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प्रेषक : अजय शास्त्री
मैं सही मौके का इंतज़ार करने लगा जो ज़्यादा दूर नहीं लग रहा था। मैं स्ट्रेचर पर लेटा-लेटा उसके चूतड़ों की हरकतों को देख रहा था। जो वो शेविंग के सामान निकालते हुए कर रही थी। मेरा लण्ड अब उसकी ताल पर नाचने लगा।
अचानक ही उसने मेरी ओर मुड़ कर एक तौलिया मुझे दिया और बोली- कवर कीजिए।
मैंने वो टॉवेल अपनी नाभि के बहुत नीचे से शुरू करते हुए अपनी जाँघों तक पर घुटने से ऊपर रख लिया। उसने एक साबुन और पानी का मग मेरी कमर के पास रख दिया।
“अपनी आँखें बंद कीजिए !” उसने हुक्म देते हुए कहा।
मैंने अपनी आँखें बंद कर ली। अब मैं कुछ नहीं देख सकता था सिर्फ़ महसूस कर सकता था और क्या बेहतरीन महसूस किया मैंने।
दो कोमल सी हथेलियों ने मेरे दोनों पैरों को नीचे से पकड़ा और फैला दिया। फिर वो ही हथेलियाँ मेरी टाँगों पर फिसलती हुई मेरी जाँघों तक आ गईं और टॉवेल के अंदर घुस गईं।
किरण ने अपने हाथ अब मेरे प्राइवेट एरिया तक बढ़ा दिए। मैंने महसूस किया कि उसके दोनों हाथ अब मेरी फ्रेंची चड्डी के किनारों से रेंगते हुए मेरी कमर पर आ गये।
मेरा लौड़ा तन गया। अब उसने मेरी फ्रेंची के एलास्टिक में अपनी उंगलियाँ फंसाईं और एक झटके में उसे खींच कर तौलिये के बाहर कर दिया। तौलिये के अंदर अब मैं पूरा नंगा था और मेरा लण्ड इस ख्याल से थोड़ा और तन गया।
मैं वैसे ही आँखें बंद किए था और पानी के छपकों की आवाज़ मेरे कानों में आ रही थी। फिर थोड़ी देर में मैंने महसूस किया किरण के पानी से गीले हाथ पानी की चुल्लू लेकर उसे मेरे झाँटों के जंगल पर गिरा रहे थे, तौलिये के अंदर से ही।
फिर मैंने महसूस किया कि वो साबुन मेरे जंगल पर मल रही थी। मैं बता नहीं सकता कि एक जवान कुँवारा लड़का जिसने आजतक किसी लड़की को चोदना तो दूर, नंगी भी नहीं देखा था, उस पर इस वक़्त क्या जादू हो रहा था।
मेरा लंड अकड़ कर तन गया था और उफान मारने लगा, तन कर उसने उस दो तह हुए तौलिये को तम्बू बना दिया।
वो साबुन मले जा रही थी और मैं उसे चोदने को मरा जा रहा था। मेरे लंड से हल्का-हल्का पतला पानी सा बाहर आने लगा जो कि उस दो तह हुए तौलिये को भी गीला करने लगा।
अब वो एक शातिर खिलाड़ी की तरह अपने हाथों का दबाव मेरे लौड़े के इर्द-गिर्द बनाने लगी। यूँ कहें कि मेरे लौड़े की जड़ को अपने दोनों हाथों से गोल पकड़ कर दबाने लगी।
मैं सिसकारियाँ लेने लगा। मेरी इस हालत को देखते हुए वो अचानक ही बहुत ज़ोरों से खिलखिला कर हँस पड़ी और मेरी आँखें उसकी हँसी की आवाज़ से खुल गईं।
मैंने देखा वो मेरे दोनों खुली टाँगों के बीच वैसे ही मेरे लंड को झुक कर पकड़े हुए ज़ोर-ज़ोर से हँस रही है। उसके हँसने से उसके गाउन के गोल गले से उसकी बड़ी-बड़ी चूचियाँ ग़ज़ब की हिलती हुई और एक-दूसरे से टकराती हुई नज़र आईं।
मेरा बुरा हाल था।
“क्यूँ हँस रही हो?” मैंने पूछा।
“कुछ नहीं !” और अपनी हँसी को रोकने की कोशिश करने लगी पर फिर खुल कर हँस पड़ी।
फिर थोड़ी देर बाद उसने अपनी हँसी को रोकते हुए पूछा- आप यह जंगल कभी साफ नहीं करते हैं?
