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शेक्सपीयर जो अपने आपको बड़ा चाचा चौधरी समझता था, उसने कहा कि बेशक गुलाब को अगर गुलाब की जगह किसी और नाम से पुकारा जाता तो क्या वो ऐसी भीनी भीनी खुशबू नहीं देता?
लेकिन टेम्स नदी के किनारे अँधेरे सीलन भरे कमरे में बैठ सिर्फ सस्ती राण्डों को उधारी में चोदकर या उधारी न चुकाने पर सिर्फ मुठ मार मार कर इस से ज्यादा वो सोच भी क्या सकता था क्योंकि मेरी लाटरी तो सिर्फ नाम की वजह से ही निकली थी।
बात ज्यादा पुरानी नहीं है, वो मेरी जवानी की शुरुआत के दिन थे…
चूँकि मेरा यह शहर मध्य भारत में मालवा के पठार पर बसा है, नए और पुराने को अपने में समेटे यह व्यावसायिक राजधानी होने के कारण कई प्रदेशों के लोग बेरोकटोक यहाँ आकर बसते गए जो अब कई संस्कृतियों का संगम सा बन गया है। बात चूँकि सच्ची है इसलिए स्थान नाम इन सब बंधनों से दूर आपको भरपूर आनन्द देने और किसी का राज़ न खोलने वाले अंदाज़ में इस किस्से का चित्रण करने की कोशिश की है क्यूंकि सभी की जिन्दगियाँ ऐसे अविस्मरणीय पलों को सहेजे बैठी हैं जो ‘किसी को पता न चल जाए’ इस डर से किसी से नहीं बांटते। मेरी कोशिश है, उम्मीद है, आपको पसंद आएगी जो एक घिसे पिटे ट्रैक पर कहानी पढ़ते हैं, उन्हें निराशा ही हाथ लगेगी क्योंकि उसमें जो सहज है, वही मैंने लिखा है, जो मेरे साथ घटित हुआ…
तो हुआ दरअसल यह कि मेरी कालोनी शहर के पुराने हिस्से में आती है जहाँ कई पुराने परिवारों की ड्योढ़ीनुमा हवेलियाँ है जो राजवंश से भी जुड़े हैं। मेरे घर के सामने एक कंपनी का स्टोर बंद पड़ा था क्योंकि कंपनी अब उसे इस्तेमाल नहीं करती थी। पिछले दिनों साथ में एक कामचलाऊ टायलेट भी बना दिया गया और कंपनी के कैशियर जो दक्षिण भारतीय थे, अपनी पत्नी के साथ वहाँ रहने लगे। उनका नया मकान कहीं बन रहा था, बेटा दुबई में था और बेटी का कोई नर्सिंग कोर्स पूरा होने को था। कंपनी का मालिक पिताजी का परिचित था, इस कारण हमारा परिवार उनके कहने पर उनका ख्याल रखता था। जिस से उनका हमारे यहाँ आना जाना लगा रहता था। अंकल तो पापा से बाहर से मिल कर चले जाते थे अकेलेपन की वजह से अक्सर आंटी हमारे यहाँ ही होती थी।
कुछ दिनों बाद मैंने गौर किया कि आंटी जब भी हमारे घर आती, मेरे शार्ट्स में उभरे हुए लण्ड को निहारती रहती थी जो उनकी चिकनी त्वचा को देख कर बेकाबू हो जाया करता था, तो अब मुझे भी आंटी में थोड़ी रूचि होने लगी। जब भी रात में वह टायलेट में आती, उनके दरवाज़े की आवाज़ सुन कर मैं बालकनी में आ जाता और जब वो स्टोर में वापस जाने लगती तो खांस या खंखार कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा देता लेकिन कभी वो पलट कर नहीं देखती।
अभी तक मोहल्ले की कई भाभियों, आंटियों और जवान होती नौकरानियों को मैं चोद चुका था। आंटी द्वारा मेरी यह उपेक्षा मुझसे सही नहीं जा रही थी। पहले मम्मी कुछ देने या उन्हें बुलाने का कहती तो मैं टाल देता था पर अब यह हाल था कि उनसे मिलने या सामीप्य पाने का कोई मौका नहीं छोड़ता था।
आंटी को हिंदी नहीं आती थी पर इंग्लिश में काम चला लेती थी, कई बार में घर में उनके अनुवादक की तरह भी उनके साथ बैठ जाता था, चालीस बयालीस के लपेटे की यह श्यामल भरे भरे बदन वाली के बड़े बड़े दूध से भरे शाही कटोरे सीने पर सजाये खुले दावत देते से महसूस होते थे। जब यह गजगामिनी अपने कूल्हे मटकाते चलती तो लौड़ा बाबूराम शार्ट्स में कोबरे सा फुंफकारने लगता और बिना उसके नाम की मुठ मारे संभाले नहीं संभलता था। कभी कभी उनको छू लेता या बदन का कोई हिस्सा उनसे सटा लेता, पहले तो चौंक कर देखती थी, फिर बाद मैं ऐसा जताने लगती जैसे कुछ हुआ ही न हो !
