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मौसी मेरे कान में बोलीं- भाभी है, कुछ चूत का खेल खेल ! दोनों बहनें एक ही घर में रहेंगी तो अच्छा रहेगा, पूरी दौलत की मालकिन हो जाएगी।
मुझे मौसी का इशारा समझ में आ गया। कुछ दिन घर में रहने के बाद मैं ससुराल चली गई।
मेरा देवर विनोद 22 साल का शरीफ लड़का था, बैंक और सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहा था। वह एक शर्मीला युवक था।
मेरे पति और ससुर की तरह वो रंगीला और औरतबाज आदमी नहीं था। वापस आने के बाद मैंने सोच लिया था कि देवर को अपना दोस्त बनाना है।
मेरी सास हर सोमवार को मेरे पति के साथ सुबह 2 घंटे के लिए मंदिर जाती थीं। 2-3 महीने बाद मैंने ध्यान दिया सोमवार में जब भी मैं नहाने जाती थी तो दो आँखें बाथरूम में लगे छेद से मेरी नंगी जवानी का लुत्फ़ लेती थीं। मैं बाथरूम में पूरी नंगी होकर नहाती थी। घर में मेरे देवर और ससुर ही मर्द थे तो मुझे लगा कि मेरा देवर ही मुझे नंगी नहाते देखता होगा। अगले सोमवार को मैंने तय किया आज देवर को अपना बदन पूरा नहाते हुए दिखाऊँगी।
इस सोमवार को भी दो आँखें बाथरूम के छेद में से झांक रही थीं। मैं पूरी नंगी पानी से भीग रही थी अपना मुँह मैंने दरवाज़े की तरफ घुमा लिया और सोचा देवर को थोड़ा मस्त करती हूँ। अपनी जांघें चौड़ी करके चूत दिखाती हुई चूचियाँ मलने लगी। मैंने 15 मिनट के स्नान में अपनी चूचियाँ हिलाईं और मल-मल कर उन पर साबुन लगाया, चूत को भी रगड़ा और मसला, अपनी तरफ से मैं इस तरह नहा रही थी कि देखने वाले को पूरा मज़ा मिले।
दो महीने तक हर सोमवार को मैंने अपने स्नान का मस्त मज़ा देखने वाले को दिया। मेरा मन कर रहा था कभी देवर घर में अकेला हो तो उससे मज़े किये जाएँ।
एक इतवार को वो दिन आ गया, मेरे ससुर दो दिन के लिए पटना किसी काम से गए थे, सास सुबह पति के साथ पास के गाँव शादी में चली गईं थीं दोनों शाम को ही लौट कर आते। अब घर में देवर और मैं अकेले थे।
सुबह के 7 बज़ रहे थे देवर बाहर से घूम कर आया, रोज़ की तरह मैंने उसके लिए चाय बनाई। जब चाय देने गई तो मैंने आँख मारते हुए अपना पल्लू नीचे गिरा दिया।
मेरे ब्लाउज के 4 बटन टूट रहे थे, अर्ध नग्न उभार दिखाते हुए मैंने उसके गालों पर चुटकी काटी और बोली- मेरे ब्लाउज के बटन ला दो ना ! देखो सारे बटन टूट गए हैं, एक और टूट गया तो संतरे बाहर गिर जाएँगे।
देवर झेंप गया और बटन लेने बाज़ार चला गया। बटन लेकर देवर पाँच मिनट में ही आ गया, मैं बोली- अभी बटन टांक लेती हूँ, पता नहीं बाद में समय मिले या नहीं !
मैंने पीठ उसकी तरफ करते हुए ब्लाउज उतार लिया ब्रा मैंने पहले ही नहीं पहन रखी थी। अब मेरी चूचियाँ झूल रही थीं। उस पर मैंने हल्के नीले रंग की साड़ी डाल रखी थी। साड़ी में से पूरे स्तन चमक रहे थे। देवर की तरफ मुड़ कर आँख मारी और बोली- घर में कोई नहीं है, यहीं बैठो ना ! बातें करते हैं।
अपनी चूचियाँ हिलाती हुई मैं बटन लगाने लगी, देवर एक टक मेरी चूचियाँ देख रहा था। देवर के लंड में हलचल हो रही थी लेकिन सीधा देवर कुछ कह नहीं पा रहा था।
देवर से मैंने पूछा- विनोद, तुमने कभी किसी लड़की को छेड़ा है या दोस्ती करी है?
विनोद बोला- मुझे लड़कियों से शर्म आती है।
“अरे शर्म क्यों आती है? लड़कियाँ तो खुद लड़कों से मस्ती करना चाहती हैं !” इस तरह मैं उतेजक बातें कर रही थी, विनोद झेंप रहा था।
आँख मारते हुए मैंने कहा- विनोद, तुम्हारा मन तो करता है लेकिन तुम शर्माते हो।
देवर का लौड़ा तना हुआ पैंट में मुझे दिख रहा था। आँख मारते हुए मैंने एक स्तन पूरा साड़ी में से बाहर निकाल लिया और पूछा- भाभी का संतरा सुंदर लगता है या नहीं?
