This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000
प्रेषिका : आरती
लो मैं भी आ गई अपनी कहानी लेकर, पता नहीं आप लोग मेरी आपबीती को क्या समझें? सही या गलत, फ़ैसला आपका।
मैं आरती एक बेहद सुशील और खूबसूरत लड़की। बात उस समय की है जब मैं अट्ठारह साल की थी और मैंने बारहवीं कक्षा में प्रवेश लिया था। स्कूल मेरे घर से छह किमी दूर था।
अभी स्कूल खुला भी नहीं था कि मेरे माँ-बाप चिन्तित थे कि मैं स्कूल कैसे जाऊँगी, किसके साथ जाऊँगी? एक दिन शाम को हम सभी बैठे थे, तभी पिता जी को एक फोन आया तो वे चले गए।
मैं मॉम से बोली- आप लोग बिना मतलब परेशान है। मैं कोई छोटी बच्ची नहीं हूँ। समझदार हो गई हूँ।
मॉम बोलीं- तभी तो ! अब तुम छोटी नहीं हो कुछ भला-बुरा हो गया तो? समय बहुत खराब है, हमारी चिन्ता जायज है।
तभी पिता जी आ गए और मॉम से बोले- अरे जानेमन काम हो गया, ब्लाक-बी में मेरा एक बचपन का दोस्त आया है। उसके बच्चे भी उसी स्कूल में जायेंगे उसकी लड़की विनीता तो अपनी गुड़िया (मेरा घर का नाम) के साथ उसी की ही क्लास में है, और लड़का विनोद ग्यारहवीं में, वे लोग स्कूटर से जायेंगे। मैंने बात कर ली है। खैर सब कुछ ठीक हो गया।
छह जुलाई से स्कूल खुल गया। हम तीनों एल-एम-एल वेस्पा स्कूटर से स्कूल जाते थे। हम दोनों का घर जरा से फासले पर ही था। स्कूल जाते समय पहले मेरा फिर उसका घर पड़ता था। दोनों स्कूल जाने के लिए बिल्कुल सही टाइम पर आ जाते थे। आगे विनोद बीच में विनीता फिर मैं। सभी के स्कूल बैग आगे। लेकिन मुझे बहुत डर लगता था कि मैं कही पीछे गिर न जाऊँ क्योंकि पीछे स्टेपनी नहीं थी। मैं विनीता को कस कर पकड़ लेती थी।
एक दिन विनीता बोली- अरे यार, तू बीच में बैठ, बहुत डरपोक है तू !
मैं बीच में बैठ कर जाने लगी। अब विनीता मुझे अपने सीने से दबाते हुए मेरे जाँघों पर हाथ रख लेती थी, और मेरा सीना विनोद के पीठ से दबा रहता था।
पहले तो मैं कुछ जान नहीं पाई, लेकिन दस दिन बाद ही स्कूल से लौटते समय बारिश शुरू हो गई। हम तीनों भीग गए थे जिससे ठण्ड भी लगने लगी।
मैं बोली- भइया, धीरे-धीरे चलाओ, ठण्ड लग रही है।
वह बोले- और कितना धीरे चलाऊँ? बारिश में तो वैसे भी मुझसे स्कूटर चलाया नहीं जाता।
विनीता मेरे कान में बोली- मैं गर्मी ला दूँ?
मैं बोली- कैसे?
वह बोली- बस चुप रहना, कुछ बोलना मत।
इतना कहते हुए वह अपने हाथ से मेरी जांघ को सहलाने लगी। सहलाते-सहलाते उसका हाथ मेरी बुर की तरफ़ बढ़ने लगा। तभी स्कूटर तेजी से उछला और विनीता ने अपना बायाँ हाथ मेरी चूत के ऊपर और दायाँ हाथ मेरी चूची के ऊपर कस कर पकड़ते हुए मुझे अपनी तरफ़ खींच लिया।
मेरे पीछे चिपक कर बैठ कर मेरे कान में बोली- मुझे तो गर्मी मिल रही है। तू बता, तुझे कैसा लग रहा है?
मैं बोली- सारी गर्मी तू ही ले ले। मेरी तो हालत खराब है।
इसी तरह हम उसके घर आ गए।
विनोद बोला- विनीता तुम जाओ, मैं आरती को छोड़ कर आता हूँ।
विनीता बोली- अरे भइया बारिश रुकने दो, फिर ये चली जाएगी। अब कौन सा दूर है।
वह बोला- हाँ यह भी ठीक है। फोन करके घर पर बता दो।
तब तक मैं भी स्कूटर से उतर गई और विनीता के साथ उसके कमरे में आ गई। कमरे में मेरे आने के बाद विनीता ने दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया।
मैंने पूछा- दरवाजा क्यों बन्द कर दिया?