“कभी ज़रूरत ही नहीं लगी !” मैंने बोला।
“क्यूँ?”
“किसे दिखाना है?” मैंने उदासी से कहा।
“क्यूँ? किसी लड़की को नहीं जानते आप?” उसने अबकी दबे स्वर में पूछा।
वो मुझसे बात करते हुए बीच-बीच में अपने हाथ से मेरे लौड़े को छू भी लेती थी।
“नहीं, मैं किसी लड़की को नहीं जानता !” मैंने गुस्से में कहा।
“इसीलिए आपका जंगल इतना घना हो गया है।” वो बोली।
“आपके बाल भी तो घने हैं, मुझे घने बालों वाली औरतें बहुत अच्छी लगती हैं।” मैंने चुटकी लेते हुए कहा।
उसने अपने हाथ तौलिये से बाहर निकाल लिए और उन्हें धोकर रेज़र उठा लिया और बोली- चलो, आज मैं आपका जंगल साफ कर देती हूँ, पर आगे से आप खुद कर लेना, प्राइवेट एरिया को हमेशा साफ-सुथरा रखना चाहिए, नहीं तो इंफेक्शन हो सकता है।
यह कहते हुए उसने मेरे लौड़े पर पड़ा तौलिया एक झटके में हटा दिया। अब मेरा 8 इंच का लौड़ा घोड़े की तरह हिनहिनाता हुआ बाहर आ गया। किरण ने मेरे जंगल की सफाई यानि कि शेविंग शुरू कर दी। ऐसा करने के लिए उसे मेरे लंड को अपने हाथ से पकड़ना पड़ गया। उसने जैसे ही मेरे लंड को पकड़ा मेरा लंड और खड़ा हो गया।
वो बोली- हे राम, कितना बड़ा और मोटा है?
मैंने कहा- 8 इंच बड़ा और 3 इंच मोटा है।
अब इतना कहना था कि वो शरमा गई और नज़रें मेरे झाँट पर टिका कर शेव करने लगी। वो लंड को जानबूझ कर दबा देती थी और मेरे मुँह से सिसकारी निकल जाती थी।
वो खुला न्यौता दे रही थी और मैं ईडियट सही वक़्त का इंतज़ार ही करे जा रहा था।
अगले 10 मिनटों में उसका काम खत्म हो गया और उसने मुझे उसी कमरे के बाथरूम में जा कर पानी से धोकर आने को कहा और मैं बाथरूम चला गया।
जब मैं धो कर निकला तो उसने मुझे फिर से लेट जाने को कहा।
“क्यूँ?” मैंने पूछा।
“इंस्पेक्शन करना है, कहीं कोई बाल रह तो नहीं गया?” उसने बताया।
मैं फिर से लेट गया और वो अपना मुँह ठीक मेरे लंड के सामने रख कर उसे पकड़ कर इधर-उधर घुमाते हुए जाँच करने लगी। एक बार तो मुझे लगा जैसे उसके होंठ मेरे सुपाड़े को छू गये।
अब मैं समझ गया कि सही वक़्त आ गया है। मैंने ज़ोर से अपने चूतड़ ऐसे उछाले कि मेरा लंड सीधा उसके मुँह के अंदर चला गया।
लौंडिया इतनी गरमा गई थी कि उसने भी मेरा लंड एक बार में ही एक आइस्क्रीम की तरह ले लिया और चूस लिया।
अब वो मुझ पर झुक गई और मेरे लौड़े को अपने गले तक ले जाकर बड़े प्यार से चूसने लगी। मैं भी चूतड़ उछाल-उछाल कर उसके मुँह को ही चोदने लगा।
वो अपना हाथ मेरे पूरे बदन पर फिराने लगी। मैंने भी थोड़ा उठ कर उसके जूड़े को खोल दिया और उसकी घनी काली जुल्फों ने मेरे चौड़े सीने को ढक लिया।
वो मेरे लौड़े और अन्डकोशों से खेलती रही और मैं उसकी हसीन जुल्फों से। थोड़ी देर तक यही चलता रहा फिर अचानक मैं उठा और उसे खड़ा करता हुआ स्ट्रेचर से उतर गया।