लेकिन कुछ बात बन नहीं रही थी।
लेकिन ऊपर वाले के घर देर है अंधेर नहीं ! जिसने चोदने और खोदने को लौड़ा दिया है, उसी ने चूतों को भी सूखी खुजली दी है कि उसमें बोरिंग कर के पानी निकालें !
पिछले कुछ दिनों से हमारे शहर और फिर मोहल्ले में भी चेन खींचने की घटनाएँ बढ़ गई। मम्मी ने मुझे आंटी को सचेत करने को कहा क्यूंकि भारत में सबसे ज्यादा सोना ये साऊथ वाली ही पहनती हैं, यहाँ तक कि उनकी पायल भी सोने की ही होती है, पर मैं उन्हें टालते से अंदाज़ में मैंने बिना उनकी और देखे कहा- अभी जल्दी मैं हूँ, बाद मैं समझा दूँगा।
मेरे इस व्यवहार से आंटी को बड़ा अजीब सा लगा पर मम्मी ने इस पर मुस्कुरा कर माहौल को सामान्य बना दिया।
कालेज के पहले पहले दिन थे, कालेज से लौटकर अभी बाइक स्टैंड पर लगा ही रहा था कि पीछे से आंटी ने पुकारा। पहले ही कालेज की कमसिन कलियों ने लौड़े की माँ-बहन कर रखी थी ऊपर से ठंडी आंटी जो भेनचोद इतनी गर्म है पर बनती है। यह कहाँ से आ गई? अब इस उभरे लंड को कहाँ छुपाऊँ? भोसड़ी का जींस फाड़ने को बेताब है।
सोच रहा था कि पापा फैक्टरी गए हैं, माँ सो रही होगी, मज़े से नई प्लेबाय मैगज़ीन जो आज ही दोस्त से छीन कर लाया था, देखकर मूठ मारूँगा !
‘मुन्ना, मांजी सुबह क्या कह रही थी?’ आंटी इंग्लिश में चहकी। जब मैंने बताया तो देवा देवा कह कर पेट पर हाथ रखा। मैंने कहा- यहाँ हाथ क्यों रखा?
तो कहने लगी- सारा जेवर थैली में डाल के यहाँ गले में साउथ की स्टाइल में लटका रखा है। मैंने कहा- दिखाओ? तो कहने लगी- धत्त !! जा यहाँ से !
पर मैं जिद पर अड़ गया कि साउथ की स्टाइल क्या है।
इधर उधर देखते हुए जब कोई न दिखा तो आंटी ने तो थोड़ा सा कुरता उठाया, थैली किसने देखनी थी, सीधी ऊपर नज़र गई, अन्दर से ब्रेज़ियर में बंद कबूतरों के दर्शन हो गए !
या तो इतने ही कड़क हैं या छोटी ब्रा पहनी हुई है, पास जाकर थैली को छूने लगा तो चिहुँक कर हाथ झटका जिससे से कुरता हाथ से छूटा तो मेरा हाथ कुरते में रह गया।
आंटी पीछे हटी तो बैलेंस बिगड़ा और मेरा एक हाथ अन्दर ही रह गया उसमें, उसका पूरा उरोज आ गया हाथ में ! झटके से पीछे हटी तो कुरते की वजह से फिर रिबाउंड होकर मेरे ऊपर गिरी तो उन्हें संभालने के चक्कर में दूसरा बोबा कुरते के बाहर से पूरे हाथ में समा गया।
ख़ैर वो संभली और बिना कुछ बोले अपने घर के अन्दर चली गई। मैं भी अपने कमरे में चला गया लेकिन नज़ारा भूले नहीं भूलता, चिकनी चमकदार चमड़ी का स्पर्श और चिकना पेट आँखों में घूमता रहा, मैय्या का भोंसड़ा ! प्लेबाय मैगजीन की ! अन्दर आकर आंटी के नाम की इकसठ बासठ चालू ! कूद के मनी बाहर और असीम शांति का अनुभव…
हाथरस में जो मज़ा वो किसी और में कहाँ ! आप भी आनन्द से बैठो, हाथ भी हिलता रहे ! कल की इस घटना से मेरी फट भी रही थी कि माँ से आकर न बोल दे ! फिर मुझे हंसी आ गई, अनुवाद तो मैं ही करूँगा, घंटा बोलेगी? दूसरे दिन आई तो मैंने छेड़ा- कल क्या हुआ, बता दूँ? बोली- ज्यादा स्मार्ट मत बनो, इशारों से माँ को समझा दूँगी। मैं सीधा हो गया, यह तो मेरी गुरु निकली। मम्मी बोली- क्या कह रही है? मैंने कहा- कल जो आपने चेताया था, सावधान किया था, उसके लिए आप को थैंक्स कह रही है।
खैर कुछ दिनों बाद दीदी के सुसराल में अचानक कुछ गमी होने के कारण सबको वहाँ कुछ दिन के लिए जाना था, मम्मी मेरे लिए परेशान थी, उन्होंने मेरे खाने की बात आंटी से की तो वह बोली- कोई बात नहीं, इसकी फिक्र मत करो !
