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लेखक विजय कपूर की पिछली कहानी थी: घर में चूत गांड चुदाई का खेल अब एक नयी सेक्सी कहानी का मजा लें.
जब मेरी शादी हुई तो मेरी साली हनी कम उम्र की थी. बहुत प्यारी थी और जीजू जीजू करती रहती थी.
धीरे धीरे जैसे जैसे वो बड़ी होती गई, मेरे साथ बहुत रिजर्व होती गई, बस मतलब की बात करती और एक दूरी बना कर रखती.
जवान होते ही हनी एकदम खिल गई, दो शब्दों में कहूँ तो एटम बम हो गई. 5 फीट 6 इंच का कद, 32 साइज की चूचियां और 36 साइज के चूतड़. ऊंची हील के सैण्डल्स पहन कर चलती तो चूचियां और चूतड़ शरीर से बाहर निकल आते.
एमकॉम करने के बाद उसकी शादी प्रियंक के साथ हो गई और हनी दिल्ली चली गई. शादी के बाद हनी जब जब मायके आती या हमारे घर आती तो उसे देखकर मेरा लण्ड टनटना जाता और मैं एक ही बात सोचता कि ससुर जी के पास रसगुल्ला था तो मुझे दही बड़ा क्यों पकड़ा दिया.
शादी के तीन साल बाद भी कोई सन्तान न होने पर हनी की ससुराल में चर्चा का विषय बन गई. इधर मेरी सास भी चिन्तित थी कि सीमा तो शादी के एक साल के अन्दर ही मां बन गई थी लेकिन हनी नहीं बन पा रही है. मेरी सास अपनी यह चिन्ता मेरी पत्नी से भी शेयर करती.
एक बार जब हनी मायके आई तो मेरी पत्नी की सलाह पर मेरी सास हनी को लेकर डॉक्टर के यहां भी गई और कुछ इलाज भी हुआ.
धीरे धीरे शादी के 6 साल निकल गये और हनी के कोई सन्तान नहीं हुई.
एक दिन मेरी पत्नी और मेरी सास की फोन पर बात हो रही थी कि अगले हफ्ते हनी आ रही है.
बात हनी की सन्तान की छिड़ी तो मेरी सास ने कहा- समझ नहीं आ रहा कि क्या करें, इतनी जगह तो दिखा चुके हैं. मैंने तफरीह लेने के लिए धीरे से कहा- इतनी जगह दिखा चुके हो तो एक बार हमें भी दिखा दो. यह सुनकर मेरी पत्नी मुझे घूरने लगी और मैं मुस्कुरा दिया.
फोन पर बात खत्म होने के बाद मेरी तरफ मुखातिब हुई- क्या कह रहे थे? “मैं कह रहा था कि कई जगह दिखा चुके हो, कोई लाभ नहीं हुआ, एक बार हमें भी दिखा दो.” “क्या दिखा दें तुमको?” “हनी की चूत, और क्या? एक बार हमसे चुदवा ले, भला हो जायेगा.”
“अजीब आदमी हो, इतना सीरियस इश्यू है और तुमको मजाक सूझ रहा है.” “इसमें मजाक की क्या बात है? एक बार सोचकर देखो, शायद मेरा बच्चा पैदा करने ही तुम दोनों बहनों के नसीब में हो.” “क्या गारन्टी है कि तुमसे चुदवा कर वो मां बन ही जायेगी?” “आज तक जितने डॉक्टरों को दिखाया, फीस दी, किसने गारन्टी ली. एक कोशिश है, भगवान चाहेगा तो हो जायेगा.”
मजाक में शुरू हुई बात धीरे धीरे सीरियस हो चली थी. मेरी पत्नी ने कहा- तुम्हारी बात मान भी लूँ तो तुम्हारा प्रस्ताव हनी से कहूँ कैसे? “देखो, अगर तुम मौसी बनना चाहती हो तो रास्ता तो बनाना ही पड़ेगा. पहले तुम अपना मन पक्का करो.”
“मैं सोच रही हूँ, तुम्हारी बात मानने में कोई नुकसान तो है नहीं. साली जीजा के रिश्ते में यह कोई नई बात नहीं है. अब बताओ, ये होगा कैसे?” “तुम्हें मैं पूरा प्लान बताता हूँ, उसी पर चलना होगा.” “मंजूर है, बताओ.”
तफरीह लेते लेते हनी की चूत लेने का मौका मिल रहा था. मैंने अपनी पत्नी को पूरा प्लान समझा दिया. जल्दी से जल्दी मौसी बनने की चाहत में वो अपनी बहन मुझसे चुदवाने को तैयार हो गई थी.
हनी जिस दिन अपने मायके आई, योजना के मुताबिक अगले दिन मेरा साला अजीत उसे हमारे घर ले आया और मेरे बेटे भरत को ले गया. तय हुआ था कि शाम को हनी को डॉक्टर दिव्या शुक्ला के यहां ले जायेंगे.
