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शनिवार को मेरा इंटरव्यू था। नियत समय पर मैं गया। कुछ सवाल पूछ कर बॉस ने बाईस हजार पर मेरी नौकरी तय कर दी। सोमवार को ज्यॉन करना था। मैं खुश हो गया। दीदी के चैंबर में जाकर उसे खुशखबरी दी और घर चला आया।
शाम को दीदी घर लौटी तो उसके हाथ में मिठाई का डिब्बा था।
मैंने हाथ बढ़ाया तो कहने लगी- पहले मंदिर चलकर भगवान का धन्यवाद करो, फिर मिठाई खाना।
हम दोनों पास के ही एक मंदिर गए और भगवान का शुक्रिया अदा करके घर लौटे।
रात में दीदी ने कहा- मनीष, यह मिठाई तो मेरी ओर से थी, तुम कब पार्टी दे रहे हो?
मैं कहा- जब तुम कहो दीदी !
दीदी ने कहा- ठीक है फिर कल ही हो जाए। रविवार की छुट्टी भी है।
मैंने पूछा- किस रेस्तरां में जाना है तय कर लो, क्यूंकि मुझे तो यहाँ का कुछ पता नहीं है।
दीदी ने कहा- नहीं, चिकन ले आते हैं और घर में ही एन्जॉय करेंगे।
मैंने कहा- यह भी ठीक रहेगा।
अगले दिन सवेरे उठकर हम लोग फ्रेश हुए। नाश्ता करने के बाद मैं चिकन लाने चला गया और दीदी नहाने चली गई।
दोपहर को खाना बनाने के बाद दीदी ने पूछ- मनीष, तुम ड्रिंक लेते हो क्या?
मैंने कहा- हाँ, कभी कभी। तुम भी लेती हो क्या?
उसने कहा- हाँ, मैं भी कभी कभी ले लेती हूँ।
मैंने पूछा- तुम क्या लेना पसंद करोगी, बताओ मैं ले आता हूँ।
उसने कहा- आज गर्मी बहुत है, बीयर ही ले आओ।
मैं एक झोले में बीयर की चार बोतल खरीद कर ले आया।
दीदी ने कहा- चार बोतल का क्या होगा।
मैंने कहा- जितना दिल करेगा लेंगे, और जो बच जाएँगी वो फ्रिज में रख देंगे।
फिर हम लोग छत पर चले आए। छत पर तेज धूप थी। गेस्ट-रूम के छाँव में हमने चटाई बिछाई और खाना भी निकाल कर खाने के साथ ही हम लोग बीअर का मजा लेने लगे। एक-एक बोतल समाप्त होते ही हम दोनों पर सुरूर छाने लगा।
बेख्याली में ही मेरे हाथ से चिकन का एक टुकड़ा मेरे पाजामे पर ठीक लिंग के ऊपर गिर गया। मैंने जल्दी से उसे हटाया। दीदी भी एक झटके से आई और मेरे लिंग के ऊपर से मसाले और रस पोंछने लगी। दीदी का हाथ लगते ही मेरा लिंग खड़ा हो गया।
दीदी ने उसे मुट्ठी में पकड़ लिया और बोली- बहुत बदमाश हो गया है यह, इसे संभाल कर रखो।
मैं तो जैसे भौंचक्का सा रह गया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
मैंने कहा- दीदी, आपने तो उसे कैद कर रखा है, क्या अपनी आजादी के लिए सर भी ना उठाएगा।
दीदी मुस्कुराने लगी और लिंग को छोड़ दिया। लिंग फिर भी पाजामे को तम्बू बनाये हुए था। दीदी इस तरफ देखकर रह रह कर मुस्कुरा देती थी।
फिर हम खाना खाने लगे।
दीदी ने कहा- मनीष, क्यूँ ना दूसरी बोतल का भी मजा लिया जाए।
मैंने भी स्वीकृति दे दी और बाकी बचे हुए दोनों बोतल को खोल लिया। हम लोगों का खाना पीना साथ साथ जारी था।
खाना खाते खाते आसमान पर बादल छाने लगे। खाना समाप्त करते करते हल्की सी फुहार भी पड़ने लगी। हम दोनों पर नशा भी हावी होने लगा था। मैं वहीं चटाई पर लेट गया और दीदी सभी बर्तनों को एक तरफ़ रखने लगी। बर्तन हटाने के बाद दीदी भी मेरे बगल में आकर लेट गई और मेरे छाती पर हाथ फेरते हुए पूछने लगी- ज्यादा नशा हो गया क्या?