फिर दोपहर में सब तैयारी में लगे थे, आंटी अपना मोबाइल लेकर मेरे पास आई- देख तो इसमें पिक्चर नहीं खुल रही है। मैं उनसे बिल्कुल सट कर बैठ गया और मोबाइल उन्हीं के हाथ में देकर बोला- आप बाद में कैसे समझोगी, आप खुद करो, मैं बताता जाता हूँ ! और अपना हाथ दीवान पर बैठे बैठे पीछे से चूतड़ तक ले जाकर उसकी दरार पर अंगूठा टिका दिया।
फिर हाथ थोड़ा ऊपर सरका कर साइड से आंटी के बूब दबाता रहा, कभी ऊपर कभी नीचे, लेकिन वह कुछ न बोली पर जैसे ही गर्दन पर कान के नीचे गर्म सांस छोड़ी तो चौंक कर एकदम उठ गई ! वो मारा पापड़ वाले को ! हर औरत की कहीं न कहीं किसी स्पाट बहुत ज्यादा सैंसेशन होता है तो यह है आंटी का कमज़ोर हिस्सा जिस पर एक वार से दीवार भरभरा कर गिर पड़ेगी।
और डांटते से अंदाज़ में बोली- पर बाबा तू या तो कल तेरे अंकल के सामने ही आना और नहीं तो खिड़की से ही अपना नाश्ता-खाना ले जाना क्योंकि तुझसे डर लग रहा है। कल तेरे अंकल ने चेतावनी दी है मेरे जाने के बाद दरवाज़ा बोल्ट कर लेना, कोई भी खटखटाए तो मत खोलना क्योंकि वे कंपनी के काम से शहर के बाहर जा रहे हैं, परसों सुबह ही आयेंगे।
मैं सर खुजाते हुए समझ नहीं पाया कि यह मेरे लिए खुली चेतावनी थी या छिपा आमंत्रण…!
दूसरे दिन मेरे घर वाले सुबह जल्दी ही निकल गए। मैं सोने का बहाना बनाये बिस्तर पर पड़ा रहा, उनके जाने के बाद छिपकर खिड़की से देखता रहा कि अंकल कब निकलते हैं। जैसे ही वो गए, मैं पहुँच गया। आंटी ने कहा- देर से क्यूँ आया? चल बोल… मसाला रेडी है, इडली डोसा उपमा क्या खाना है? मैं तो कुछ और ही खाने के मूड में हूँ फिर सर को झटक कर समय बचाने को कह दिया- यह सब मुझे ज्यादा पसंद नहीं, आप तो कुछ फास्ट फ़ूड जैसा कर दो !
आंटी मेरी आँखों में आँखें डालकर रहस्यमयी ढंग से मुस्कुराते हुए बोली- फिर क्या पसंद है? मैं अन्दर की तरफ बढ़ने लगा तो कहने लगी- अन्दर कंपनी का सामान फैला हुआ है, यही बेड पर बैठ जा !
उसी के पास उनका छोटा सा साफ़ सुथरा किचन उनके सुघड़ होने की चुगली कर रहा था।
आंटी ने एक छोटी प्लेट में काँच के कटोरे में ढेर सारी कतरी हुई बादाम, किशमिश, कार्नफ्लेक्स डालकर फ्रिज से ठंडा दूध मिला कर मुझे दे दिया। मैंने कहा- इतनी बादाम डालोगी तो मुझे प्रॉब्लम हो जाएगी… ‘क्या प्रॉब्लम हो जायेगी?’ आंटी फिर साउथ की इंग्लिश में फड़की। मैंने कहा- इसके बाद कुछ हो जाता है !