शाम को मैं, मेरी पत्नी व हनी डॉक्टर के यहां गये. नम्बर आने पर मैं व हनी अन्दर गये. डॉक्टर हम दोनों को पति पत्नी समझ कर बात कर रही थी.
डॉक्टर के पूछने पर हनी ने बताया कि उसे दस दिन पहले मासिक हुआ था. तो डॉक्टर ने कहा- आप लोग बहुत सही समय पर आये हैं, मासिक के दसवें से पन्द्रहवें दिन के बीच सम्भोग करना श्रेयस्कर होता है. यह टेबलेट दे रही हूँ, इसका पांच दिन का कोर्स होता है, मासिक के दसवें से पन्द्रहवें दिन तक एक टेबलेट रोज खाइये. इस महीने गर्भ न ठहरे तो अगले महीने और गर्भ ठहरने तक खाइये.
डॉक्टर के कमरे से बाहर आकर हनी ने पूरी बात मेरी पत्नी को बताई. वहां से निकले तो योजनानुसार मेरी पत्नी बोली- आये हुए हैं तो मुझे एक नाइटी दिला दीजिये. “एक क्या दो ले लो.” “नहीं, एक ही दिलाइये. अगर दिलाना हो तो एक हनी को भी दिला दीजिये.” “दिला देंगे यार, एक हनी को भी दिला देंगे. साली है हमारी.”
हम लोग एक शोरूम गये और दोनों बहनों को एक जैसी नाइटी दिला दी. उसके बाद होटल में खाना खाया और घर आ गये. घर आते ही मैं सो गया. यूं कहो कि सोने का नाटक करने लगा.
कुछ देर बाद मेरी पत्नी व हनी कमरे में आईं. मेरी पत्नी ने मुझे आवाज दी- सुनिये. कोई जवाब नहीं दिया मैंने तो बोली- सो गये, क्या? मैंने फिर कोई जवाब नहीं दिया तो मेरी पत्नी मेरे बगल में लेट गई और उसके बगल में हनी.
मेरी पत्नी ने हनी से पूछा- हनी ये बताओ, तुम्हारे और प्रियंक के रिश्ते तो ठीक हैं ना? “हाँ. ऐसा क्यों पूछ रही हो?” “मेरा मतलब है कि सेक्स के दौरान तुम्हें उत्तेजना होती है?” “कैसी उत्तेजना?” “अभी बताती हूँ, कैसी उत्तेजना. तुम समझो मैं प्रियंक हूँ.”
इतना कहकर मेरी पत्नी ने हनी की चूचियां सहलाना शुरू किया.
हनी ने नानुकुर की तो मेरी पत्नी ने कहा- तुम मुझे प्रियंक समझो. अपनी छोटी बहन को चूमते, चाटते, उसकी चूचियां सहलाते, हनी की चूत पर हाथ फेर कर मेरी पत्नी ने हनी को गर्म कर दिया और बोली- प्रियंक के साथ कभी इतनी उत्तेजना होती है? “ना, वो कभी ऐसे करता ही नहीं.”
“अब तुम सोचो कि तुम प्रियंक के साथ हो. इतना कहकर मेरी पत्नी ने हनी को अपनी बांहों में भर लिया.
कुछ ही देर में मेरी पत्नी बोली- पेट में दर्द हो रहा है, पॉटी जाना पड़ेगा.” यह कहकर मेरी पत्नी उठी और कमरे से चली गई.
सीमा के जाते ही मैंने करवट ली और हनी को बाहों में लेकर ‘सीमा मेरी जान’ कहते हुए उसकी नाइटी ऊपर खिसकाकर हनी की चूत पर हाथ रख दिया.
चार बार हनी की चूत पर हाथ फेरकर मैंने उसकी पैन्टी नीचे खिसका दी और अपनी उंगलियों से हनी की चूत के लब खोल दिये. हनी की चूत में उंगली चलाते हुए मैंने अपने होंठ हनी के होंठों पर रख दिये. हनी की नाइटी और ऊपर खिसका कर मैंने हनी की चूचियां खोल दीं. हनी का हाथ अपने लण्ड पर रखकर मैं उसकी चूचियों से खेलने लगा. हनी मेरे लण्ड को टटोल कर साइज का अन्दाजा ले रही थी.
हनी की चूची अपने हाथ में दबोचते हुए मैंने कहा- सीमा, आज तुम्हारी चूची बहुत टाइट लग रही हैं. लाओ चुसा दो. “जीजू, मैं हनी हूँ.” कहते हुए हनी मुझसे लिपट गई. “तुम हनी हो तो सीमा कहाँ गई?” “वो बाथरूम गई है.”
मैं उठा और कमरे से बाहर झांककर देखा. वापस पलटवार मैं बोला- वो तो उस कमरे में सो रही है. इतना कहकर मैंने दरवाजा बंद किया और कमरे की लाइट जला दी.
