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हेल्लो दोस्तों, कहानी का पिछला पार्ट पढने के बाद ही आगे की स्टोरी पढना! अब आगे!
दो दिन बाद मैं दोबारा उसके घर गया। मुझे देख कर उसने अपने दोनों स्तनों को खोल कर मेरे सामने रख दिया। मैंने उसके दोनों स्तनों को दबाया और चूचियों को मसला और बड़े चैन से उसका दूध पीने लगा।
कुछ पलों के बाद, उसने मुझसे सवाल किया-
स्नेहा: आपको मेरी चूत में उंगली डालनी है ?
फिर एक बार उसके इस सवाल ने मुझे चकित कर दिया। कितने बिंदास अंदाज में उसने ऐसा सवाल किया था। ऐसा लग रहा था, मानो वह चाय पिलाने का ऑफर कर रही थी। कौन भला ऐसी बात से मना करेगा? फिर उसने मेरा हाथ अपनी चूत तक बढ़ाने को कहा और साथ मे कहा-
स्नेहा: यह बिल्कुल खुली हैं।
उसने अंदर कुछ नही पहना था, यानि वह पहले से ही तैयार थी। फिर मैंने झट से अपनी तीन उंगलियों को उसकी चूत के भीतर तक घुसेड़ दिया, जिससे मेरी सब उंगलियां गीली हो गई थी। उस पर स्नेहा ने मुझे सलाह दी-
स्नेहा: आप साबुन से अपने हाथ धो लीजियेगा।
और मैंने उसकी बात का पालन भी किया था। हम लोग नियमित रूप से मिलते थे। स्नेहा ने मुझे सब कुछ दिया था और अब केवल एक ही समस्या थी, कि उसे अपने पति से बहुत ही डर लगता था। इस वजह से वह सब चीजों के बारे में पहले मना करती थी। फिर एक बार मैंने उसको कहां-
मैं: मुझे तुम्हारी गोद में सिर रख कर सोना हैं।
इस बात पर वो नाराज़ हो गई थी। फिर उसने सवाल भी किया था-
स्नेहा: आप मेरे साथ क्या करना चाहते हो ?
वैसे तो वह हमेशा मेरी गोद मे बैठती थी और टॉपलेस होकर मुझे अपना दूध पिलाती थी और उसके स्तन और चूचियों का मज़ा लेने देती थी । वो मेरे लौड़े पर गांड रख कर बैठ जाती थी और उसको ज़ोर-ज़ोर से हिलाती रहती थी।
लेकिन बाद में एक दिन उसी ने मेरा सिर अपनी गोद में लिया और स्तन खोल कर एक बच्चे की तरह अपना दूध पिलाया था। कुछ दिन बाद उसने मुझसे सवाल किया-
स्नेहा: आप मेरे साथ क्या करोगे ?
फिर मैंने अपना इरादा साफ कर दिया-
मैं: मैं तुम्हे ज़मीन पर लिटा कर तुम्हारे पर चढ़ जाऊंगा।
उस पर उसने मुझसे सवाल किया –
स्नेहा: क्या आप अपना लौड़ा मेरी चूत में डालोगे ?
मैंने उसको हां में जवाब दिया था, तो उसने सीधा ही मुझसे एक और सवाल किया-
स्नेहा: आप मेरे सारे कपड़े उतरवाओगे, कि ऐसे ही लौड़ा अंदर डाल दोगे ?