विनीता- अरे कपड़े नहीं बदलने हैं क्या?
इतना कहते हुए वह मेरे कपड़े उतारने लगी।
मैं- तू अपने उतार, मैं उतार लूँगी।
विनीता- अरे यार, तू मेरे उतार दे, मैं तेरे उतारती हूँ।
इतना कहते-कहते उसने मेरी सलवार का नाड़ा कस कर खींचा, चूंकि पानी से सब गीला था तो नाड़ा तो नहीं खुला लेकिन टूट गया। मेरी सलवार नीचे गिर गई। जब मैं सलावार उठाने को झुकने लगी तो विनीता मेरी समीज पकड़ कर उठाने लगी।
मुझे गुस्सा आ गया और मैंने विनीता को जोर से धक्का दिया। वह पीछे गिरने लगी, लेकिन उसने मेरी समीज नहीं छोडी। वह तो पीछे हट गई लेकिन मैं पैरों में सलवार की वजह से आगे नहीं बढ़ पाई और मैं विनीता के ऊपर गिर गई जिससे विनीता भी सम्भल नहीं पाई और हम दोनों पीछे रखे बेड पर गिर गए।
नीचे विनीता ऊपर मैं, जब तक मैं कुछ समझती, विनीता ने मुझे बेड पर पलटा दिया, मेरे ऊपर चढ़ गई और मेरी समीज मेरे ऊपर उठाने लगी, जिससे मेरे हाथ ऊपर हो गए। बस इतना करके वह रूक गई।
मैं बोली- अब क्या हुआ? निकाल ही दे, अब मैं थक गई हूँ।
वह बिना कुछ बोले मेरी चूची सहलाते हुए बोली- क्या यार, कितनी मस्त चूचियाँ हैं तेरी !
आरती – अच्छा? तो तेरी मस्त नहीं हैं?
विनीता- मुझे क्या पता तू बता।
आरती – अच्छा पहले कपड़े तो उतार दूँ। देख बेड भीग रहा है।
तब उसने मेरी समीज उतार दी, अब मैं ब्रा और पैन्टी में ही थी। हम दोनों खड़े हो गईं और मैं उसकी समीज उतारने लगी।जब उसने हाथ उठाया तो मैं भी समीज गले में फंसा कर उसकी सलवार को खोलने लगी।
वह खुद ही समीज उतारने लगी, लेकिन समीज गीली होने की वजह से चिपक गई थी। मैंने सलवार का नाड़ा खोल कर सलवार के साथ साथ उसकी पैन्टी भी उतार दी। उसकी ब्रा भी उतार कर दोनों चूचियाँ सहलाने लगी। तब तक वह समीज नहीं उतार पाई थी।
मुझसे बोली- प्लीज अब तो उतार दे ना।
मैंने उसकी समीज सिर से बाहर निकाल दी। समीज निकलते ही वह मुझसे चिपक गई, मेरी ब्रा खोल दी और मेरी पैन्टी को उतारते हुए बोली- वाह पहले तो मैंने उतारना शुरु किया था। अब तुझे भी मजा आ रहा है।
हम दोनों पूरी तरह एक-दूसरे के सामने नंगी खड़ी थी, मैं बोली- अब बोल क्या इरादा है?
वह बोली- कसम से यार, क्या मस्त फिगर पाई है तूने ! जिससे चुदेगी उसकी तो किस्मत ही चमक जाएगी।
वो मुझे पकड़ कर हुए बाथरूम में गई, बोली- चल, नहा लेते हैं। नहीं तो तबियत खराब हो जाएगी।
अब हम दोनों नहाने लगी, मैं विनीता को देख रही थी कि उसके भी मम्मे बहुत मस्त थे, और नीचे उसकी बुर !! वाह, एकदम साफ़।
मैंने उससे पूछा- अरे यार, तेरी बुर इतनी चिकनी कैसे है? एक भी बाल नहीं है। मेरी तो बालों से भरी पड़ी है।
वह बोली- इसे साफ करती रहती हूँ। अभी सुबह ही तो साफ़ की थी। तू भी किया कर !
मैं बोली- नहीं रहने दे। ऐसे ही रहने दे, बड़े-बड़े बाल रहेंगे तो सुरक्षित रहेगी।
तो वह बड़े ही शायराना अन्दाज में एक हाथ से मेरी बुर को सहलाते हुए बोली- अरे यार, झाटें रखने से बुर नहीं बचती। इसे साफ़ कर लिया कर। हर चीज की सफ़ाई जरूरी होती है।
दूसरे हाथ से एक डिबिया निकाली और उसमें से क्रीम जैसा कुछ निकाल कर मेरी बुर में लगाने लगी।
मैंने पूछा- यह क्या है?