आंटी ने फिर वही रहस्यमयी मुस्कान बिखेरी, मैं शरमा कर नीचे देखने लगा, बाबूराम सर पूरी ताकत से ताने कपडा फाड़ कर बाहर निकलने को बेताब था और मैं शुक्र मना रहा था कि आज बरमूडा के जींस जैसे मोटे कपड़े ने इज्ज़त रख ली वरना..
पर हमेशा की तरह शायद आंटी की नज़र भी वहीं थी, खंखार कर बोली- वहाँ क्या देख रहा है वहाँ कुछ होता है क्या? इधर देख… फिर प्याला देते समय आंटी ने दूध मेरे बरमूडा पर जानबूझ कर छलका दिया और बिल्कुल मासूम सी बनते बोली- अरे ! सॉरी सन्नी पूरा गीला हो गया ! चलो लाओ, इसे उतार दो और अंकल की लुंगी बाँध लो !
लेकिन जब मैं नहीं माना तो थोड़ी सी नाराज़ हो गई और कहने लगी- मुझे मालूम है कि तू क्या चाहता है, रोज़ मैं जब रात में टायलेट जाती हूँ तो क्यों खांस कर बताता है कि तू मुझे देख रहा है। घर में भी तू तो मुझसे बहुत चिपकता है। आने दे तेरी माँ को ! मैं तेरी शिकायत करुँगी !
आंटी का नया रूप देखकर मेरी गांड फट गई, लौड़ा ऐसे पिचक गया जैसे किसी ने गुब्बारे में पिन मार दी हो ! उतरा चेहरा और बैठा लौड़ा, दोनों को देख कर आंटी ने दूसरा दांव चला, बड़ी जोर से हंसी और चहकी- अरे सन्नी, मैं तो मज़ाक कर रही थी ! अच्छा तू मेरी एक प्रॉब्लम हल कर दे, तेरे अंकल बता रहे थे कि तुम लोगों का सरनेम होलकर है? पहली बार इसे इंग्लिश में सोचा तो हंसी आ गई ‘होल करने वाले !’ तो तेरे अंकल बताने लगे कि वैसे तो इंग्लिश से कुछ सम्बंध नहीं पर इनके हथियार बहुत मशहूर हैं।
मैंने चौंक कर कहा- हथियार? क्योंकि यह पहले भी कई दोस्तों से सुन चुका था।
आपको एक बात बता दूँ, हमारे पूर्वज पहले इस क्षेत्र पर शासन करते थे, अब तो नाम या यह कहें बदनाम ही रह गया है क्योंकि ब्रिटिश राज में एक राजकुमार द्वारा एक वेश्या और उसके आशिक की हत्या में राज परिवार की बहुत थू थू हुई थी। हमारे वंश के लंबे लंड और स्तम्भन शक्ति पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध है, दूसरी बात जो शक्तिवर्धक चूर्ण वो खाते थे, उससे लौड़े घातक होकर बहुत देर तक चलते थे बल्कि जिस काग़ज़ की पुड़िया में काम शक्तिवर्धक चूर्ण होता था, खाने के बाद उसे फेंकते तो उसे उठाने में वहाँ सैनिकों में घमासान हो जाता था क्यूंकि वो कागज़ जो भी उसे चाट लेते थे वह भी दो दो घंटे अपनी औरतों को चौदते थे।
कहा तो यह भी जाता है अब भी पिता अपने नौजवान बेटों को किसी न किसी बहाने से यह शक्तिवर्धक चूर्ण चटा ही देते हैं… तो देखा नाम का जादू बेचारा शेक्सपीयर…
आंटी के मुंह से हथियार की बात सुनते ही थोड़ा संभलते हुए मैंने सोचा कि ‘अब गई भैंस पानी में !’ अंकल तो आने वाले नहीं और अब गेंद मेरे पाले में है, अगर आज ढंग से नहीं खेला तो यह आंटी कभी हाथ नहीं धरने देगी।
मैंने पैंतरा बदल कर नई चाल चलते हुए ‘अब जो होना है हो जाए’, थोड़ी हिम्मत करते हुए कहा- इसके दर्शन की अनोखी परंपरा है आप नहीं निभा पाओगी। हथियार बिना कपड़े के बाहर निकलने के बाद सर पर छुआ कर प्रणाम करना पड़ता है जो फिर कोई बात नहीं कोई भी शीश नवा ले, पर जब हथियार दूध में नहाया हो तो प्रणाम की स्थिति भिन्न होती है, दर्शनाभिलाषी को दूध अपनी जीभ से चाट कर साफ़ करना पड़ता है आप कहो तो ठीक नहीं तो मैं वैसे ही ठीक हूँ…
आंटी- फिर धत्त ! कह कर मुँह में अपने सर पर बंधा सफ़ेद काटन का कपड़ा जो उन्होंने नहा कर बाँधा था, हँसते हुए मुंह में ठूंस लिया।
मैंने भी सोचा कि पासा सही पड़ा है, मैं उठने लगा कि जा कर बरमूडा बदलता हूँ, कार्नफ्लेक्स घर पर ही खा लूँगा तो आंटी आगे बढ़ी, शायद इस मौके को वो भी गंवाना नहीं चाहती थीं। अचानक मेरे लंड पर हाथ रख कर बोली- यही विधि है तो यही सही ! पर तू अंकल की लुंगी तो बाँध ले !