लाइट जलते ही हनी ने अपनी नाइटी नीचे कर दी और तकिये में मुंह छिपा लिया. मैंने अपनी टीशर्ट व लोअर उतार दिया और हनी की नाइटी व पैन्टी उतारकर उसे पूरी तरह से नंगी कर दिया.
हनी के बगल में लेटकर मैंने उसकी चूत पर जीभ फेरी तो कसमसा गई. मैंने हनी की चूत चाटना जारी रखा तो हनी ने मेरा अण्डरवियर उतार दिया और मेरे लण्ड की खाल आगे पीछे करते हुए मेरे लण्ड का सुपारा चाटने लगी.
मेरी सेक्सी साली चुदासी हो चुकी थी इसलिए मुझे अपने ऊपर खींचने लगी. मैं हनी की टांगों के बीच आया तो हनी ने अपने चूतड़ उचका कर गांड़ के नीचे तकिया रखकर अपनी टांगें फैला दीं. हनी की चूत के लबों को फैला कर मैंने अपने लण्ड का सुपारा रखा तो हनी ने अपने चूतड़ उचका दिये. मैंने धक्का मारा तो मेरे लण्ड का सुपारा हनी की चूत में चला गया.
सिसकारी भरते हुए हनी बोली- जीजू, कोई तेल या क्रीम लगा लो. मैंने तेल की शीशी उठाई और अपने लण्ड पर तेल लगाकर फिर से हनी की टांगों के बीच आ गया. लण्ड का सुपारा हनी की चूत पर रखकर मैंने उसकी कमर पकड़ी और लण्ड धकेलता चला गया.
पूरा लण्ड हनी की चूत में चला गया तो मुझे अपने सीने पर खींच कर मुझे चूमते हुए हनी बोली- जीजू, शादी के 6 साल हो गये, आज पहली बार चुद रही हूँ. “क्यों? प्रियंक नहीं चोदता क्या?” “वो चोदता है लेकिन मुझे आज पता चला है कि चुदना किसे कहते हैं.”
हनी के निप्पल्स को दांतों से काटते हुए मैंने कहा- ये तो तुम गलती से चुद गई, मैं तो तुम्हें सीमा समझ कर चोद रहा था. “जीजू, आप तो मुझे दीदी समझ कर चोद रहे थे लेकिन दीदी मुझे आपसे चुदवाना चाहती थीं, ये मेरी समझ में आ गया. भगवान ऐसी दीदी सबको दे.” “और तुम्हारे जैसी साली सिर्फ मुझे दे.”
हनी की टांगें अपने कंधों पर रखकर मैंने हनी की चुदाई शुरू की तो हनी उफ्फ उफ्फ करते हुए उछलने लगी. पैसेंजर ट्रेन की रफ्तार से शुरू हुई चुदाई ने जब राजधानी एक्सप्रेस की रफ्तार पकड़ ली तो मेरे लण्ड की मोटाई और कड़कपन बढ़ने लगा.
लण्ड के अन्दर बाहर होने से हनी को दिक्कत हुई तो मैंने एक बार फिर से तेल लगा लिया. मेरे लण्ड के डिस्चार्ज का टाइम करीब आया और मेरे लण्ड का सुपारा संतरे की तरह मोटा हो गया तो मैंने कहा- हनी, मैं आ रहा हूँ, सम्भाल लेना. हनी ने अपनी आँखें बंद कर लीं और बुदबुदाते हुए भगवान से कुछ कहने लगी.
अपने कंधों से हनी की टांगें उतारकर मैं हनी के ऊपर लेट गया और उसकी चूचियां चूसते हुए उसे चोदने लगा. मेरे लण्ड से जब फव्वारा छूटा तो हनी ने मुझे थकड़ लिया और बेतहाशा चूमने लगी. डिस्चार्ज के बाद मैं काफी देर तक हनी के ऊपर ही लेटा रहा और हम दोनों एक दूसरे को सहलाते रहे.
काफी देर बाद मैंने हनी के गाल पर हाथ फेरते हुए पूछा- एक बार और? “नहीं जीजू, अभी नहीं. कल दीदी ऑफिस चली जायेगी तब.”
हनी पांच दिन हमारे घर रुकी और दिन रात चुदी. छठे दिन अजीत आया और भरत को छोड़कर हनी को ले गया.
एक हफ्ते बाद प्रियंक आया और हनी उसके साथ दिल्ली चली गई. करीब एक महीने बाद मेरी सास ने सीमा को फोन करके बताया- बधाई हो, तुम मौसी बनने वाली हो. मेरी पत्नी मेरी ओर देख कर मुस्कुराते हुए बोली- मेरी बेचारी माँ को क्या पता कि ये सब उनके बड़े दामाद विजय बाबू की मेहरबानी है.
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