वह बोली- तू पूछती बहुत है, उस पर लिखा है, पढ़ लेना।
इतना कह कर वह मुझे बैठाने लगी। मेरे बैठते ही मुझे लिटा दिया और मेरे पैरों के बीच बैठ कर मेरी दोनों टाँगों को मोड़ कर फ़ैलाते हुए मेरे चूची की तरफ़ कर दिया। और वह क्रीम बुर से लेकर गाण्ड तक बड़े ही अच्छे तरह से लगाने लगी।
पता नहीं क्यों उसका उंगली से क्रीम लगाना मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा था, इच्छा हो रही थी कि इसी तरह सहलाती रहे।
40-45 सेकेन्ड के बाद वह बोली- अब देखना कैसे खिलेगी तेरी योनि साफ़ होकर !
मैं बोली- अरे यार कुछ देर तक और लगा देतीं।
वो बोली- अब चिन्ता क्यों करती है, हम तुम्हें बहुत मजा देंगे, बस जैसे कहती हूँ वैसे करती जाना।
फिर मुझे सीधा करते हुए बैठा दिया और अपने हाथों में साबुन लगा कर मेरे स्तनों पर सहलाते हुए लगाने लगी।
मेरा हाथ पकड़ कर अपनी बुर पर रखते हुए बोली- अब तू भी तो कुछ कर !
आरती – मुझे तो कुछ करना नहीं आता जो करना हो तू ही कर।
विनीता – बस अपनी उंगली धीरे-धीरे सहलाते हुए मेरी चूत में डाल दे और आगे पीछे कर।
वो मुझे चूमने लगी। मैंने भी अपनी उंगली से धीरे-धीरे उसकी बुर सहलाती रही। कुछ देर बाद मुझे चिकनाई सी लगी और मेरी ऊँगली ‘सट’ से अन्दर घुस गई। मुझे भी अच्छा लगा और मैं जल्दी-जल्दी उंगली अन्दर बाहर करने लगी। दूसरे हाथ से उसकी चूची भी दबाने लगी। मुझे भी अच्छा लग रहा था।
“बस !” 2-3 मिनट के बाद वह बोली- अरे यार अब नहा ले। भाई क्या सोचेगा?
मैं भी जैसे नींद से जगी। जल्दी से साबुन लगाया और नहाने लगी। जब नहा कर बाहर आई और शीशे में अपनी बुर देखी तो दंग रह गई, एकदम मुलायम और चिकनी। खैर हम दोनों ने विनीता के ही सलवार और सूट पहन कर बाहर आईं।
विनोद बोला- क्या विनीता दीदी इतनी देर कर दी? मैंने तो नहा कर चाय भी बना दी। अब तुम चाय पी कर निकलो और आरती को उसके घर छोड़ दो। अब पानी भी बन्द हो गया है।
विनीता- अरे भइया आप चाय पिओ, मैं आरती को छोड़ कर आती हूँ।
विनोद – ठीक है तुम ही चली जाना लेकिन पहले चाय तो पी लो आरती पहली बार घर आई है क्या सोचेगी?
विनीता चाय लाई, हम सब ने चाय पी। मैं विनीता को साथ ले कर घर चल दी।
रास्ते में मैंने विनीता से पूछा- ये सब तू कहाँ से, कैसे सीखी?
विनीता- जहाँ हम पहले रहते थे वहाँ से।
आरती- कैसे?
विनीता- वहाँ हमारे मकान मालिक और उनकी बीवी का मकान दो मन्जिल का था, वे ऊपर रहते थे, हम नीचे रहते थे थ्री रूम सेट था चूँकि मेरे मम्मी डैडी दोनों जॉब करते है और भाई अपने दोस्तों में व्यस्त रहते थे। मेरा सारा समय मकान मालकिन के साथ ही बीतता था। मैं उन्हें भाभी कहती थी। वह भी मेरे मम्मी-डैडी को आन्टी-अंकल कहती थीं। मुझसे मजाक भी करती थीं। मैं भी उनसे मजाक कर लेती थी। मजाक-मजाक में हम दोनों एक दूसरे की चूची भी पकड़ लेते थे। वह मुझे बहुत प्यार करती थीं।
एक दिन की बात है:
भाभी- विनीता !
“हाँ भाभी?”
“मेरा एक काम कर दोगी?”
“बोलो भाभी, क्यों नहीं करुँगी?”
