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प्रेषक : देशमुख
ढाका से मेरा ट्रांसफर रंगपुर हुआ और मैंने मन ही मन में कम्पनी के सभी बॉस की ढेरों गालियाँ दी। साले पूरी पिलाई कर देते हैं आप की, खालिदा के चूतड़ों जैसे बड़े इलाके में सेल्स बनाओ और फ़िर वो कहेगा कि चल अब यहाँ की चुदाई छोड़ो और कहीं और जाकर किसी हसीना की मार और मरवा ! मैं उब गया था यह सब देख कर लेकिन बीए पास के लिए आजकल नौकरी पाना ही मुश्किल है, यह जॉब मुझे करनी पड़ रही है, बस इसमें तबादले वाली बात मुझे चुभती है।
रंगपुर आकर पहले तो मैंने एक दरमियाने से होटल को अपना घर बनाया और यहाँ की टीम से मिला, फिर वही रोज सुबह और शाम एस्टेट एजेंट के दफ्तरों के चक्कर लगाना और घरों और कमरों को देखना ! घर तो काफी थे लेकिन किराया गाण्ड फाड़ू था सभी का जो मेरे बजट से बाहर था। साले हमारे ढाका के बराबर के रेट और ऊपर से भारी पेशगी मांग रहे थे सारे !
एक दिन मैं ऑफिस में था, तभी एक एस्टेट एजेंट पुलोक दत्ता का फोन आया- हेल्लो देशमुख जी, एक कमरा है स्टेशन के पास, देखोगे? सामने एक बूढ़े की आवाज थी।
“जरुर ! पर मेरे बजट में है ना?” मैंने पहले ही पूछ लिया।
“जी हाँ, बिल्कुल बढ़िया जगह है, आपके बजट में ही है, वैसे मैं बाहर जा रहा हूँ इसलिए अपनी बेटी सहारा खातून को आपका नंबर दे रहा हूँ, वो आप को जगह दिखा देगी। पुलोक ने कहा।
मैंने ओके कह कर फोन काटा और ऑफिस के काम में लग गया। तभी मुझे ख्याल आया कि कहाँ तो इस मादरचोद एजेन्ट का नाम पुलोक दत्ता और इसकी बेटी का नाम सहारा खातून? समझ नहीं आया कि यह क्या चक्कर है?
यकीन मानिये अभी तक मैंने यह सोचने तक की तकलीफ़ नहीं की थी कि सहारा खातून कैसी होगी, फिर सेक्स के कीड़े के मन में रेंगने का तो सवाल ही नहीं होता है। हाँ, ढाका में तो बहुतों की चुदाई कर दी है मैंने लेकिन रंगपुर के भविष्य में शायद सहारा खातून की ही चूत लिखी थी।
शाम को साढ़े चार के करीब एक फ़ोन आया- हेलो देशमुख जी, मैं सहारा खातून बोल रही हूँ, मेरे पिताजी पुलोक दत्ता ने बात की थी ना आपसे ! मैं वो जगह दिखा देती हूँ आपको ! आप मुझे स्टेशन पर मिल सकते हैं और कितने बजे?
उधर से करीब 30 साल के करीब की एक जनाना आवाज आ रही थी।
“जी मेरा ऑफिस स्टेशन के करीब ही है, आप आयें उसके 5 मिनट पहले मुझे फ़ोन कर दें, मैं दो मिनट के भीतर आ जाऊँगा।” मैंने कहा।
“ठीक है सर !” सहारा खातून ने कहा।
पूरे 15 मिनट के बाद घंटी बजी और मैंने अपना लैपटोप बैग उठाया और स्टेशन की तरफ चल दिया। अभी तो मैं अपनी बाइक भी नहीं लेकर आया था यहाँ, इसलिए पैदल ही जाना था।
सहारा खातून अपनी स्कूटी लेकर खड़ी थी, मुझे देख शायद वो पहचान गई और हाथ हिलाने लगी, मैं उसके पास खड़ा हुआ और उसने मुझे इशारे से स्कूटी पर बैठने को कहा। मैंने एक नजर उसे देखा, करीब 30 की थी वो ! उसके चूचे तो उसके दुपट्टे के पीछे छिपे थे लेकिन चूतड़ जरूर बड़े थे उसके !