मैंने खींच कर उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके पूरे चेहरे को पागलों की तरह चूमने लगा। एक अजीब सी खुशी और मुस्कान थी उसके चेहरे पर। वो मेरे कंधे तक ही आ रही थी और मैं झुक कर उसे चूमे जा रहा था।
आख़िर यह घड़ी, जिसका मैंने न जाने कितने दिन इंतज़ार किया था, अब नसीब हुई थी।
“तुमसे यह सब करवाने के लिए मैंने कितना इंतज़ार किया है !” वो शर्माती हुई अपने चेहरे को मेरे सीने के बालों में सटा कर बोली।
“क्या तुमने भी?” मैंने आश्चर्य से पूछा।
“तो क्या तुमने भी?” उसने भी हैरान हो कर पूछा।
हम दोनों हँस पड़े। मैंने बड़े प्यार से उसके होंठों को चूम लिया और चूसने लगा, बीच-बीच में मैं उसके होंठों को चबा लेता था और वो उछल जाती थी।
मैंने अपने दोनों हाथ उसकी गुंदाज गोल चूचियों पर रख दिए थे और हल्के-हल्के दबाते हुए उसके होंठों को पी रहा था।
मैंने धीरे से उसका गाउन उतार कर उस स्ट्रेचर पर रख दिया। अब किरण का सांवला सलोना जिस्म काले रंग के ब्रा और पैन्टी में क़ैद था जिसे मैंने एक बच्चे की तरह अपनी गोद में उठा लिया और स्ट्रेचर से लगे पलंग पर लिटा दिया।
मैं भी उसकी बगल में लेट गया और उसे अपने दायें बाजू पर लिटा लिया और उसके जिस्म को उसके कंधों से होते हुए उसकी कमर तक सहलाने लगा। मैंने अपने हाथ उसकी पीठ की ओर ले जा कर उसके गोल बड़े-बड़े पपीते जैसी चूचियों को उसकी ब्रा के हुक को खोल कर आज़ाद कर दिया।
मैंने अपने होंठ उसकी गोल पर छोटी-छोटी घुँडियों पर लगा दिए और ऐसे चूसने लगा कि जैसे कोई बहुत भूखा बच्चा चूसता है। वो सिसकारियाँ भरने लगी और मैं चूसता ही गया।
फिर मैं खुद पलंग पर सीधा लेट गया और उसे अपने ऊपर खींच लिया और मैंने अपने दोनों हाथों का इस्तेमाल करते हुए उसकी गुंदाज चूचियों को कस कर पकड़ा और उन्हें एक-दूसरे से सटा कर कस-कस कर मसलने लगा। फिर मैं उसकी दोनों गोल-गोल पुष्ट चूचियों को वैसे ही बारी-बारी से अपने मुँह में भर कर ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा।
किरण मुझ पर औंधी लेटी हुई अपनी फ्रेंची चड्डी में क़ैद चूत को मेरे लौड़े पर रगड़ रही थी। मेरा लौड़ा फनफना उठा। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
मैंने एक पल्टी मारी, अब वो नीचे और मैं ऊपर था और मैं अब उसकी घुँडियों को अपनी जीभ और दांतो से पकड़ कर हौले-हौले खींचने लगा, और मैंने अपना लौड़ा उसकी पैन्टी के ऊपर से ही उसकी चूत पर रगड़ना चालू किया। वो अपनी पिछाड़ी उछालने लगी और पैरों को पलंग की चादर पर रगड़ने लगी।
मेरा 8 इंच का लौड़ा उसकी पैन्टी से रगड़ खा रहा था। मेरे लंड ने महसूस किया कि उसकी पैन्टी एकदम गीली हो चुकी थी।
“डाल दो ना !” उसने मेरे कानों में फुसफुसाते हुए कहा।
दोस्तो, आपको मेरी यह कहानी कैसी लगी, मुझे ज़रूर बताइए !
कहानी जारी रहेगी !
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