मैंने कहा- नहीं, पर थोड़ा थोड़ा तो है ही।
दीदी ने मेरे बालों भरी छाती को चूम लिया।
मैंने कहा- ये क्या कर रही हो दीदी ?
दीदी ने कहा- तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो।
दीदी के ऐसा कहते ही मैंने उस अपनी बाँहों में कस लिया। दीदी ने भी कोई विरोध नहीं किया। बल्कि उसने अपना हाथ फिर मेरे लिंग पर रख दिया। मुझे उसकी मंशा समझने में कोई देर नहीं लगी।
मैंने पूछा- दीदी, क्या तुम कुछ आगे भी करना चाहती हो?
उसने कहा- हाँ रे, मैं तो कई दिनों से चाह रही हूँ, पर तू मेरे इशारों को समझ ही नहीं रहा था।
मैंने कहा- दीदी मैं समझ तो रहा था पर तुम बड़ी हो और बहन भी, इसलिए डर रहा था।
दीदी ने मेरे होंठों को चूम लिया, मैं भी उसके चुम्बन में खो सा गया।
करीब दो मिनट के चुम्बन के बाद जब हम अलग हुए तो मैंने पूछा- दीदी क्या तुम पहले भी चुद चुकी हो?
दीदी ने मेरे गाल पर चिकोटी काटते हुए कहा- नहीं रे, चाहती तो बहुत थी पर अनजान आदमी से चुदने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी। जब स्टेशन पर तुम्हारे मस्त बदन को देखा तो लगा कि अब मेरी हसरत पूरी हो जायेगी। क्या तुमने पहले किसी को चोदा है?
अब मैंने भी उसके होंठों को चूमते हुए कहा- नहीं दीदी, आज तक मौका ही नहीं मिला मुझे।
फिर कब हमारे कपड़े उतरते चले गए पता भी नहीं चला। मैंने दीदी की दोनों चूचियों के बीच अपना चेहरा छुपा लिया। दीदी भी मेरे सिर को अपने सीने पर दबाने लगी। मैं भी अपने घुटने से दीदी की अनचुदी बुर को रगड़ने लगा।
अचानक दीदी ने अपने एक चूची को मेरे मुँह में ठूंस दिया। मैं उसके निप्पल को मुँह में लेकर चूसने-चुभलाने लगा। दीदी मेरे लिंग को अपनी मुट्ठी में पकड़कर मुठ मारने लगी। हम दोनों ही मस्ती के सागर में डूबने लगे।
मैंने उिसकी दोनों चूचियों को चूम-चाट और काट कर लाल कर दिया। अब दीदी ने मेरे लिंग को मुँह में ले लिया और चूसने लगी। मैं तो जैसे स्वर्ग में विचरण करने लगा। करीब दस मिनट तक लगातार चुसाई के बाद मेरा वीर्य दीदी के मुँह में में ही निकल गया। उसने पूरा का पूरा निगल लिया। मैं भी हांफने लगा।
इतनी देर में हम लोगों का शरीर भी अच्छी तरह से भीग गया। अब यह बारिश की वजह से या पसीने की वजह से, यह पता नहीं चला।
हम लोग फिर से लिपटने चिपटने लगे। दीदी ने मेरे सिर को नीचे की ओर दबा कर इशारा किया। मैंने भी उसका इशारा समझ कर उसकी बुर को चूम लिया। वो मस्त हो गई।
मैंने चूमते चूमते अपनी जीभ उसकी बुर के फांकों के बीच घुसा दिया। दीदी अचानक चिहुँक गई और मेरे सिर को अपनी बुर पर दबाने लगी। मैंने उसकी बुर को चाट चाट कर लाल कर दिया। अचानक उसकी बुर से लिसलिसा सा रस निकलने लगा जो मेरे मुँह में चला गया। मुझे उसका स्वाद अजीब सा लगा। मैंने थूकना चाहा पर ये सोचकर निगल गया कि कहीं दीदी को बुरा न लगे। आखिर उसने भी तो मेरा रस पी लिया था। इतनी देर में मेरा लिंग भी फिर से खड़ा हो गया था।