कह कर मेरा बरमूडा नीचे खींच दिया। इलास्टिक बेल्ट से टकराते हुए फट की आवाज़ से लौड़ा बाहर कूद पड़ा। आंटी के मुँह से निकला- वाओ ! और अगले ही पल लौड़ा गप्प से मुँह में भर लिया और चूसना शुरू किया, बल्कि यह कहें कि जंगली बिल्ली की तरह उस पर झपट पड़ी और ऐसे चूसने लगी, लगा कि काट कर खा ही जायेगी। लौड़े की जड़ में चिरमिराहट और जलन हो रही थी, मादरचोद राण्डों को भी मात कर रही थी, पूरा सरकाते हुए कंठ तक ले जाती मुँह से जब गुं..गूं.. की आवाज़ आने लगती तो ऐसा लगता यह उल्टी न कर दे !
फिर पुच्च की आवाज़ से लौड़ा बाहर उगल देती फिर थू कर के उस पर थूकती फिर चूसने लगती जब पूरा कंठ तक उतार लेती तो उलटी जैसी हालत हो जाती और आँखों में आंसू तैर जाते ! थोड़ी देर सांस लेने के लिए मुंह से निकालती भी तो हाथ से लगातार रगड़ती जाती ! लौड़ा ऐसे चूस रही थी कि डर लगता था कि टूट ही न जाए !
लेकिन काफी जोर आज़माइश के बाद भी जब कुछ न हुआ, शायद आंटी का ब्लू फिल्म का अनुभव भी काम न आया तो उनकी आँखें चमक उठी। उधर मेरी यह हालत थी कि बस ! क्योंकि अगर ये प्यार से चूसती तो शायद मैं झड़ भी जाता या फिर शायद रात में आंटी के नाम की मुठ मारने की वजह से अभी तक जोर बना हुआ था।
थक कर प्यार से देखते हुए आँखों ही आँखों में बोली- वाकई ! यथा नाम तथा गुण !
मैंने कहा- आप जबरदस्ती परेशान हुई और मुझे बड़े धर्म संकट में डाल दिया ! अब मैं क्या करूँ? घर कैसे जाऊँ? किसी ने देख लिया तो? अब जब तक इसको ठंडक नहीं मिलेगी, बैठेगा नहीं, आपका मुंह गर्म है, कहीं और की गर्मी भी उल्टा काम करती है, जैसे टांगों के बीच की गर्मी अब क्या करूँ यह कैसे बैठेगा…
बड़बड़ाते हुए मासूमियत से आंटी के चेहरे को देखा, अब वहाँ आँखों में लाल डोरे तैर रहे थे, बाल चेहरे पर ऐसे झूम रहे थे जैसे मेघ छोटी सी पहाड़ी के गिर्द घेरा डाले हों, गालों के गड्ढे सिल्क स्मिता की सेक्सी इमेज के हर रिकार्ड को तोड़ने में बिजी थे, हर सांस पर सीना सुनामी ला रहा था।
आंटी मुझे अपने तरफ ऐसे देखते बोली- नहीं ! चल थोड़ी और कोशिश करती हूँ ! फिर पास की टेबल से एक हाल्स की गोली मुंह में डाली और उसे चूसने लगी हाथ से लौड़ा भी हिलाती जा रही थी।
किस्मत की बात, अच्छा हुआ रात में ही मुठ मार ली थी मैंने ! हाल्स का थूक मेरे लंड पर गिरा कर फिर गर्म मुंह और बाहर निकलती तो हाल्स के कारण हवा से ठंडा लगता इस ठन्डे गरम से फुरेरी आने लगी और कई बार लगा बस अब छुट हुई या तब, वीर्य कूद कर बाहर आ ही जायेगा। जैसे ही ऐसा होने लगता, अपना ध्यान इस सबसे भटका और हटाकर आंटी को छेड़कर कहता- अब कुछ नहीं होगा अब तो सारे छेद भर कर भी नहीं मानेगा ! अब यह लेज़र गाईडेड मिसाईल से भी ज्यादा खतरनाक हो गया है।
थोड़ी देर कोशिश के बाद हिम्मत टूट गई और आंटी कहने लगी- बस अब मेरा मुंह दुःख गया, अब तू जो चाहे कर राजा, मैं तेरी दासी ! उन्होंने सर पर कपड़ा कब लपेट लिया था ध्यान ही नहीं रहा।
हाय मेरी सिल्क स्मिता ! मैंने दिल में सोचा, मैंने धीरे से सर का कपड़ा खोला तो सीले सीले बाल मेरे ऊपर आ गए धीरे से ब्लाउज के बटन को एक उंगली से स्टाईल से उचकाकर खोला तो बूब्स बाहर उछल पड़े और आंटी माधवी और भानुप्रिया के मिलेजुले रूप में मेरी स्टाईल पर दाद देती सी लगी कि राजा बहुत घाटों का पानी पिए लगते हो !और आँखों में वो चमक आई जो बराबर वाले खिलाड़ी से प्रतिस्पर्धा में आती है।
खुसरो बाज़ी प्रेम की, मैं खेलूं पी के संग ! जीत गई तो पीया मोरे, हारी तो मैं पी के संग !
