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दोस्तों, मेरी कहानी सम्भोग : एक अद्भुत अनुभूति पर आपके इतने मेल आए कि क्या कहूँ। सबको मैं जवाब नहीं दे पाया इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ। पर मैं सबको धन्यवाद कहता हूँ और खुद को सौभाग्यशाली समझता हूँ कि मेरी कहानी आपको पसंद आई।
अब अगली कहानी।
यह मेरी कहानी नहीं है, मैंने बस लिखी है, यह मेरी एक बहुत घनिष्ठ मित्र की कहानी है। यह उसकी आपबीती है।
उसका नाम है नीलोफर। हम लोग चौथी क्लास से बी.ए. तक साथ-साथ पढ़े थे। हम लोग बहुत ही क्लोज थे। युवावस्था आने पर भी हम लोग सिर्फ और सिर्फ दोस्त ही रहे, यौन संबंधों के बारे में हमने कभी नहीं सोचा। हम दोनों ही पूर्णरूपेण भारतीय संस्कारों वाले परिवार से थे। नीलो के अब्बा साजिद साहब मेरे पिताजी के अच्छे दोस्तों में से थे। उनका फर्नीचर का काफी बड़ा कारोबार था। बहुत पैसे वाले थे वो ! पर उतने ही सज्जन भी। नीलो भी बहुत शांत और नेक थी। कॉलेज के दिनों में भी कभी किसी के साथ उसका अफेयर वगैरह नहीं चला। हालाँकि उसकी खूबसूरती पर फ़िदा होकर कई लड़कों ने कोशिश की, पर नीलो की ओर से कोई झुकाव ना देखकर सबने अपना रास्ता बदल लिया। हम लोग आपस में काफी खुलकर यानि सेक्स संबंधी बातें भी कर लेते थे। पर फिर भी हमारे रिश्ते काफी साफ-सुथरे थे।
कॉलेज समाप्त होने पर हम लोगों का मिलना-जुलना कम हो गया। कोई खास वजह भी नहीं रह गई थी। मैं भी अपने इंश्योरेंस के बिजनेस में मशगूल रहने लगा। उसकी भी शादी की बात चलने लगी। जब कभी मुलाकात होती थी हम लोग खूब हँसी-मजाक करते थे। मैं अपने बिजनेस और वो अपने होने वाले खाविंद के बारे में बताती थी। उसके बातों से लगता था जैसे वो अपने आने वाले शादीशुदा जिंदगी के सपनों में खोती जा रही हो। बहुत खुश दिखती थी वो, और निसंदेह उसे खुश देखकर मैं भी खुश होता था।
उसकी शादी सीवान जिले के एक बड़े घराने में तय हुई थी। जमींदार घराना था और उस पर दूल्हा दुबई में एक कंपनी में काम करता था और पता चला कि बहुत पैसा कमाता था। धूमधाम से उसकी शादी हो गई और वो अपने ससुराल चली गई। पता चला कि कुछ ही दिनों बाद वो भी दुबई चली जायेगी।
लेकिन शादी के दस-बारह दिनों के बाद ही नीलो अपने घर लौट गई। मैंने समझा कि एक सामान्य विदाई है। मैं उससे मिलने के बारे में सोच ही रहा था कि मुझे एक सप्ताह का जयपुर के दौरे का फरमान मिल गया। मैंने सोचा कि अब लौट कर ही उससे मिलूँगा, और मैं चला गया।
मैं जयपुर में ही था तो एक दिन मेरे पिता जी का फोन आया जिसमें उन्होंने कहा कि नीलो आई थी तुमसे मिलने और पूछ रही कि तुम कब तक आओगे। मैंने अपना प्रोग्राम बता दिया। उसी रात में नीलो का भी फोन आया और उसने भी मुझसे पूछा कि मैं कब तक आऊँगा। मैंने उसे भी बता दिया। इस पर वो बहुत ही सामान्य ढंग बोली कि कोशिश करना कि जल्दी आ सको। मैंने भी आश्वासन दिया कि कोशिश करूँगा।
दो दिन बाद उसके अब्बा साजिद साहब का भी फोन आया कि तुम कब तक आओगे? तो मुझे लगा कि मामला कुछ खास है। मैंने पूछा कि अंकल कोई खास बात है तो उसने जवाब दिया कि ये तो मुझे भी पता नहीं पर तुम जल्दी आ जाओ। मैंने उन्हें भी आश्वासन दिया।