दीदी ने अब मुझे ऊपर खींच लिया और कहने लगी- मनीष अब और मत तड़पाओ, डाल दो अपना मस्त लौड़ा मेरी बुर में।
और ऐसा कहकर मेरे लौड़े को पकड़ कर अपनी बुर पर घिसने लगी। मैंने भी अब देर करना उचित नहीं समझा और अपने लौड़े को उसकी बुर के छेद पर सेट करने लगा। दीदी ने सहयोग किया। चिकनाई तो भरपूर हो ही रही थी। सेट करने के बाद मैंने हल्का से दवाब बनाया, मेरे लौड़े का सुपारा फक्क से उसके बुर की फांकों में फंस गया।
वो थोड़ा विचलित हुई।
मैंने पूछा- क्या हुआ?
दीदी ने कहा- कुछ नहीं तुम घुसाते रहो। पहली बार है तो दर्द तो होगा ही।
मैंने अपने लौड़े को थोड़ा सा बाहर खींचा और एक जोरदार धक्का लगाया। मेरा पूरा का पूरा लौड़ा एक बार में ही उसकी झिल्ली को चीरता हुआ जड़ तक अंदर धँस गया। इसके साथ ही जोरों की बरसात शुरू हो गई। उसके मुँह से एक हल्की सी चीख निकली पर उसने अपने होंठ भींच लिए और चीख उसके मुँह के अंदर ही घुटकर रह गई। मेर लौड़े में भी जोर का दर्द महसूस हुआ। लगा जैसे चमड़ी कट गई हो। दर्द को महसूस करके मैं अपना लौड़ा निकालने लगा। पर दीदी ने अपने टांगों की कैंची बनाकर मेरे कमर को लपेट कर कस लिया और बोली- मैं जब अपना दर्द बर्दास्त कर रही हूँ तो तुम क्यूँ परेशान हो रहे हो?
मैंने कहा- दीदी, मैं तुम्हारे दर्द से नहीं, अपने दर्द से परेशान हो रहा हूँ।
दीदी ने मुझ पर कटाक्ष किया- मर्द को भी दर्द होता है क्या?
मैं झेंप गया।
बारिश भी जैसे हमारी चुदाई देखने आ गई थी। कुछ देर तक यूँ ही पड़े रहने के बाद दीदी ने अपनी कमर उचकाई।
मैंने अपना लौड़ा जड़ तक घुसाए हुए ही उसके बुर में गोल-गोल घुमा कर रगड़ना शुरू किया।
दीदी ने मुस्कुरा कर पूछा- यह कौन सा आसन है?
मैंने भी शरारत से कहा- मनीषासन… ! क्यूँ अच्छा नहीं लगा क्या?
दीदी हँसने लगी और बोली- मस्त लग रहा है यार, बुर के अंदर की दीवार पर चारों तरफ अच्छी घिसाई-रगड़ाई हो रही है। तुमने यह आसन कहाँ से सीखा?
मैंने कहा- अभी-अभी तो सीखा है। दरअसल तुम्हारी बुर इतनी टाईट है और मेरे लौड़े में भी दर्द हो रहा है, तो आगे-पीछे करने में और भी दर्द बढ़ेगा। इसलिए मैंने सोचा की बिना आगे-पीछे किये भी तो चुदाई की जा सकती है।
दीदी ने मुझे चूमते हुए कहा- वाह मेरे शेर, मस्त है तुम्हारा तरीका। किसी ने सही कहा है कि आवश्यकता ही अविष्कार की जननी होती है।
करीब पाँच मिनट तक मैं अपने लौड़े को इसी तरह घुमाता रहा। अचानक दीदी का शरीर ऐंठने लगा और उसकी बुर ने रसों की बरसात कर दी। अब घिसाई में और चिकनाहट आ गई। दीदी भी थोड़ी शिथिल हो गई।
मैंने पूछा- दीदी थक गई क्या?
