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सखी मैं साजन से रूठी थी, और साजन मुझे मनाता था
मैं और दूर हट जाती थी, वह जितने कदम बढ़ाता था
साजन के हाथों को मैंने, अपने बदन से परे हटाय दिया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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साजन ने कितना समझाया, मैंने एक भी न मानी उसकी
साजन के चुम्बन ले लेने पर, होंठों को हथेली से साफ़ किया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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साजन ने पीछे से री सखी, आकर मुझको बाँहों में घेरा
मैं कसमसाई तो बहुत मगर, साजन ने मुझको न छोड़ा
गालों पर चुम्बन लेकर के, मुझे अपनी तरफ घुमाय लिया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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मेरी आँखों में तो आँसू थे, साजन ने आँखें चूम लई
आँखों से गिरी हीरों की कनी, होंठों की तुला में तोल दई
हर हीरे की कनी का साजन ने, चुम्बन का अद्भुत मोल दिया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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साजन ने सखी मुझे खींच लिया, अपने सीने से लगा लिया
फिर कानों में बोला मुझसे, मैंने तुझसे बहुत है प्यार किया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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मैं साजन से परे हटी सखी, भीगी आँखों से देखा उसको
फिर धक्का देकर मैंने तो, उसे पलंग के ऊपर गिराय दिया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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मैं स्वयं गिरी उसके ऊपर, होंठों से होंठ मिलाय दिया
साजन के मुख पर मैंने तो, चुम्बन की झड़ी लगाय दिया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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साजन ने शरारत करी सखी, पेटीकोट की डोरी खोल दिया
कमर के नीचे नितम्बों पर, उँगलियाँ कई भांति फिराय दिया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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पांवों में फँसाकर पेटीकोट, सखी नीचे उसने सरकाय दिया
पांवों से ही उसने सुन री सखी, मेरा अंतर्वस्त्र उतार दिया
अंगिया दाँतों से खींच लई, बदन सारा यों निर्वस्त्र किया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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सुरसुरी की धाराएँ तन से सखी मेरे मन तक दौड़ गईं
साजन ने मध्यमा उंगली को, नितम्बों के मध्य फिराय दिया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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मैं साजन के होंठों को सखी, अपने होंठों से चूसत थी
साजन ने अपने हाथों से, स्तनों पे मदमाते खेल किया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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पथदर्शक-मध्यमा ऊँगली के, मध्य घुण्डी सखी फंसाय लिया
घुण्डियों से उठाये स्तन द्वय, कई बार उठाकर गिरा दिया
पाँचों उँगलियों के नाखूनों की स्तनों पे निशानी छोड़ दिया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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हाथों से दबाकर अगल-बगल, दोनों स्तन सखी मिला लिया
एक गलियारा उभरा उसमें, होंठों से घुसने का यत्न किया
उन्मुक्त स्तनों को हिलोरें दे, मुख पर साजन ने रगड़ लिया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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मेरे सब्र का बांध था टूट गया, मैंने उसको भी निर्वस्त्र किया
साजन के होठों पर मैंने, अब अपना अंग बिठाय दिया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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साजन चूसत था सर्वांग मेरा, मैं पीछे को मुड़ गई सखी
अपने हाथों से साजन के, अंग पर मैंने खिलवाड़ किया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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होंठ, जिह्वा सखी साजन के, स्थिर थे जैसे कोई धुरी
मैंने तो अपने अंग को उन पर, बेसब्री से सखी रगड़ दिया
साजन ने दोनों हाथों से, सखी मेरे अंग का मुख खोल लिया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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साजन की जिह्वा ने मेरे अंग के, रस के बाँधों को तोड़ दिया
साजन ने निस्सारित रस को, मधुरस की भांति चाट लिया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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मैं अब पीछे को सरकी, उसके अंग को अंग में धार लिया
दो-चार स्पंदन कर धीरे से, अंग गहराई तक उतार लिया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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साजन ने मुझको सुन री सखी, बहुतई जोरों से भीच लिया
और करवट लेकर उसने तो, स्वयं को मेरे ऊपर बिछाय दिया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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फिर उसने कहा तू दस तक गिन, और दस स्पंदन कड़े किया
फिर करवट लेकर उसने तो, पुनः अपने ऊपर मुझे किया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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मैंने कहा अब तू भी गिन, नितम्ब धीरे-धीरे गतिमान किया
पच्चीस की गिनती पर मैंने तो, सखी खुद को लेकिन रोक लिया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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साजन ने कहा ले आगे गिन, नीचे रहकर किये प्रति स्पंदन
मैं गिनती रही वह करता रहा, गिनती अस्सी के पार किया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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अब मेरी बारी आई सखी, साजन को गिनती करनी थी
अंग को पकड़े पकड़े अंग से, साजन को ऊपर बुलाय लिया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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दोनों टाँगें मैंने फैला दईं, अंग से अंग पर रस फैलाया
साजन ने अपने कन्धों को, बाँहों के सहारे उठाय लिया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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हर स्पंदन पर साजन ने, सखी गहरी सी हुँकार भरी
मैंने स्पंदन को छोड़ सखी, अब साजन की हुँकार गिनी
साजन ने मारकर शतक सखी, मुझे अवसर पुनः प्रदान किया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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मैंने तो सखी स्पंदन में, अब कई प्रयोग थे कर डाले
ऊपर नीचे दायें बाएं, कभी अंग को अंग से खाय लिया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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खेलत-खेलत मैं थकी सखी, साजन के बदन पर लोट गई
साजन ने कहा सौ नहीं हुए, और प्रतिस्पंदन कई बार किया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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साजन ने समझी दशा मेरी, मुझको नीचे फिर किया सखी
मैंने अपनी दोई टांगों को, उसके कन्धों पर ढलकाय दिया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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साजन ने बाँहों से उठा बदन, सारा जोर नितम्बों पर लगा दिया
मेरी सीत्कार उई आह के संग, स्पंदन की गति को बढ़ा दिया
मैं गिनती ही सखी भूल गई, मुझे मदहोशी की धार में छोड़ दिया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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अंगों का परस्पर मिलन हुआ, तो आवाजें भी मुखरित हुईं
सुड़क-सुड़क, चप-चप,लप-लप, अंगों ने रस में किलोल किया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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साजन ने कहा ले फिर से गिन, मैंने फिर से गिनती शुरू करी
हर गिनती के ही साथ सखी, मेरे मुँह से सिसकारी निकली
आकर पचपन पर प्यारी सखी, मैंने दीर्घ ‘ओह’ उच्चार किया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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मेरा स्वर तो सखी बैठ गया, मैं छप्पन न कह पाई सखी
एक तीव्र आह लेकर मैंने, साजन को जोरों से भींच लिया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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साजन की साँस धौंकनी सी, पसीने से तर उसका था बदन
सत्तावन पर सखी साजन ने, हिचकोले खा लम्बी आह लिया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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मेरे अंग में धाराएँ फूटीं, दोनों का तटबंध था टूट गया
मेरा सुख निस्सारित होकर, उसके सुख में था विलीन हुआ
स्पंदन के सुखमय योगों ने, परमानन्द से संयोग किया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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मेरे अंग पर सीना रखकर, वह प्रफुल्लित होकर लेट गया
मैंने अपनी एड़ियों को, उसके नितम्बों पर सखी फेर दिया
शांति की अनंत चांदनी में, हमने परस्पर लिपट विश्राम किया
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया !
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