द्रविड़ काया, मछली जैसी चिकनी फिसलती स्निग्ध श्यामल चमकीली त्वचा मेंगलौर के बादामी फुल साइज़ कड़क आम उन पर कैरम के बड़े से स्ट्राइकर के बराबर भुने हुए ब्रितानिया के डायजेस्टीव बिस्किट जैसा एरोला उस पर इमली के बीज के बराबर कत्थई निप्पल जो तन कर कड़क हो रहे थे।
मैंने जैसे ही ज़बान से गीला करके होंठों से दबाया और मुंह से चूसकर दांतों से हल्का सा काटते हुए अन्दर सक्शन करते चूसा तो आंटी बेदम हो कर कटे तने की तरह मुझ पर गिरती चली गई। अब मेरे हाथ सरक कर उनके चूतड़ों की दरार पर पहुँचे तो आंटी ने लपक कर मेरे होंटों पर अपने जलते हुए भारी होंठ रख दिए और जो चुसना शुरू किया बीच बीच में ज़बान पूरी की पूरी अपने मुंह में खींच लेती ! कभी निचला होंठ, कभी ऊपरी, कभी जीभ को दांतों से टकरा देती तो कभी दांतों और गालो के बीच ज़बान लपलपा देती।
इस सबसे मैं भी पिघलने लगा, लगने लगा कि इतना सुरीला चूस रही हैं, कही बाहर ही न ढलक जाऊँ, मैंने फिर ध्यान हटाया और आंटी को धकाते हुए कहा- आंटी ! दरवाज़ा तो बंद कर लो !
तो जैसे उन्हें होश आया, जल्दी से उठ कर दरवाज़ा बोल्ट किया, खिड़कियों के परदे ठीक किये, बत्ती बन्द की और मेरे पास दीवान पर ही लुढ़क गई- सन्नी बाबा, यह तुमने क्या कर डाला?
कह कर मेरी टाँगें थोड़ी सी चौड़ी करते हुए पास में सट कर बैठते हुए मेरा लौड़ा सहलाने लगी, फिर मुंह में लेकर धीरे धीरे चूसने लगी। मैंने भी धीरे धीरे पेटीकोट जैसा जो साउथ में पहनते हैं, धीरे धीरे हाथ से ऊपर सरकाना शुरू किया और उनके कूल्हों के गोल गोल खरबूजों पर पर हाथ फेरना शुरू किया तो आंटी ने सरक कर अपने चूतड़ मेरी तरफ कर लिए।
हाथ फेरते फेरते मैंने अंगूठे और तर्जनी से हल्की सी भगनासा या मदन मणि या अंग्रेजी में क्लिट, जो चाहे कह लो, मज़ा कम नहीं होगा, उस पर चुटकी ली तो आंटी का मुँह लंड पर दांत गड़ाने लगा, धीरे से उस गीली रस से झरती चूत में मैंने धीरे से उंगली को घुमाते हुए जी स्पाट टटोलते हुए अन्दर अंगूठा डाल दिया और उसके अन्दर वाले हिस्से को ऊपर की तरफ वाले हिस्से में रगड़ने लगा। आंटी ने जांघें सिकोड़ ली।
कभी कभी जब थोड़ा अन्दर होकर नाख़ून उनके गर्भाशय के मुख से टकराता तो आंटी मेरा हाथ टांगों से इतनी जोर से दबाती कि लगता टूट जाएगा !