अगली सुबह उसकी अम्मी ने फोन किया और रोते-रोते बोली- बेटा, जल्दी आ जाओ, नीलो ने तो खाना-पीना भी छोड़ दिया है और कुछ भी पूछने पर सिर्फ तुम्हारा नाम लेकर कहती है विवेक को आने दो, विवेक को आने दो।
अब मैं भी घबरा गया कि अचानक क्या हो गया।
हालाँकि मेरा मुख्य काम समाप्त हो चुका था पर फिर भी कुछ छोटे-मोटे काम बाकी थे और मुझे कम से कम दो दिन और लगने थे। लेकिन मैंने अपने सीनियर से बात किया और अपनी समस्या बताई तो मुझे छुट्टी मिल गई। मैंने उसी रात ट्रेन पकड़ ली।
जब मैं पटना पहुँचा तो घर में सामान रखकर सीधा नीलो के घर की ओर चला। मेरे मम्मी-पापा भी मेरे साथ हो लिए। वहाँ पहुँच कर अंकल ने बताया कि जब से नीलो आई है सिर्फ रो रही है और कुछ भी नहीं बताती है। सिर्फ यह कह रही है कि विवेक को आने दो। मैं असमंजस में पड़ गया कि आखिर बात क्या है।
मैं उसके कमरे में गया। पहले तो वो मुझसे लिपट कर खूब रोई। फिर जब उसका मन शांत हुआ तो वो मुझसे अलग हो गई। और फिर उसने जो अपनी कहानी सुनाई तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए।
अब आगे की कहानी उसी की जुबानी–
मेरी शादी के अगले दिन मेरी विदाई हुई। ससुराल पहुँच कर मैं बहुत खुश थी। दिन भर जो भी मुझे देखने आती, मेरी खूबसूरती की तारीफ़ करती। मैं अपनी तारीफ सुनकर खुश हो जाती थी।
जैसे-तैसे दिन बीता और शाम हुई तो मन में एक गुदगुदी सी होने लगी। मैंने अभी तक अपने खाविंद को देखा भी नहीं था। रात का खाना समाप्त होने पर घर की औरतों ने मुझे सजा कर मेरे कमरे में पहुँचा दिया।
मैं थोड़ी देर यूँ ही बैठी रही। अचानक मेरी नजर दीवार पर टंगी एक तस्वीर पर पड़ी। एक नौजवान की तस्वीर थी वो। बेहद काला-कलूटा और बदशक्ल सा। मैं सोचने लगी कि ये मेरा शौहर है। मुझे उस तस्वीर को देखकर बड़ा अजीब सा लगा। कहीं यही मेरा शौहर ना हो ये सोचकर थोड़ी उदास सी हो गई। पर फिर भी मैंने अपने मन को समझा लिया कि अब तो जो होना था हो गया। यदि यही मेरे सरताज हैं तो क्या हुआ, दिल के अच्छे होंगे ही। मुझे कोई परेशानी नहीं। और शायद भले घर की लड़कियों की यही नियति होती है अपने समाज में।
मैं इसी पेसोपेश में थी कि मेरी जेठानी मेहरू दूध का ग्लास लेकर मेरे कमरे में आई और मेज पर रखने के बाद वो मेरे पास आई और बड़े प्यार से मेरे सिर पर हाथ रखकर धीरे से कहा– आज हैदर भाई जो कुछ भी करें करवा लेना, नखरे मत करना और चिल्लाना भी नहीं।
मैं शरमा गई और मुस्कुराने लगी। लेकिन मेहरू दीदी का चेहरा उदास सा हो गया। उसने बहुत प्यार से मेरे माथे को चूम लिया और जैसे थके क़दमों से चली गई। मैं फिर असमंजस में पड़ गई।
लेकिन आने वाले वक्त के इंतजार के सिवा और कर भी क्या सकती थी। मैं करीब बीस मिनट तक यूँ ही अकेली बैठी रही। फिर किसी के कदमों की आहट ने मुझे फिर से सपनों की दुनिया में प्रवेश करवा दिया। मैं लाज से सिमटकर अपना घूँघट ठीक करके बैठ गई।
हैदर कमरे में आए, लड़खड़ाते हुए पलंग तक आए और एक झटके में मेरी चुन्नी जिसका मैंने घूँघट बना रखा था खींच लिया। मैं अचानक बेपर्दा हो गई।
नजर उठा कर देखा तो वही तस्वीर वाला शख्स मेरे सामने खड़ा था। वही भयानक चेहरा। दाईं गाल पे लम्बा सर्जरी का निशान, आँखें लाल-लाल, चेहरे पर एक निहायत कसाईयाना मूँछ।
