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पांच सात मिनट की धकापेल में हम दोनों सब कुछ भूलकर सम्भोग का अभूतपूर्व आनन्द उठाते रहे, दोनों पसीने से सराबोर हो गए ! रेखा तो नीचे से गांड को ऐसे उठाकर लंड पेलवा रही थी जैसे वो मेरे अंडकोष भी अपने अन्दर करवाना चाहती हो !
रोनी आह्ह्ह ! मेरी चूत को जन्नत का मजा दे दिया आपने ! आ आःह्ह… ओह्ह स्स्स्स !
इसी के साथ उसका बदन अकड़ने लगा, उसकी योनि से रसधारा निकल पड़ी ! योनि के संकुचन ने मेरे लंड को भी स्खलन की ओर अग्रसर कर दिया, मेरा वीर्य तेज धार के साथ उसकी बुर में भर गया, दोनों एक दूसरे को अपने आलिंगन में लेकर अपनी तूफानी सांसों को नियंत्रण करने की चेष्टा करने लगे !
फिर दोनों ने अपने को साफ किया और पलंग पर लेट गए उसके बाद फिर चूमा चाटी शुरू हो गई।
आधे घंटे बाद रेखा ने मेरे को लिटाकर मेरे लंड की बेहतरीन चुसाई की फिर मेरे कमर पर सवार होकर अपनी चूत में मेरे लंड को घुसाकर अपनों गांड को उठा उठाकर गपागप चुदवाई करने लगी।
मैंने भी उसके लटकते मचलते स्तनों का मर्दन करते हुए चूस चूस कर लाल कर दिए फिर दोनों के स्खलन के बाद पूर्ण संतुष्ट होकर रेखा अपने कमरे में जा कर सो गई !
रेखा ने सुबह आठ बजे मेरे को जगाया वो नहा धोकर तरोताजा हो चुकी थी, साड़ी ने तो उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा दिए थे।
मैंने कहा- चलने की तैयारी कर लो।
तभी वहाँ विनोद ने आकर कहा- खाना बन रहा है, खाने के बाद ही आप लोग जाना।
फिर वो गौशाला में जाकर गाय भैंस की सेवा में लग गया। गांव देहात में सब काम अपनी गति से चलते हैं। मेरे को मालूम था कि एक दो बजे से पहले निकलना नहीं हो पायेगा !
रेखा की माँ ने मुझे बोला- जमाई जी, आप नहा लो, फिर नाश्ता कर लेना।
तो मैंने कहा- मैं नाश्ता नहीं करूँगा, सीधा खाना ही खाऊँगा, तब तक आपके खेत पर बने कुएँ पर जाकर नहाकर आता हूँ। विनोद को साथ ले जाता हूँ, आप खाना तैयार कर लेना !
तो माँ बोली- विनोद को तो दो घंटा लग जायेगा जानवरों के चारा पानी करने में, आप रेखा को ले जाओ खेत पर ! खाना मैं और बहू मिलकर बना लेंगे !
मेरी योजना के मुताबिक मैं रेखा को लेकर खेत चला गया !
खेत पर कोई नहीं रहता था, कुआँ के पास ही वहाँ मकान के नाम पर एक कच्चा कमरा और उसके बाहर दहलन बनी हुई थी। रेखा ने
कमरे के दरवाजा का ताला खोला, वहाँ पर खेतीबाड़ी का सामान और एक के ऊपर एक दो बोरे अनाज के भरे हुए रखे थे, शायद बोवनी के लिए बीज रखा होगा।
कुएँ के पास जाकर मैंने कच्छे के अलावा सारे कपड़े निकाल दिए, रेखा ने अन्दर से रस्सा बाल्टी निकाली, बोली- चलो, मैं कुएँ से पानी निकाल देती हूँ, आप नहा लेना।
तो मैंने तुरंत कहा- रेखा भाभी, आप अपने कुएँ से पानी निकालो, मुझे भी तो अपने हैंडपंप से पानी निकलना है ! दोनों अपना पानी निकाल लेंगे, फिर हम नहा लेंगे !
रेखा मेरी बात को सुनकर मुस्कुराते हुए बोली- जीजू आप बहुत बदमाश हो ! कुएँ पर नहाना तो एक बहाना है, मैं तो तभी समझ गई थी !