गर्भाशय के मुंह की सरसराहट और लपलपाहट अंगूठे पर महसूस हो रही थी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
फिर आंटी सीधी होकर मेरे को लेते हुए बिस्तर पर सीधी हो गईं। मैंने पेटीकोट का नाड़ा खींचा तो पेटीकोट नीचे खींचता चला गया। अन्दर पैंटी नहीं थी, यानि आंटी पहले से तैयार थी !
आंटी सीधी मुझ पर आ गई, मैंने धीरे से नीचे हाथ डालकर लौड़े का सुपारा चूत पर टिका कर हल्का सा धक्का दिया। आंटी ने सांस बाहर छोड़ कर फुरेरी ली और तमिल में न जाने क्या बड़बड़ाती हुई धीरे धीरे ऊपर नीचे होने लगी।
अभी वो पूरा लौड़ा अपनी चूत की गहराई में नहीं ले रही थी और लगता था काफी दिनों से अंकल ने चुदाई नहीं की थी, आधी तिरछी होकर धक्के लगाती रही, फिर मुझे जोर से जकड़ लिया, चूत से मुझे कुछ रिसता हुआ सा महसूस हुआ जो जांघों से होता हुआ आँडूओं पर आया।
सामने ही पंखा चल रहा था, मुझे ठंडी सी फुरेरी आई, तभी आंटी ने भारी भारी साँसें लेते हुए दो चार झटके जोर जोर से दिए और मुझ को कस कर पकड़ा, जिससे मेरे कंधे पर उनके नाख़ून गड़ते से मालूम हुए और गहरी सांस लेकर मुझ पर बेजान सी लुढ़क गई।
‘आई लव यू सन्नी बाबा ! माय डार्लिंग !’ कह कर उतरने लगी।
मैं उसी समय उन्हें लेकर पलट गया, अब आंटी मेरे नीचे थी, अब मैंने आंटी के निप्पल जोर जोर से चूसने शुरू किये तो आंटी बिन पानी की मछली की तरह मचलने लगी।
मैंने उन्हें थोड़ा सा ऊपर करके उनके चूतड़ों के नीच तकिया लगा दिया और टाँगें चौड़ी करके एक ही धक्के में पूरा आठ इंच का हथियार, जो उन्हें देखने की तमन्ना थी, सोचा महसूस करा दूँ, पूरा का पूरा झटके से चूत में पेल दिया।
आंटी दर्द से ऊपर उठने लगी, मैंने उन्हें दबा कर होंठों पर होठों को रखकर अपनी ज़बान मुंह में डाल दी। उनके नथुने फ़ूले और बैचैन हो गई। और उन्हें सांस लेने का मौका देकर लंड थोड़ा पीछे खींचा तो आंटी ने खुद ही मुझ आगे खींच लिया लिया। अब आंटी भी मेरे हर धक्के के साथ कूल्हे उठा उठा कर पूरा साथ देने लग गई। आंटी की चूत से लसलसे फव्वारे चूत रहे थे, उनके सर के कपड़े से पौंछ कर सूखा सुपारा टिकाया और जोर का झटका दिया तो आंटी तड़प उठी- वांट टू किल मी? क्या मुझे मारेगा? और तमिल में कोई गाली दी।
मैंने फिर थोड़ा थूक लंड पर लगा कर दुबारा पेल दिया। आंटी के पैर कभी मेरे कंधे पर कभी हवा में ! थोड़ी देर के घमासान के बाद कहने लगी- बाबा, मेरे पैर दुःख गए !
आंटी का डबलबेड जो किसी इम्पोर्टेड मशीन के पैकिंग बाक्स की लकड़ी से बनाया गया था, आम बेड से काफी बड़ा था, उसका भरपूर फायदा उठाते हुए मैंने उन्हें साइड की करवट दिलाकर 45 डिग्री का एंगल बना कर फिर पीछे से पेलने लगा। अपने सर के नीचे तकिया लगा और थोड़ा दीवार का टेक लेकर अब दायाँ हाथ उनके नीचे से निकाल कर उससे उनका दायाँ बूब सहलाता जा रहा था। बीच बीच में निप्पल उंगली और अंगूठे से दबा देता तो आंटी के मुंह से न चाहते हुए भी सिसकारी निकल जाती, बाएं हाथ को ऊपर से लाकर उससे मैं उनका भगनासा अंगूठे से रगड़ता और सहलाता जा रहा था।
आंटी ने फिर हुंकार भरी जैसे भागती गाय नथुने फुलाती है तो नाक से आवाज़ और पानी के छींटें झटके से निकलने लगते हैं, इसी दशा में आंटी फिर ढेर हो गई।
मैंने अपना बाहर निकाला तो आंटी की चूत का माल लंड पर पंखे की हवा से सूख कर पतला कवर जैसा हो गया जैसे उँगलियों पर वार्निश चिपक जाता है। मेरी तरफ देख कर बोली- एक मिनट सीधा हो जाने दे ! मैंने प्यार से उनकी तरफ देखा तो वो मेरे लौड़े को तिरछी नज़रों से देख रहीं थी !