उन्होंने जमकर शराब पी रखी थी। मैं तो बिल्कुल ही डर गई। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ।
फिर उन्होंने अचानक मुझे पलंग से नीचे खींच लिया और खड़े-खड़े ही मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए और बेदर्दी से चूमने लगे। चूमने क्या लगे, चूसने लगे। उनके मुँह से आ रहे शराब का भभके से मुझे उबकाई सी आने लगी, लेकिन मैंने खुद को सँभालने का प्रयास किया।
चूमते-चूसते हुए ही उन्होंने मेरे सीने के दबाना शुरू किया। दबाना क्या मसलना शुरू किया। उनके किसी भी काम में मुहब्बत नहीं सिर्फ जबरदस्ती झलक रही थी।
मैंने सोचा और मन को समझाया कि हो सकता है दोस्तों के साथ शराब पी ली है और सुहागरात के दिन तो बड़े-बड़े सूरमा को भी बेचैनी हो जाती है, तो हैदर भी उसी बेचैनी के शिकार हैं। और मुझ पर तो उनका अधिकार भी है। लेकिन फिर भी उनकी हर हरकत मुझे खल रही थी।
फिर एकाएक उन्होंने मेरी कुर्ती को सीने के पास पकड़ा और एक झटके से चीर दिया। फिर मेरे लहँगे को भी खींच दिया। अब मैं सिर्फ ब्रा और पैंटी में उनके सामने खड़ी थी। कुछ-कुछ गुस्सा भी था और कुछ शर्म भी। हालाँकि वो मेरे शौहर थे पर पहली बार मैं उनके सामने इस तरह खड़ी थी।
मैंने शरमाते हुए धीरे से कहा– इतने बेसब्रे क्यूँ होते हैं आप? मैं तो अब पूरी जिंदगी के लिए आपकी हूँ।
इतना सुनते ही उन्होंने एक जोरदार तमाचा मेरे गाल पर लगाया और बोला– हरामजादी, बोल मत, तू मेरी बीवी है, जैसा कहता हूँ वैसा कर, नहीं तो रंडीखाने में बेच दूँगा।
मेरे तो होश उड़ गए, मेरी आँखों में आँसू भर आए और मैं जरखरीद गुलाम की तरह उनके हुक्म को तामील करने लगी।
उन्होंने कहा– अपने हाथों से अपनी ब्रा उतार !
मैंने अपनी ब्रा उतार दी। फिर उन्होंने कहा– कच्छी भी उतार !
मैंने पैंटी भी उतार दी। उन्होंने मेरे पूरे शरीर को दबा-दबाकर देखा। जैसे कोई गोश्त का व्यापारी मवेशियों को खरीदने से पहले हाथ लगाकर देखता है। मेरा पूरा जिस्म सिहर रहा था। इस सिहरन में जिस्मानी उन्माद कम और डर ज्यादा था।
पूरा जिस्म टटोल लेने के बाद उनका हाथ मेरी योनि पर आया और उन्होंने अपनी मुट्ठी में मेरी योनि को दबोच लिया। मैं दर्द से बिलबिला उठी और झुक गई।
उन्होंने एक और तमाचा मेरे गाल पर लगाया और कहा– सीधी खड़ी रह, नहीं तो डंडा घुसेड़ दूँगा। मैं सीधी खड़ी हो गई और उन्हें पूरी मनमानी करने देने का मन बना लिया। इसके सिवा और रास्ता भी क्या था।
फिर उन्होंने पलंग के नीचे से प्लास्टिक का कठौती जैसा एक बर्तन निकाला और जमीन पर रख दिया। फिर मुझे उस बर्तन में खड़ा होने को कहा। मैं पूरी तरह नग्न उस बर्तन में खड़ी हो गई।
उन्होंने अलमीरा से शराब की बोतल दो बोतल निकाली, एक को मेज पर रख दिया और दूसरे बोतल को खोल कर मुझे उस शराब से नहलाने लगे। मेरे पुरे जिस्म पर शराब उड़ेलने के बाद बोतल को फेंक दिया।
फिर बेशर्मी से हँसते हुए उन्होंने कहा– आज देखता हूँ कि अंगूर की बेटी में ज्यादा नशा है या साजिद (नीलो के अब्बा) की बेटी में।
मैं शराब के दुर्गन्ध और भय की वजह से संज्ञा-शून्य होती जा रही थी।