“अरे तुम्हारे भैया को दाद हो गई है। तो मुझे भी कुछ लग रहा है। जरा ये दवा लगा दे।”
इतना कह कर उन्होंने मुझे ‘टीनाडर्म’ दी और अपनी साड़ी पूरी ऊपर उठा कर ठीक उसी प्रकार लेट गई जैसे मैंने तुझे लिटाकर तेरी झाँटें साफ़ की थी।
“अच्छा तो अपनी भाभी से सीखी हो ! चल आगे बता।”
तो वह फिर शुरू हो गई बोली- मैंने तब तक किसी दूसरी की फ़ुद्दी नहीं देखी थी यहाँ तक कि अपनी बुर को भी कभी इतने ध्यान से नहीं देखा था। मैंने जब भाभी की बुर देखी तो देखती ही रही।
भाभी- क्या देख रही हो? मेरी ननद रानी, दवा तो लगाओ।
मैं दवा लगाते हुए उनसे बात करने लगी और उनकी बुर ध्यान से देखने लगी।
“भाभी मैंने कभी बुर नहीं देखी है। तुम्हारी बुर देख कर तो मुझे अजीब सा लग रहा है।
“क्या तुमने अपनी बुर भी नहीं देखी है?”
“नहीं !”
“क्या बात करती हो?”
“नहीं भाभी कभी ऐसा कुछ सोची ही नहीं और कोई काम भी तो नहीं पड़ता।”
“क्या कभी झाँटे भी साफ़ नहीं करती हो?”
“क्या भाभी आप भी। अरे साफ़ तो चूतड़ किये जाते हैं ना पोटी के बाद !”
मेरे इतना कहते ही भाभी बोलीं- अरे विनीता, अब तो खुजली भी होने लगी। ऐसा कर दवा फ़ैला दे। फैलाते समय जहाँ कहूँ, वहीं रगड़ देना।
दवा फैलाते हुए मैं भी उनकी चूत का पूरा पोस्ट्मार्टम कर रही थी अपनी उंगली और आँखों से ! मेरे अनाड़ी हाथ जब उनकी बुर के पास आए तो वह काँपने से लगी।
वो मुझसे बोलीं- बस बस, यहीं थोड़ा रगड़ो और दूसरे हाथ से दवा भी फैलाती रह।
जब मैं दूसरे हाथ से दवा लगाते हुए उनकी गाण्ड पर अपना हाथ ले गई तो वह चूतड़ उठा कर बोलीं- यहाँ भी रगड़।
अब मैं एक हाथ से उसकी बुर और दूसरे हाथ से गाण्ड रगड़ रही थी। थोड़ी ही देर में उनकी बुर ने पानी छोड़ दिया।
“भाभी, ये क्या? आप तो धीरे-धीरे पेशाब कर रहीं हैं !”
“नहीं मेरी ननद रानी, यह तो अमृत है।”
इतना कहते हुए वह अपने हाथ से मेरी उंगली पकड़ी और अपनी बुर में डाल दी और बोलीं- इसी तरह मेरी गाण्ड में भी डाल दो और जल्दी-जल्दी आगे-पीछे करो।
मैं करने लगी लेकिन थोड़ी ही देर में मैं थकने लगी तो बोली- भाभी, मैं तो थक रही हूँ।
“क्या विनीता, अभी तो गान्ड में गई ही नहीं और तुम थकने लगी।”
इतना कहते हुए वह बैठ गईं और बोलीं- यार विनीता, आज पता नहीं तुमने अपने हाथ से क्या कर दिया कि मेरा मन बहुत कर रहा है कि कोइ मुझे चोदे।
“क्या भाभी? भैया को बुलाऊँ?”
तो मुझे चिपकाते हुए बोलीं- क्या कहोगी अपने भैया से?
अपनी चूची मेरे मुँह में डालते हुए बोलीं- चूस चूस !
मैं बोली- भाभी, तुम्हारे कपड़े प्रोब्लम कर रहे हैं।
वो अपने सारे कपड़े उतार कर बोलीं- अब ठीक है?
“हाँ अब ठीक है।”
इतना कह कर मैं चूची चूसने लगी तो मेरे कपड़े भी उतारते हुए बोलीं- अपने भी उतार दो, नहीं तो खराब हो जायेंगे।
मुझे भी नंगी कर दिया। मुझे अपने पैरों के बीच में लिटा कर मेरा सर अपने पेट पर रख दिया और मेरे मुँह में अपनी चूची डाल दी और अपने हाथ से मेरी चूची सहलाते हुए दबाने लगी। अब मुझे भी अच्छा लग रहा था।
तब तक मैं अपने घर पहुँच गई थी।
मैं बोली- विनीता सुनने में बहुत मजा आ रहा था, लेकिन घर आ गया। चलो बाद में बताना।
मित्रो, सखियो, आगे की कहानी अगली बार।
आपकी आरती
This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000