रेखा बोली- कोई आ जायेगा तो?
मैंने उसे मकान का एक चक्कर चारों तरफ का लगवाया, सभी तरफ खेत ही खेत थे एक एक किलोमीटर दूर तक कोई दिखाई नहीं दे रहा था, अब ‘अगर कोई आएगा भी तो उसे यहाँ तक आने में आठ दस मिनट तो लगेंगे ही !’ कहकर मैंने उसे कमरे के अन्दर खींच लिया और किवाड़ की सांकल लगा दी।
उसे सीधा अनाज के बोरे पर लिटा दिया बोरे पर लिटाने से उसके दोनों टांगें जमीन पर टिकी हुई थी, पोजीशन बड़ी गजब बन गई थी, मैंने उसकी साड़ी को उतारना उचित नहीं समझा इसलिए कमर तक ऊपर उठा दिया तो उसकी नंगी चूत की झलक दिखाई देने लगी।
वो इस बात को पहले ही समझ गई थी, शायद इसीलिए उसने पेंटी नहीं पहनी थी।
मैंने दोनों टांगों को दायें बाएं फैलाया तो चूत की फांकें खुल गई, चूत पूरी तरह से गीली थी, दिन के उजाले में उसकी गुलाबी चूत को देख कर पलक झपकते ही मेरा लंड को खड़े होकर कठोर हो गया, समय की कमी के कारण मैंने चूत पर एक पप्पी लेकर कच्छा उतारा और अपने लंड को उसके छेद पर सेट करके धीरे से धक्का लगा दिया तो रेखा की आवाज निकली- आह्ह्ह… धीरे करो जीजू !
फिर पूरे लंड को अन्दर तक घुसा कर उसके चूचों को ब्लाउज के ऊपर से चूमते हुए मसलने, सहलाने लगा, उसके होंठों को अपने होंठों में लेकर चूसते हुए ठाप लगाना शुरू कर दिया, दिल में यह भी डर था कि कोई आ न जाये, इसलिए अपनी स्पीड बढ़ा दी, दोनों की कराहों से कमरे की शांति भंग होती रही।
फिर रेखा ने जोर से सिसकारियाँ लेते हुए अपना रजस्खलन किया तो चूत से आने वाली फच फच की आवाजों से मेरी उत्तेजना को बल मिला और मैंने भी अपने स्खलन के साथ मैंने अपनी मंजिल पा ली।
कुछ क्षणों बाद हम दोनों पृथक हो गए, मैंने दरवाजा खोलकर रस्सा बाल्टी उठाई और कुएँ पर पहुँच गया, फिर पानी निकालने का उपक्रम करते हुए आसपास का मुआयना करने लगा, सब ठीक था, मैंने रेखा को बाहर आ जाने को कहा।
फिर रेखा बाहर आई और बोली- मैं अपनी वो धोकर आती हूँ !
लोटे में पानी लेकर कुएँ की ओट में अपनी साड़ी को ऊपर कमर तक करके बैठ कर अपना योनि-प्रक्षालन करने लगी।
मैं नहाया फिर हम दोनों रेखा के घर पहुँचकर अपनी अपनी तैयारी में लग गए।
रेखा की माँ ने बहुत सा सामान पथोनी के रूप में रख दिया। अच्छा हुआ जो मैं जीप लेकर गया, सारा सामान जीप में रख दोपहर का खाना खाकर हम रेखा को लेकर रास्ते में मस्ती करते हुए मेरे साले के घर पहुँच गए।
मेरा साला बहुत खुश हुआ, बोला- जीजाजी आपने मेरी बहुत मदद की जो रेखा को लेने चले गए !
मैंने कहा- साले साहब, आपने पहली बार कहा था इसलिए चला गया, आगे से ध्यान रखना मेरे को अपने ही बहुत से काम होते हैं !
अगली कहानी मेरी सचिव-सहायक लीना की है जो जल्द ही आप सभी को प्रस्तुत करूँगा !
महिलाओं-पुरुषों, लड़कियों, लड़कों सभी का स्वागत है, अपने विचार इस आई डी पर पोस्ट करें ! 3386
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