अब उन्होंने कुत्ते की तरह मेरे जिस्म को चाटना शुरू किया। होंठ, गाल, चेहरा, गर्दन, पीठ, वक्ष, पेट, नाभि, कमर, चाटते-चाटते जब उनकी जीभ मेरे योनि पर आया तो मैं एक बार फिर कामवासना से सिहर गई। आखिर मैं भी तो एक इंसान ही थी। लगा जैसे योनि से कुछ गीला सा निकल रहा हो।
लेकिन ये क्या ! उन्होंने तो मेरे योनि को चाटते-चाटते अपनी दांतों से कसकर काट लिया। मैं डर से चीख भी नहीं सकी।
अब मुझे मेहरू दीदी की चेतावनी और उनके उदास चेहरे का सबब मालूम हुआ।
मेरे योनि पर जहाँ उन्होंने काटा था खून निकलने लगा। मैं छटपटाने लगी। उन्होंने शराब, योनिरस के साथ-साथ खून को भी चाट लिया। मुझे इतनी घिन आ रही थी कि क्या कहूँ। पर मैं चुप रही।
उन्होंने पैर के टखने तक मेरे पूरे जिस्म को चाट-चाटकर शराब चुसक लिया। फिर मुझे बर्तन से बाहर निकलने कहा। मैं बाहर निकल आई। फिर वो बर्तन उठाकर बची हुई शराब पी गए।
अब तो उन्हें और भी खड़े होने में परेशानी होने लगी। लेकिन उनके हैवानीयत का कारनामा खत्म नहीं हुआ था। अब वो अपने कपड़े उतारने लगे। एक-एक कर सारे कपड़े उतारने के बाद जब वो पूरी तरह नंगे हो गए तो उन्होंने अपने लिंग की ओर इशारा किया और गरज कर कहा– चूस इसे साली !
मैंने डरते हुए उनके लिंग को थामा। उनके शरीर और स्वास्थ के हिसाब से तो उनके लिंग की लम्बाई और मोटाई ठीक थी, पर उसमे वो कड़ापन नहीं था। शायद अत्यधिक शराब पीने के कारण।
मुझे हिचकिचाते देखकर फिर वो गरजे– साली रंडी ! लगाऊँ क्या फिर एक हाथ?
मैं अपनी किस्मत पर रोते हुए उनके करीब गई और जी कड़ा करके उनके लिजलिजे लिंग को अपने मुँह में लिया और बेमन से अपनी जीभ फिराने लगी।
फिर वो लड़खड़ाते हुए दूसरी बोतल उठा लाये और एक तिपाई पर बैठ गए। फिर मुझे इशारे से वही प्लास्टिक वाला बर्तन लाने को कहा। मैंने गुलाम की तरह उनका हुक्म माना। उन्होंने उस बर्तन को अपने लिंग के नीचे रख लिया और अपने लिंग पर शराब उड़ेलने लगे।
फिर उन्होंने कहा– अब चाट मादरचोद !
मैं बेबस उनके लिंग को चाटने लगी। कुछ देर चटवाने के बाद उन्होंने बर्तन वाला शराब पीने का इशारा किया। मैं एक बार फिर सिहर गई। लेकिन अब इंकार की हिम्मत मुझमें नहीं थी। मैंने उस बर्तन को उठाया सारा शराब पी गई। मेरा सिर घूमने लगा।
अब उन्होंने वहीं जमीन पर मुझे लिटा दिया और मेरी योनि में अपना लिंग घुसेड़ने लगे। लेकिन मेरे इतना चाटने के बावजूद उनके लिंग में जरा सा भी कड़ापन नहीं आया था।
फिर मैं भी तो अब तक कुंवारी ही थी। उन्होंने बहुत कोशिश की पर अंततः उनका लिंग मेरे योनि में नहीं घुस सका।
गुस्से में उन्होंने मुझे फिर एक चांटा मारा और बोला– साली देख क्या रही है, घुसा।
डर से मैंने भी अपनी योनि को एक हाथ से फ़ैलाने की कोशिश की और दूसरे हाथ से उनके लिंग को रास्ता दिखने का प्रयास किया। पर मैं भी असफल हो गई।
गुस्से में फिर उन्होंने मुझे दो चांटे कस के लगाये और बोला– साली किसी काम की नहीं है। और वो खड़े हो गए और एक लात मेरे बगल में लगाते हुए वहीं से चिल्लाये – सब्बूबूबूबू……।
सब्बू घर की नौकरानी का नाम था जिसकी उम्र करीब तीस साल थी, वो दौड़ी-दौड़ी आई।
उन्होंने कहा– चल अपना काम कर ! मैंने देखा सब्बू उनके लिंग को पकड़ कर हस्तमैथुन की तरह आगे-पीछे हिलाने लगी। शायद यह उसका रोज का काम था। वो बिना कुछ बोले अपना काम जल्दी-जल्दी करने लगी।