मुस्कुराते हुए मैंने उनकी बाहों में बाहें डाल कर अपने ऊपर ले लिया, फिर उन्हें अपनी टांगों पर बैठा कर उनकी टाँगें अपने दोनों तरफ डाल ली। अब उनके वक्ष-उभार मेरे सीने पर टकरा रहे थे। उन्होंने अपनी गर्दन मेरे कन्धों पर टिका दी। उनकी सांसों का सीलापन मेरी नाक में समां कर कामवासना और भड़का रहा था, चूत की चिकनाई से मेरे लौड़े का सुपारा अपने आप ही जैसे उनकी चूत में जाने लगा… आंटी बोली- बस यार, मारेगा क्या !
इस पर मैंने उन्हें अपने ऊपर से उतारा तो उन्होंने सोचा कि अब ब्रेक का वक्त है लेकिन मैंने उन्हें लेटने से पहले ही हवा में पकड़ लिया और उन्हें घोड़ी बनाकर दोनों तकियों पर उनकी कोहनी टिकवा दी और पीछे खड़े होकर उनकी पीठ सहलाने लगा, फिर धीरे से घुटनों के बल बैठकर पीछे से आगे उनकी चूत में लौड़ा पेल डाला तो अब इस स्टाईल में चूत इतनी टाईट हो गई कि मुझे लगा अब गया !
दस बारह लगातार झटकों के बाद जब लंड बाहर निकला तो परर की आवाज़ के साथ चूत से हवा निकल पड़ी। हम दोनों को हंसी आ गई। मैंने फिर चूत को पौंछा और जोर से झटका दिया तो आंटी फिर अनाप शनाप गाली बकने लगी।
बाहर निकाल कर लौड़े पर थोड़ा थूक लगाकर फिर पेलना शुरू किया, अब मेरा थूक से गीला अंगूठा आंटी की गांड पर खेल रहा था, धीरे से पोर अन्दर किया तो आंटी तड़प उठी।
‘वाह ! यह तो कुंवारी गांड है ! इसके बाद में मज़े लूँगा !’
इसके बाद झुककर आंटी के स्तन पकड़ कर मसलने लगा। अब आंटी खुद ही चूतड़ पीछे धकलने लगी और हर धक्के पर पट पट की आवाज से मेरे आँड आंटी के चूतड़ों के गोलों और जांघों के संधिस्थल से टकराने लगे। 10 या 12 धक्कों में मैं भी झड़ते हुए मुंह से हुंकार भरती सी आवाज़ निकालते हुए वहीं आंटी पर ढेर हो गया।
आंटी पता नहीं क्या तमिल में बड़बड़ाती रही, फिर इंग्लिश में कुछ पूछा जो मुझे याद नहीं ! मुझ पर नशा सा छाता गया और मैं बिल्कुल बेहोशी की नींद में सो गया।
दो ढाई घंटे बाद लंड पर नर्म गर्म गर्म से अहसास से नींद खुली तो देखा कि आंटी मेरे लंड को चूस रही थी जो आज की धक्कम पेल में सूजा-सूजा सा लग रहा था और बैठे होने के बाद भी बड़ा बड़ा सा लग रहा था।
इसके बाद भी कई साऊथ वालियों से पाला पड़ा लेकिन सबकी चूत में जहाँ अन्दर चूत की नाल समाप्त होकर गर्भाशय शुरू ही होता है वहाँ मांस या नरम हड्डी सा कुछ उभार होता है, लंड जब भी उस से रगड़ खाता है तो चुदाई का अलग ही मज़ा आता है। ऐसा लगता है आपके लंड को कोई अन्दर दबा रहा है। यह यौनशास्त्रियों और एनाटामी फिजियोलाजी, शरीर विज्ञानियों के लिए यह शोध का विषय हो सकता है।
उसके बाद पूरे हफ्ते आंटी ने मुझे नहीं छोड़ा, कई कई स्टाइलों में रात में दिन में मेरे घर में उनके घर में बाथरूम रसोई घर कबाड़ रखने वाली जगह बाद में कई बार उनके नए घर पर काम की प्रगति देखने के बहाने भी उसका शुभारंभ किया।
उस दिन मोबाइल में आंटी की बेटी को देखा था रूपवती बिल्कुल रेवती और अमला का मिलन लग रही थी। देखें अब होलकर का ड्रिल कहाँ चलता है।
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