दीदी ने कहा- हाँ रे, थक गई। पहली बार ही चुदवा रही हूँ न !
मैं भी उसी अवस्था में रुक गया और दीदी को चूमने लगा। चूंकि मेरा एक बार वीर्यपात हो चुका था इसलिए मेरा नहीं निकला था अब तक।
झमाझम बारिश में चुदाई… मुझे कुछ ऐतिहासिक धारावाहिकों के वो दृश्य याद आ गए जिनमें किसी के अच्छे काम के बाद आकाश से देवतागण पुष्प की वर्षा करने लगते थे।
मैंने दीदी से कहा- दीदी, ईश्वर भी हम दोनों की चुदाई देखकर फूल बरसाने आ गए।
दीदी शरमा गई। जैसे वास्तव में उन्हें कोई देख रहा हो। दीदी ने अपने हाथों से अपना चेहरा ढक लिया।
मैंने कहा- दीदी, आज का दिन बहुत शुभ है।
दीदी ने कहा- क्यूँ आज चुदाई के लिए लड़की मिल गई इसलिए क्या?
मैंने कहा- नहीं इसलिए नहीं, मैंने किताबों में पढ़ा है कि जब कोई शुभ कार्य करते वक्त बारिश हो जाए तो उसे प्रकृति की स्वीकृति, ईश्वर की सहमति कहते हैं।
दीदी मुझे चूमने लगी, दीदी ने चूमते चूमते मेरे गाल पर अपनी दांतों से काट लिया। मैं मचल गया और इस तरह एक और धक्का लग गया। दीदी फिर से कमर उचकाने लगी।
अब मैं भी अपने लौड़े को उसकी बुर में आगे-पीछे करने लगा। बुर में पर्याप्त चिकनाई थी। किसी मशीन के पिस्टन की भांति मेरा लौड़ा सटासट अंदर बाहर हो रहा था।
फच्च …फच्च… की आवाज एक अजीब सा उन्माद उत्पन्न कर रहा था, दीदी पर एक मदहोशी सी छा रही थी, उसकी आँखें बंद हो गई और उन्माद में उसके मुँह से… जोर से मनीष… और जोर से… ओह… आह… कस करर चो.. मनी… आह… मजा आ गया… कहाँ था रे तू अब तक… जैसे अस्फुट स्वर निकलने लगे। उसकी मदहोशी मुझे और भी उन्मादित कर रही थी।
मैं भी पूरी ताकत लगाकर उसे चोदने लगा, हुमच हुमच कर उसे पेलने लगा। मेरे हर एक धक्के के समय दीदी भी अपनी कमर को उचका-उचका कर मेरे संपूर्ण लौड़े को अपने अंदर समाहित करने की कोशिश करने लगी। बारिश भी झमाझम जारी थी।
करीब दस मिनट के धक्कम-पेल के बाद दीदी ने कहा- तुझे कितनी देर लगेगी झड़ने में? मैं तो फिर से आ रही हूँ।
मैंने कहा- कोई बात नहीं दीदी मैं भी अब करीब ही हूँ, हम दोनों एक साथ ही झड़ेंगे।
और कोई चार-पाँच धक्कों के बाद ही हम दोनों ने अपना अपना माल निकालने की होड़ लगा दी। पुचक-पुचक कर मेरा सारा माल उसकी योनि में जा रहा था। दीदी ने मुझे अपनी बाँहों में कस कर जकड़ लिया। सारा माल निकलने के बाद मैं दीदी के ऊपर ही लेट गया और हम दोनों के ऊपर वर्षा रानी नृत्य करती रही… करती रही…
कैसी लगी यह कहानी दोस्तो, अपनी राय से अवगत कराएँ।
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