उनकी आँखें बंद होने लगी थी, शायद अत्यधिक शराब पीने के कारण या हस्तमैथुन की उत्तेजना कारण। कुछ ही देर में उनके लिंग से दो-चार बूँद पतला सा पानी निकल गया। और वो बेसुध होकर वहीं जमीन पर लुढ़क गए।
मुझे रोते देखकर सब्बू ने कहा – बीवीजी मत रोओ, इनका तो हर रोज का यही हाल है। जब तक इंडिया में रहते हैं मुझे यही करना पड़ता है। शराब और कोठों के चक्कर में इनका ये हाल हो गया है।
फिर उसके सहयोग से मैंने उन्हें पलंग पर लिटाया और एक चादर उनके नंगे जिस्म पर डाल दी। मेरे जिस्म पर भी शराब ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था। मेरे क़दमों में भी लड़खड़ाहट आने लगी।
सब्बू ने कहा– बीवीजी, अब आप भी सो जाइए।
और फिर वो चली गई। मैं नंगे बदन ही जमीन पर दीवार के सहारे बैठ गई और अपने किस्मत के बारे में सोचने लगी। मेरा जिस्म एकदम बेजान हो गया था। कोई ताकत बाकी नहीं रह गई थी, और मैं जमीन पर बैठे-बैठे ही नींद और नशे में लुढ़क गई।
कुछ देर के बाद अर्धनिद्रा में ही लगा कि कोई मेरे जिस्म पर हाथ फिरा रहा है। मैं तो बेसुध थी, हाथ-पैर में तो जैसे कोई जान ही नहीं थी। फिर भी मैंने आँखें खोली तो देखा मेरा देवर उस्मान मेरे बगल में बैठा मेरे जिस्म पर हाथ फेर रहा था। मैं एकाएक चिहुंक गई पर मेरा हाथ पैर फिर भी नहीं हिला।
मेरे मुँह से भी सिर्फ फुसफुसाहट जैसी ही आवाज निकल सकी– क्या कर रहे हो?
उसने कहा– भाईजान में तो जान है नहीं, मैं ही तुम्हारी हर जरुरत पूरी करता रहूँगा।
मेरे तो होश ही उड़ गए। लेकिन मेरे जिस्म में इतना भी जान नहीं था कि मैं उसका विरोध करती। भाग्य का खेल मान कर मैंने उसे स्वीकार कर लिया और फिर उसने मेरे साथ अपनी पूरी मनमानी कर डाली।
मैं बेबस सिर्फ आँसू बहाती रही। पूरे जिस्म में दर्द और थकान की लहर दौड़ रही थी। योनि में उस्मान के मोटे लिंग को जबरदस्ती घुसाने से और हैदर के दांतों के जख्म से बहुत तेज पीड़ा हो रही थी। पर उससे भी ज्यादा पीड़ा तो मेरे मन के अंदर थी। उस्मान ने अपनी मनमानी करने के बाद मुझे उठा कर पलंग पर डाल दिया और चला गया।
अगले दिन मुझे मेहरू ने बताया कि पूरे परिवार का यही हाल है, यहाँ औरतों को बोलने कि भी आजादी नहीं है। घर का हर मर्द एक जैसा है। मैं हताश हो गई।
अगले दस-बारह दिनों तक मैं अपने देवर उस्मान की हवस का शिकार होती रही। हैदर में तो वो ताकत ही नहीं थी पर एक एक दिन में दस-दस बारह-बारह बार वो मुझे मसलता रहा। मैंने भी सोच लिया था कि जब मेरा खाविंद इस लायक नहीं है तो उसका भाई ही सही !
पर फिर एक दिन हद हो गई जब मेरे ससुर इकबाल मियाँ ने मेरे साथ वही हरकत करने की कोशिश की लेकिन मेहरू की सहायता से ही मैं घर से निकल भागी और अपने घर पहुँची।
नीलोफर की कहानी सुनकर मैं सन्न रह गया। उसने कहा कि यह आपबीती मैं तुम्हारे सिवा और किसको सुना पाती। तुम्ही हो जिससे मैं खुलकर बात कर पाती हूँ। अम्मी-अब्बू को इतने विस्तार से तो नहीं बता पाती ना।
मैं भारी मन से उसके कमरे से निकला और अपने घर की ओर चला। अंकल और पिताजी मेरे पीछे हो लिए। लेकिन ये दास्ताँ मैं उनको कैसे सुनाऊँ, यह समझ नहीं आ रहा था। पर सुनाना तो पड़ेगा ही…
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