मैं स्कूटी पर बैठा और उसने एक्सेलेटर दे दिया। मैं उसके बालों में उलझे हुए फूलों की सुगंध सूंघ रहा था और वो बातें करने लगी।
“सर, आप मेरिड नहीं हैं क्या?” उसने पूछा।
“जी मैं मेरिड हूँ लेकिन बीवी को अभी रंगपुर नहीं आना था इसलिए एक कमरे की जगह ही लेनी है मुझे !” मैंने समझाया।
“ओके सर।” उसने बात खत्म की।
स्टेशन के पास एक छोटी सी गली में उसने स्कूटी मोड़ी जहाँ पे रास्ते की चुदाई हो चुकी थी। मैंने देखा कि रास्ते में बहुत गड्डे थे और उस वक्त ही मेरे मन में चुदाई का कीड़ा पहली बार उठा। मैंने सोचा कि अगर थोड़ा आगे हो जाऊँ तो इन सहारा खातून की गाण्ड से अपने लंड को लड़वाने का सही मौका था उस खुरदरी गली में। मैंने लैपटोप जो मेरे और सहारा खातून के बीच में थी उसे हटा के पीछे ले लिया और खुद थोड़ा आगे सरक गया।
सहारा खातून की स्कूटी जैसे ही पहले खड्डे में थोड़ी उछली मैं और आगे खिसका। अब मेरा लंड सहारा खातून की गांड में कभी कभी घिस रहा था और जिन्होंने अपनी गाण्ड में कभी खड़े लंड का स्पर्श लिया है, उन्हें तो पता ही होगा की आगे वाले को पता चल ही जाता है कि पीछे कुछ गर्म लगा हुआ है।
और मैं जानता था की सहारा खातून भी समझ गई थी कि यह मेरा लंड ही हैं जो अभी उसकी गांड की दरार में बीच बीच में छू रहा है। तभी एक बड़ा गड्डा आया और मैंने अपनी जगह और थोड़ा आगे कर दी। अब तो मेरा लंड बिल्कुल उसके पिछवाड़े में जैसे घुसा हुआ था। सहारा खातून जैसी कि कुछ हुआ ही ना हो, उस तरह स्कूटी चलाती गई।
और इधर मैंने ख्यालों में ही उसकी चुदाई करके दो बच्चे भी पैदा कर दिए थे।
तभी सहारा खातून ने अपनी स्कूटी एक झटके से रोक दी। मेरा पूरा बदन अब जाकर उसकी कमर को सट गया। उसने मेरी ओर देख कर कहा- देशमुख जी, कमरा आ गया !
मैंने कहा- सच में स्टेशन से काफी नजदीक है, बड़ी जल्दी आ गया।
सहारा खातून समझ गई कि मेरा मतलब क्या था। मुझे लगा था कि यह कमरा किसी मकान मालिक के घर के ऊपर होगा लेकिन वैसा नहीं था। यह कमरा तो इन्डेपेंडेंट था, नीचे दुकानें थी।
सहारा खातून ने कमरा खोला, मैंने देखा कि मेरे लिए सही जगह थी वो, छोटा सा कमरा, बाहर सड़क की तरफ खुलती खिड़की और दुकानों के ऊपर भी कुर्सी लगा कर बैठा जा सकता था। मैंने टॉयलेट बाथरूम देखने की इच्छा जताई और सहारा खातून मुझे पहले टॉयलेट दिखा लाई। अब हम दोनों बाथरूम की ओर गए। बाथरूम छोटा सा था, के अंदर ही पानी की टंकी थी जिससे दोनों जगह सप्लाई होता था पानी।
मैंने सहारा खातून से पूछा- पानी की किल्लत तो नहीं है ना जी?
“अरे कोई किल्लत नहीं है देशमुख जी, देखें ऊपर बहुत बड़ी है टंकी एक आदमी के लिए।” इतना कह के वो कमरे में वापस गई और कुर्सी लेकर आई। उसने बाथरूम में ही कुर्सी लगाई और ऊपर चढ़ के टंकी में देखने लगी।
बाप रे ! वो बड़ी गांड देख कर लंड चुदाई के बारे में ना सोचे?
मेरे लंड के साथ साथ आण्डों ने भी उस बड़े कूल्हों को जैसे ऊपर होकर सलामी दी। सहारा खातून का यह पिछवाड़ा किसी नपुंसक को भी एक बार चुदाई का ख्याल जरूर दे सकता था।
तभी मेरे शैतानी दिमाग ने एक योजना बनाई, मैंने फट से अपने हाथ सहारा खातून की गांड के साइड में रख दिए, मैं बोला- अरे ऊपर कहाँ चढ़ी हैं आप? कहीं गिर विर ना जाएँ !
“देशमुख जी, हमारा तो रोज का है यह सब, कहीं पर भी चढ़ना उतरना पड़ता है।” सहारा खातून हंस कर बोली।
“सही है, ढाका में हम भी बहुत चढ़-उतर करते थे लेकिन रंगपुर अभी नया हैं ना हमारे लिए।” मैंने उसी बात को दोहरे मीनिंग में कह दिया और मेरे हाथ अभी भी सहारा के चूतड़ों पर ही थे।
सहारा खातून हंस कर बोली- कोई बात नहीं, आप यह कमरा ले लो, चढ़ने-उतरने का सिलसिला चालू हो जायेगा।
उसकी बात में भी पॉइंट था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मैंने कहा- ऐसी बात है तो मैं अभी चेक कर लेता हूँ।
बिना कुर्सी के बारे में ख्याल किये मैं भी उसके ऊपर आ गया और टंकी में झाँकने लगा। मेरा चुदाई के नशे में चूर लंड फिर से सहारा खातून की गांड पर था। सहारा खातून आगे की ओर झुकी हमारे बीच में गैप बनाने के लिए। लेकिन मैं भी आगे बढ़ा और गांड और लंड के बीच की दूरी को खत्म कर दिया।
सहारा खातून की साँसें बढ़ रही थी जिसका अंदाजा मुझे उस सुनसान कमरे के बाथरूम में आराम से हो गया। बिना कोई पल गंवाए मैंने अपने हाथ उसकी गांड से हटा के उसके चूचों पर रख दिए और कहा- सच में कमरा भी सही है और कमरा दिखाने वाली भी !
कहानी जारी रहेगी।
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