्हह… बहुत ही अजीब लग रहा था, पर बहुत अच्छा भी। मैं अपनी सोच में सुहाना की स्कर्ट को उठा कर, उसकी पेन्टी को नीचे करके उसकी गाण्ड को ज़ोर-ज़ोर से मसल रहा था। फ़िर 5-10 मिट बाद मैं झड़ गया और बाहर आ गया। मैं बाहर आया तो देखा कि सामने ही सोनू खड़ा था, मेरे बाहर निकलते ही वो अंदर चला गया। हम मूठ मारने के बाद फ़िर से टीवी के सामने बेठ गए। हम दोनों ने थोड़ी देर तक एक दूसरे से कुछ नहीं कहा पर मुझे सोनू का चेहरा देख कर पता चल गया कि उसे ज़रूर मज़ा आया होगा।
फ़िर मैंने अपने प्लान को आगे बढाते हुए उससे बातें करनी शुरू की।
मैं- तो इस बार कैसा रहा, अच्छा लगा या बुरा?
सोनू दो मिनट तक कुछ नहीं बोला।
फ़िर बोला- नहीं, इस बार इतना बुरा नहीं लगा।
मैं- सुहाना बहुत ही सुंदर और मस्त लड़की है यार, अब दीदी है तो क्या हुआ आखिर लड़की ही है ना !! उसकी भी तो चूत गाण्ड और दूध हैं। इतना गोरा और नर्म बदन को देखकर तो कोइ भी मूठ मार ले। मुझे तो जलन हो रही है कि तूने उसकी गाण्ड को भी छुआ है। कितना मज़ा आया होगा !
सोनू- हाँ, मज़ा तो बहुत आया था। अभी भी मूठ मारते वक़्त वही सोच रहा था।
मैं- सोनू, क्यों ना एक बार सुहाना की गाण्ड को फ़िर से छूआ जाए, जब वो सो रही हो?
सोनू ने मेरी तरफ़ देखा, उसके चेहरे पर थोड़ा डर और थोड़ी उत्सुकता दोनों साफ़-साफ़ दिखाई दे रही थी।
वो बोला- उसको पता चल गया तो?
मैं- थोड़ा सा छूने से कुछ पता नहीं चलता, और तुझे तो पता ही है कि वो कितने मजे से सोती है। उसको उठाने के लिए कितना चिल्लाना पड़ता है, तब जाकर वो उठती है।
सोनू- हाँ यार, यह बात तो सही है। पर डर लग रहा है यार ऐसा करने में।
मैं- तू डर मत यार, कुछ नहीं होगा। तू बस एक बार उसकी गाण्ड पर हाथ रख दे, फ़िर तू ये सब बातें भूल जाएगा।
अब तो बस सुहाना के आने की देरी थी।
फ़िर हम टीवी देखने लगे और करीब आधे घण्टे बाद सुहाना सब्ज़ियाँ लेकर वापिस आई। फ़िर मैं बाहर गया और दुकान से थोड़ी मूवीज़ की डीवीडी लेकर आया।
रात को 8 बजे हम सबने खाना खा लिया और टीवी देखने लगे।
कहानी जारी रहेगी।
मुझे आप अपने विचार यहाँ मेल करें।
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