मैं: तुम कपड़े उतारोगी तो अच्छा है, नहीं तो मैं तुम्हारे कपड़े ऊपर करके डाल दूंगा ।
इसी बात के अनुसंधान में, दूसरी बार मैं जब उसके घर गया, तो उसने अपने स्तन खोल दिये थे। फिर मैं खड़ा-खड़ा ही उसके दूध के मज़े ले रहा था। वह भी मेरी इस हरकत से बड़ी खुश थी। फिर कुछ देर बाद वह मुझे दूध पिलाते-पिलाते ही ज़मीन पर लेट गई थी और मुझे उसने अपने ऊपर ले लिया था। मैं उसका दूध पी रहा था और मेरा लौड़ा उसकी चूत पर रगड़ खा रहा था।
उसका दूध पीना , चूचियों को मसलना स्तनों को दबाना , उसके होंठो को लंबी पप्पी करना , चूत और गांड में लौड़ा डालना, यह हमारा मेनू बन गया था, जो हमने बखूबी निभाया था। मैं ज्यादातर किचन में उसके साथ सेक्स करता था। वह मेरे लिए चाय बनाती थी और मैं उसका दूध पीता था। मैं उसकी चूत को छूता था , गांड में लौड़ा घुसाता था उसको दीवार के साथ दबोचता था।
वह सब कुछ का मज़ा लेती थी। हम दोनों खूब मज़ा करते थे। फिर कोरोना की वजह से हमारा मिलना मुश्किल हो गया था। फिर भी हम लोग मिलते थे और सोशल-डिस्टेन्स का अनादर करते थे। हम सेक्स का मज़ा लेते थे।
स्नेहा डरती थी, फिर भी हम लोग बच्चों की उपस्थिति में और उसके पति और सास की मौजूदगी में भी मौका ढूंढ़ कर कुछ ना कुछ कर लेते थे। कभी जब मैं कुछ नहीं कर पाता था, तो मुझे उस पर गुस्सा आ जाता था। उस वक़्त वो दिल से मुझसे माफी मांगती थी और गुस्सा ना करने की बिनति करती थी। एक बार उसका पति बाहर के रूम में था और मैं किचन में गया था। उस वक़्त स्नेहा ने अपने स्तन खोल कर मुझे अपना दूध पिलाया था।
मैंने उसके होंठो का चुंबन भी लिया था और उसकी चूत को सहलाने का साहस भी किया था। अगली बार उस की सास घर आई थी। वह बेडरूम में सो रही थी और उसने बाहर सोफे पर बिठा कर अपना काम किया था। वह मेरी गोद में बैठ गई थी और अपने स्तन खोल कर मुझे अपना दूध पिलाया था। मैंने उसकी छाती को पीछे से दोनों हाथो से दबाया और उसके होंठो को दीर्घ चुंबन भी किया था। फिर वह मेरे लंड पर बैठ कर अपनी गांड़ मरवाने लगी थी ।
कुछ ही देर में उसकी सास बाहर आ गई और हमारा खेल रुक गया था। एक और दिन दोपहर के समय मैं उसके घर गया था और मैंने जाते ही दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया। उसे मेरे इरादों के बारे में पता चल गया था, फिर भी उसने मुझसे एक सवाल किया। वो बोली-
स्नेहा: दरवाज़ा क्यों बंद कर दिया ? क्या सब कुछ करना हैं ?
वह उस वक्त बाथरूम में कपड़े धो रही थी। फिर वह फ़ौरन काम छोड़ कर बाहर आ गई थी और अपना ब्लाऊज़ खोल कर मेरे सामने खड़ी हो गई थी।फिर मैंने उसका दूध पीना शुरू किया। उस वक्त मुझे याद आया, कि स्नेहा को पूरी तरह से चोदने के लिये मैंने उसके लड़के को बाहर भेज दिया था।
उस दिन स्नेहा को दीवार के साथ दबोचकर मैंने उसके होंठो को चूमा था और ज़मीन पर लिटा कर उसके ऊपर चढ़ कर कहां –
मैं: अपने सारे कपड़े उतार दो।
स्नेहा को डर था, कि उसका लड़का कभी भी आ जायेगा और उसने मुझे रोकते हुए कहा था-
स्नेहा: आज दूध ही पी लो बस।
इस बात को याद करते ही उसने दूसरी बार सारे कपड़े उतार कर घर मे चक्कर लगाया था। इस तरह उसने नंगी होकर मेरी फरमाइश पूरी की थी। उसके बारे में एक अजीब बात थी, कि मुझे जो कुछ चाहिये वह सब उसने बिना मांगे मुझे दे दिया था।
घर में लंबे समय ऐसा करना खतरे से खाली नहीं था।
ऐसे में हमने घर से बाहर और कोई ठिकाना ढूंढ कर अपने अरमान पूरे किये थे।
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