जवाब सुने बिना आगे बढ़कर मैंने विनोद का मुँह अपनी खुली हुई चूची के निप्पल पर लगा लिया। देवर मस्त होकर दूधिया स्तन चूसने लगा। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
पर तभी दरवाज़े पर खटखट हुई, काम वाली बाई चमेली आई थी। विनोद पूरा गर्म हो रहा था। मैंने उसे हटाकर उसके लंड को पैंट के ऊपर से दबाया और होंटों पर एक पप्पी लेते हुए बोली- मुझ जैसी मस्त भाभी कहीं नहीं मिलेगी ! आज दोपहर को साथ बैठते हैं और मस्ती करते हैं।
मैंने सोच लिया था आज देवर को औरतबाज़ी सिखा कर रहूँगी।
दो बजे तक मेरा काम निपट गया था, मैं देवर को अपने कमरे में ले गई और बोली- सुबह मज़ा आया?
देवर शर्माते हुए बोला- अच्छा लगा !
मैंने अपनी साड़ी उतार दी और आँख मारते हुए पूछा- दुधू पीना है?
देवर थोड़ा सा खुल गया था, झेंपते हुए बोला- हाँ पीना है।
मैंने देवर को अपनी गोद में लेटा लिया और उसके मुँह को बातें करते करते अपनी चूचियों से चिपकाया और बोली- थोड़ा भाभी के माल का मज़ा ले लिया करो ! तुम ही तो एक मेरे दोस्त हो यहाँ पर।
देवर से मस्ती का खेल आज से शुरू हो गया था। मैंने ब्लाउज ऊपर उठाकर अपनी एक चूची निकाल कर उसके मुँह में लगा दी और बोली- लो दूध पी लो, मज़ा आ जाएगा।
देवर चूची चूसते हुए अपने एक हाथ से मेरी दूसरी चूची ब्लाउज के ऊपर से दबाने लगा। मैंने उसकी शर्ट के बटन खोलते हुए उसकी निप्पल नोचते हुए कहा- नंगी चूची दबाने का अलग ही मज़ा आता है। ब्लाउज खोल लो और आराम से मजे लो।
देवर ने ब्लाउज खोल दिया और एक अनाड़ी की तरह चूचियाँ मसलने लगा। मुझे एक नए खिलाड़ी की जवानी का आनन्द आ रहा था। मैंने एक कदम आगे बढ़ते हुए उसका लंड पजामे का नाड़ा खोलकर बाहर निकाल लिया।
आह ! क्या सुन्दर चिकना सात इंची लंड था।
अब मैं और देवर लेटे हुए थे, उसके लंड को सहलाने लगी, देवर का हाथ मैंने साड़ी के अंदर घुसा लिया और जैसे ही देवर ने मेरी चूत के मुँह को छुआ उसके लंड ने वीर्य की तेज पिचकारी छोड़ दी। यह इस बात का सबूत था कि यह देवर का पहला अनुभव है। वीर्य हम दोनों के ऊपर आकर गिरा। देवर शर्मिन्दा हो रहा था। मैंने उसे चिपकाते हुए कहा- शुरू में सबके साथ ऐसा होता है। आओ अब हम दोनों साथ साथ नहाते हैं।
देवर और मैं बाथरूम में आ गए। मैं पेटीकोट में थी देवर पजामा पहने हुए था मैंने दो तीन मग पानी अपने ऊपर डाले और दो तीन देवर के ऊपर और हंसी मज़ाक करते हुए विनोद का पजामा उतरवा दिया और लंड पर साबुन मलने लगी। लंड पूरा तन गया था, देवर मुझसे चिपक कर मेरी चूचियाँ मसलने लगा मैंने उसका हाथ अपने पेटीकोट के नाड़े पर रख दिया, दो सेकंड में ही मेरा पेटीकोट जमीन पर था।
मैंने देवर की उंगली पकड़ कर अपनी चूत में घुसा ली। अब मेरी चूत में देवर की उंगली घुसी हुई थी, एक दूसरे को पानी से नहलाते हुए हम चूत, लंड और चूचियों पर साबुन मल रहे थे, मज़े ले रहे थे !
देवर ने मुझसे चिपक कर अपना लंड मेरी गांड और चूत पे कई बार लगाया और अपना वीर्य दो बार मेरे चूतड़ों पर छोड़ दिया।
इसके बाद नहाना खत्म करके हम बाहर आ गए और अपने अपने कमरे में चले गए।
देवर से मस्ती का खेल आज से शुरू हो गया था। मैं देवर से अपनी बहन की शादी करवाना चाहती थी, मेरा चूत का खेल शुरू हो गया था। देवर अब जब भी मौका मिलता था, कभी मेरी चूची दबा देता था कभी मेरे चूतड़ मल देता था।
15 दिन बाद देवर और मैं फिर अकेले थे, अबकी साथ साथ हम नहाए तो मैंने उसके लोड़े पर साबुन लगाया और उसके टोप़े पर अपनी जीभ फिरा कर उसे गर्म कर दिया। उसके बाद नहाते हुए देवर मुझे चोदने को उतावला हो रहा था मुझे घोड़ी बनाकर देवर बार बार लंड चूत में घुसाने का प्रयास कर रहा था, उसका मन मुझे चोदने का कर रहा था पर मैंने उसे हटाते हुए उसका लौड़ा मुँह में भर लिया और बोली- अभी चुसाई का मज़ा लो, चुदाई का कुछ बनने के बाद !
चूचियाँ दबवाते हुए मैंने लौड़ा चूस चूस कर देवर का पूरा वीर्य अपने मुँह में भर लिया और उसे ढीला कर दिया।
मेरा देवर अब धीरे धीरे मेरा गुलाम होता जा रहा था।
कहानी जारी रहेगी !
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